होने वाली है तीन महाशक्‍त‍ियों की मुलाकात, इस बार केंद्र में होगा भारत, क्‍या बदलेगा वर्ल्‍ड ऑर्डर?

    एक वक्त था जब वैश्विक राजनीति की धुरी वाशिंगटन, लंदन और ब्रुसेल्स जैसे शहरों से घूमती थी. लेकिन अब तेजी से उभरते बदलाव इस बात के संकेत दे रहे हैं कि एक नया वर्ल्ड ऑर्डर आकार ले रहा है, और इसकी धुरी भारत, चीन और रूस जैसे देशों की ओर शिफ्ट होती नजर आ रही है.

    The three superpowers India China and Russia are going to meet
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    एक वक्त था जब वैश्विक राजनीति की धुरी वाशिंगटन, लंदन और ब्रुसेल्स जैसे शहरों से घूमती थी. लेकिन अब तेजी से उभरते बदलाव इस बात के संकेत दे रहे हैं कि एक नया वर्ल्ड ऑर्डर आकार ले रहा है, और इसकी धुरी भारत, चीन और रूस जैसे देशों की ओर शिफ्ट होती नजर आ रही है.

    अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया फैसले खासकर भारत पर लगाया गया 50% टैरिफ ने न केवल आर्थिक मोर्चे पर हलचल मचा दी है, बल्कि वैश्विक गठबंधनों की दिशा भी बदल दी है.

    इस समय भारत की भूमिका केवल एक 'बैलेंसिंग पावर' तक सीमित नहीं है. भारत अब खुद एक नई विश्व व्यवस्था की संरचना में सक्रिय भागीदार और केंद्रबिंदु बनता दिख रहा है.

    ट्रंप पॉलिसी बन रही है अमेरिका के लिए उलटी चाल?

    डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ जो आर्थिक कदम उठाया, यानी रूस से तेल खरीदने पर आपत्ति जताते हुए भारत पर भारी-भरकम टैरिफ वह अमेरिका की परंपरागत मित्रता और रणनीतिक साझेदारी की नीति से उलट है.

    इसका असर सिर्फ व्यापारिक आंकड़ों पर नहीं, बल्कि कूटनीतिक समीकरणों पर भी पड़ रहा है. भारत, रूस और चीन अब पहले से कहीं ज़्यादा करीब आते दिख रहे हैं. यह सिर्फ एक अस्थायी समीकरण नहीं, बल्कि विश्व राजनीति का दीर्घकालिक ट्रेंड बन सकता है.

    अमेरिका की "अमेरिका फर्स्ट" नीति अब बाकी देशों के लिए "अमेरिका ओनली" जैसी लगने लगी है और यही वह बिंदु है जहाँ भारत जैसे देश विकल्पों की तलाश में आगे बढ़ते हैं.

    रूस-भारत की बढ़ती निकटता: पुतिन का भारत दौरा है अहम

    इन तमाम घटनाक्रमों के बीच सबसे बड़ी खबर यह रही कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जल्द भारत का दौरा करने वाले हैं. यह दौरा यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पुतिन की पहली भारत यात्रा होगी, जो दोनों देशों के रिश्तों को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है.

    राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल द्वारा दी गई इस जानकारी ने साफ कर दिया कि भारत-रूस रिश्तों में गर्मजोशी बरकरार है.

    पुतिन की यह यात्रा महज़ एक औपचारिक दौरा नहीं, बल्कि एक कूटनीतिक संदेश है, यह संदेश कि भारत अब भी रूस का करीबी साझेदार है, और अमेरिकी दबाव भारत के निर्णयों को प्रभावित नहीं कर सकता.

    पुतिन-ट्रंप की मुलाकात: भारत बनेगा अहम एजेंडा?

    इसी बीच खबर यह भी है कि ट्रंप और पुतिन के बीच जल्द ही प्रत्यक्ष मुलाकात हो सकती है. रिपोर्ट्स के मुताबिक ट्रंप यूक्रेन युद्ध को किसी तरह सुलझाना चाहते हैं ताकि भारत जैसे देशों के साथ उनका टकराव कम हो सके.

    कूटनीतिक हलकों में चर्चा है कि भारत के खिलाफ लगाया गया टैरिफ, यूक्रेन युद्ध से जुड़ी अमेरिकी हताशा का नतीजा था. ऐसे में अगर पुतिन-ट्रंप वार्ता होती है, तो उसमें भारत का मुद्दा प्रमुख एजेंडा बन सकता है.

    यानी भारत इस वार्ता का एक अहम मोहरा नहीं, बल्कि एक निर्णायक शक्ति बनकर उभर सकता है.

    मोदी का चीन दौरा: जमी बर्फ पिघल रही है?

    पुतिन के दौरे की खबर के साथ ही यह जानकारी भी सामने आई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त को चीन के तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में भाग लेने जा रहे हैं.

    यह वही चीन है, जिसके साथ 2020 में गलवान संघर्ष के बाद भारत के संबंधों में खटास आ गई थी. लेकिन अब, चार साल बाद, मोदी की यह यात्रा दोनों देशों के रिश्तों में एक नई शुरुआत का संकेत दे रही है.

    पिछले कुछ महीनों में चीन ने कई बार भारत की सार्वजनिक मंचों पर तारीफ की है. चीनी प्रवक्ताओं ने यहां तक कहा है कि "भारत और चीन एक-दूसरे को रिप्लेस नहीं करेंगे, बल्कि साथ मिलकर आगे बढ़ेंगे."

    यह नया मूड SCO जैसे मंचों पर भारत-चीन-रूस की साझेदारी को फिर से प्रासंगिक बना सकता है.

    क्या RIC फिर से जिंदा हो रहा है?

    RIC (Russia–India–China) फॉर्मेट, जो लंबे समय से कूटनीतिक ठंड में पड़ा था, अब फिर से सक्रिय होता दिख रहा है. भारत, रूस और चीन तीनों की सामूहिक गतिविधियाँ और उच्च स्तरीय यात्राएँ इस बात की तरफ इशारा कर रही हैं कि यह तिकड़ी फिर से वैश्विक संतुलन बनाने के लिए एक साथ आ सकती है.

    अगर RIC सक्रिय होता है, तो यह न सिर्फ BRICS और SCO को और मजबूत बनाएगा, बल्कि पश्चिमी देशों के वर्चस्व को एक बड़ी चुनौती भी देगा.

    अभी तक RIC की अगली बैठक की तारीख तय नहीं हुई है, लेकिन तैयारियाँ चल रही हैं. इस बार अगर भारत समन्वयक की भूमिका निभाता है, तो अमेरिका के लिए यह सबसे बड़ी कूटनीतिक चुनौती होगी.

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