कोई बात नहीं मानता, दुनिया से फ्रस्‍टेट हो रहे 'बेचारे' ट्रंप; भारत-पाक के बाद रूस-यूक्रेन से भी हारे?

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दावा था कि वह सत्ता में आते ही रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवा देंगे, लेकिन अब जब वे 20 जनवरी 2025 को दोबारा राष्ट्रपति पद की शपथ ले चुके हैं, तो नतीजे उनकी उम्मीदों से दूर दिखाई दे रहे हैं.

    Trump frustrated with world India-Pakistan Russia-Ukraine
    डोनाल्ड ट्रंप | Photo: ANI

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दावा था कि वह सत्ता में आते ही रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवा देंगे, लेकिन अब जब वे 20 जनवरी 2025 को दोबारा राष्ट्रपति पद की शपथ ले चुके हैं, तो नतीजे उनकी उम्मीदों से दूर दिखाई दे रहे हैं. शांति की पहल को लेकर उनकी कोशिशें ना केवल ठंडी पड़ती दिख रही हैं, बल्कि इस मुद्दे पर भी ट्रंप को वैश्विक मोर्चे पर वही फजीहत झेलनी पड़ रही है जैसी भारत-पाक तनाव में 'क्रेडिट लेने की जल्दबाजी' के चलते हो चुकी है.

    ‘थक चुके हैं ट्रंप’: वाइट हाउस की स्वीकारोक्ति

    व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने एक प्रेस ब्रीफिंग में साफ कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप अब रूस और यूक्रेन—दोनों पक्षों के अड़ियल रुख से बेहद निराश हैं. उन्होंने बताया कि ट्रंप की दोनों नेताओं से अलग-अलग फोन पर बातचीत तय है, लेकिन यह स्पष्ट है कि उनकी पहल को अब तक वह समर्थन नहीं मिला जिसकी उन्हें उम्मीद थी.

    ट्रंप ने हाल ही में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की पर आरोप लगाया था कि उन्होंने अमेरिकी मदद का दुरुपयोग किया. इसके विपरीत उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बातचीत को “शांति के लिए अनिवार्य” बताया. हालांकि पुतिन की ओर से बातचीत में सीधी भागीदारी न होने के चलते यह पहल फिलहाल अटकी हुई है.

    तुर्की में शांति की टेबल पर सन्नाटा

    इस हफ्ते तुर्की के इस्तांबुल में रूस और यूक्रेन के बीच तीन साल बाद सीधी शांति वार्ता हुई, लेकिन परिणाम के नाम पर सिर्फ 1000-1000 युद्धबंदियों की अदला-बदली की सहमति बनी. असल मुद्दों पर दोनों पक्ष टस से मस नहीं हुए.

    रूस की मांग थी कि यूक्रेन चार विवादित क्षेत्रों से अपनी सेना हटाए, जिसे जेलेंस्की सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया. यूक्रेन का प्रस्ताव है कि पहले 30 दिनों का युद्धविराम लागू हो, लेकिन रूस इसकी कोई आवश्यकता नहीं मानता. इस गतिरोध ने ट्रंप के लिए कूटनीतिक चुनौती और भी कठिन बना दी है.

    ट्रंप की ‘फास्ट डिप्लोमेसी’ हो रही धीमी

    डोनाल्ड ट्रंप ने चुनावी रैलियों में बड़े भरोसे से कहा था कि वह सत्ता में आते ही “24 घंटे के भीतर युद्ध रुकवा सकते हैं.” अब वही ट्रंप शांति समझौते को लेकर एक भी ठोस सफलता नहीं हासिल कर पाए हैं. इससे उनकी ‘स्ट्रॉन्ग डीलमेकर’ की छवि को झटका लगा है.

    राजनयिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह दावा एकतरफा राजनीतिक बयानबाज़ी था, जो जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाती. युद्ध की जटिलता, रूस और यूक्रेन की रणनीतिक स्थितियां और अंतरराष्ट्रीय ध्रुवीकरण को देखते हुए इतनी आसानी से समाधान संभव नहीं है.

    भारत-पाक के बाद एक और मोर्चे पर हताशा

    गौरतलब है कि इससे पहले भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान भी ट्रंप ने ‘मध्यस्थता’ का श्रेय लेने की कोशिश की थी, लेकिन भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने साफ शब्दों में अमेरिका की भूमिका को खारिज कर दिया था. अब वही कहानी रूस-यूक्रेन मसले पर दोहराई जाती दिख रही है, जहां राष्ट्रपति ट्रंप की ‘फॉरेन पॉलिसी’ की चमक फीकी पड़ रही है.

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