'भारत के 120 फाइटर प्लेन गिरा चुके...', पढ़ें 1971 के जंग में पाकिस्तान के नॉरेटिव वॉर झूठ की कहानी

    पाकिस्तान ने 1971 के युद्ध के दौरान भारत के खिलाफ ठीक यही रणनीति अपनाई, एक ऐसे "नैरेटिव वॉर" का निर्माण जिसमें जीत कागज़ों पर हासिल कर ली गई, भले ही ज़मीनी हालात इसके बिल्कुल उलट थे.

    The story of Pakistans narrative war in the 1971 war
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    नई दिल्ली/इस्लामाबाद: जब हकीकत से सामना करने की हिम्मत न हो, तो कल्पनाओं की उड़ान आसान लगती है. पाकिस्तान ने 1971 के युद्ध के दौरान भारत के खिलाफ ठीक यही रणनीति अपनाई, एक ऐसे "नैरेटिव वॉर" का निर्माण जिसमें जीत कागज़ों पर हासिल कर ली गई, भले ही ज़मीनी हालात इसके बिल्कुल उलट थे.

    ऑपरेशन सिंदूर जैसे हालिया सैन्य अभियानों में भारत की स्पष्ट रणनीतिक बढ़त देखने के बावजूद, पाकिस्तान का प्रोपेगेंडा तंत्र आज भी उसी पुरानी लकीर को पीट रहा है, जो उसने 1971 के युद्ध के दौरान खींची थी.

    1971 में '120 विमान' गिराने का दावा

    पाकिस्तान ने 1971 के युद्ध के शुरुआती दिनों में अपने सरकारी मीडिया और सैन्य बुलेटिन के जरिए दावा किया कि उसने भारत के 120 लड़ाकू विमान मार गिराए हैं. यह कथन उस समय के लिए भी अवास्तविक और हास्यास्पद था.

    यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 4 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी अखबार डॉन ने छापा कि पाकिस्तान ने भारत के 7 हवाई अड्डों पर हमला किया है, जिनमें आगरा जैसे रणनीतिक ठिकाने भी शामिल हैं.

    इसके अगले ही दिन, वही अखबार यह दावा करता है कि 49 भारतीय विमानों को पाक वायुसेना ने ढेर कर दिया. और फिर 6 दिसंबर तक यह आंकड़ा 120 तक पहुंच जाता है.

    असलियत? युद्ध के समापन पर भारत ने पाकिस्तान के 93000 सैनिकों को बंदी बना लिया और एक नए देश 'बांग्लादेश' का उदय हुआ.

    जमीनी सच को ढंक नहीं सके झूठ

    1971 का युद्ध भारत के लिए सैन्य और कूटनीतिक दृष्टि से निर्णायक था. पाकिस्तान की सेना ने बांग्लादेश में मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन किए थे, और जब भारत ने हस्तक्षेप किया, तो 13 दिनों में युद्ध का पासा पलट गया.

    16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाज़ी ने ढाका में भारतीय जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण किया. यह अब तक का सबसे बड़ा सैन्य सरेंडर था और उस "120 विमान" की कहानी को इतिहास के कूड़ेदान में डालने के लिए काफी था.

    प्रोपेगेंडा मशीनरी बनाम तथ्य

    पाकिस्तानी मीडिया, विशेष रूप से उस दौर के सरकारी अखबारों और रेडियो नेटवर्क ने जनता को "मनगढ़ंत जीत" की खबरें परोसीं. जबकि जमीनी सच्चाई यह थी कि:

    • भारत ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को सैन्य रूप से अलग कर दिया.
    • पाकिस्तान के सैकड़ों टैंक, जहाज़ और विमानों को नुकसान हुआ.
    • दुनिया की नजर में भारत एक मानवीय और सैन्य नेतृत्व का उदाहरण बनकर उभरा.

    इसके उलट पाकिस्तान अपनी हार को जीत में बदलने की असफल कोशिश करता रहा, जिससे न केवल जनता को भ्रमित किया गया, बल्कि आगे चलकर ऐतिहासिक सच्चाइयों को भी नकारने की प्रवृत्ति बढ़ी.

    इतिहास से सबक नहीं सीखा गया?

    आज जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से पाकिस्तान को एक बार फिर चेतावनी दी है कि आतंकवाद का समर्थन भारी पड़ेगा, तब भी पाकिस्तानी बयानबाजी में 1971 वाला फॉर्मूला दिखता है: जमीनी सच्चाई से मुँह मोड़ो, और झूठ को राष्ट्रीय गौरव की तरह परोस दो.

    लेकिन यह 1971 नहीं है. अब वैश्विक मीडिया, उपग्रह तस्वीरें, और ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) के ज़रिए सच ज़्यादा देर तक छुपाया नहीं जा सकता.

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