The JC Show: Is Trump Trying To Destabilise The World Economy ? ... नहीं झुकेगा मोदी

    The JC Show: नमस्कार आप सभी का स्वागत है भारत 24 पर. मैं हूं आपके साथ पूर्णिमा मिश्रा और हम आपके लिए लेकर आए हैं द जेसी शो और मेरे साथ मौजूद हैं भारत 24 के सीईओ और एडिटर एंड चीफ और फर्स्ट इंडिया के सीएमडी और एडिटर चीफ डॉ. जगदीश चंद्र. ने शो में शिरकत की.

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    The JC Show: नमस्कार आप सभी का स्वागत है भारत 24 पर. मैं हूं आपके साथ पूर्णिमा मिश्रा और हम आपके लिए लेकर आए हैं द जेसी शो और मेरे साथ मौजूद हैं भारत 24 के सीईओ और एडिटर एंड चीफ और फर्स्ट इंडिया के सीएमडी और एडिटर चीफ डॉ. जगदीश चंद्र. ने शो में शिरकत की. क्या डोनाल्ड ट्रंप वाकई दुनिया की अर्थव्यवस्था को डीएल करने में लगे हुए हैं? क्या भारत पर टेरिफ का दबाव बनाकर अमेरिका फिर से ग्रेट बनना चाहता है? या फिर यह ग्लोबल ट्रेड वॉर की एक नई शुरुआत है. ट्रंप के तेवर जो ना केवल भारत को आंखें दिखा रहे हैं बल्कि रूस, चीन और यूरोप जैसे देशों की अर्थव्यवस्थाओं को खुली चुनौती दे रहे हैं. 

     

    सवालः आज हमने जेसी शो की हेडलाइन रखी है. इज ट्रंप ट्राइंग टू डीस्टेबलाइज द वर्ल्ड इकॉनमी? नहीं झुकेगा मोदी. इसके मायने क्या है सर?

    जवाबः इस सवाल का जवाब देते हुए भारत 24 के सीईओ और एडिटर एंड चीफ जगदीश चंद्र ने कहा कि It is अबब्सोलुटली क्लियर. ट्रंप इस इज़ ट्राइंग टू डिस्टेबलाइज़ और डीरेल द वर्ल्ड इकॉनमी. वर्ल्ड इकॉनमी को एक प्रकार से उन्होंने बंधक बना लिया है. कई देशों को तोड़ने में लगे हुए हैं. चाइना को तोड़ने में लगे हैं. रशिया को तोड़ने में लगे हैं. ईरान को तोड़ने में लगे हैं. और अब भारत को भी तोड़ने में लगे हैं. 

    इसलिए कुछ लोग ये कह रहे हैं कि ट्रंप इज अ डिजास्टर इन ट्रेड वर्ल्ड. ट्रंप इज अ बुल इन चाइना शॉप. और यह कैसे तोड़ रहे हैं? यह दो प्रकार से इकॉनमी को डीरल कर रहे हैं. पहला तो यह कि सभी राष्ट्रों पे हायर टेरिफ लगा करके उनकी अर्थव्यवस्था को हिलाना डुलाना एक तरह से डिस्टेबलाइज करना और दूसरा यह कि हायर टेरिफ के साथ-साथ उनको उस कंट्री में इन्वेस्ट करने के लिए अमेरिका में इन्वेस्ट करने के लिए दबाव डालना उन्हें मजबूर करना एक्सटॉशन या ब्लैकमेल आप कहिए. तो दोतरफा तलवार जो है ट्रंप इन राष्ट्रों पर चला रहे हैं. जहां तक रहा भारत का सवाल नरेंद्र मोदी झुकने का कोई प्रश्न नहीं है. भारत झुकेगा नहीं. 

    145 करोड़ लोगों के नेतृत्व के साथ आर्थिक क्षमताओं के साथ नरेंद्र मोदी आज टॉप पे हैं. पॉपुलरिटी के टॉप पे हैं. आर्थिक साम्राज्य जो है देश का उसके टॉप पे हैं. और कोई ऐसी संभावना नहीं है कि नरेंद्र मोदी ट्रंप के आगे झुके. अल्टीमेटली होगा ट्रंप विल हैव टू रियलाइज. एक दिन प्रायश्चित करेंगे कि एक अच्छे दोस्त को उन्होंने डिसपॉइंट किया इस सारे प्रोसेस में और देर सेवेर यह सारा जो शो है टेररिस्ट का इट विल प्रूव टू बी अ बिग फ्लॉप एट द एंड ऑफ़ द डे ऐसा लगता है. 

    सवालः सर ट्रंप रिसेंटली थ्रेटेंड इंडिया जो अभी तक लगाया टारिफ उससे मन नहीं भरा है क्या डोनाल्ड ट्रंप का? 
    जवाबः उन्होंने कहा कि हायर टेरिफ 50% ट्रंप के माइंड का कुछ पता नहीं. और कारण नाराजगी किस बात की है कि रशिया से आप जो तेल ले रहे हैं उसको बाजार में बेच के आप मुनाफा कमा रहे हैं. कितनी मूर्ख्तापूर्ण बात है ये? ऐसा हो सकता है कभी आप बताइए. और फिर दूसरा ये कि आप रशियन इकॉनमी को फ्यूल कर रहे हैं. वो यूक्रेन में इतने हमारे लोगों को मार रहे हैं. वहां पे लड़ाई चल रही है. मैं युद्ध विराम नहीं करा पा रहा. काल्पनिक बातें एक तरह से जो है तो कर रहे हैं वो काल्पनिक बातें जो है टेफ के फ्रंट पे पिटे हैं यहां तक कोई भी कंट्री बड़ा हो सबसे पिटे हैं एक बार फिर पिट जाएंगे भारत से भी उनको मन की तसल्ली पूरी कर लेने दीजिए

    सवालः सर क्या चीन की तरह भारत भी नहीं झुकेगा ट्रंप के सामने ट्रंप की धमकियों के सामने?

    जवाबः अबब्सोलुटली चीन बिल्कुल नहीं झुक रहा झुकेगा भी नहीं चीन ने दो टूक उनसे कहा है कि टेरिफ थ्रेट विल नॉट वर्क विद अस वी हैव टू डिफेंड आवर स्वर्जिटी यह दो टूक लाइन कह के उन्होंने अपने आप को मुक्ति पा ली और ट्रंप की हिम्मत नहीं कि चाइना का नाम फिर से ले किसी रेफरेंस में किसी कन्वर्सेशन में भारत की लाइन भी यही है उससे थोड़ा ज्यादा कड़ी है भारत की लाइन जो है भारत का दो टूक है नरेंद्र मोदी का दो टूक है कि वी आर ओपन ऑन डायलॉग टेबल बट अंडर प्रेशर नो डील विल बी डन ये बिल्कुल क्लेरिटी है यहां पे जो है तो इसलिए मुझे किसी प्रकार से नहीं लगता है कि भारत इस डील में कहीं झुकेगा या करेगा और एक बात जरूर है, कि विदेश मंत्री ने कहा है कि ट्रंप का जो टैरिफ जो पॉलिसी है भारत के लिए यह अनजस्टिफाइड है अनरीज़नेबल है. 

    यह कहा है और आज तो डबोल और मॉस्को गए हुए हैं. अफसोस भारत को यह है कि ट्रंप डजंट अंडरस्टैंड द ग्राउंड मार्केटिंग रियलिटीज ऑफ द ट्रेड जो है. और दूसरा यह कि जो उनका सिस्टम है फीडबैक का डाटा फीडबैक सिस्टम दैट इज़ डिफेक्टिव. और तीसरी बात यह कि फॉरगेट्स दैट इंडिया एंड अमेरिका आर स्ट्रेटेजिक की अलाइ इन देयर इंडोपेसिफिक पॉलिसी 

    इंडोपेसिफिक जो प्लान है उनका महासागर का जो प्लान है उसके पार्टनर हैं स्ट्रेटेजिक पार्टनर हैं. इनको भूल जाते हैं. तो कुल मिला के ऐसा लग रहा है कि आज की तारीख में इंडिया कैन नॉट बी टेकन एस ग्रांटेड एंड इंडिया विल बी एस टफ एस चाइना हैड बीन विद ट्रंप. 

    सवालः सर टेरिफ के मामले में भारत की नहीं झुकने वाली स्थिति में क्या यह भी पॉसिबल है कि अमेरिका भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दे? 

    जवाबः इसपर डॉय जगदीश चंद्र ने जवाब देते हुए कहा कि कोई चांस नहीं है. आर्थिक प्रतिबंध में अमेरिका पिट चुका है कई बार. सबसे पहले 1971 में आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे जब बांग्लादेश का जन्म हुआ था. भारत-पाकि युद्ध के बाद पिट गए जो है. उसके 1974 में पोकरण वन हुआ जब इंदिरा गांधी के टाइम में आर्थिक प्रतिबंध लगे. फिर पिटे. 

    फिर 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी थे जब तब परमाणु विस्फोट हुआ. पोकरण टू जो है वो फिर पिटे तो जो आर्थिक प्रतिबंधों की कहानी है और अभी आपने देखा है उस घटना के बाद में आज पिछले 20 वर्षों में जबजब आर्थिक प्रतिबंध लगे हैं वो सब नाम मात्र के थे वो सक्सेस नहीं हुए और खाली एक सिंबॉलिक है कि आर्थिक प्रतिबंध है वो कभी कामयाब नहीं हुए तो इन द प्रेजेंट सिनेरियो देयर इज़ नो पॉसिबिलिटी एट ऑल कि यूएस जो है हम पे आर्थिक प्रतिबंध लगाए. 

    सवालः सर मोदी और ट्रंप के बीच में जो दोस्ती है आपसी शिष्टाचार है और एक जो आंखों की शर्म होती है उन सबको दरकिनार करते हुए ट्रंप ने जो ये भड़काने वाली कारवाई की है इसको लेकर मोदी अभी तक संयम और धैर्य कैसे रखते हैं और क्या इसके बाद भी इनके बीच में जो ट्रेड टॉक्स है वो जारी रहने वाली है?

    जवाबः देखो ऐसा है कि मोदी समझदार आदमी हैं. जिसे कहते हैं ना कि यू हैव टू बाय पीस एट ऑल कॉस्ट. इट इज़ नेवर एक्सपेंसिव. फिर यह होता है कि क्षमा करो आगे बढ़ो. एक माइंड है उनका. और सब्जेक्ट इतना सेंसिटिव है कि टिट फोर ट्रेड की पॉलिसी नहीं हो सकती. 

    इसलिए यह कहा गया है कि जो एक लिमिटेड रिस्पांस था इंडिया का इट इज बेसिकली एम्ड टू डिफ्यूज टेंशन विद अमेरिका. फिर यह भी कहा गया कि इंडिया एंड यूएस आर वेरी बिग स्ट्रेटेजिक पार्टनर्स. फिर यहां भी कहा गया ये कि इंडिया एंड यूएस आर नेचुरल एलआई एंड अमेरिका ऑलवेज मस्ट कीप इन माइंड कि इंडिया विल ऑलवेज रिटेन इट्स इंडिपेंडेंट डिप्लोमेसी.

    इंडिपेंडेंट जो उसकी प्रेजेंस है उसको मेंटेन करेगा. तो सरकार भी धीरे-धीरे कर रही है इस तरह से. तो अभी कोई चांस नहीं है. नरेंद्र मोदी मस्ट बी डिसपॉइंटंटेड पर्सन टू ऑल इन द गेम. 

    सवालः सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के अगर पुन रिश्तों की पृष्ठभूमि को देखा जाए तो ट्रंप के इस अनग्रेटफुल एटीट्यूड को आप कैसे देखते हैं? 

    जवाबः जो मस्क का सगा नहीं हुआ. उस मस्क चुनाव जीतने में इतनी मदद की. जेब से पैसे लगाए. उनके साथ कंधे से कंधा मिला खड़ा रहा. एक बिजनेस कॉरपोरेट होते हुए भी सिंग गवर्नमेंट का रिस्क लिया उनकी नाराजगी का. इसके बावजूद आज अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं. तो ट्रंप तो ट्रंप है इन अ वे जो कहा जाए और ये नरेंद्र मोदी की स्थिति है. 

    आप देखिए हाउ डी मोदी जो किया था टेक्सास में जो है में था टेक्सास में था वहां पे जो है 1 लाख लोग आए नरेंद्र मोदी के आकर्षण में सुनने के लिए. एक तरह से मोदी ने वोट मांगे ट्रंप के लिए कि वोट मोदी इन ए वे जो है फिर अहमदाबाद आए. एक डेढ़ लाख लोगों ने स्टेडियम में घुमाया. हाथ पकड़े घूमे उसके साथ में तो जो नरेंद्र मोदी का प्रिंसिपल है ना ह्यूमनिटी फर्स्ट वो शायद ट्रंप का प्रिंसिपल है ह्यूमनिटी एट द लास्ट देखा जाए तो तो मानवता शर्मसार हुई है मोदी आल्सो मस्ट बी स्लाइटली डिसपॉइंटंटेड कि क्या है लेकिन वही वाली बात है ना ऑल ऑल इन द गेम जो है तो दोस्ती नहीं निभाई उसने और दोस्ती क्या होता है नॉट एट द कॉस्ट ऑफ़ नेशनल इंटरेस्ट लेकिन फिर भी एक होता है आपने कहा ना आंख की शर्म एक होता है तो ऐसा लगता है ट्रंप पैसों के लालच में आंख की शर्म भी खो बैठे हैं वीजा इज एवरीबडी इंक्लूडिंग इंडिया आल्सो दिस इज ऑल.

    सवालः सर क्या वाकई ट्रंप की धमकी की वजह से भारत रशिया से तेल खरीदना बंद कर देगा और अगर ऐसा होता है तो फिर हमें कितना नुकसान होगा? 

    जवाबः ऐसा कोई चांस नहीं है नाउ इट्स अ पॉइंट ऑफ़ प्रेस्टिस एक राष्ट्रीय गर्व और गौरव का विषय होता है एक स्टैंड लेना अब भारत झुकेगा नहीं लेकिन ये बात जरूर है कुछ इंसिडेंटली भारत के रिक्वायरमेंट रशिया के साथ जो मार्केट फोर्सेस डिसाइड करती हैं जैसे मैंने आपसे कहा जो है तो मार्केट फोर्सेस के हिसाब से अगर हम देखते हैं इसको तो वो फिर तेल कम खरीदा गया पिछले कुछ दिनों में 44 कुछ मिलियन था बैरल जुलाई में तो 38 मिलियन बैरल हुआ है और जो चार सरकारी कंपनियां हैं एक तरह से उन्होंने भी कम खरीदा है लेकिन इसका यह कोई अर्थ नहीं है कि उनके प्रेशर में कम खरीदा है कतई प्रेशर नहीं है भारत उनके उसमें झुकेगा नहीं जिसे कहते हैं भारत का एक ही प्रिंसिपल है उसके अंदर जो मार्केट फोर्सेस करती हैं उससे हम चलेंगे जो है सो और नुकसान की बात रही तो एक अपन वैसे नोशनल नुकसान वर्कआउट करते हैं तो मैंने पढ़ा कहीं कि अगर ऐसा साल भर हो गया अगर मान लो तो 11 अरब के आसपास एक रिलेटिव लॉस इंडिया को हो सकता है. बट ऑल इन द गेम ये तो बिज़नेस में सब चलता रहता है. बाकी बेसिकली इंडिया इस नॉट गोइंग टू गो डाउन. रशिया से तेल खरीदना जारी रहेगा. 

    सवालः सर एक तरफ तो अमेरिका रशिया से तेल ना खरीदने की धमकी दे रहा है लगातार. लेकिन दूसरी तरफ पूरा यूरोप रशिया से भी और ईरान से तेल गैस सब खरीदता है. सर हाउ डू यू सी दिस कंट्राडिक्शन? 

    जवाबः बिल्कुल है कंट्राडिक्शन ये. इसलिए इसको आईना दिखाया गया है. दिखाए जाने की जरूरत है कि आप भारत से कह रहे हैं कि आप रशिया से तेल क्यों खरीद रहे हैं. खुद आप खरीद रहे हैं. पिछले साल ही आपने 3 अरब डॉलर का व्यापार जो है ना आपने रशिया के साथ किया है ऑन डिफरेंट 

    आइटम्स जो है इस साल पहले 5 महीने के अंदर जो है ना 2.10 कुछ ऐसा व्यापार हो गया. मतलब इस साल 4 अरब डॉलर को क्रॉस करेगा. चाइना देख लीजिए 47% क्रूड ऑयल का जो रिक्वायरमेंट है वो रशिया से आता है. इंडिया का 58% आता है. मतलब कहने का कि एक लिमिट है किसी चीज की. ई का 65 अरब डॉलर का व्यापार है उनका तेल और दूसरी चीजों का. तो इज़ अ हिपोक्रेसी जिसे कहते हैं. 

    आप खुद तो काम दूसरों को नहीं करने देंगे. आप क्या है कि देखिए खाद खरीद रहे हैं. आप यूरेनियम खरीद रहे हैं रशिया से और भारत तेल खरीद रहा है तो आप इस तरह की बातें कर रहे हैं. सो दैट्स व्हाई ट्रंप इज़ अ टोटल फ्लॉप शो. दैट्स व्हाई. 

    सवालः सर क्या आपको लगता है कि ट्रंप के टेरिफ के जवाब में भारत कोई जवाबी कदम उठाएगा? 

    जवाबः जवाबी कदम नहीं. भारत ने दो टू कह दिया कि देखो भाई ये जो फैसला है रशिया से लेने का ये सब मार्केट फोर्सेस डिसाइड करती हैं. हम डिसाइड करते हैं कीपिंग इन यू आर नेशनल इंटरेस्ट. हमारा नेशनल इंटरेस्टिंग केस में ओवरऑल जो है मार्केट प्राइसेस जहां सस्ता माल मिलता है लेते हैं. जिन राष्ट्रों से संबंध है डिप्लोमेटिक अच्छे उसको ध्यान में रखते हैं. तो ये तो एक बिल्कुल रशिया के प्रिंसिपल को बता दिया और ये भी कहा है कि रशिया हैज़ ऑलवेज बीन अ गुड फ्रेंड रिलायबल फ्रेंड. 

    ये अमेरिका को दो टूक मैसेज है. तो पहली बात तो ये है कि जो टेरिफ का मसला है इंडिया का स्टैंड ये रहेगा कि मार्केट फोर्सेस विल रूल विल नॉट गेट डिक्टेटेड बाय वेस्ट और बाय यू जो है. सेकंड है कि भावना में काउंटर क्या हो सकता है? उसमें जो है तो सुना मैंने ऐसा है कि वह F35 जेट से कोई डील व्हील चल रही है वह डिले हो जाएगी और बाकी काउंटर कोई इंडिया करे अभी ऐसी स्थिति नहीं है काउंटर टेरिफ लगाने की पहले तो इस झगड़े को ही सुलझाना है जो है लेकिन इंडिया फर्म स्टैंड पे इंडिया इज़ हाइली मोरलाइज्ड कहते हैं ना एंथूजियास्ट बाय द फेलियर ऑफ़ टेरिफ पॉलिसी इन सो मेनी अदर कंट्रीज ब्राज़ल हो गया कनाडा हो गया चाइना हो गया सब फ्लॉप शो है. टैरिफ पॉलिसी का तो इंडिया इज़ आल्सो एंथूज़ियास्टिक है देख लेंगे कोई बात नहीं है.

    सवालः सर लेकिन मैंने सुना है कि रशियन ऑयल को लेकर जो ट्रंप ने धमकी दी है. उस पर रशिया ने खुद भी कुछ कहा है. क्या आपको इसकी कोई जानकारी है? 

    जवाबः हां, रशिया ने दो टूक कहा है. अब देखो सब वोकल होती है. दुनिया सभी लोग वोकल हो जाते हैं. चाइना वोकल हुआ, इंडिया वोकल हुआ तो वो वोकल हो गया. उसने कहा देखो भाई ऐसा है कि जो स्वर्जेंट कंट्रीज हैं स्वाधीन राष्ट्र है लाइक रशिया जो है. दे हैव फ्रीडम टू चूज़ देयर ट्रेडिंग पार्टनर्स. बड़ी पते की बात कही है उसने. सो कीप ऑफ जो है तो क्लियर स्टैंड है उनका कि वी हैव अ राइट टू चूज़ आवर ट्रेडिंग पार्टनर्स मतलब यह इंडिया के साथ व्यापार उनका जारी रहेगा. दिस इज.
     
    सवालः सर ट्रंप ने लास्ट वीक जो टेफ लगाने की घोषणा की उसके बाद भारत सरकार ने अलग-अलग विभागों के सचिवों से कहा कि आप यह फाइंड आउट कीजिए कि कहां-कहां पर किन-किन क्षेत्रों में और क्या-क्या कंसेशन हम दे सकते हैं. ये जो भारत का मूव है आप इसे कैसे देखते हैं? 

    जवाबः इट अ सिंसियर एंड ऑनेस्ट एफर्ट टू अकोमोडेट अमेरिका टू अकोमोडेट ट्रंप ऑन मैरिड जितना हम कर सकते हैं विद अ गुड इंटेंशन जो है वो एक्सरसाइज हुई है, लेकिन ट्रंप इस तरह के जो चाइल्डिश एक्ट करेंगे कभी कुछ कर देंगे कभी कुछ बयान दे देते हैं तो मन किसका करेगा लोकेट करने को अभी तो सेक्रेटरी से कहा था कि ऐसे इश्यूज आइडेंटिफाई कर लीजिए एक्सप्लोर कर लीजिए जिससे हम टेबल पे बैठ के बात कर सकें लेकिन उसमें कोई ज्यादा काम हुआ नहीं.

    क्योंकि ट्रंप का जो रवैया है इस तरह का दैट इज टोटली डिसरेजिंग तो मुझे लगता नहीं गवर्नमेंट ऑफ इंडिया अंदर कोई सीरियस एक्सरसाइज इसमें अभी तक हुई होगी पीपल एवरीबडी इस वेटिंग फॉर ट्रंप्स नेक्स्ट मूव कि अब ट्रंप क्या करते हैं. बाकी प्रयास अच्छा था. ऑनेस्ट एफर्ट है गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया का देखने का कि जहां हम जेन्युइनली अकोमोडेट कर सकते हैं हमें करना चाहिए इन द लार्जर इंटरेस्ट ऑफ़ द टीटी. 

    सवालः सर आपने बयानों का जिक्र किया तो अभी रिसेंटली जब ट्रंप की टेरिफ की धमकी को भारत ने नजरअंदाज किया तो ट्रंप ने बौखलाते हुए ये कह दिया कि भारत और रूस अपनी-अपनी डेड इकॉनमीज़ को लेकर गर्त में चले जाए. क्या आपको भी लगता है कि इंडियन इकॉनमी परफॉर्म नहीं कर पा रही है? 

    जवाबः जैसे कहना चाहिए ना अब्स है यह कहना इंडियन इकॉनमी परफॉर्म नहीं कर पा रही भारत देखो चौथी अर्थव्यवस्था बन गया है. अब तीसरी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है एंड व्हाट नॉट एवरीवन इन द वर्ल्ड नोज़ दैट मोदी हैज़ डन अ मिरेकल इन इकॉनमी इंडियन इकॉनमी इकोनमिक फील्ड में ऐसे में कहना कि इकॉनमी हमारी मर रही है डाइंग है इट इज़ पुअर इंटरेस्ट इट आल्सो स्पीक्स देयर लिटल नॉलेज अबाउट इंडियन इकॉनमी जो है और फिर देखिए कैसी हिपोक्रेसी है और कैसे डबल स्टैंडर्ड है आप कह रहे हैं कि इंडिया डाइन इकॉनमी और सारा पैसा आप भारत में लगा रहे हैं.

    आज मैंने देखा कि ट्रंप ने खुद का अपना जो रियल स्टेट का बिज़नेस है उसको पिछले इसी उसके टेन्योवर में जो है उसने उसको तीन गुना बढ़ा दिया यहां पे. 11 मिलियन जो स्क्वायर फीट लैंड है वो उसने जो फ्लैट्स की जमीन है वो उसने खरीदी है यहां पे. छह शहरों में उसका कारोबार चल रहा है. 

    गुड़गांव में उसके फ्लैट्स हैं. नोएडा में है, पुणे में है, बंबई में है. आप अपना पैसा तो इंडिया में लगा रहे हैं और पैसा बढ़ रहा है और बाहर आप कह रहे हैं इट्स डायन इकॉनमी. व्हाट अ कंट्राडिक्शन. ओके 

    सवालः सर अब भारत की तरह कनाडा, ब्राज़ील, स्विट्जरलैंड को भी ट्रंप ने टैरिफ की धमकी दी है. आपको लगता है कि यह देश ट्रंप के सामने आत्मसमर्पण करेंगे? 

    जवाबः नहीं नॉट एट ऑल. ट्रंप अगेन विल हैव टू कट अ सॉरी फिगर इन फ्रंट ऑफ़ दीज़ कंट्रीज आल्सो. मिस बिहेव है ना ट्रंप आदमी नहीं है. कोई पता नहीं कैसे बिहेव करता है. इन अ वे जो है तो लोग नाराज हैं. कहते हैं इतने सीनियर लोग हैं यार. ऐसे क्या कर रहे हो आप जो है ब्राजील में 50% लगा दिया आपने. 

    इतना रिपोटेड प्रेसिडेंट है वहां का. ब्रिक्स की पॉलिटिक्स है. सारा कुछ है. आप किसी का ध्यान ही नहीं है. आज उन्होंने ये जरूर कह दिया है ट्रंप ने जब उनको प्रस्ताव भेजा कि लेट्स हैव अ टॉक ऑन दिस इशू. उन्होंने कहा नो आई विल नॉट टॉक टू आई टॉक टू आइदर नरेंद्र मोदी और चाइनीस प्रेसिडेंट. कितनी बड़ी बात है. अब दिस स्पीक्स ऑफ़ नरेंद्र मोदी स्ट्रेचर. एक तरह से उनके ऑनेस्टी उनका कमिटमेंट दोस्तों के साथ जो है उसमें कहा है उन्होंने तो कोई चांस नहीं है. 

    यही कनाडा की स्थिति है 35 फ्रंट लेके बैठे हुए हैं तो बैठे हुए हैं. देयर इज़ अ कंप्लीट डायलॉग बिटवीन दिस टू कंट्रीज एंड आई डोंट सी एनी होप ड्यूरिंग ट्रंप टेन्योर या तो फिर पीछे हटेंगे वापस अल्टीमेटली वो करते ही हैं. वादा करते हैं, घोषणा करते हैं फिर पीछे हट जाते हैं. वेरी कन्वीनिएंटली जो है तो मुझे लगता नहीं है कि दोनों राष्ट्र झुकेंगे वो तो वहीं जहां है वहीं रहेंगे. एंड दे विल फेस दैट ट्रंप. 

    सवालः सर अमेरिका ने भारत के मुकाबले पाकिस्तान पर बहुत कम टेरिफ लगाया है. मात्र 19% है. इस डेवलपमेंट को आप कैसे देखते हैं? 

    जवाबः देखो पाकिस्तान तो उनका नया देर न्यू लव इज पाकिस्तान. आप देख रहे हैं. अब उन्होंने कहा कि वी विल हैव मैसिव ऑयल रिजर्व्स जो वहां पे हैं. वी विल एक्सप्लोर पाकिस्तान मैसिव ऑयल रिजर्व्स. और एक दिन ऐसा आएगा कि पाकिस्तान भारत को तेल बेचेगा. दैट इज़ कितना प्यारा मर्डर रहा पाकिस्तान के प्रति. पिछले दिनों वो जनरल को उन्होंने लंच में बुला लिया था जो इंडिया में सब अटैक के पीछे हैं. सब सबको दिखता है सब और यह भी कह दिया था कि पाकिस्तान इज़ ए नेचुरल एंड फिनोमिनल एलय एंटी टेरर कैंपेन हमारा जो है क्या मजाक है उसका कोई सेंस नहीं है. उनके खुद के कारोबार हैं पाकिस्तान में. मतलब ये आर्थिक जो है ना रीज़न है इसके पीछे. दैट इज़ जो है तो दे दिया क्या फर्क पड़ता है आपने? 20% दे रखा है बांग्लादेश को. ठीक है? 1% कम कर दिया, 19% दे दिया मन रखने के लिए. बट द डिस्टर्बिंग साइन इज दैट अमेरिका एंड पाकिस्तान दे आर कमिंग क्लोजर दैट इज अ डिस्टर्बिंग पॉइंट. 

    सवालः सर क्या आपको भी ऐसा लगता है कि ट्रंप बिलीव्स इन पॉलिटिक्स ऑफ कॉनस्परेसी एंड डिफेमेशन? 

    जवाबः हां सुना मैंने ऐसा वो जो चरित्रन होता है नेताओं का करते हैं इस तरह का. वहां जो नेक्स्ट वुमेन थी जो चुनाव लड़ी थी हिलरी हम जो है उस पे कुछ आरोप लगा दिया था कि चाइल्ड ट्रैफिक में भी इनवर्ड है ये. फिर जो ओबामा थे उन कुछ आरोप लगा दिया था तो साम दाम दंड भेद की राजनीति करते हैं. 

    ट्रंप जो है इसलिए उनके बारे में कहा जाता है कि ही बिलीव्स इन द पॉलिटिक्स ऑफ कॉनस्परेसी. सर क्या यह सच है कि टेरिफ की अपनी शर्तों को मनवाने के लिए कभी ट्रंप मिलिट्री के उपयोग तो कभी परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकियां देते हैं. सवाल ये आता है कि क्या उनकी इस कोशिश ने सारी दुनिया को थर्ड वर्ल्ड वॉर या फिर न्यूक्लियर वॉर के प्रवेश दौर पर लाकर खड़ा कर दिया है? अब्सोलुटली यू आर करेक्ट. 

    हम आज परमाणु युद्ध के जितने निकट खड़े हैं संसार में. पिछले 100 साल में 50 साल में इतने निकट कभी नहीं थे. परमाणु बम को खिलौने की तरह खेल रहे हैं वो. मैंने पढ़ा था दो दिन पहले कि दो पनडुब्बियां उन्होंने भेज दी रशिया की तरफ. क्या मजाक है यह? रशिया के पास आपसे ज्यादा परमाणु बम है. आपसे ज्यादा न्यूक्लियर वेपन है उनके पास में. क्या करेंगे जाकर के? पुलिस और इसी तरह से परेशान हो गए. रशिया ने फिर अपनी टीटी तोड़ दी अमेरिका के साथ न्यूक्लियर टीटी. उसको मैं तोड़ता हूं इसको जो है तो परमाणु की धमकी देना, परमाणु पनडुबियां रवाना कर देना. क्या मजाक है ये? इट इज़ नॉट ह जोक. परमाणु करते-करते एक दिन खेल जाएंगे परमाणु का खिलौना. यह और पहले मैंने पिछली बार भी कहा था कि सारा संसार न्यूक्लियर वॉर के द्वार पर खड़ा हुआ है. जस्ट बिकॉज़ ऑफ़ वन अनस्टेबल माइंड. जस्ट बिकॉज़ ऑफ़ जैसे कहते हैं ना क्या कहना चाहिए?

    वमसिकल माइंड ट्रंप. उस एक व्यक्ति के कारण से राष्ट्रपति है. अधिकार है. सेना को आदेश देगा तो एक बार तो सेना जाएगी. चला देगी वहां से न्यूक्लियर जो है तो यह बहुत सीरियस डेवलपमेंट है और आज हर व्यक्ति को तैयार रहना चाहिए कि सुबह कभी उठे उठे कि नहीं उठे न्यूक्लियर बम चल गया रात को पता ही नहीं चला जाए तो आपकी बात से मैं सहमत हूं कि आज दुनिया थर्ड वर्ल्ड वॉर या न्यूक्लियर वॉर के बिल्कुल द्वार पे खड़ी है जस्ट बिकॉज़ ऑफ़ वन इंडिविजुअल इन द वर्ल्ड. 

    सवालः सर प्रैक्टिकली ट्रंप बेहतर तरीके से जानते हैं कि भारत सबसे बड़ा कंज्यूमर मार्केट है. उसके बावजूद भी ऐसी टिप्पणियां, बयानबाजी नाराज करना भारत को. इसके पीछे की वजह क्या है सर? 

    जवाबः इसके पीछे अनस्टेबल माइंड एक तरह से और रातोंरात कुछ कर गुजर नहीं करना. सुबह कुछ कहना, शाम को कुछ कहना, दोपहर को फिर बदल जाना. कंज मार्केट पूरा संसार जानता है, चाइना जानता है, अमेरिका जानता है. सब अच्छे से जानते हैं. लेकिन इरिस्पांसिबल एडमिनिस्ट्रेशन, इरिस्पांसिबल डिप्लोमेसी, इरिस्पांसिबल थिंकिंग दैट वे सब कुछ पता है. लेकिन फिर भी कर रहे हैं. 

    इसलिए मैंने कहा ना ये जो टैरिफ शो है उसका ये एक तरह से मजाक सा बन गया है इन अ वे कि जो इतना बड़ा कंज्यूमर मार्केट है आपका उसके अलावा की एलआई है. स्ट्रेटेजिक एलआई है इंडिया इन स्कीम ऑफ़ थिंग्स जो है उसके अब कोई चिंता नहीं. आप केवल एक पैसा इकट्ठा करने के लिए आप इस तरह से कर रहे हैं. ये सो दिस इज ऑल अनफॉर्चूनेट. 

    सवालः सर ट्रंप के ऐसे बहुत सारे सपोर्टर्स हैं जो यह कहकर इस बात को जस्टिफाई करते हैं कि ट्रंप जो भी कर रहे हैं उनका एजेंडा मागा को लेकर है. मेक अमेरिका ग्रेट अगेन और इसीलिए वो ये सब कुछ अमेरिका के हित में कर रहे हैं. आप इसको कैसे देखते हैं? 

    जवाबः नहीं ठीक है. उन्होंने अपना कैंपेन लड़ा था तो मेक अमेरिका ग्रेट अगेन इस पे लड़ा था. ठीक है? उनको वोट मिले. वहां जो एक जो एक पोलराइज्ड है वोटर वोट बैंक वहां जो है वाइट अमेरिकनंस का है वो मानते हैं कि अमेरिका अमेरिकनंस के लिए है और संसार की सारी इकॉनमी अमेरिकन बेस्ड होनी चाहिए ये ये खुद इस बात को मानते हैं वो जो है लेकिन उनके जो काम है उनके जो एकशंस हैं वो इसको डिफाई करते हैं. 

    अमेरिका ग्रेट कैसे होगा इन सब बातों से आप लड़ाई झगड़े में पड़े रहेंगे लोगों के साथ में आप हजारों लोगों को निकालते रहेंगे नौकरी से इधर उधर भेजते रहेंगे आप नए-नए इमीग्रेशन के लॉज़ लाते रहेंगे वहां पे जो है कोर्ट कचरे लोग आपके खिलाफ जाएंगे वहां पे सारे संसार के लोगों को आप टेंट उस पे रख दोगे तो अमेरिका ग्रेट कैसे बनेगा तो फैक्ट है कि इस कैंपेन पे लड़ा था जनता उनके साथ है लेकिन जनता का साथ अब अंतिम दौर में है यूं मान लीजिए वो वेट कर रहे हैं कि अब देखो आगे ट्रंप क्या करते हैं तो ये सच है कैंपेन उन्होंने उन्होंने इस पे लड़ा था. उनका मैंडेट था उनके पास में. उसका इंप्लीमेंटेशन जो है वो डिफेक्टिव है. 

    सवालः तो सर जिस तरीके से ट्रंप को एक फ्री हैंड मिला है. ऐसे में जो मागा का नारा है मेक अमेरिका ग्रेट अगेन वो एजेंडा उनका अब तक कितना पूरा हुआ? 

    जवाबः नहीं कामयाब हुआ एजेंडा अब तक जो है कोई इसके परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं. अमेरिकन इकॉनमी के जो डाटा हैं और जो फाइनेंसियल स्टैंडर्ड्स हैं उसे पॉलिटिकल पॉपुलरिटी की बात है जैसे वो सामने नहीं आ रहे हैं. तो अपन कह सकते हैं ट्रांजिट पीरियड है. एक तरह से ट्रांजिशनल पीरियड है. 

    संसार में नए-नए घुटने बनने अमेरिका में भी ट्रांजिशन का पीरियड चल रहा है. ट्रंप अभी सेटल नहीं हो पाए हैं. दैट वे तो अभी कोई परिणाम देने जैसी स्थिति में नहीं है. जो परिणाम है भी तो उसका ट्रेंड जो है वो नेगेटिव है. अभी सो फार. 

    सवालः सर मैंने सुना है कि ट्रंप के मागा के जो नारे हैं उसके बावजूद अमेरिका के आम आदमी के बीच ट्रंप की जो लोकप्रियता है उसका ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है या कह सकते हैं अप्रूवल रेटिंग का जो ग्राफ है वो लगातार तेजी से गिरता जा रहा है. आप कैसे देखते हैं इसे? 

    जवाबः बिल्कुल ठीक है. ग्राफ गिर रहा है. 40 42% मैंने पढ़ा कि वह चल रहा है. पॉपुलरिटी ग्राफ जो है वह ट्रंप का जो पिछला कार्यकाल था उसकी तुलना में बहुत कम है. और ये अमेरिका का पहला राष्ट्रपति है जिसके पहले सात महीनों में पॉपुलरिटी गिर के 50% रह गई. दैट वे जो है इससे तो आज भी ओबामा और इलेरी की पॉपुलरिटी ज्यादा है वहां पे जो है तो यह ग्राफ बहुत तेजी से गिर रहा है. 

    अप्रूवल रेटिंग भी तेजी से गिर रही है और उसका कारण वही है स्टाइल ऑफ़ फंक्शनिंग ऑफ ट्रंप और जो डिसीजन मेकिंग प्रोसेस है उनका जो वोलेटाइल जो प्रोसेस है वो इसका कारण है. तो गिर रहा है उनका पॉपुलरिटी का ग्राफ जो है वो लगातार गिर रहा है. 

    सवालः सर कुछ लोगों का कहना यह है कि पीएम मोदी और ट्रंप में एक सिमिलरिटी है और वो सिमिलरिटी है दोनों ही अपने-अपने देशों को प्राथमिकता देते हैं. सवाल ये आता है कि जब दोनों ही अपने-अपने देशों के नेशनल इंटरेस्ट में अगर खड़े हुए हैं तो फिर दोनों के बीच टकराव कैसा? 

    जवाबः फर्क है. नरेंद्र मोदी बहुत सुलझे हुए व्यक्ति हैं. ठंडे दिमाग से फैसले लेते हैं. जिसे कहते हैं स्टेबल माइंड से फैसले लेते हैं. सोच समझ के फैसले लेते हैं. उन पे खड़े रहते हैं. ट्रंप तो एक दिन में दो बार फैसले बदलता है. आप देखते हैं खुद ही जो है तो बेसिक डिफरेंस तो ये है. और रही बात इनके एजेंडा दोनों का एक है. तो एजेंडा एक है तो टकराव तो विपरीत होगा ना एजेंडा. 

    देयर इज़ अ डिफरेंट कंट्री. इंडिया इज़ अ डिफरेंट कंट्री. एंड ट्रंप लैक्स मैच्योरिटी. दैट वे जो है नरेंद्र मोदी इज अबब्सोलुटली मैच्योर पर्सन तो पर्सनालिटी का फर्क है जिससे कम्युनिकेशन गैप आ रहा है. अपनेप राष्ट्र के लिए कोई दिक्कत नहीं है. उनके 20 करोड़ वोटर नरेंद्र मोदी के यहां पे पोलराइज्ड हैं. उनके भी 2 करोड़ लोग वहां पे पोलराइज्ड होंगे वहां पे साथ अमेरिका में जो है यहां हिंदू वोट बैंक को रिप्रेजेंट करते हैं. 

    नरेंद्र मोदी जो एक जो कंसोलिडेटेड वोट है 20 करोड़ आप कहते हैं जो भी है. बाकी पॉपुलरिटी अक्रॉस कास्ट इंडिया में जो है और वहां पर ट्रंप के लिए कि जो वाइट अमेरिकनंस है वह उसका बेस है वोट बैंक है वहां पे तो दोनों का तरीका एक है काम एक है पॉपुलरिटी का ग्राफ का जो है पोलराइजेशन वो एक जैसा है लेकिन फर्क है उनके स्टाइल और फंक्शनिंग का ही इज़ अ स्मार्ट पर्सन इन दिल्ली ही इज़ अ वजिकल पर्सन ये बेसिक डिफरेंस है सर क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि अपने शासन के शुरुआत के 196 डेज में जिस तरीके से डोनाल्ड ट्रंप ने बार-बार यूटर्न लिए उससे ना सिर्फ डोनाल्ड ट्रंप बल्कि अमेरिका की इमेज को भी एक बहुत धक्का पहुंचा है. एंड एन ऐड ऑन.

    सवालः सर वहां की जनता भी इससे आपको लगता है कि चिंतित होगी? 

    जवाबः अबब्सोलुटली बहुत धक्का पहुंचा है. मैं पढ़ रहा था कि 34 फैसले उन्होंने पलट दिए. इस सात महीने में 196 हां मतलब बैक चेक किया एक तरह से जो है और इसी तरह से आप देखिए कि 28 फैसले वो थे जो कंसेशन से टेरिफ से रिलेटेड थे वो भी पलट दिए उन्होंने पॉलिटिकल के अंदर यूक्रेन के फैसले हैं गाजा के फैसले हैं इजराइल के फैसले हैं वो सारे पलट दिए उन्होंने तो यूटर्न इतना जबरदस्त हुआ है कि कोई भी गवर्नमेंट कोई भी शासन इतने बड़े यूटर्न के साथ में कामयाब नहीं हो सकता है तो यू कैन ऑलवेज कॉल हिम ए यूटर्न मैन इन अमेरिका व्हिच इज़ अफेक्टिंग इन द एंटायर वर्ल्ड नाउ क्योंकि ऐसी कुर्सी पे है ना वो उनका हर फैसले से पूरी दुनिया प्रभावित होती है तो ये फैक्ट है ह एडमिनिस्ट्रेशन इज़ अ फ्लॉप शो जो है विद विद सच एन अनपिसेंट नंबर ऑफ यूटर्न्स सर ट्रंप किसी भी मामले को निर्णायक मूड तक क्यों नहीं ले जा पाते वो इसलिए कि जल्दी है उनको हर काम की रोज एक फैसला करना है उनको एक घोषणा करनी है जिसे कहते हैं तो समय नहीं मिलता कोऑर्डिनेशन नहीं हो पाता दैट वे जो है बहुत जल्दी में वो ऐसा लगता और जल्दी में और प्लानिंग है नहीं पूरा टीम प्रॉपर है नहीं वहां पे जो है इसलिए किसी मामले को निर्णायक मोड़ पे नहीं ले जाते और दूसरा क्या है कि उनको अनाउंस करने की जल्दी होती है हर काम को काम समझो पहले देखो उसको असेस करो उसके बाद उसका परिणाम देखो फिर अनाउंस करो वो अनाउंस पहले करते हैं इंप्लीमेंटेशन का बाद में आता है बाद में मालूम पड़ता है कि यार इंप्लीमेंटेशन तो हो नहीं सकता है इसका तो नहीं हो सकता तो फिर वो वही आता है यू हैव टू बैक ट्रैक जो है दिस इज ऑल. 

    सवालः सर कुछ लोगों का कहना है कि ट्रंप पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी की एक मजाकिया ट्रेजडी है. क्या आपको भी ऐसा लगता है? 
    जवाबः कह सकते हैं लोकतंत्र में होता है ना कोई व्यक्ति जीत सकता है वोट के आधार पे. जीत गए वो अब उन्हें हटाना मुश्किल है. आसान नहीं है जो है ये तो डेमोक्रेसी का उपहास हो गया. एक तरह से कि डेमोक्रेसी सीढ़ियां चढ़ के व्यक्ति मंजिल तक पहुंच गया. यहां पे और उसके काम से उसकी कार्यशैली से सारा संसार परेशान है. 

    अमेरिका के लोग परेशान है. थोड़े से कम परेशान इसलिए उम्मीद है लोगों को कि शायद कुछ कर दे ये. जो इसने कहा था कि मैं 100 देशों पे टेरिफ रिवाइज करके और अमेरिका का खजाना भर दूंगा इतना कि हर एक आदमी के घर में 10 20 करोड़ आ जाएंगे. यू समझिए ऐसा कुछ हो नहीं रहा है. दैट जो है तो दिस इज ऑल फेक.
     
    सवालः सर ट्रंप की कार्यशैली को लेकर या उनके फैसलों को लेकर जिस तरीके से पिछले 7 महीने में जो प्रदर्शन देखने को मिले हैं. आपको लगता है कि कभी ट्रंप के खिलाफ महाभियोग भी लाया जा सकता है? 

    जवाबः हो सकता है. अभी चार महीने पहले आपने देखा था कि अमेरिका के शायद 12 या 15 स्टेट्स के अंदर लोग झंडे लेकर निकल गए थे. ट्रंप के खिलाफ आंदोलन हुआ, प्रदर्शन हुआ, कहीं इमीग्रेशन पे था, कहीं किसी और पॉलिसी पे था. प्रदर्शन था और मेरे एक मित्र हैं पॉलिटिकल विश्लेषण करते हैं मिस्टर विवेक कुमार. उनका कहना था कि मुझे आश्चर्य नहीं कि ट्रंप ये कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. ऐसे चलता रहा तो महाभियोग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. दैट वे जो है आज वो स्टेज नहीं है. 

    आज तो सब अमेरिकन एक सपने में जी रहे हैं कि ट्रंप है ना सब देशों से बोरी बोरी भर के पैसे हमारे लिए ला रहे हैं डायरेक्ट से उठा के. अब जब पैसे नहीं आएंगे निराशा आएगी और बहुत सारी चीजें जो फाइनेंसियल रेटिंग्स हैं वहां की वो गिर रही है वहां पे जो है तो लोग परेशान होंगे तो क्या है कि ऐसे केसेस में महाभियोग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. 

    सवालः सर कुछ समय पहले ही डॉनल्ड ट्रंप अफ्रीकी जो राष्ट्र है उसके पांच ऐसे राष्ट्र थे जिनके राष्ट्र अध्यक्षों से मुलाकात करते हैं. उन्हें लंच पर बुलाते हैं. टेरिफ और ट्रेड के बारे में बताते हैं. तो इन देशों से ट्रंप चाहते क्या है? 

    जवाबः चाइना कनेक्शन चाइना इन्वेस्ट कर रहा है उन कंट्रीज में लोन दे रहा है उनको फिर कब्जा कर लेता है कुछ प्रोजेक्ट पे इस बहाने एंट्री हो जाती है तो डिस्टेंट तो ये है और दूसरा ये कि राष्ट्रपति की मुद्रा में आए पांच छोटे-छोटे देश आके बैठे डाइनिंग टेबल पे लंच को आपने टेलीकास्ट कर दिया आपने उसको जो है कि पांच राष्ट्र मेरे साथ बैठे हुए हैं और मेरी सारी मांगे मान रहे हैं और उनके 10% टेलीफ उनके पास में क्या उनकी मांगे हैं क्या है ये तो ये तो बेसिकली एक शो ऑफ स्ट्रेंथ कहो या एक ऐसे शो होता है जो ऐसे एम जो है ऐसे शो था कोई इससे ज्यादा वो नहीं था बस अफ्रीका में अपनी पैठ बनाना और चाइना को मैसेज देना कि आई हैव आल्सो एक्सेस टू योर अफ्रीकन अफ्रीकन कंट्रीज जो है ऐसे आए और वो प्रचार करके चले गए वहां से $20 ले गए होंगे इन टर्म्स ऑफ डॉलर्स एंड ऑल जो कहते हैं भी 10 2000 ले गए होंगे कोई $0000 ले गया होगा कंट्री के लिए कोई $1 लाख ले गया होगा छोटे-छोटे देश हैं छोटी-छोटी बातें इससे वहां से जाए तो बेसिकली एक पीआर एक्सरसाइज थी ये और एक डिस्टेंटली देखें तो चाइना कनेक्शन था इसका. 

    सवालः सर व्हेन ट्रंप हिमसेल्फ नोस इट वेल दैट यूएस इकोनमी सर्वाइविंग ऑन सर्विस सेक्टर देन व्हाई इज़ टारगेटिंग द सेम एंड अगर इन सब धमकियों से परेशान होकर के ये लोग अमेरिका छोड़कर वापस अपने देश चले गए तो अमेरिका में काम कौन करेगा? 

    जवाबः अबब्सोलुटली करेक्ट. ये होने वाला है. हो रहा है ये. 17 लाख कर्मचारी जो थे नॉन रेजिडेंट अमेरिका में जो बर्खास्त हो गए हैं. संसार का हर बेहतरीन व्यक्ति आज अमेरिका में है. अपना देश छोड़ के अमेरिका गया हुआ है. अमेरिका ग्रेट इन लोगों ने बनाया है. इंडियंस हैं, पाकिस्तानी हैं, बांग्लादेश के लोग हैं और दूसरे लोग हैं. 

    इन सब लोगों ने मिलके जो अमेरिका ग्रेट राष्ट्र बनाया है वहां पे जो है. आज देखिए हर सेकंड मोबाइल जो है जो अमेरिका जा रहा है वो कोई इंडिया में बन रहा है. आप देखिए जो लीडिंग कंपनी है अमेरिकन आपकी देखिए Google है हम Microsoft है ऐसी कोई भी कंपनियां इनके सीईओ जो हैं वो इंडियन है तो चार ऐसी बड़ी कंपनियां हैं जिनके नॉन नॉन अमेरिकन जो है जिनके सीईओ हैं उसको चला रहे हैं ये अब इन सबको आप बाहर निकाल दोगे अपने देश में चले जाएंगे तो वहां का काम कौन करेगा ये क्या है कि 18वीं सदी को और अमेरिका को ले जा रहे हैं ट्रंप कि अमेरिका ओनली फॉर अमेरिकनंस तो अभी ओनली फॉर अमेरिकन ऐसे तो नहीं चल सकता ना. अमेरिका महान क्यों बना है कि सारे संसार का टैलेंट वहां चला गया. 

    टैलेंट पूल हो गया अमेरिका का. उससे अमेरिका महान हो गया. अब सर्विस सेक्टर को ही आप ऐसे टारगेट करोगे तो लोग छोड़ के दिल्ली वापस आएंगे. कोई पाकिस्तान चला जाएगा, कोई कहां चला जाएगा? करके कोई लंदन चला जाएगा. यू विल बी लूजर एड. तो ये बड़ा सीरियस रेपरकेशन है. एंड दिस हैज़ टू बी स्टॉप बाय ट्रंप. ट्रंप विल नेवर बी एबल टू मेक अमेरिका ग्रेट अगेन. टैलेंट तो सारा वहां से निकल जाएगा. किसके बूते आप उसको ग्रेटर अमेरिका बनाओगे? 

    सवालः सर कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जो ट्रंप का इनकंसिस्टेंट एटीट्यूड है, उनकी जो उनका जो वर्जिनल एटीट्यूड है जिसको नाइवनेस कह सकते हैं या फिर जो उनके ट्रम्स हैं उसकी बदौलत ये हुआ है कि दुनिया के जो रिस्पांसिबल लीडर्स हैं, रिसोंसिबल वर्ल्ड लीडर्स हैं. अब वो उनके साथ डील करना बहुत मुश्किल समझते हैं. आप क्या सोचते हैं इसको? 

    जवाबः अब्सोलुटली करेक्ट. आप देखिए ब्राजील आपके सामने है. फिर कनाडा आपके सामने है. अब इंडिया भी धीरे-धीरे उस दिशा की ओर बढ़ रहा है. और वह जो राष्ट्र से उनके आसपास के दो चार वो आपके सामने हैं. बात कैसे करें? सुबह कुछ है, शाम को कुछ है, दोपहर को कुछ है. कंसिस्टेंसी नहीं है. अमेरिका की एक फॉरेन पॉलिसी हुआ करती थी. अ फॉरेन पॉलिसी सिंगल ड्रिवन पर्सन दैट इज़ ट्रंप जो है और फॉरेन पॉलिसी बदल देते हैं. 

    कोई कांसेप्ट नहीं है. कोई बेसिक थीम नहीं है उनकी पॉलिसी का जो है तो पीपल आर वैरी और सोचते हैं कैसे काम चलेगा. अभी तो टेरिफ से जूझ रहे हैं लोग जो टेरिफ खत्म हो जाएगा इशू तब समझ आएगा उनको भी ट्रंप की वायदे का ट्रंप की किसी कही हुई बात का कोई मतलब भी है कि नहीं मतलब है. तो दिस इज़ टू तो द एंटायर वर्ल्ड इज़ पासिंग थ्रू अ वेरी वेरी सीरियस क्रिटिकल पीरियड जस्ट बिकॉज़ ऑफ़ वन इंडिविजुअल. हम देखो क्या होता है. 

    सवालः सर आज ट्रंप के सामने एक बड़ी दुविधा है. इंडिया और चाइना को लेकर अपना एक संतुलन कार्ड तैयार करना ताकि वह अमेरिका के फायदे में हो. वो कर नहीं पा रहे हैं ट्रंप. इस विफलता को आप कैसे देखते हैं? 

    जवाबः वो इसलिए नहीं कर पा रहे हैं कि कंफ्यूज्ड हैं वो. कभी चाइना को एंपावर करना चाहते हैं. ऐसा लगता है चाइना मुझसे बड़ा हो जाएगा. फिर रुक जाते हैं. फिर क्या इंडिया को एमावर करते हैं थोड़ा तो फिर देखते हैं इंडिया चाइना नहीं बन जाए मेरे लिए दूसरा. तो फिर रुक जाते हैं आके. तो एक कंफ्यूजन और जो डिस्ट्रेस की स्थिति है उनके माइंड में और फिर झगड़े नहीं खत्म होते. चाइना का भी तो टेरिफ का झगड़ा खत्म नहीं तो इंडिया से फ्रंट खोल दिया दूसरा आपने आकर के. जी तो अभी कंफ्यूज्ड है वो क्लेरिटी नहीं माइंड के अंदर जो है तो ऐसे ही चलता रहेगा. और इस इस प्रोसेस में अल्टीमेटली क्या होगा? 

    व्हाट आई फॉर सी चाइना इंडिया विल कम क्लोजर हम जस्ट टू फेस जिसे कहना चाहिए इनडिसाइसिव पर्सन को फेस करने के लिए एक विमिकल आदमी को फेस करने के लिए वो लोग दोनों आसपास आ सकते हैं. हालांकि उन दोनों के भी मतलब बेसिक डिफरेंसेस हैं शत्रु राष्ट्रीय भूमिका है लेकिन फंक्शनल लेवल पे वो लोग और करीब आ सकते हैं ट्रंप के इस एटीट्यूड के कारण से. दैट इज़ वेल. 

    सवालः सर जो पॉलिटिकल एनालिसिस्ट हैं या इकोनॉमिस्ट हैं उनका अब यह मानना है कि जो एक पुरानी ज़िद थी ट्रंप की कि अमेरिकी बिजनेसमैन के के लिए भारत में एग्रीकल्चर हुआ ये तमाम चीजें खोलने की जो बात थी डेयरी सेक्टर वो अब उन्होंने छोड़ दी है. डू यू एग्री विथ दिस पॉइंट? 

    जवाबः अब्सोलुटली. अभी तो बाहर है वो. अभी तो ही बर्न ह फिंगर्स विद 25% रशियन ऑयल. रशियन ऑयल से निकलेंगे तब जाके एग्रीकल्चर पे जाएंगे. मीन वाइल क्या मोदी मोदी है अगर मोर स्ट्रेंथ विजा ट्रंप जो है सारे संसार में उसका बहिष्कार हो रहा है एक तरह से तो नरेंद्र मोदी ने बहुत धैर्य रखा बहुत सेम रखा कभी कुछ नहीं बोला अभी भी नहीं बोल रहे हैं दैट इज़ है लेकिन वो क्या वो सीमा के करीब आते जा रहे हैं बोलने की या ट्रंप को काउंटर करने की जो सीमा आ रही है तो उसका कोई चांस नहीं है. 

    नरेंद्र मोदी ने खुद कह दिया अभी भाषण था वाराणसी में कहीं तो उन्होंने कहा एग्रीकल्चर और जो स्मॉल मीडियम इंडस्ट्रीज है यह मेरी टॉप प्रायोरिटी है और अभी भाषण था 53 मिनट का भाषण था उसमें 6 मिनट वो खाली एग्रीकल्चर इसी पे बोले जाए तो बाय द टाइम शुरू में संकोच होता था ऐसा लगता था कि शायद भारत को ट्रंप दबोच नहीं ले एग्रीकल्चर डेरी प्रोडक्ट को लेकर के बट नाउ आई एम अब्सोलुटली कम वोट में नरेंद्र मोदी इस नॉट गोइंग टू ओपन दी टू सेक्टर्स फॉर ट्रंप दिस इज़ पक्का इन माय असेसमेंट 

    सवालः सर मैंने सुना है कि डॉन्ल्ड ट्रंप के टैरिफ की घोषणा के साथ ही जो भारत के निर्यातक हैं उनमें एक तरीके से हड़कंप मच गया है. वह चिंता में है. इस सिनेरियो को आप कैसे देखते हैं? 

    जवाबः परेशान है इसलिए परेशान है. अमेरिका के ऑर्डर आए हुए हैं. जल्दी 7 तारीख तक डिस्पैच अगर नहीं हो पाए तो बाद में झगड़ा पड़ जाएगा. ये हालांकि वैसे देखा जाए तो दे आर लकी आल्सो अदर पार्ट ऑफ़ द स्टोरी कि आप देखिए फार्मा और इलेक्ट्रॉनिक गुड्स जो हैं उनप 50% लोग ही प्रभावित हो रहे हैं. उससे अनसर्टेनिटी है ना जी. और फिर कैसे कब तक है उनके ऑर्डर आए हुए हैं. इंपोर्ट एक्सपोर्ट ऑर्डर आए हुए हैं. कब बनेंगे? कब जाएंगे? वहां कब जहाज पहुंचेगा? जहाज पहुंचेगा. पता लगा ट्रंप ने कोई नया आदेश निकाल दिया. तो सारे जो विश्व की जो इकॉनमी है उसको हमने उथलपुथल कर दिया है और अभी का जो इंडिकेशन है तो ये कह सकते हैं कि वो सारे वर्ल्ड की जो इकॉनमी है नॉट ओनली डिस्टेबलाइज डी रेल बल्कि डिस्ट्रक्शन की ओर बढ़ रहे हैं ऐसा लगता है. 

    सवालः सर ट्रंप के टेरिफ धमकी के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो स्वदेशी का नारा दिया उसे आप कैसे देखते हैं? 

    जवाबः वो एब्सोलुटली करेक्ट है. उन्होंने कहा हर देश अपनी पॉलिसी चला रहा है. अपने लिए एक अलग नीति बना रहा है. अलग अर्थव्यवस्था खड़ी कर रहा है. अपनी किसी को दूसरे के इंटरेस्ट का ध्यान नहीं है. लेट्स कम बैक टू ओरिजिनल. मेरे यहां घर के अंदर वही सामान बिके जो मेरे देश में बना हुआ है. वो सामान बिके जो मेरे देश के हर आदमी के किसी आदमी के पसीने से बना हुआ है. इन्हें जो कहते हैं ये और स्वदेशी जागरण मंच है. यहां हर आरएसएस से एफिलिएटेड है. उसने भी स्टैंड लिया है. उसने कहा बिल्कुल इसे आगे बढ़ाना चाहिए और प्रेशर में हम काम नहीं आएंगे अमेरिका के. इट इज़ सम सॉर्ट ऑफ एक्सटेंडिंग आरएसएस मोरल सपोर्ट टू नरेंद्र मोदी टू टेक अ स्टैंड ऑन दिस इशू. तो स्वदेशी का अच्छा है. 

    वही वाली बात है ना वोकल फॉर लोकल वाली बात है. मेड इन इंडिया वही सारी बातें मेक इन इंडिया जो है ये तो एक अच्छा प्रयास है नरेंद्र मोदी का एक एक नारा है. एक अपॉर्चुनिटी है हमारे सामने आज उसको आगे बढ़ाने की. तो लेट्स सी कितना आगे बढ़ता है काम. 

    सवालः  सर ट्रंप ने जब से टेरिफ का ऐलान किया है उसके बाद रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है. तो इसको आप कैसे देखते हैं? 

    जवाबः वह तो एक इसके दो पहलू हैं. एक तो है कि बहुत अच्छा मैनेजमेंट है संजय मल्होत्रा स्पेशली गवर्नर का रोल काफी वायटल होता है वहां पर. वैसे तो ही इज़ गाइडेड बाय द फाइनेंस मिनिस्ट्री एंड टू सम टाइम बाय पीएमओ आल्सो क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था से जुड़े बड़े फैसले होते हैं जो है लेकिन फिर भी संजय मल्होत्रा जब से गए हैं तो अच्छा काम कर रहे हैं और बहुत बैलेंस्ड एप्रोच उनकी रहती है उनका जो होमवर्क होता है रेकमेंडेशन होती है ऑफ कोर्स वो फाइनेंस मिनिस्ट्री में ऊपर कंसीडर होती है तो दो बार शायद उन्होंने उसको कम किया अब परचेस पैसे कम करने की बात थी लेकिन सरकार ने स्टैंड लिया है कि अभी ये टेरिफर आ गए इसके बावजूद हम उसको कम नहीं कर रहे हैं. लेकिन वो इशू नहीं है. 

    कम कर भी दोगे तो इशू असली ये है कि रेटें कम हो रही है. बाजार में खरीदार नहीं आ रहे. माल नहीं बिक रहा. ये क्या करें? इसका ये है असली इशू. पैसा तो लोगों के जेब में है. खरीदार अगर खरीदारी का इच्छुक ही नहीं होगा. तो उसका क्या करेंगे? तो रेपो रेट से हटके एक दूसरा इशू आज कंट्री में पैदा हो गया कि पैसे तो आ गए लेकिन खरीदार के मन में और जब तक खरीदेगा नहीं कंज्यूमर गुड्स वगैरह तो इकॉनमी चलेगी नहीं आगे. अपन जो कहते हैं जिस जो है सो लेकिन बहरहाल हम यह कह सकते हैं कि रेपो रेट में कोई चेंज नहीं किया. इसके लिए सरकार बधाई की पात्र है. इस क्राइसिस के बावजूद 

    सवालः सर ट्रंप के इस टारिफ कार्ड का आखिर क्या असर पड़ रहा है अमेरिका और दूसरे देशों के शेयर मार्केट्स पर? 

    जवाबः असल खराब है. अनसर्टेनिटी है. अब यूं तो क्या है कि इंडिया में कभी हफ्ते में 400 अंक गिर जाते हैं. फिर 800 अंक रिकवर हो जाते हैं. वहां जो आपका न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज है कभी गिरता है हो जाता है. अभी तक क्या है कुछ चांस की बात ऐसी है कि लोगों का फिर भी भरोसा कहना चाहिए एक तरह से. इतनी सारी सीमाओं के बावजूद ट्रंप में अभी भी बना हुआ है कि ये इकॉनमी को गिरने नहीं देगा. तो बाय एंड लार्ज जो वर्ल्ड के पांच बड़े स्टॉक एक्सचेंज हैं. उनमें कोई बहुत ममारी नहीं है ज्यादा. 

    एक रीज़नेबल फ्लक्चुएशन था उनका. दो 4% ज्यादा है दो 4% कम है वहां पे जो है तो अभी भी क्या है इन्वेस्टर्स का कहो या ट्रेड का कहो या शेयर मार्केट का कहो अभी भी उनको ट्रंप से थोड़ी सी उम्मीद है कि शायद ये ठीक हो जाए शायद चीजें कुछ ठीक हो जाए तो मार्केट पे प्रभाव पड़ा है लेकिन ऐसा ड्रास्टिक प्रभाव अभी इन दिनों नहीं है मार्केट में इंडिया हो चाहे बाहर हो.

    सवालः सर ट्रंप की इस टारिफ दादागिरी को देखते हुए आपको क्या लगता है कि अब यूरोपीय इकॉनमी का क्या भविष्य होगा वो भी अकड़ के खड़े हो गए हैं उनका भविष्य उज्जवल है भाई एक बार जो विद्रोह करता है ना फिर सब लोग विद्रोह करने खड़े हो जाते हैं. आप देखिए उसने ब्राजील ने किया, कनाडा ने किया. पहले छोटे-मोटे देश थे वो किसको बुलाया था? 

    जवाबः यूक्रेन के प्रधानमंत्री राष्ट्रपति आए थे. उसको जलील किया था अपने घर में बैठाकर. वही अकड़ गया था जाकर के बाहर जो है और कुछ नहीं कर पाए यहां से जो है तो सब लोग अकड़ते हैं जाकर के. तो अब ये भी क्या 27 लोग हैं. एक हो गए हैं. बहुत दिन तक सोचते रहे लोग ये कि ट्रंप का क्या करें? क्या करें? फिर इन्होंने सोचा अपनी दुनिया अलग बसाते हैं. चलो तो इन्होंने अपना एक अलग से बना लिया सिस्टम. तो नाउ दे आर वर्किंग ऑन देयर इंडिपेंडेंट डिप्लोमेटिक आइडेंटिटी कि हमारी कोई बनती है कि नहीं. ट्रंप थोड़ा ठंडा पड़ा जो है तो उन कंट्रीज ने क्या दुस्साहस किया अपना या साहस किया कि उल्टा अमेरिका पे काउंटर टेरिफ लगा दिया. 

    अमेरिका भाग के पहुंचा के प्रभु माफ करो मेरे को जो है यह ट्रंप उसी दिन खत्म हो गया जो के सामने हाथ जोड़ दिए उसने जाकर के और उन्होंने देखो वो क्या कह रहे हैं वो ये कह रहे हैं कि छ महीने के लिए हम हमारा हमने जो बैन किया था वो छ महीने के लिए एक्सटेंड कर देते हैं मतलब छ महीने हम आपको काउंटर टेरिफ नहीं लगाएंगे तो अमेरिका तो याचक स्थिति में आ गया वहां पे तो देखा तो यू लोग अगर इकट्ठे रहेंगे तो एकता में ही शक्ति है 27 राष्ट्र अगर इकट्ठे रहेंगे तो एक नहीं दो ट्रंप को निपटा देंगे ये लोग अभी वो लोग कंफर्टेबल हैं. 

    अब उनका अपपर हैंड है उनका. दैट विल जो है आगे फिर क्या वर्ल्ड क्या है? सारा ट्रांजिशनल पीरियड से गुजर रहा है. कौन से अलायसेस बनेंगे? कौन कहां जुड़ेगा? कहां गिरेगा? कहां उठेगा? ये आने वाले समय में पता लगेगा. और बहुत बड़ा फैक्टर ये कि ट्रंप का क्या होता है? इसका भविष्य क्या है? ये कैसे चल रहा है? कैसा क्या है? सो बाकी एट द मोमेंट दे आर कंफर्टेबल एंड इन कमांड. 

    सवालः सर आपको क्या लगता है कि जो अल्टीमेटली ट्रंप टेरिफ वॉर का फ्यूचर क्या है? 

    जवाबः मुझे तो फ्लॉप शो लगता है एक तरह से गुनाह बेलज्जत कहते हैं जिसको अब कोई दैविक चमत्कार हो जाए कि संसार के 100 देशों को उन्होंने लगा दिया 17 देशों पे लगा दिया उन्होंने जो है इंक्लूडिंग इंडिया टेरिफ वो 70 का 70 टेरिफ कामयाब हो जाए सारे उसमें हो जाए तो तो भाई बल्लेबले है बात का बाकी जो उनका काम करने का तरीका है जो वो बार-बार चेंज करते हैं पॉलिसीज को उससे तो लगता नहीं कि कोई फ्यूचर है उनके टेररिफ्स का दे विल डाई इट्स नेचुरल डेथ मुझे ऐसा लगता है देयर अवेयर बाकी वक्त बताएगा. सर आपको नहीं लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति को नोबेल पुरस्कार का एक तरीके से ऑब्सेशन जैसा हो गया है? 

    बिल्कुल सही कह रहे हैं आप. वर्ड इज गुड ऑब्सेशन इज अ गुड वर्ड एक तरह से. कुछ लोग इसमें मीनिया भी कहते हैं. ऑब्सेशन इज मोर डिसेंट. थोड़ा सा इसमें जो है तो हर एक महीने में एक नए घोषणाओं करते हैं. कभी युद्ध विराम कर देते हैं खुद ही बैठे-बैठे. कभी कुछ और समझौता करा देते हैं. कभी क्या उनकी आदत पड़ गई मरा हुआ शिकार खाने की. केवल सूचना को ही एनकैश कर लेते हैं. 

    अपने उस ट्वीट से जो है भारत भाग में समझौता हुआ उन्होंने क्रेडिट ले लिया उसका 100 बार रोए लोग दिल्ली में भाई नहीं है नहीं है नहीं कहता नहीं है क्या कर लो आप उसका जो है उसे शौक हो गया इस तरह का वहां अभी कौन से दो थाईलैंड और कंबोडिया लड़ रहे थे तो फिर सुबह कह दिया भाई समझौता करा दिया इनका तो स्वयंभू मध्यस्थ नियुक्त हो गए हैं इस संसार में ट्रंप जो है फिर यूक्रेन उसका समझौता करा दिया था फिर कहा कि ईरान और उसका समझौता हुआ था वो टूट गया और गाजा गला अलग इशू चल रहा है जो पहले सवाल आया था कि निर्णायक मोड़ पे एक को नहीं पहुंचाया हम दैट वे जो है तो स्वयंभू मध्यस्थ है खुद ही घोषणा कर देते हैं उसका अब ये पता लगा कि हमारी जो रिफाइनरीज हैं चार इनमें अभी ऑयल कम ले रहे हैं रशिया से ले ही नहीं रहे हैं अभी वो सोच रहे होंगे गुणा भाग कर रहे होंगे बैठ गए हैं तो उसने वहां से ट्वीट कर दिया सुना मैंने कि भारत की वो रशियन तेल नहीं लिया जा रहा है ये एक बहुत अच्छा कदम है आप बताइए तो मरा हुआ शिकार खाना केवल सूचना को एनकैश कर लेना यह ट्रंप से सीखना चाहिए तो कर रहे हैं.

    सवालः सर आज जब सारी दुनिया पर्यावरण बचाने और क्लाइमेट चेंज को लेकर चिंतित है तो वहीं ट्रंप ने सत्ता में आने के बाद पेरिस समझौते को डिसओन कर दिया आप कैसे देखते हैं?

    जवाबः ट्रंप के इस गैर जिम्मेदाराना व्यवहार को गुड वर्ड ये गैर जिम्मेदाराना है क्योंकि सारा संसार तो पर्यावरण के मुद्दे पे अपने आप को बचाने में लगा हुआ है जिसे कहते हैं और ट्रंप आए और उन्होंने पहला पहला काम यही किया. 196 देशों का जो लीगली बाइंडिंग एग्रीमेंट है उसे उठा के ठंडे बस्ते में डाल दिया. जो है और इंस्टीट्यूशन को तोड़ते चले जा रहे हैं. डब्ल्यूटीओ खत्म कर रहे हैं. 

    यूएओ खत्म कर रहे हैं. एक वो डब्ल्यूho था उसको तोड़ रहे हैं. दैट जो है और ये क्लाइमेट का तो बहुत सीरियस इशू है. सारा संसार हैरान है कि क्या करें इसका? सारा संसार जिस एकमत है जो एक रिफॉर्म है हमारे वर्किंग के अंदर हमारी लाइफ के अंदर उसको उन्होंने बंद कर दिया करके तो एक दिन क्या होगा जिसे कहते हैं ना हल्की भाषा में कि ट्रंप के पाप का घड़ा भर जाएगा एक दिन जो है और सब चीजें फिर से आजाद हो जाएंगी ये पक्षी ये पंछी सब फिर से स्वतंत्र हो जाएंगे वो संसार लौट आएगा प्री ट्रंप एरा जो है अमेरिका का जो है और अभी तो भाई अमेरिका डाउन है अब समय बताएगा एक दो साल और देखने के बाद में कि कैसे और लोग बहुत स्मार्ट हैं. 

    बहुत अलर्ट हैं. अमेरिकनंस हैं. यूरोपियंस हैं. वो आदमी को चलते रास्ते में बीच में ही उतार देते हैं. तो उनका ऐसा कुछ नहीं है कि पांच साल चुनाव होंगे तभी होगा ही होगा. और वहां सिस्टम भी है कि 10 लाख लोग. हालांकि ट्रंप तो डिफरेंट है. 10 लाख या 20 लाख लोग प्रदर्शन करेंगे तो वो नहीं छोड़ेगा. वो अलग बात है. फिर कन से कुर्सी से उतारें उसको क्या करें वहां. मतलब ऐसे हालात हो जाते हैं कई जो है तो ऑल इज नॉट वेल. 

    सवालः सर इधर फिलीपींस के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिल्ली में जो मुलाकात हुई क्या उसका कोई चीन से कनेक्शन है? 

    जवाबः हां कनेक्शन है कि वो साउथ चाइना से वो जो अपन कहते हैं बार-बार और महासागर विज़न जो है तीसरी नरेंद्र मोदी ने कहा है इट वाज़ अ गुड विजिट स्मार्ट विजिट वो आदमी बड़ा स्मार्ट था. नरेंद्र मोदी की तरह एक्टिव था. हम जो प्रेसिडेंट वहां आया हुआ है तो नरेंद्र मोदी ने कहा कि भ हमारी जो फ्रेंडशिप है यह तो बाय चॉइस है और हमारी पार्टनरशिप जो है ना वो बाय डेस्टिनी है और नरेंद्र मोदी तो सरस्वती है ना ऐसी भाषा बोलते हैं आती है शानदार और उन्होंने भी यही कह दिया जो आए थे बाहर से कि इंडिया हमारा फिफ्थ स्ट्रेटेजिक पार्टनर है जो है और समझौता कर दिया कि साउथ चाइना सी और उधर अपने सी में जो है ना इंडिया के साथ पेट्रोलिंग करेंगे डोबाल वगैरह ने एग्री भी करा लिया होगा और बाद में वो सोचेगा कि ये क्या हुआ?


    चाइना पकड़ लेगा ना कि तुम जॉइंट डील कैसे कर रहे हो इंडिया के साथ में यहां जो है लेकिन अभी तो है वो अभी तो भारत के प्रभाव में नरेंद्र मोदी के आभा मंडल में है. यात्रा अच्छी हो गई है. तो ये विजिट उनके हिसाब से स्ट्रेटेजिकली देखा जाए और मिनिस्ट्री ऑफ़ फॉरेन अफेयर देखा जाए तो इट वाज़ अ गुड डेवलपमेंट. और इस पूरे विश्लेषण से एक बात तो समझ में आती है कि अगर नोबेल प्राइज चाहिए तो थोड़ा सा नोबेल एटीट्यूड भी रखना होगा. 

    नोबेल एकशंस भी दिखने चाहिए. लेकिन कहीं ना कहीं जो ट्रंप की तरफ से पॉलिसीज अपनाई जा रही हैं वो एक इकोनॉमिक ब्लैकमेल नजर आता है और साथ ही डब्ल्यूटीओ की उस स्पिरिट को भी तोड़ता है जिसमें वैश्विक साझेदारी की बात की जाती है. सबसे बड़ी आयरनी यह है कि देश जहां पर एक सुपर पावर देश जिसके ऊपर संयमित और इसके साथ संतुलन बनाए रखने की जिम्मेदारी है वो इस तरीके की इकोनमिक ब्लैकमेलिंग करता हुआ नजर आ रहा है. 

    डोनाल्ड ट्रंप को दो बातें खासतौर पर ध्यान रखनी होंगी. पहली यह द वर्ल्ड इज वाचिंग एंड हिस्ट्री विल ऑलवेज जज और दूसरी बात इंडिया झुकेगा नहीं, मोदी झुकेंगे नहीं. बहुत-बहुत शुक्रिया सर आपका विजेश शो में इस विश्लेषण के लिए और साथ ही तमाम दर्शकों का भी बहुत-बहुत धन्यवाद हमारे साथ जुड़ने के लिए. 

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