बस एक फोन कॉल और बदल जाता पाकिस्तान का नक्शा, घुसने को तैयार थी भारतीय सेना, कारगिल जंग की अनसुनी कहानी

    कारगिल युद्ध 1999 की गिनती भारतीय सैन्य इतिहास की सबसे निर्णायक लड़ाइयों में होती है. लेकिन इस युद्ध की कुछ परतें अब भी व्यापक चर्चा से दूर हैं.

    The unheard story of the Kargil war Indian Army
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- ANI

    नई दिल्ली: कारगिल युद्ध 1999 की गिनती भारतीय सैन्य इतिहास की सबसे निर्णायक लड़ाइयों में होती है. लेकिन इस युद्ध की कुछ परतें अब भी व्यापक चर्चा से दूर हैं. एक ऐसी ही अनसुनी कहानी उस ऑपरेशन से जुड़ी है, जो अगर अंजाम तक पहुंचता, तो दक्षिण एशिया के नक्शे पर बड़ा बदलाव हो सकता था.

    युद्ध के शुरुआती दिनों में जब पाकिस्तानी घुसपैठ की पुष्टि हुई, तब भारतीय सेना सिर्फ घाटियों और चोटियों पर कब्जा वापस लेने तक सीमित नहीं थी—बल्कि एक रणनीतिक जवाबी हमले की भी पूरी तैयारी कर रही थी. यह जवाबी कार्रवाई पाकिस्तान के भीतर तक जाने की थी, और इसे अंजाम देने के लिए एक विशेष ऑफेंसिव फॉर्मेशन को तैनात कर दिया गया था. बस इंतजार था एक अंतिम 'फोन कॉल' का.

    जनरल मोबिलाइजेशन और खास फॉर्मेशन की तैनाती

    मई 1999 में बटालिक के पास एक स्थानीय चरवाहे द्वारा पाकिस्तानी सैनिकों की मौजूदगी की सूचना देने के कुछ ही दिनों बाद भारतीय सेना ने जनरल मोबिलाइजेशन के आदेश जारी कर दिए.

    इसके तहत एक विशेष इन्फैंट्री बटालियन को जम्मू-कश्मीर और पंजाब की अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास तैनात किया गया. बटालियन के कमांडिंग अफसर और 850 से अधिक जवानों को स्पष्ट निर्देश दिए गए कि वे किसी भी समय दुश्मन के क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं.

    तैयारी थी पूरी: बस आदेश की थी प्रतीक्षा

    इस फॉर्मेशन को पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में घुसकर कब्जा करने का जिम्मा दिया गया था. बटालियन की ट्रेनिंग तत्काल शुरू हुई. युद्ध अभ्यास के दौरान असली हथियार इस्तेमाल किए गए, लेकिन गोला-बारूद ट्रेनिंग की अंतिम अवस्था तक रोका गया.

    • डीसीबी (Ditch Cum Bund) और माइनफील्ड को पार करने की रियल-टाइम ड्रिल रोजाना की जाती थी.
    • सैनिकों को दुश्मन की रणनीतिक रेखाओं को पार करने की विशेष तकनीक सिखाई जा रही थी.
    • जुलाई तक बटालियन को असल गोला-बारूद सौंप दिया गया था.

    बस जरूरत थी एक अंतिम निर्देश की — जिसमें मिशन का टाइम, पासवर्ड और अगली कार्रवाई की जानकारी दी जाती.

    ऑर्डर नहीं आया, पर हौसले बुलंद रहे

    चार महीने तक यह फॉर्मेशन अपनी तैयारी को दोहराता रहा, पूरी तरह सक्रिय मोड में तैनात रहा. अक्टूबर तक हर सैनिक यह मान कर चल रहा था कि हमला कभी भी शुरू हो सकता है. लेकिन फिर नवंबर में एक आदेश आया — जिसमें वापसी के निर्देश थे.

    युद्ध में तो भारत ने कारगिल की सभी चोटियों को फिर से अपने नियंत्रण में ले लिया था, लेकिन यह जवाबी सैन्य योजना अमल में नहीं लाई गई.

    क्या होता अगर...?

    सेना के सूत्रों के अनुसार, अगर आदेश मिल जाता तो भारतीय सेना सीमापार कार्रवाई कर सकती थी — और संभव है कि आज पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति वैसी न होती जैसी है. लेकिन सरकार ने यह निर्णय नहीं लिया, शायद अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक समीकरणों और रणनीतिक स्थिरता को ध्यान में रखते हुए.

    DCB क्या है?

    डीसीबी (Ditch-Cum-Bund) एक सैन्य रक्षात्मक संरचना है जो सीमाओं पर दुश्मन की बख्तरबंद टुकड़ियों की घुसपैठ को रोकने के लिए तैयार की जाती है.

    • पहले माइन फील्ड होता है
    • फिर गहरे गड्ढे और नाले बनाए जाते हैं
    • उसके बाद मिट्टी के ढेर के भीतर पक्के बंकर स्थापित होते हैं

    यह संरचना खास तौर पर टैंकों की आवाजाही रोकने के लिए बनाई जाती है.

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