नई दिल्ली/वॉशिंगटन/रियाद: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इन दिनों अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शांति की बात करते नहीं थकते, लेकिन उनकी विदेश नीति का व्यवहारिक पक्ष कहीं ज्यादा आक्रामक नजर आता है. हाल ही में शुरू हुई उनकी चार दिवसीय खाड़ी देशों की यात्रा इस विरोधाभास को एक बार फिर उजागर कर रही है.
जहां ट्रंप भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता और युद्धविराम में भूमिका की बातें कर रहे हैं, वहीं खुद ईरान के खिलाफ सैन्य दबाव और धमकियों की राजनीति अपना चुके हैं. यह वही अमेरिका है, जो शांति का ढोल पीटते हुए अब खाड़ी देशों को ईरान के खिलाफ लामबंद करने की तैयारी में है.
खाड़ी यात्रा में 'शांति' की बातें, लेकिन असल एजेंडा 'ईरान घेराव'
ट्रंप की यात्रा की शुरुआत सऊदी अरब से हुई, जहां उन्होंने क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से कई व्यापारिक समझौते किए. लेकिन, असल चर्चा का केंद्र ईरान रहा. सूत्रों के अनुसार, ट्रंप खाड़ी देशों से ईरान के खिलाफ समर्थन जुटाना चाहते हैं, ताकि आगे की रणनीति को मजबूती मिल सके.
इसके बाद ट्रंप कतर के अमीर से मुलाकात करेंगे और सीरिया के अंतरिम नेता अहमद अल-सरा से भी मिलने का कार्यक्रम है. इन मुलाकातों का उद्देश्य क्षेत्रीय समीकरणों में अमेरिकी पकड़ को मज़बूत करना और ईरान को चारों ओर से दबाव में लाना है.
धमकियों और प्रतिबंधों के जरिए ईरान पर दबाव
ट्रंप सरकार पहले ही ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा चुकी है और परमाणु कार्यक्रम को लेकर तनाव लगातार बढ़ रहा है. अमेरिका का आरोप है कि ईरान एक गुप्त परमाणु हथियार कार्यक्रम चला रहा है, जबकि ईरान दावा करता है कि उसका प्रोजेक्ट केवल नागरिक ऊर्जा जरूरतों के लिए है.
ट्रंप ने ईरान को दो टूक चेतावनी दी है—यदि तेहरान परमाणु समझौते पर आगे नहीं बढ़ता, तो उसे अमेरिकी सैन्य कार्रवाई और आर्थिक सख्ती का सामना करना पड़ेगा. यहां तक कि अमेरिका ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली बम ले जाने में सक्षम B2 बमवर्षक विमान को भी ईरान के आसपास तैनात कर दिया है.
खामनेई का करारा जवाब – 'शीशे के घरों में बैठकर पत्थर मत फेंको'
ट्रंप की धमकियों पर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामनेई ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है. उनका कहना है, “जिनके अपने घर शीशे के हों, उन्हें दूसरों पर पत्थर फेंकने से बचना चाहिए.” उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अमेरिका ने कोई सैन्य कार्रवाई की, तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.
जून-जुलाई में टकराव की आशंका, रणनीतिक घेराबंदी तेज
कूटनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि अगर ट्रंप को खाड़ी देशों का समर्थन मिल गया, तो जून-जुलाई में हालात और गर्मा सकते हैं. अमेरिकी सेना की गतिविधियां इस ओर इशारा कर रही हैं कि वॉशिंगटन अब किसी बड़ी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है.
ये भी पढ़ेंः मम्मी-पापा, बहन, मौसी... सबको तलवार से काट दिया; कोर्ट में बोला- आत्मा निकलते देखना था