वॉशिंगटन/नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से चले आ रहे कश्मीर विवाद पर अमेरिका की ओर से एक बार फिर स्पष्ट संकेत मिला है कि वह इस मुद्दे में किसी भी प्रकार की मध्यस्थता करने के पक्ष में नहीं है. यह बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाकर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करता रहा है.
अमेरिकी विदेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मामला है, और अमेरिका इसमें कोई सीधी भूमिका नहीं निभाना चाहता. इस रुख को भारत के दृष्टिकोण का समर्थन माना जा रहा है, जबकि पाकिस्तान के लिए यह एक बड़ा झटका है, जिसने हमेशा अंतरराष्ट्रीय समर्थन के सहारे इस मुद्दे को हवा देने की कोशिश की है.
शहबाज और मुनीर की अमेरिकी दौरे पर निराशा
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, जो इस समय अमेरिका दौरे पर हैं, ने 25 सितंबर को वाशिंगटन में अमेरिकी अधिकारियों से मुलाकात की. उनके साथ पाकिस्तान की सेना के प्रमुख जनरल असीम मुनीर भी मौजूद थे. इस उच्चस्तरीय मुलाकात का उद्देश्य कश्मीर समेत सुरक्षा और रणनीतिक मामलों पर अमेरिका का समर्थन हासिल करना था.
हालांकि, अमेरिकी पक्ष की ओर से यह स्पष्ट संकेत मिला कि अमेरिका भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को अलग-अलग नजरिए से देखता है और भारत को वह एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार मानता है, विशेषकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्रीय रणनीति और आर्थिक सहयोग के दृष्टिकोण से.
"अमेरिका फर्स्ट" नीति और कश्मीर पर रुख
ट्रंप प्रशासन की "अमेरिका फर्स्ट" नीति के तहत अमेरिका हर मामले में अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है. इस नीति के चलते, वॉशिंगटन का रुख साफ है कि उसे कश्मीर मामले में मध्यस्थता की भूमिका निभाने की आवश्यकता नहीं है.
अमेरिका ने पहले भी यह स्वीकार किया है कि भारत के साथ उसके संबंध बहुआयामी हैं- व्यापार, रक्षा, तकनीक और क्षेत्रीय स्थिरता से जुड़े हुए. वहीं, पाकिस्तान के साथ संबंध मुख्यतः आतंकवाद-नियंत्रण, सुरक्षा जोखिमों और सीमित आर्थिक सहायता तक सीमित रहे हैं.
ट्रंप की मध्यस्थता का दावा और भारत की प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्धविराम में उनकी भूमिका रही थी. उन्होंने कहा कि 7 मई को भारत द्वारा शुरू किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद उनके हस्तक्षेप से संघर्षविराम हुआ.
हालांकि, भारत ने इन दावों को सिरे से खारिज कर दिया. भारत का हमेशा से यह कहना रहा है कि पाकिस्तान से जुड़े सभी मामलों, खासकर कश्मीर और आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर, सिर्फ द्विपक्षीय बातचीत के जरिए समाधान निकाला जाएगा. भारत की नीति स्पष्ट है- कोई तीसरा पक्ष, चाहे वह अमेरिका हो या कोई अन्य देश, इसमें दखल नहीं दे सकता.
भारत की स्थायी और स्पष्ट नीति
भारत कई बार यह बात दोहरा चुका है कि कश्मीर, पाकिस्तान से संबंधित अन्य मुद्दों के साथ, भारत की आंतरिक संप्रभुता का विषय है. भारत का मानना है कि तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से समाधान नहीं निकलता, बल्कि उल्टा मामला और जटिल हो जाता है.
भारत की यह नीति न सिर्फ मौखिक रूप से बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी दृढ़ता से रखी गई है. यही कारण है कि भारत ने अब तक किसी तीसरे पक्ष को इस मामले में बातचीत के लिए स्वीकार नहीं किया है, चाहे वह अमेरिका हो, UN हो या कोई अन्य संगठन.
पाकिस्तान की कमजोर होती कूटनीतिक स्थिति
कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की विदेश नीति का केंद्र बिंदु दशकों से यही रहा है कि वह इस मुद्दे को वैश्विक मंचों पर उठाता रहे और अंतरराष्ट्रीय दबाव से भारत को वार्ता के लिए मजबूर करे. लेकिन हाल के वर्षों में उसके प्रयास लगातार विफल होते नजर आए हैं.
भारत की कूटनीतिक सफलता और वैश्विक स्वीकार्यता
जहां पाकिस्तान को निराशा हाथ लग रही है, वहीं भारत की कूटनीति ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत पकड़ बनाई है:
ऐसे में अमेरिका द्वारा कश्मीर मुद्दे से खुद को अलग रखना यह दर्शाता है कि भारत की स्थिति वैश्विक कूटनीति में कहीं अधिक प्रभावशाली हो चुकी है.
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