The JC Show: अमेरिका के टेरिफ वॉर के बाद भारत ने अपना कूटनीतिक पासा चल दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहले जापान और फिर चीन दौरा ना सिर्फ एक मजबूत दोस्ती का संदेश देता है बल्कि बदलते हुए भू राजनीतिक समीकरण का भी संदेश देता है. अमेरिका के दबाव के बीच में एशिया के दो शक्तिशाली देश चीन और साथ ही जापान भारत के साथ नजदीकियों के बीच एक नया पावर बैलेंस दिखाते हैं.
सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री मोदी के ये दौरे देश को कैसे वैश्विक मंच पर मजबूती देंगे. सवाल यह भी उठता है कि क्या भारत एशिया में एक नई धुरी बनकर मौजूद रहेगा? आज इसी को समझने की कोशिश करेंगे जेसी शो में पूरे विश्लेषण के साथ और पहले सवाल के साथ शुरुआत करती हूं सर.
सवालः आज हमने जेसी शो की हेडलाइन रखी है ग्लोबल पावर शिफ्ट मोदी इन कमांड. मायने क्या है इसके?
जवाबः इसका अर्थ यह है कि बिना कुछ सोचे समझे और तुगलकी अंदाज में ट्रंप ने जिस तरह से सेल्फ गोल करते हुए भारत पर 50% टेरिफ लगाकर एक खतरा मोड़ लिया है. उस सारे माहौल में नरेंद्र मोदी के लिए एक नया ग्लोबल अलायंस बनाने का रास्ता खुल गया है. राजनीतिक प्रेक्षकों का अनुमान है कि यदि ट्रंप ने जल्दी भूल सुधार नहीं किया तो फिर रूस, भारत और चीन के तड़ी चारों तरफ से ट्रंप को घेर सकती है और फिर ट्रंप का यह टेरिफ प्रयोग या टेरिफ मिस एडवेंचर उनके लिए एक वाटर लूप साबित हो सकता है.
चाइना पहले से ही 145% टेरिफ से नाराज है. रशिया नाराज है. और ऐसे हालात में भारत की 140 करोड़ जनता वह भी अगर ट्रंप के खिलाफ खड़ी होती है तो ऐसी स्थिति में संसार के सारे कूटनीतिक समीकरणों का बदल जाना फिर वो सुनिश्चित है. इसीलिए इट्स अ बिगनिंग ऑफ ए न्यू अलायंस वेयर नरेंद्र मोदी हैज़ ए वेरी वेरीरी क्रूशियल एंड की रोल. इसीलिए कहा जा रहा है वर्ल्ड इज नॉट ओनली वाचिंग इंडिया इट्स काउंटिंग ऑन इंडिया, और इसका बड़ा कारण यह है कि नरेंद्र मोदी एक पॉपुलर व्यक्ति हैं. एक पॉपुलर लीडर हैं. जिनके बारे में कहा जाता है ही यूनाइट्स लेकिन ट्रंप के बारे में कहा जाता है ही डिवाइड्स. तो ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि सर्टेनली ग्लोबल शिफ्ट जहां भारत का की रोल है और यह जो एक नई पावरफुल तड़ी बनी है, यह ट्रंप के लिए एक खतरा है. यही है इसके मायने.
सवालः सर, नरेंद्र मोदी तो डिप्लोमेटिकली फिर भी पोलाइट हैं और विनम्र हैं. लेकिन सुना है कि चाइना ने ट्रंप के लिए बेहद कड़े शब्दों का कठोर शब्दों का प्रयोग किया है
जवाबः यू आर अब्सोलुटली राइट. चीन के राष्ट्रपति ने कहा है वी मस्ट अपोज दी बुलीज़ मतलब अमेरिका. और इनके खिलाफ आवाज नहीं उठाने का मतलब है ऐसे तत्वों को और बढ़ावा देना. दूसरी बात उन्होंने कही है रूल्स ऑफ अ फ्यू नेशंस शुड नॉट बी इंपोज्ड ऑन अदर नेशंस. बड़े कड़े शब्द हैं. तीसरा उन्होंने कहा हम आपको मनमाने ढंग से व्यवहार नहीं करने देंगे. तो यह बात तय है कि कटुता शब्दों की और व्यवहार की इस समय जो है वो अपने चरम पर है.
सवालः सर चीन और जापान के दौरे में से प्रधानमंत्री मोदी ने जापान से ही अपने दौरे की शुरुआत क्यों की?
जवाबः यह काम केवल नरेंद्र मोदी कर सकते हैं. सारा संसार जानता है कि चीन और जापान के रिश्ते कैसे हैं? शत्रुता का भाव कैसे है? ऐसे में अपने इंटरेस्ट को वॉच करते हुए और चाइना को एक खास तरह का मैसेज देते हुए उन्होंने शुरुआत जो है जापान से की है और निश्चित तौर पे जापान की जो यात्रा है वो ज्यादा फ्रूटफुल थी चाइना की तुलना में उस तरह से अगर इन टर्म्स ऑफ़ बिजनेस इन टर्म्स ऑफ़ फ्रेंडशिप इन टर्म्स ऑफ़ पॉलिटिकल अगर देखा जाए तो ये एक्सपेरिमेंट कहिए इसको या नैतिक साहस कहिए यह नरेंद्र मोदी ने किया है कि वो शुरुआत चाइना से भी कर सकते थे फॉललोड बाय जापान उन्होंने पहले जापान गए फिर चाइना गए एक खास इस तरह का डिप्लोमेटिक मैसेज चाइना को दिया और अपना मोरल करज और कन्विक्शन और जापान के प्रति जो फ्रेंडशिप है उसको उन्होंने प्रोजेक्ट किया.
सवालः सर आज पूरे संसार के कूटनीतिक क्षेत्रों में एससीओ में मोदी पुतिन और श्री की तस्वीरें देख के जबरदस्त हलचल मची हुई है. आखिर ऐसा क्या है इन तस्वीरों में?
जवाबः ये तस्वीरें खास है. देखिए आप इन तस्वीरों को. इन तस्वीरों में नरेंद्र मोदी चाइनीस राष्ट्रपति, रशियन राष्ट्रपति का जो सद्भाव है, जो निकटता है, जो उनकी केमिस्ट्री है, वो साफ तौर पे जो है आपको दिखाई देती है और निश्चित तौर पे इन तस्वीरों ने संसार में हलचल मचाई है. इसमें कोई संदेह नहीं है. यह तस्वीरें बताती हैं कि किस प्रकार से नरेंद्र मोदी पुतिन के साथ चल रहे हैं. किस प्रकार वो इशारे में चीन के राष्ट्रपति से बात कर रहे हैं.
उनका कंफर्ट लेवल कैसा है. तो यह जो सारी तस्वीरें हैं यह नरेंद्र मोदी का जो डिप्लोमेटिक और पॉलिटिकल जो है एक जो स्ट्रेचर है संसार में जो है एक डिप्लोमेट की तरह एक जिसे कहना चाहिए फॉरेन विषयों के विशेषज्ञ प्रधानमंत्री की तरह वो सारे उनका जो व्यक्तित्व है उसको दर्शाती हैं. इसलिए इन तस्वीरों का संसार में हलचल मचाना तय है और ये तस्वीरें पिछले दो दिनों से हलचल मचा रही हैं. यह नरेंद्र मोदी की स्मार्ट जो पॉलिटिकल पर्सनालिटी है उनका जो ग्लोबल इनपुट है उनकी पर्सनालिटी का एज अ ग्लोबल लीडर जो है उसको प्रोजेक्ट कर रही हैं और देखा जाए फोटोग्राफी की दृष्टि से भी ये दुर्लभ तस्वीरें हैं जो काफी लंबे समय तक जिसे कहना चाहिए कि कूटनीति के इतिहास में जो याद रहेंगी ये सारी तस्वीरें वो तस्वीरें हैं.
सवालः सर इसी तस्वीर पर मेरा आपसे सवाल है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति श्री जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति पुतिन. जब तीनों एक साथ इस तस्वीर में नजर आते हैं तो जो डोन्ड ट्रंप के ट्रेड सलाहकार हैं वो इसे शर्मनाक बताते हैं. आप इसे किस तरह से देखते हैं?
जवाबः एसर्ट फुलिश जिसे कहना चाहिए निराशा का भाव डिसपॉइंटमेंट फ्रस्ट्रेशन वो एक अनइनवाइटेड एडवाइजर की तरह हमें यह समझा रहे हैं कि आपको इन तस्वीरों के साथ खड़े नहीं होना चाहिए. इन दो के साथ आपकी दोस्ती संसार की सुरक्षा के लिए खतरा है. यह लोग आपके कभी सगे नहीं थे. आगे भी आपको धोखा देंगे. चीन भारत की वो कहानी याद दिलाते हैं सीमा विवाद की. और रशिया के लिए भी कहते हैं कम ऑन ही इज़ नॉट योर फ्रेंड. तो उनका फ्रस्ट्रेशन और निराशा दर्शाती है. उनके इस वक्तव्य का और कोई महत्व नहीं दिखाई देता है.
सवालः सर इस यात्रा पे जो नरेंद्र मोदी जी की हुई है अभी उनप तो आगे बढ़ेंगे ही कई सवाल लेंगे लेकिन इस बीच में मेरे मन में एक सवाल आया जो इससे थोड़ा अलग हटके है. लेकिन सवाल यह है कि ऐसे मौके पर जहां बिहार चुनाव भी सामने खड़ा है. वहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वर्गवासी मां के बारे में जो कुछ भी आपत्तिजनक टिप्पणी की गई विपक्ष द्वारा. और उसके बाद प्रधानमंत्री जी का जो रिएक्शन आया उसको लेकर आप उसे कैसे देखते हैं सर?
जवाबः इट्स रियली अनफॉर्चूनेट. खास बात यह है कि विपक्ष की यही स्थिति रही है कि हर चुनाव के मुद्दे पर और कोई ना कोई ऐसा मुद्दा नरेंद्र मोदी के हाथ में दे देता है जहां नरेंद्र मोदी और बड़े होकर निकलते हैं. अब बिहार का चुनाव सामने है. ये मुद्दा इतना भावुक है. इसे पॉलिटिकली एनकैश नरेंद्र मोदी नहीं कर रहे हैं. लेकिन मुद्दा भावुक है. पर लोगों की भावनाएं हैं उसे आप कंट्रोल नहीं कर सकते. आप देखिए राज्यों में प्रदर्शन शुरू हो गए हैं.
नरेंद्र मोदी का साफ तौर पे कहना है कि यह एक भावनात्मक मुद्दा है. मेरी मां राजनीति में नहीं थी. उनका राजनीति से कोई लेना देना नहीं था. तो मेरी मां का अपमान क्यों हुआ? मां तो स्वाभिमान है. मां तो हमारा संसार है. और उनका यह कहना है कि मां के आशीर्वाद से मैं जीवन में आगे बढ़ा. और उन्होंने यह भी कहा कि यह जो शब्द हैं, मेरी मां का जो अपमान है, यह हर मां, बेटी, बहन और बिहार की महिलाओं का अपमान है. और सबसे दुख की बात यह है कि इसकी पीड़ा और जो दुख है, और शाही परिवार में जन्मे लोग अर्थात उनका इशारा राहुल गांधी की ओर है.
वो लोग महसूस नहीं कर पाएंगे. आज सारे देश के लोगों में खासकर महिलाओं के मन में इस बयान के प्रति एक पीड़ा का भाव है और उन्होंने कहा है कि मैं तो माफ़ कर सकता हूं. बिहार की जनता उन्हें माफ़ नहीं करेगी. तो इस प्रकार से एक जो नोन इशू था एक भावनात्मक मुद्दा था उस मुद्दे को विपक्ष ने नरेंद्र मोदी के हाथ में दे दिया है जो चाहे ना चाहे उनकी पार्टी उनके कार्यकर्ता उनके समर्थक इस मुद्दे को फील्ड में लेकर जाएंगे जिससे विपक्ष का नुकसान होना तय है बिहार के इन चुनाव में ऐसा मुझे लगता है
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सवालः सर वापस से चीन के मुद्दे पर लौटते हुए चीन में हमने देखा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शी जिनपिंग और साथ ही व्लादमीर पुतिन के बीच की जो तस्वीरें अभी आपने भी दिखाई गर्मज जोशी से उनकी इस मुलाकात के बाद कहीं ना कहीं ट्रंप ने एक सफाई देने की कोशिश की. आपको लगता है कि इससे कोई बात अब बन पाएगी?
जवाबः नहीं बात तो इससे नहीं बनेगी. बात अदरवाइज वैसे ही बन रही है. वो एक अलग बात है. बात नहीं बनने का एक कारण यह है कि नरेंद्र मोदी बहुत आहत हैं और दुखी हैं. एक मित्र के इस व्यवहार से ट्रंप के अनग्रेटफुल एटीट्यूड से. उन्होंने कल्पना नहीं की होगी जीवन में कि इतने बड़े पद पर बैठा व्यक्ति छोटे-मोटे स्वार्थों के लिए पाकिस्तान हो या बिजनेस इंटरेस्ट हो उनके लिए या नोबेल पुरस्कार का मुद्दा हो उनके लिए एक पुराने मित्र के साथ और इतने बड़े राष्ट्र के साथ इस प्रकार का व्यवहार जो है वो कर सकता है.
ऐसी इसकी उन्हें अपेक्षा नहीं थी. कल ही एक अमे दूतावास ने एक बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि हमारी दोस्ती सच्ची है, पक्की है, निर्वाद रहने वाली है. वही सब पुरानी बातें जो डे वन से डील तोड़ते समय कही गई थी वो सारी बातें अब है. बट दिस इज टू लेट. हालांकि बात दूसरी है कि अमेरिका और भारत के बीच डायलॉग चल रहा है और शायद बात बनने वाली है. लेकिन इस प्रकार के बयान से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.
सवालः सर मैंने सुना है कि भारत के साथ अपने रिश्ते को सुधारने के लिए चाइना के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हमारे राष्ट्रपति यानी भारत के राष्ट्रपति को एक गोपनीय पत्र लिखा है. हाल ही में कुछ दिनों पहले ही. इस पूरे डेवलपमेंट को आप कैसे देखते हैं?
जवाबः ये चाइना का एक तरह से इनिशिएटिव है. उनकी इच्छा है भारत के साथ रिश्ते सुधारने की. वो पत्र प्रधानमंत्री को लिख सकते थे. आमतौर पे पॉलिटिकल नेचर के पत्र प्रधानमंत्री को लिखे जाते हैं. लेकिन उन्होंने चुना राष्ट्रपति को. कोई बात नहीं है. यह मार्च में पत्र आया है राष्ट्रपति भवन में. तो उसमें इसको इतना महत्व नहीं मिला क्योंकि अमेरिका के साथ हमारा गठबंधन हमारी दोस्ती चल रही थी और ऐसे वक्त पे चाइना के साथ मैत्री के लिए कोई हम बड़ा इनिशिएटिव करते तो शायद उपयुक्त नहीं होता. इसलिए उसकी प्रतीक्षा की गई और जब राइट वक्त आया सही समय पे आया तो उस पत्र के हिसाब से जो है ना चाइना के साथ रिश्ते किए गए. मतलब चाइना के प्रेसिडेंट का जो लेटर था उसको रेस्पोंड किया गया फेवरेबली एक तरह से. ये उसका आशय था. पत्र का एक अच्छा प्रयास है. हम चाइना की इस बात के लिए सराहना करते हैं कि उन्होंने भारत से शांति स्थापना के प्रयासों के लिए अपनी पहल की और यह स्थिति बनी कि आज भारत और चाइना कंपेरेटिवली काफी निकट आ रहे हैं.
सवालः सर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यह भी कहा है कि डांसिंग ड्रैगन एंड एलीिफेंट इज द राइट चॉइस फॉर बोथ. आखिर क्या है इसके पीछे का मैसेज?
जवाबः इसके पीछे उनके मन में उत्साह है. दोस्ती करने को आतुर हैं. हालांकि सुधीर चौधरी ने कहा है कि यह हाथी और ड्रैगन की दोस्ती नहीं भालू रशिया की दोस्ती भी है. तो ये तीन को शामिल किया जाना चाहिए. इसके अंदर जो है तो बहुत अच्छी बात है. उनका यह प्रयास है और इस प्रयास की प्रशंसा की जानी चाहिए और यह दोस्ती आगे बढ़ती है तो नरेंद्र मोदी ने तो पहले ही कहा है कि वी आर कमिटेड टू फर्दर स्ट्रेंथन और रिलेशनशिप विद सेल्फ रेस्पेक्ट म्यूचुअल रेस्पेक्ट जिसे कहते हैं डिग्निटी कोई दिक्कत नहीं है. और रशिया का प्रेसिडेंट खुद यह कह रहे हैं कि हम इस दोस्ती को इस संबंध को और आगे बढ़ाना चाहते हैं और हम इसको जो है इंसेंटिव तरीके से एक तरह से इंसेंटिव्स के साथ में जो है मोराल बूस्टर के साथ इन संबंधों को और आगे बढ़ाना चाहते हैं. तो एक अच्छा प्रयास है. उनकी भावना जो है ये जो है कि दोनों आगे बढ़े.
हाथी और ड्रैगन जो है और भालू साथ में जुड़ गया. उसके जो है यह एक्चुअल में ग्राउंड पे ग्राउंड रियलिटी क्या है और चाइना का जो व्यवहार है आने वाले दिनों में वो व्यवहार और ये जो उनके मन की भावना है ये आपस में कोपरेट करते हैं कि नहीं या उनका व्यवहार इसके विपरीत है या उससे थोड़ा हटके है ये आने वाला वक्त बताएगा लेकिन प्रयास अच्छा है. सर इस पूरी यात्रा का जो इंपॉर्टेंट मैसेज है वो है स्ट्रेटेजिक ऑटोनोमी और फेयर ट्रेड. आप इसे किस तरह से देखते हैं? दोनों एग्री करते हैं कि देयर शुड बी स्ट्रेटजी ऑफ़ ऑटोनमी. ऑटोनमी का मतलब यह है कि भारत और चीन के जो संबंध हैं तीसरे देश को यह छूट नहीं कि अपनी आंख से उन संबंधों को देखे. ऑटोनमी रहे स्वतंत्र है राष्ट्र अपनी सोजनिटी को बरकरार रखें. अपनी स्वतंत्रता रहे उसकी वाणी में आचरण में. इसको दोनों राष्ट्र जो है इसका सम्मान करते हैं. और जो ट्रेड की बात आपने कही है तो बिल्कुल सही है. दोनों देशों का मानना है कि एनी ट्रेड पैक्ट और एनी फ्रेंडशिप वि चाइना एंड इंडिया विल फदर प्रमोट द स्टेबिलिटी ऑफ़ वर्ल्ड ट्रेड जिसे कहते हैं. तो अच्छा प्रयास है ये. अगर एक्चुअल में ये जिसे कहते हैं लैटर स्पिरिट में अगर ये चीज लागू होती है ऑटोनमी वाली भी और ट्रेड वाली भी तो जो वर्ल्ड ट्रेड है उसको स्टेबलाइज करने में दोनों देशों का प्रयास जो है यह सफल होगा.
सवालः सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस चीन यात्रा के दौरान क्या-क्या प्रमुख समझौते या फिर अंडरस्टैंडिंग्स हुई?
जवाबः सबसे बड़ी बात तो यह है चीन के साथ में इन समझौतों में कि एक फंक्शनल वर्किंग फिर से शुरू हुई. फंक्शनल रिलेशनशिप जिसे कहते हैं. थोड़ा गैप था साइकोलॉजिकली और एक प्रैक्टिकली भी वो थोड़ा दो कदम आगे बढ़े. राष्ट्रपति की चिट्ठी के बाद में जो है सबसे बड़ा मुद्दा जो है वो सीमा का है. तो यह कहा गया है कि दोनों देश सीमा के मुद्दे पे बातचीत करने पे सहमत हैं. समाधान पे सहमत हैं, तो नरेंद्र मोदी ने साफ तौर पे कहा है कि शांति बॉर्डर की है ना पहली प्राथमिक अनिवार्यता है. उन्होंने कहा है कि शांति अगर रहती है तो हमारे अच्छे संबंधों का एक इंश्योरेंस पॉलिसी है ये एक तरह से. लेकिन चाइना ने थोड़ा स्मार्टनेस दिखाते हुए कहा है कि नहीं यह मुद्दा ओवरऑल संबंधों का आधार नहीं होना चाहिए. लेट दिस बॉर्डर इशू शुड नॉट डिफाइन ऑल द अदर इशूज़. ठीक? लेकिन नरेंद्र मोदी अपनी जगह अलर्ट हैं.
उन्होंने साफ तौर पे कहा है कि जब तक शांति दो राष्ट्रों के बीच में नहीं है तब तक इनडायरेक्टली विकास की बात करना व्यर्थ है. एक तरह से आप उसको यह कहें और बाकी चाइना के साथ डेवलपमेंट की सारी बातें आप करते हैं. 50 मिनट का जो है वहां बटरल टॉक्स हुई हैं. नरेंद्र मोदी और चाइनी राष्ट्रपति के बीच में और यह कहा गया है कि यह बटरल टॉक्स जो हैं यह बिल्कुल जो है जिसे कहना चाहिए कि पॉजिटिव और एक्सेप्टेबल उस अंदाज में होनी चाहिए जिससे कि रीजनल और ग्लोबल जो पीस और सिक्योरिटी है उसको जो है हम प्रभावित कर सकें एक तरह से. और फिर दूसरा आपने देखा है कि आगे जो सिचुएशन है उसमें मानसओवर की यात्रा खुल रही है. डायरेक्ट फ्लाइट शुरू हो रही हैं. बिजनेस और टूरिस्ट वीजा जो है वो चालू हो रहे हैं और कुछ ऐसे काम हो रहे हैं जिससे दोनों देशों के बीच में थोड़ी निगरता बढ़ेगी. लेकिन एस सच कोई बड़ी बात हुई जो कागज में हुई या प्रैक्टिकली हुई ऐसा ही एक भाव जो है ना सेंटीमेंट इस सारे बटरल टॉक्स का जो सेंटीमेंट है वो बड़ा इंपॉर्टेंट है और सेंटीमेंट ये है कि चाइना और इंडिया वापस जो है दे आर नाउ बैक ऑन अ फंक्शनल रिलेशनशिप ये उसका मैसेज है.
सवालः सर डॉनल्ड ट्रंप के ये जो पूरे टेरिफ वॉर है इसके बीच में हमने देखा कि चाइना ने एक तरीके से प्रधानमंत्री मोदी के लिए रेड कारपेट बिछाया है. तो क्या चाइना पर आगे विश्वास किया जा सकता है या फिर एक इसे टेंपरेरी अरेंजमेंट के तौर पर देखा जाए?
जवाबः तो देखिए चाइना पर तो भरोसा करना मुश्किल है, कठिन है और उसका कारण है उसका बैकग्राउंड जिसे कहते हैं. लेकिन हमारे पॉलिटिकल कंपल्शंस हैं आज जिसे कहते हैं डिप्लोमेटिक कंपल्शंस हैं, बिजनेस कंपल्शंस हैं. क्योंकि चाइना का इतिहास ठीक नहीं रहा. राइट फ्रॉम 1962 फिर गलमान हुआ. फिर पहलगांव हुआ. फिर पाकिस्तान भारत के साथ जो थोड़ा युद्ध चला उसमें वो सारी इंटेलिजेंस पाकिस्तान को दे रहे थे और उनका जो टोटल फिर मुनीर के साथ उनकी मित्रता उसको बुलाना हर फंक्शन में उसको अपने साथ रखना जो कि घोषित तौर पे एक आतंकी अपराधी भारत उसको मानता है क्योंकि पहलगांव के पीछे उसका मास्टरमाइंड था. ये सारी बातें हैं. लेकिन अब ठीक है रेड कारपेट दिया है तो उसे स्वीकार करना चाहिए. उसे फेस वैल्यू पे देखा जाना चाहिए. और जहां तक भरोसे की बात है तो इट इज़ डिफिकल्ट टू कंप्लीटली ट्रस्ट ऑन चाइना. क्योंकि बेसिकली जो दोनों राष्ट्रों के बीच है बेसिक भाव जो सेंटीमेंट है वो एक शत्रुता का भाव है. बेसिक फ्रेंडशिप का भाव नहीं है. जैसे भारत अमेरिका के बीच बेसिक भाव जो है ना वो फ्रेंडशिप का है. चाहे डिफरेंसेस हो हमारे. तो चाइना पे करना मुश्किल. लेकिन ये एक अच्छी बात है कि चाइना ने अपने पुराने उस रिस्पांस और एटीट्यूड से हटकर इस बार नरेंद्र मोदी के लिए पलक पांव बिछाए और रेड कारपेट वेलकम उन्हें दिया.
सवालः सर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन पहुंचे और यहां पर उनका स्वागत किया गया तो बड़ी संख्या में यहां भारतीय मुस्लिम समुदाय के लोग भी शामिल रहे. इस पल को आप किस तरह से देखते हैं?
जवाबः ये देखिए आप इन तस्वीरों में भारत में हो तो कोई बात नहीं. कानपुर में हो, लखनऊ में हो, अहमदाबाद में हो. लेकिन ये कहां हो रहा है चाइना के अंदर? ये देखिए जो है और वो हाथ में तिरंगा लिए हुए हैं और मैंने सुना नारे भी लगाए उन्होंने. भारत माता, जय श्री राम. ये सब नारे वहां पे लगे. दैट इज़ है वेरी एनकरेजिंग. और मेरा तो शुरू से मानना है, मैंने कहा भी है कई बार कि मुस्लिम समुदाय के मन में मोदी के प्रति क्या भाव है, यह क्लेरिटी नहीं है पूरे तौर पे. अभी थोड़ी सी कंट्रोवर्सी है. अधिकांश लोगों का मानना यह है कि वो नेगेटिव सोचती है कम्युनिटी. लेकिन हमारा जो प्रोग्राम चलता है मोदी मुल्क और मुसलमान उसमें लोगों को सुनता हूं तो यकीन नहीं होता ऐसा लगता है कि वोट डिवाइडेड है शायद इन ए वे अबाउट मोदी जो है ये उस कार्यक्रम में आप देखिए लखनऊ के श्रीनगर के भोपाल के और बेंगलुरु के कोलकाता के मुसलमान नरेंद्र मोदी के बारे में क्या-क्या बोलते हैं कितना अच्छा बोलते हैं दैट इज़ है तो ये जो हुआ है ये शायद उसी का एक एक्सटेंशन है. एनी हाउ एक अच्छी तस्वीर है जो सेकुलर इंडिया को प्रेजेंट करती है वहां पे.
सवालः सर ट्रंप की दादागिरी हो या टेरिफ मिस एडवेंचर हो फिर भी बावजूद इसके आपको नहीं लगता कि लॉन्ग रन के लिए चाइना से ज्यादा बेहतर ऑब्वियस दोस्त अमेरिका भारत के लिए ज्यादा अच्छा दोस्त है. दोनों की दोस्ती में चाहे ट्रेड हो चाहे फर्दर रिलेशनशिप्स हो वो ज्यादा बेहतर है और ऑब्वियस नेचुरल एलआई की तरह है.
जवाबः एब्सोलुटली यू आर करेक्ट. जैसे मैंने पहले कहा कि बेसिक सेंटीमेंट चाइना और भारत के प्रति शत्रुता का भाव है. भारत अमेरिका के प्रति जो है मित्रता का भाव है. चाइना के साथ 65 साल पुरानी शत्रुता का भाव है. अमेरिका के साथ 60 साल पुरानी मित्रता का भाव है. आप यह मानिए यह अलग बात है कि ट्रंप के इमैच्योर एटीट्यूड के कारण कुछ समय के लिए यह दोस्ती डिस्टर्ब हुई है. लेकिन ओवरऑल अगर आप देखें तो भारत का मार्केट अमेरिका में है. 50% एक्सपोर्ट हमारा जो है अमेरिका को जाता है 48 बिलियन का. आप देखिए जो इसमें क्राइसिस में है. चाइना के में हमारा मार्केट नहीं है. चाइना तो रिवर्स करता है. वो तो डंप करता है हमारे यहां. चाइना चीज़ सस्ती बनाता है. हमारा मार्केट नहीं है वहां पे. तो बिज़नेस के व्यू से अगर हम देखें कुल मिलाकर के तो हमारा जो इंटरेस्ट है, हमारा जो जिसे कहना चाहिए कमिटमेंट है या बेनिफिट है या बैलेंस ऑफ़ कन्वीनियंस है या जो ट्रेड बैलेंस है वो अमेरिका के साथ अच्छा है बजाय चाइना के साथ होने के. सबसे पहली बात तो यह है.
फिर दूसरा पॉलिटिकली अगर आप देखते हैं अमेरिका इज कंपेरेटिवली अ ट्रस्टेड अलाई नॉट एज गुड एस रशिया बट स्टिल अ ट्रस्टेड अलाई चाइना नॉट एट ऑल इज़ अबब्सोलुटली अ टेंपरेरी फेस व्हिच आई फील लेकिन हमें तो इस टेंपरेरी फेस का फायदा उठाना है और ये तो बैटल ऑफ़ बिट्स है ना इस बैटल बिट्स में कौन कितना फायदा उठाता है. नरेंद्र मोदी स्मार्ट प्राइम मिनिस्टर तो देखेंगे वो बैलेंस ऑफ़ कन्वीनियंस को अपने फेवर में रखेंगे. कुल मिला के आई एग्री विद योर असेसमेंट कि आवर रिलेशनशिप विद अमेरिका इन लॉन्ग टर्म विल बी मोर बेनिफिशियल देन आवर रिलेशनशिप विद चाइना.
सवालः चाइना सर अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मंचों पर एक चर्चा बड़ी आम है कि रूस से तेल खरीदने की वजह से नहीं बल्कि ट्रंप को नोबेल प्राइज के लिए नॉमिनेट ना करने की वजह से भारत के साथ ट्रंप ने ऐसा किया है. आप इसे लेकर क्या सोचते हैं?
जवाबः आई थिंक देयर आर फेयर रीज़ंस टू बिलीव दिस वर्शन. मैंने सुना है कि 17 जून को जो बात हुई थी नरेंद्र मोदी और ट्रंप की तो उन्होंने विषय छेड़ते हुए कहा था कि पाकिस्तान वालों ने कर दिया है. ये इशारे में कहा था आप भी करिए. नरेंद्र मोदी ने टाल दिया इस बात को. अब ट्रंप ये सोचते होंगे मैं जब भी कोई बार नरेंद्र मोदी से कहता हूं तो सुनते नहीं है.
पिछली बार आए थे तो इमरान ने कहा था कि भाई हम तो समझौता करना चाहते हैं भारत से. तो ट्रंप की जो आदत है सेल्फ स्टाइल मध्यस्थ बनने की. तो उन्होंने कहा ठीक है मैं अध्यक्षता कराता हूं और नरेंद्र मोदी को फोन किया उन्होंने हाथ जोड़ लिए कि तीसरे देश का कोई स्थान नहीं है. तो तब से उनके मन में खटक है और इस बार उन्होंने कहा मान लो जैसा कि सच है झूठ है कि समझौता करो यह और फिर इस बार यह कहा जो कंडीशंस लगाई एग्रीकल्चर सेक्टर खोलने की तो नहीं मानी उन्होंने जो है तो उन्होंने कहा ये कौन व्यक्ति है संसार जो मेरी बात नहीं मानता तो उनके मन में आता है जो उसको करने की कोशिश करते हैं दैट वे जो है तो फिर मैंने उसमें ये पड़ा मैंने उसके अंदर जो है कि उनके मन में आया गुस्सा इस तरह का कि भाई पहले भी नहीं मानी अब भी नहीं मानते एज कंपेयर टू प्राइम मिनिस्टर ऑफ पाकिस्तान उनको इशारा किया.
उन्होंने तुरंत गुणगान किया और इसके अलावा उन्होंने यह गुणगान किया संसद में प्रस्ताव पारित करके ट्रंप को धन्यवाद किया कि प्रभु आपने हमारे युद्ध विराम कराया और बचाव किया. नरेंद्र मोदी ने ऐसा कुछ नहीं किया. वो ऐसी अपेक्षा करते हैं ट्रंप नरेंद्र मोदी से कि वो भी ऐसा प्रस्ताव पारित करें. मुझे नोबेल पुरस्कार के लिए नामित करें तो ये संभव नहीं है. और नरेंद्र मोदी झुकते हैं नहीं दबाव में क्योंकि नरेंद्र मोदी के डीएनए में नहीं है झुकना. उस तरह से जो है ही टॉक सेंस ही इज़ अ रैशन पर्सन जो है तो बहुत संभव है और जैसा न्यूयॉर्क टाइम्स दावा कर रहा है और सब लोग कह रहे हैं एंड देयर इज अ रीज़न टू बिलीव. तो निश्चित तौर पे इस झगड़े का एक कारण यह है कि नरेंद्र मोदी ने उनकी जो ख्वाहिश है या जो अंतिम इच्छा है नोबेल पुरस्कार लेने की उसमें उनका साथ नहीं दिया क्योंकि मेरिट पे ट्रंप को नोबेल पुरस्कार देने की बात करना ही आज हास्यास्पद लगता है.
सवालः सर मैंने सुना है कि भारत पर 50% टारिफ इंपोज करने के बाद ट्रंप ने पीएम मोदी से चार बार बात करने की कोशिश की. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने जवाब नहीं दिया. आप कैसे देखते हैं इस घटनाक्रम को? इट अगेन साउंड्स करेक्ट. साउंड्स कन्विंसिंग. कितना दुख होगा नरेंद्र मोदी के मन में? सोचो तो सही. क्या नहीं किया उसके लिए? कहां ले गए अहमदाबाद में? कहां चले गए उनके लिए?
जवाबः अमेरिका में 1 लाख लोग इकट्ठे हुए. वहां पे भारत के थे. ज्यादातर लोग जो हैं और यहां तक कहा कि वोट फॉर ट्रंप. तो अनग्रेटफुलनेस की एक लिमिट है ना. ही मस्ट बी हर्ट. और फिर ये क्या बचपना है? आज कुछ कह रहे हैं, कल कुछ कह रहे हैं. आप अपनी प्रतिष्ठा खराब कर रहे हैं. जिसे कहते हैं द कंपनी यू कीप आज ट्रंप की कंपनी में खड़े होना नरेंद्र मोदी के लिए बिलो स्टैंडर्ड बात है. जिसे कहते हैं ना कि गिरता है उनका सराज. ट्रंप जैसे व्यक्ति कितने महान हो, कितने बड़े हो उनका जो आचरण है, व्यवहार है, स्टाइल ऑफ़ फंक्शनिंग है, जो चरित्र है, उनका बदलता जो एटीट्यूड है, उनके जो भाषण है, उनके जो वाक्य हैं वो नरेंद्र मोदी की पर्सनालिटी को सूट नहीं करते.
तो इतने दुखी होंगे स्वाभाविक है तो दुख का इजहार करने का एक तरीका यह है नो रिस्पांस तो उन्होंने जो है नहीं जवाब दिया और पार्लियामेंट में कहा नरेंद्र मोदी ने कि वहां दो राष्ट्रपति का फोन आया था लड़ाई के दिनों में चार बार फोन आया मैंने फोन नहीं लिया फिर शिष्टाचार के नाते मैंने जब फोन पलट के किया पाकिस्तान बड़ा हमला करने की तैयारी कर रहा है तो इन्होंने कहा ठीक है हम उससे बड़ा हमला करेंगे वो जिसे था ना तोप चलाएंगे तो हम टैंक चलाएंगे गोली चलाएंगे हम गोला चलाएंगे दैट विल है तो नरेंद्र मोदी निराश हुए और उनको ऐसा लगा कि यह पाकिस्तान की तरह भारत को भी एक अपनी कॉलोनी समझ रहे हैं.
जब चाहे जो कह दो जब चाहे जो कर लो तो उसमें भी उन्होंने कोई ढंग से रिस्पांस नहीं दिया था. तो मुझे सही लगता है कि उन्होंने रिस्पांस नहीं किया होगा और और मेरा यह भी कहना है कि नरेंद्र मोदी ने जो किया वो आज 140 करोड़ लोगों की जो भावना है ट्रंप के प्रति खाली उसी को उन्होंने कम्युनिकेट किया. आज ट्रंप के प्रति एक घृणा का भाव है देश में. जिन लोगों ने पैसे इकट्ठे करके मंदिर मस्जिदों में उसमें कईयों ने गीत गाए थे कि ट्रंप आओ ट्रंप आओ वो सारे आज कोस रहे हैं ट्रंप को दैट विल है तो बिल्कुल ठीक कहा नरेंद्र मोदी ने दिस इज ऑल
सवालः सर 1 सितंबर को जो चीन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन के बीच ऐतिहासिक और शानदार मुलाकात हुई इसकी हाईलाइट्स क्या रही इसकी मेजर हाईलाइट?
जवाबः तो ये है दो बिछड़े दोस्त गले मिलते हैं ना जैसे मेड फॉर ईच अदर अब आप देखिए कि 10 मिनट तक तो वो पुतिन उनका इंतजार करते कार में बैठ के कि मोदी जी आए तो साथ बैठे और आगे चलें. फिर जहां जाना था वो 7 आठ मिनट का रास्ता था. कार पहुंच गई खड़ी हो गई.
उतरे नहीं दोनों 50 मिनट तक गपशप सारी बातें सीक्रेट डिस्कशंस अब पता नहीं क्या डिस्कस करते हैं इतना और पता नहीं क्या डिस्कस होगा. दोस्त है ना मन की बात दिल की बात दिल है कि मानता नहीं दिल है कि भरता नहीं जो है ये तो सारा संसार हैरान वहां ट्रंप हैरान लेकिन वो क्या कार के अंदर तो मोबाइल सुन नहीं सकते ना उनका जो ट्रंप की आदत है दैट वे जो है तो वार्ता हुई सारा संसार हैरान जो है तो एक बहुत अच्छा मैसेज उसका गया सबसे बड़ा हाईलाइट जो है ना सारी घटना की सबसे बड़ी हाईलाइट यही है कि दोस्तों की तरह भाइयों की तरह गले मिलकर उन्होंने व्यवहार किया और पुतिन ने नरेंद्र मोदी को जिसे कहना चाहिए खूब भर के अपनी दोस्ती निभाई और यह सिद्ध किया कि रशिया से बेहतर दोस्त और कोई नहीं.
सवालः यह कहा सर राजनीतिक पर्यवेक्षकों का यह आकलन है कि बीते दिनों अमेरिका के अलास्का में ट्रंप और पुतिन के बीच जो बैठक हुई थी उसमें पुतिन ट्रंप पर हावी रहे. क्या आपका भी यही आकलन है? बिल्कुल सही है. एक तो संसार को समझ नहीं आया कि यह बैठक बुलाई क्यों थी?
जवाबः कई लोग अभी भी डाउट करते हैं कि पिछले चुनाव में ट्रंप के पुतिन ने मदद की थी. क्या कोई एहसान चुकाना था? क्या कोई सीक्रेट अंडरस्टैंडिंग थी या क्या था? वो तो एक होस्ट की तरह उन्होंने बुलाया और पुतिन का व्यवहार एक चीफ गेस्ट जैसा था कि वो तो होस्ट है आयोजक और चीफ गेस्ट जा रहे हैं वहां पर तो निश्चित तौर पर इसमें ट्रंप का कद घटा है.
पुतिन का कद बढ़ा है और एक इंटरनेशनल पुनर्वास जो उसका निष्काशन था या जो एक कहते हैं अभी यह वॉर क्रिमिनल है उसको स्वीकार नहीं करते देश उसका पुन स्थापना उन्होंने उसकी करी वहां पे जो है और मंच पे जो कुछ हुआ तो उसमें लगा कि ट्रंप का जो एक तरह से जो होता है ना ओवराइड कर लिया ओवर ओवरटेक कर लिया अह पुतिन ने उन्हें राइवल देश की भूमि में जाके बैठ गए और जिस तरह से उन्होंने परिपक्वता दिखाई पुतिन ने और व्यवहार किया तो उससे उसके नंबर बढ़े और पूरे और जो बात थी युद्ध की दो ठुक उन्होंने इंकार कर दिया जो है और यह कहा कि भाई यह पहले तो मैंने इलाके जो जीतने खाली नहीं करूंगा बात नहीं बनी तो शो फ्लॉप हो गया तो जिस काम के लिए बात गए थे वो गए थे युद्ध विराम करने समझौता करने माने नहीं उल्टा ट्रंप जो है ना उसका जो पार्ट था शांति व्यवस्था का पाठ वो पढ़ के वहां से आ गए जो है तो सारे संसार में बहुत ही जिसे कहना चाहिए कि एक किरकिरी हुई ट्रंप की इससे कि क्यों तो बुलाया था उसको क्या परिणाम निकला निकला और उसने बड़ा स्मार्ट एक्ट किया और उसके व्यक्तित्व को उसके फोटो को अगर आप देखेंगे तो पुतिन उनके व्यक्तित्व पे ट्रंप के व्यक्तित्व पे हावी रहा इसमें कोई शक नहीं है.
सवालः सर दिसंबर में रूस के राष्ट्रपति पुतिन भारत आएंगे. लेकिन ये यात्रा उनकी पिछली यात्राओं से किस तरह से अलग रहने वाली है?
जवाबः निश्चित तौर पे सुपर रेड कारपेट वेलकम बाय नरेंद्र मोदी. दो दोस्त और एक दोस्त जो हमेशा खड़ा रहता है. जैसे नरेंद्र मोदी एक ठहरे हुए इंसान हैं. एक स्टेबल थिंकिंग है. स्टेबल मेंटालिटी है. उसी के आसपास पुतिन ठहरते हैं. जो कहते हैं वो करते हैं. जो करते हैं वो निभाते हैं. दैट वे जो है इसलिए उनका स्वागत बहुत जबरदस्त होगा. बड़े-बड़े समझौते होंगे दोनों देशों के बीच में. अच्छी बात यह है दोनों के लिए गुड टाइम होगा जब पुतिन भारत आएंगे. इसलिए नरेंद्र मोदी पर्सनली भी एज अ फ्रेंड भी ही मस्ट बी वै इगरली वेटिंग फॉर अराइवल ऑफ़ पुतिन इन न्यू दिल्ली.
सवालः सर इस पूरे कॉन्टेक्स्ट में अगर चीन की बात करें तो चीन को ट्रंप के टेरिफ से लड़ने के लिए भारत की जरूरत क्यों है?
जवाबः ऑफकोर्स इसीलिए तो सब कर रहे हैं वो. हम जो काम समझे ट्रंप ने इग्नोर किया 140 लोगों के मार्केट को वो चाइना ने होशियारी से लिया उसको अपने साथ और पॉलिटिकली क्या है कि वो आइसोलेट नहीं हो जाए. चाइना इस समय इसलिए उसके लिए उतना जरूरी है भारत को साथ रखना जितना आज वह ईरान को लेके चल रहा है साथ में या किम को चल रहा है लेके साथ में पुतिन को साथ लेके चल रहा है पाकिस्तान साथ में लेके चल रहा है पाकिस्तान तो छोटी पावर है तो भारत एक बड़ी पावर के रूप में उसके लिए मोर बेनिफिशरी चाइना के लिए इसमें जो मोरल क्राइसिस है चाइना के सामने इस समय जो है जो आइडेंटिटी क्राइसिस है एज अ सुपर पावर इन द वर्ल्ड जिसको अमेरिका कुचलने पे आमदा है उस हालात के अंदर नरेंद्र मोदी की एक उंगली जो है चीन के राष्ट्रपति के लिए एक बड़ा सहारा इसीलिए चीन की जो पॉलिटिक्स है, चीन के जो पॉलिटिकल डायनामिक्स है जो वहां नरेंद्र मोदी का इंपॉर्टेंट रोल है और इस बात को शिंग जो है बहुत अच्छी तरह समझते हैं. जी सर एक गंभीर घटनाक्रम में अमेरिकन फेडरल कोर्ट ने ट्रंप के टेरिफ को गैरकानूनी बताया.
सवालः सर अब इसके सुप्रीम कोर्ट में क्या आसार है? क्या ट्रंप को राहत मिलेगी?
जवाबः सुप्रीम कोर्ट में ट्रंप के हारने के काफी आसार हैं. और यह सब तो होना ही था. जब आप बुली करोगे, संविधान के बाहर काम करोगे तो देर सवेरे सब होना था. अब आप देखिए कोर्ट ने फैसला दिया है और कोर्ट के फैसले से ट्रंप को तगड़ा झटका लगा है और कोर्ट ने कहा है कि ट्रंप ने अधिकारों के बाहर जाकर काम किया.
अधिकार क्षेत्र के बाहर काम किया है. देश में ऐसी कोई आपदा नहीं थी जिसके लिए इन अधिकारों का उपयोग किया जा सके. यह अधिकार केवल आपदा के लिए हैं. ट्रंप ने आ ली थी ट्रेड डेफिसिट की कि मेरा चाइना के साथ मेक्सिको के साथ कुछ और देशों के साथ मेरा जो ट्रेड डेफिसिट उसकी पूर्ति के लिए मैं कर रहा हूं. लेकिन ये पर्याप्त कारण नहीं है. उसके बाद में ट्रंप जैसे कहता है रमक इधरउधर यहां वहां सब जगह टेरिफ लगाने लगे. कहीं 200% टेरिफ की धमकी, कहीं 100% टेरिफ की धमकी. ऐसा नहीं होता जो है. तो वहां काफी संभावना है इस समय कि ट्रंप एक केस सुप्रीम कोर्ट में हार सकते हैं और सारे संसार में शांति की लहर आ सकती है.
बट लेट्स सी काफी क्रिटिकल है. ट्रंप कह रहे हैं कि अगर ये हट गए टेरिफ तो अमेरिका बर्बाद हो जाएगा. अमेरिका कंगाल हो जाएगा. तो वहां के कोर्ट ने मोहलत दी है ट्रंप को कि गो टू सुप्रीम कोर्ट टिल 14th अक्टूबर और वहां से मैंडेट लेके आओ. नहीं तो तुम्हारे टेररिफ सब बंद हो जाएंगे. तो सारे संसार की निगाह इस समय जो है ना अमेरिका का जो सुप्रीम कोर्ट है उस पर टिकी हुई है.
सवालः सर इसी तरह से बिना किसी कानून कायदे के जो फेडरल रिजर्व बोर्ड है उसके गवर्नर लीसा कोक को ट्रंप ने अचानक से हटा दिया. इसको कैसे देखते हैं सर आप?
जवाबः वन मोर आर्बिटरी एंड डिक्टोरियल मूव ऑफ़ ट्रंप वो वहां का जो फेडरल रिजर्व बोर्ड है वो रिजर्व बैंक जैसा है. रादर रिजर्व बैंक ही है. सेंट्रल बैंक है कंट्री का. हम्म टर्म वांटेड टू इन्फ्लुएंस हर और बैंक्स मॉनिटरियल पॉलिसीज जिसे कहते हैं मॉनिटरी पॉलिसीज को आप अफेक्ट करना चाहते थे इनफ्लुएंस करना चाहते थे शी रिफ्यूज्ड ही आस्क्ड हर टू रिजाइन शी रिफ्यूज्ड टू रिजाइन ट्रंप डिसमिस्ड हर शी हैड गॉन टू कोर्ट और 100% चांस है कि कोर्ट इसके साथ खड़ा होगा और ट्रंप के खिलाफ फैसला आएगा वहां तो वन मोर आर्बिटरी एक्ट ऑफ ट्रंप और एक जो है. उसमें एक बात और इंपॉर्टेंट है इसके अंदर. तो ऐसी घटनाएं क्या है? पॉलिटिकली तो चल जाती हैं लेकिन बैंकिंग सेक्टर में नहीं चलती. इसलिए इंडियन एक्सप्रेस ने बहुत अच्छा लिखा है. उसने लिखा इंटरफेरेंस इन द वर्किंग ऑफ सेंट्रल बैंक्स सर्टेनली विल डैमेज एंड इरोड द क्रेडिबिलिटी फैक्टर ऑफ द बैंकिंग सिस्टम जो है. तो बहुत सीरियस घटना है ये. तो लेट्स सी व्हाट आउट कम्स फ्रॉम द कोर्ट इन अमेरिका.
सवालः सर अगर एक पल के लिए ये मान भी लेते हैं कि भारत और अमेरिका की दोस्ती एक बार फिर से हो जाती है तो फिर इसमें चीन की लीडरशिप की उस समय क्या प्रतिक्रिया होगी?
जवाबः कोई खास नहीं है. दे आर द बोर्न एनिमी ऑफ़ इंडिया. अभी तक जो रुख है उनका जो है एंड दे आर द बोर्न सपोर्टर ऑफ़ पाकिस्तान. अभी पाकिस्तान के साथ खड़े हैं. आप देखिए अभी 24 घंटे भी नहीं हुए हैं. पाकिस्तान साथ खड़े हैं. गलबियां मिल रही हैं. मुनीर आ रहे हैं, जा रहे हैं. सब कुछ वैसा हो रहा है जो है तो क्या कहते हैं?
फेसलेस. तो चाइना इज़ अ फेसलेस एस पर दीज़ इशज़ आर कंसर्न बिटवीन इंडिया एंड पाकिस्तान. और जहां भारत का प्रश्न है वो हमेशा पाकिस्तान के साथ खड़े मिलेंगे. तो उनको और फिर भी क्या है जो अरेंजमेंट अभी हो रहा है सारा इंडिया चाइना का ये टेंपरेरी अरेंजमेंट है. वर्किंग अरेंजमेंट है. साल चले, 2 साल चले, छ महीने चले और जब तक चले अमेरिका के साथ हमारी दोस्ती हो जाएगी वापस लगता है जो है जल्दी. तो फिर ये वापस डाउन होना चालू हो जाएगा ये. तो उन पे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. दे आर द फेसलेस पीपल.
सवालः सर लंबे समय बाद प्रधानमंत्री मोदी चाइना जाने का फैसला करते हैं. चाइना जाते हैं तो सबकी नजर इस पर टिकती है कि श्री जिपिंग और प्रधानमंत्री मोदी के बीच में क्या बातचीत हुई? सवाल यह है कि इंडो चाइना बॉर्डर को लेकर कुछ चर्चा हुई है. तो क्या लगता है आपको कि श्री जिमपिंग ने कोई ठोस बात कही होगी?
जवाबः आश्वासन दिया होगा बॉर्डर इश्यूज को लेकर डिस्प्यूट को लेकर. नहीं कोई ठोस आश्वासन नहीं दे पाए. बस इतना सा बल्कि उन्होंने एक स्मार्टनेस और करी जो मैंने पहले आपसे कहा. उन्होंने कहा कि लेट दिस बॉर्डर इशू शुड नॉट डिफाइन आवर रिलेशनशिप टोटल रिलेशन ओवर रिलेशनशिप तो नरेंद्र मोदी समाज से मैंने कहा ना उन्होंने तुरंत कहा जब तक शांति नहीं होगी कोई मतलब नहीं है समन सामान्य होने की इंश्योरेंस पॉलिसी है बॉर्डर पे शांति होना तो ठोस प्रस्ताव ऐसा नहीं हुआ बस ये कह लीजिए कि एक एक फंक्शन रिलेशनशिप बनी एक डायलॉग हुआ इनिशिएट जिसे कहते हैं कोई स्पेसिफिक प्रपोजल ना तो इंडिया ने दिया और ना उन्होंने उन्होंने दिया बल्कि भारत ने बड़प्पन दिखाया नरेंद्र मोदी ने यह कहा कि भाई आफ्टर डिसंगेजमेंट जो है दे आर इन प्लेस एक तरह से जो है लेकिन ऐसा कोई ठोस अपन कहें कुछ ऐसा तो ऐसा ठोस कुछ नहीं हुआ और वैसे भी क्या बॉर्डर इशू इतना सेंसिटिव है कि इसमें कोई इमीडिएटली कुछ ऐसा होता नहीं है लंबी बात चलती है लेकिन भारत के लिए तो अभी तो इतना सा संतोष है खाली कि भाई कोई नया जिसे कहना चाहिए नई शरारत भारत पार सीमा पे गलमान पे इधर-उधर कोई नहीं कर रहा है और जो डिसएंगेजमेंट किया था भारत चाइना हैं उसकी पालना हो रही है. फिलहाल तो भारत की शांति के लिए यही पर्याप्त है. जिसे कहना चाहिए अगर दोस्ती आगे बढ़ेगी तो फिर दूसरी बात आगे आएगी. तो फिर चाइना जो ये कहता है कि भ ये अरुणाचल भी मेरा है. ब्रह्मपुत्र पे बांध भी मैं बनाऊंगा. यह भी साउथ तिब्बत है. और सब बातें कहते हैं इस तरह से. तो फिर वह तो बात एक अलग है.
लेकिन बेसिकली आप एक बात मान लीजिए कि सारी जो वार्ता चाइना और इसके साथ हुई है यहां पे ये एक मूड को और मोराल बूस्टर है. एक तरह से मूड ठीक करने के लिए है बेसिकली और थोड़ा सा बिज़नेस ठीक हो जाएगा. मतलब फंक्शनल रिलेशनशिप जो है वो थोड़ी ठीक हो जाएगी. परमानेंट लेवल पे कुछ लंबी बात चले ऐसा नहीं है. इट इज़ अ वर्किंग अरेंजमेंट जिसे हम कह सकते हैं. और क्योंकि नरेंद्र मोदी स्मार्ट है. इस वर्किंग अरेंजमेंट को वो अपने फेवर में एग्जीक्यूट करवा लेंगे. टिल इट इज़ इन प्लेस जिसे हम कहते हैं.
सवालः सर मोदी श्री पुतिन के त्रिकोण के बाद क्या चीनी लीडरशिप के सामने पाकिस्तान को जो खुला समर्थन उनका रहा है उसको लेकर उनके सामने कोई दुविधा होगी और आगे इन रिश्तों का भविष्य क्या देखते हैं आप?
जवाबः दुविधा तो है दे मस्ट बी थिंकिंग कि अभी कल ही तो आतंकवाद की आलोचना करके आए हैं. पहलगांव की आलोचना करके आए हैं. नरेंद्र मोदी के साथ फोटो खिंा के आए हैं. मोदी के साथ हंसते हुए तस्वीर लगा के आए हैं. तो एकदम से कैसे सपोर्ट करें? तो अगले कुछ महीने तक पाकिस्तान को कोई इनडायरेक्ट सपोर्ट चाहे मिलिट्री का हो चाहे स्ट्रेटजी हो चाहे इंटेलिजेंस का हो शायद चाइना अवॉइड करेगा ऐसा नहीं देगा तो कुछ समय के लिए चाइना विल प्रेफर टू कीप पाकिस्तान एट डिस्टेंस जो लगता है बट अगेन इट इज़ टेंपरेरी और परमानेंट परमानेंट तो हो ही नहीं सकता हाउ लॉन्ग इटंस या टेंपरेरी कितने महीने का है इट इज़ टू बी सीन एंड ओनली द टाइम विल टेल अबाउट इट
सवालः सर पीएम मोदी के भारत लौटने के 24 घंटे के अंदर पाकिस्तानी पीएम शरीफ और आर्मी चीफ मुनीर वहां के राष्ट्रपति से मुलाकात करते हैं. आखिर क्या मायने हैं इसके?
जवाबः अब देखिए आ गई असलियत सामने इस सवाल में वही है ना पुरानी दोस्ती है. आसानी से नहीं टूटती है. स्ट्रेटेजिक इंटरेस्ट है. बेसिक इंटरेस्ट क्या है? इंडिया के खिलाफ एक आदमी को खड़ा करना है. एक मूर्ख राष्ट्र को और पाकिस्तान है मिला हुआ जो है ये. तो अभी तो एक हफ्ता क्या 24 घंटे नहीं हुए. आए हुए नरेंद्र मोदी वो दिल्ली पहुंचे हुए और वहां आप देखिए कि उन्होंने अपनी यात्रा बढ़ाई पाकिस्तान की इससे पहले मुनीर चाइना जा के आए थे अमेरिका भी जाके आए थे तो नरेंद्र मोदी ने जो कहा था आतंकवाद के लिए जो है कि यह डबल स्टैंडर्ड मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा आतंकवाद में यह नहीं होना चाहिए एक तरह से जो है ये तो हो रहा है वहां पे देखिए सरेआम हो रहा है 24 घंटे नहीं हुए तो चाइना का जो कंडक्ट है ना बहुत ही डाउटफुल और इसे कहना चाहिए क्वेश्चननेबल है.
तो लेट्स सी आने वाले दिनों में क्या होता है. लेकिन हैरानी की बात है. वो लोग गए वहां पे राज के सम्मान के साथ वो परेड में बैठे हुए हैं उनके साथ जो है सो नरेंद्र मोदी आल्सो मस्ट हैव नोटिस्ड इट और स्माइल किया होगा उनको तो मन में पहले पता रहता है कौन क्या करने वाला है. तो चलो ठीक है गिव मी अ लॉन्ग रोप तो मोदी इस गिविंग अ लॉन्ग रोप टू साइन एट द मोमेंट ऐसा लगता है
सवालः सर क्योंकि चीन के विक्ट्री डे परेड का यहां पर आपने जिक्र भी किया और इसी विक्ट्री डे परेड में पुतिन शामिल हुए किम चंग उन इसमें शामिल हुए और इसको लेकर तंज कसते हुए ट्रंप ने एक पोस्ट किया उसके बारे में आप क्या कहेंगे?
जवाबः देखो ट्रंप क्या थोड़ा सा मानसिक संतुलन खो रहे हैं. अपना क्या होता है? आक्रोश व्यक्त करने की, निराशा व्यक्त करने की, फ्रस्ट्रेशन व्यक्त करने की एक शब्दों की सीमा होती है. ठीक? तो वो तो दो पड़ोसी जैसा व्यवहार कर रहे हैं. दो राष्ट्रों जैसा व्यवहार नहीं कर रहे हैं. और वो कह रहे हैं उसको कि आप मेरे खिलाफ षड्यंत्र कर रहे हैं. और ये भाषा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में इस तरह की भाषा नहीं होती. आप बड़े आदमी हैं. साधन दुनिया में सबसे ज्यादा आपके पास है. चाइना में थोड़ा बहुत डरता है आपसे.
क्योंकि फाइनेंशियल जो है कैपिटल आपके पास है तो थोड़ा उसमें रहना चाहिए. तो बहुत ही कटाक्ष तीखा किया उन्होंने. लेकिन दूसरा पहलू ये है एवरीथिंग इज फेयर इन लव एंड वार जिसको हम कहते हैं और बात उन्होंने याद दिलाई है जो फ़क्चुअली करेक्ट है थोड़ी बात कि चाइना के आज जो आजादी है जहां पे जिस जगह पे वो है तो उस वहां पे चाइनीज़ सैनिकों के रक्षा में या लड़ाई में जापान के साथ जो थी अमेरिका का रोल भी था. अमेरिका भी खड़ा हुआ था चाइना की रक्षा के लिए चाइना के सपोर्ट के लिए तो कहते हैं भैया अपना विजय दिवस मना रहे हो इंडिपेंडेंस डे इन वे मना रहे हो आप इसको जो परेड डे मना रहे हो तो कुछ याद हमें भी कर लो जो है हमें दो शब्द कह दो हमारे लिए तो वो तो कुछ आए नहीं वहां से आने की उम्मीद है नहीं तो बौखलाए और फिर इन्होंने फ्रस्ट्रेशन में कहा कि तुम कंस्पायर कर रहे हो पर अच्छी बात है कि भारत के लिए इन्होंने कुछ नहीं कहा उन्होंने एक तरह से कहा कि पुतिन के साथ साइलेंट भी आप कर रहे हो कंस्पायर भारत ने नहीं कहा कि मन में उनको मालूम है भारत में उन्होंने सेल गोल ले लिया है जिसको उनको ठीक करना है थोड़े दिनों में.
सवालः सर क्या एसइओ समिट में आतंकवाद के मुद्दे पर भारत को बड़ी कामयाबी मिल पाई?
जवाबः हां दिस इज नरेंद्र मोदी डिप्लोमेटिक विक्ट्री जिसे कहना चाहिए वहां पे पहली बार जो है ना पहलगांव के बारे में जो निंदा प्रस्ताव आतंकवाद का प्रस्ताव पारित हुआ है उसमें उसका नाम है और पाकिस्तान आप तस्वीरें भी देखिए के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कैसे साइललाइन खड़े हैं कैसे नरेंद्र मोदी कमांड में हैं. कैसे पुतिन के कान में बात कर रहे हैं और एक साइड में खड़े हैं.
पहला यह हुआ कि पहलगांव के मुद्दे पे प्रस्ताव पारित हुआ. हम जो सबसे बड़ी उपलब्धि है जो ये कहना चाहिए यहां पे जो है तो ये बहुत बड़ी उपलब्धि है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पे दूसरा नरेंद्र मोदी ने खरी-खरी सुनाई. एक मंच मिला उनको अपनी बात कहने के लिए. हम पाकिस्तान और उनके आका चीन की मौजूदगी में अपनी बात कहने का मौका मिला. उन्होंने फ्रंटियल अटैक किया और मैंने पढ़ा कहीं तो उसने कहा बहुत ब्लंटली उन्होंने पाकिस्तान को एक्सपोज किया टेरर के ऊपर नरेंद्र मोदी ने तो मौका था तो नरेंद्र मोदी ने जो मुद्दा उठाया था का इस बार टहलगांव की घटना का फोन क्लेव था उसके रिकॉर्ड में इंदराज हुआ ये सबसे बड़ी सफलता है जिसे किया जाना चाहिए और जो उनका डबल स्टैंडर्ड का था उन्होंने फिर से दोहराया उस बात को लेकिन वो तो कह ही सकते हैं ना हम तो केवल डबल स्टैंडर्ड का भाषण था वहां पे इसके बावजूद देखिए कल ही वो फिर वो हुआ कि वो पहुंच गए दोनों वहां मुनीर और वहां पे ऑर्डिनर साथ कर रहे हैं बैठ के. तो दिस इज़ ऑल बहाना होता है कि मैंने 26 राष्ट्रों को बुलाया था. पाकिस्तान को बुलाया है. मैंने सुना शाह नरेंद्र मोदी को बुलाया था. ऐसा सुना मैंने तो नेचुरली जाना नहीं था उनको तो गए नहीं वहां पे जो है
सवालः सर सुनने में ये आया कि चीन के राष्ट्रपति ने एसइओ समिट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी कार उपलब्ध करवाई. इसे कैसे देखते हैं?
जवाबः हां बहुत अच्छा मुंह है ये. हम्. यह एक्चुअल में अच्छा मूव है. इसमें दो मुंह बहुत अच्छे हैं. हम एक तो चाइना वाले इतने स्टबन किस्म के लोग हैं. मतलब वो जो उनका व्यवहार आचरण एक अलग तरह का अंदर से कसा हुआ सा ऐसा कसा हुआ वैसा व्यवहार मतलब उनका जो रहता है उसमें उनका अपनी कार देना तो बहुत बड़ा जेस्चर है उनके लिए. और फिर मैंने सिंह को जीवन के मुस्कुराते हुए नहीं देखा.
इस बार ने जो फोटो आए हैं, पुतिन साहब फोटो में मुस्कुराते हुए दिख रहे हैं. यह उपलब्धि है. लेकिन बहुत बड़ा जेस्चर है. इसके लिए चाइनीस प्रेसिडेंट डिर्व्स अ वोट ऑफ़ थैंक्स फ्रॉम इंडिया के नरेंद्र मोदी का ऐसा सम्मान आपने अपने देश में रखा.
सवालः सर क्या यह सच है कि भारत पर 50 फीसदी टेरिफ लगाकर ट्रंप ने सेल्फ गोल करते हुए अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है?
जवाबः ऑफकोर्स बाय नाउ इट इज क्लियर नाउ. एम्पली क्लियर. तभी तो इतना फ्रस्ट्रेशन आ रहा है. ही गवन अनडिक्लेयर्ड चांस टू नरेंद्र मोदी टू फॉर्म इंटरनेशनल अलायंस नॉट एकजेक्टली अगेंस्ट ट्रंप बट टू एक्सरसाइज मोरल इन्फ्लुएंस ओवर ट्रंप जिसे कहना चाहिए कि देखिए क्या परिणाम है इसका और सारी दुनिया लिख रही है सारी दुनिया के अखबार लिख रहे हैं गार्डियन अखबार लिख रहा है और मैंने कहा ग्लोबल लिख रहा है कि पावर शिफ्ट पावर शिफ्ट की बात कहां से आ गई कभी थी नहीं पहले ये तो अपॉर्चुनिटी दी ना आपने मोदी तो विकराल व्यक्ति है ना उसने सिद्ध कर दिया इस बात को ही इज़ नॉट जापान जिसे कहना चाहिए साउथ कोरिया या जो है या दूसरे कंट्रीज हैं वहां के जो यूरोप के कि दब जाएंगे दबाव में आ जाएंगे बात को मान लेंगे तो बहुत गलत जगह हाथ रखा ट्रंप ने इस बार उसका परिणाम यह हुआ कि नरेंद्र मोदी शिफ्ट हुए वहां पे और मोदी को बाव में लिया उन्होंने पुतिन ने और चाइनीस प्रेसिडेंट ने और प्रायश्चित कर रहे होंगे और प्रायश्चित का आपको थोड़े दिनों में दिख जाएगा असर उसका ही विल बी कीन टू अगेन इनिशिएटेड डायलॉग विद इंडिया ऑन ट्रेड टॉक्स आप देखना आने वाले दिनों में जो है नरेंद्र मोदी नहीं चाहते थे इस तरह से वो स्थाई मित्रता रखते हैं बट व्हेन यू कंपेल अ पर्सन तो फिर क्या करूं तो चले गए वहां पे जो है निश्चित तौर पे मेरा मानना है और मेरा ही नहीं ये आरबीआई के जो पूर्व गवर्नर है उन्होंने भी कहा कि ये ट्रंप ने इकोनॉमिकली जो है ना सेल्फ गोल कर लिया है तो मैं भी कन्विंस्ड हूं कि सेल्फ गोल किया है.
सवालः सर भारत ने कॉटन इंपोर्ट को ड्यूटी फ्री कर दिया है. क्या इस पर अमेरिका भी रेसिप्रोकेट करेगा?
जवाबः द टाइम विल टेल इंडिया हैज़ गिवन ए बिग जेस्चर जिसे कहना चाहिए 31 दिसंबर तक के लिए ऑल कॉटन इंपोर्ट्स को फ्री कर दिया है. वन साइडेड वन वे ट्रैफिक. अब अमेरिका हैज़ टू रेसिप्रोकेट. तो लेट्स सी लगता है जो ट्रेड डील होगी आने वाले दिनों में वो कहीं ना कहीं कंपनसेट करेंगे इसको. व गुड जेस्चर ऑफ़ द पार्ट ऑफ़ इंडिया. व्हिच हैज़ टू बी एप्रिशिएटेड. सर 27 अगस्त से जो 50% टेरिफ लागू हुआ है भारत पर उसका शुरुआती आकलन क्या कहता है?
क्योंकि चुनौतियां भी थी, दिक्कतें भी हो सकती हैं. इस बात की संभावना थी. तो आपका शुरुआती आकलन क्या है इस 50% टेरिफ को लेकर? देखो यह तो कोई मतलब टेरिफ नहीं था. यह तो आकाश में बिजली या बादल फटने जैसी गड़गड़ाहट थी और सत्य को छिपाया नहीं जा सकता. हमारा बहुत नुकसान किया ट्रंप ने. 55% हमारे एक्सपोर्ट रिस्क जोन में आ गए जिसकी कीमत है 48 बिलियन डॉल सेक्टर कौन से हैं आप देखिए टेक्सटाइल है आपका ज्वेलरी है डायमंड है फिर आपका हैंडीक्राफ्ट है लेदर है कुछ एग्रीकल्चर के इक्विपमेंट्स हैं क्या नहीं है सब कुछ है 55% किसे कहते हैं क्वांटम और शहर देखिए कहां वीरानी है आज आप सूरत देख लीजिए डायमंड की फैक्ट्रियां चलती थी.
सूरत में मेरे मित्र कल आए वहां से बोले फ्लाइट में सूरत जयपुर में कुल 20 आदमी थे. राजस्थान से बहुत लोग व्यापार करने जाते हैं वहां पे जो है फैक्ट्रियां बंद है. ताले लग गए हैं. लोग घरों में चले गए हैं. मात्रा कम हो गई है. पहले मान लो 100 मजदूर थे तो 20 मजदूर रह गए वहां पे. फिर गुड़गावा है, दिल्ली है, लुधियाना है, तिरचापल्ली है. आप देखिए कहीं पे तो एक वीरानी सी छाई हुई है. जो है तो ट्रंप का जो एक्ट है इट्स हाईली इरिसिबल.
इन टर्म्स ऑफ ह्यूमिनिटी आल्सो जिसे कहना चाहिए वो अलग बात है. नरेंद्र मोदी लोगों को अकेला नहीं छोड़ते हैं. सरकार बड़े पैकेज ले आएगी इनके लिए रिहबिलिटेट करेगी टू सम एक्सटेंट टू लार्ज एक्सटेंट जिसे कहना चाहिए. लेकिन ट्रंप के इसका असर तो है पूरा ये तो मानना पड़ेगा. अब भारत सरकार दूसरे उपाय कर रही है. भारत सरकार स्वदेशी भी कर रही है. भारत सरकार उनको राहत का पैकेज भी दे रही है. व्हाटएवर बेस्ट कैन बी डन बाय द गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एंड द प्राइम मिनिस्टर दैट ऑल बीइंग डन. बट इंस्पाइट ऑफ द फैक्ट कि नुकसान बहुत हुआ है.
सवालः सर बिल्कुल इसी को लेकर मैं आपसे अगला सवाल भी करने वाली थी क्योंकि जिस तरीके से ट्रंप की तरफ से 50सदी टेरिफ लगाया गया है. अब ऐसे में अगर कुछ बड़े कदमों की बात करें तो क्या भारत सरकार ले सकती है? राहत भरे कदम उठा सकती है?
जवाबः भारत सरकार बहुत विजिलेंट है. प्राइम मिनिस्टर, फाइनेंस मिनिस्टर और मैंने सुना पिछले दिनों अमित शाह यह सब लोग जो है बहुत विजिलेंट है इस बारे में. मोस्ट प्रोबेब्ली सारे प्रपोजल थ्रू हो जाएंगे. एफएम ने और अश्विनी वैष्णव ने मिलके प्रपोजल तैयार किए हैं.
हम यह कहा गया कि कोरोना में जैसे पैकेज दिए गए थे बड़े सब्सिडी के कोई ऐसे बड़े पैकेज दिए जाए. एक ये कहा गया है कि भाई आपातकालीन जो ऋण हैं वो दिए जाए बना के. फिर जो ऋण का टाइम है पहले लोगों का उसे आगे बढ़ा दिया जाए. एक्सपोर्ट पेमेंट का टाइम है उसको और आगे बढ़ा दिया जाए. ई-कॉमर्स चालू किया जाए. और एक बहुत बड़ा काम वो कर रहे हैं जीएसटी का जो है जीएसटी रिफॉर्म्स ला रहे हैं और जीएसटी में केवल दो ही स्लैब ला रहे हैं पांच और 18% और फिर क्या है कि कम से कम 100 वस्तुएं ऐसी है जरूरी जो जिन पे कीमत कम हो जाएगी जीएसटी टैक्स कम हो जाएगा इट अ बिग रिलीफ राज्यों को भी 14 लाख करोड़ का फायदा होगा जो रोते रहे हैं इतने टाइम से जीएसटी में हमारा पैसा नहीं आता यानी वो एक अलग विषय है उससे जो है तो सरकार बहुत कुछ कर रही है इसमें और ऐसी आशा की जानी चाहिए और ये कहा है वित्त मंत्री ने निर्मला सीतारमण ने कहा है यह कि जब ये सारे कदम अपन उठा लेंगे तो इंडियन प्रोडक्ट्स विल बी मोर कॉम्पिटिटिव इन द ग्लोबल मार्केट और हमारे हालात सुधरेंगे.
सवालः सर अब क्योंकि वॉर टेरेफ वॉर इतनी ज्यादा आगे बढ़ चुकी है. भारत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से भी स्वदेशी और वोकल फॉर लोकल का नारा दिया है. कितना सफल होता हुआ नजर आ रहा है आपको?
जवाबः असर तो पड़ेगा. देखो प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वदेशी जीवन का मंत्र होना चाहिए. और परिभाषा को थोड़ा एक्सपंड करते हुए कहा कि स्वदेशी का मतलब भारत में उत्पादन से भी है. Maruti कार है. भारत में बन रही है. इसको स्वदेशी मानिए आप एक तरह से जो है 70 करोड़ जो है Maruti वाले लगाने वाले हैं. Suzuki वाले लगाने वाले हैं.
अगले पांच छ सालों में अब तक ₹1 लाख करोड़ लगा चुके हैं. अभी अहमदाबाद में एक नई कार वो लाए हैं. वहां पे जो है तो वह भी एक तरह से स्वदेशी है. फिर नारा तो है ही ना. जिसे अपन कहते हैं वोकल फॉर लोकल मेड इन इंडिया ये सब तो चल ही रहा है. इन सब का इंपैक्ट है एक तरह से जो है और सरकार पूरा प्रयास कर रही है. अब नरेंद्र मोदी ने कुछ सुझाव दिए हैं. उन्होंने कहा त्यौहारी सीजन आ रहा है.
जब तक हम मन से वचन से राष्ट्र के साथ खड़े नहीं होंगे संकट में तब तक ये काम सफल नहीं होगा. उन्होंने कहा जो त्यौहार का उत्सव है इसको हम जो है ना ये स्वदेशी उत्सव के रूप में मना लें. एक तरह से अलबत्ता यह बात दूसरी है कि अब आत्मनिर्भर और स्वदेशी की भाषा परिभाषा बदल गई है. पहले महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन में उस समय थी वो आज परिभाषा नहीं है. आज आत्मनिर्भर कोई भी राष्ट्र अपने आप में आत्मनिर्भर नहीं है. कोई भी राष्ट्र नहीं कह सकता मुझे एक दूसरे राष्ट्र की जरूरत नहीं है. हर किसी को दूसरे की जरूरत है.
किसी को ज्यादा किसी को कम जिसे कहना चाहिए. आज सारा जो संसार एक गांव में बदल गया है. जहां सब लोग आसपास रहते हैं. हर एक को एक दूसरे की जरूरत है. तो जो गिवन सेट ऑफ लिमिटेशंस है स्वदेशी कल्चर का स्वदेशी फिलॉसफी का उसमें यह है कि फिर भी हमें पूरा प्रयास करना चाहिए जो प्रधानमंत्री ने कहा है कि कम से कम विदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल करें जहां-जहां गुंजाइश है एक तरह से और कोई बड़ी बात नहीं है. 140 करोड़ लोग हैं. राष्ट्र में अगर एक माहौल बन गया, मोमेंटम बन गया तो सफल भी हम हो सकते हैं टू ए लार्ज एक्सटेंट. सो दिस इज़ ऑल स्वदेशी.
सवालः सर साइंस एंड जिओस एंड इंस्टीटश के बारे में आखिर ट्रंप का नेगेटिव एटीट्यूड क्यों है?
जवाबः जैसे कहना चाहिए कि वो तो रिटेलिएशन करते हैं ना एक डिक्टोरियल एटीट्यूड है. वो संसार के सारे मौजूदा सिस्टम को ध्वस्त कर देना चाहते हैं. और न्याया सिस्टम क्या है वो उनके दिमाग में नहीं है. अभी इसलिए कई आलोचक उनके लिखते हैं बुल इन चाइना शॉप. डब्ल्यूटीए को डिस्टर्ब किया और फेडरल बैंक वाले को हटाया. उससे जो है फिर और यूएसए से एड आती यूएस एड में वो हटाया उसको बंद किया सारी सहायता बंद करी एंटी इंस्टीट्यूशन और साइंस की बात तो उनको लगता है कि साइंस मेरा सबसे बड़ा शत्रु है क्योंकि लोगों में जागृति पैदा करता है ये ऐसी स्टेट ऑफ माइंड एक जिसे कहना चाहिए ऐसा डिक्टेटर जो कि थोड़ा सा बार-बार कहना पड़ता है थोड़ा सा इंबैलेंस हो गया है इन ए वे अनप्रिडिक्टेबल हो गया है एक और सारा संसार ऐसा आज लगता है लोगों को कि हर घर में ट्रंप की चर्चा है.
सारे देश में ट्रंप की चर्चा है. लोग ये सोचते हैं जैसे ट्रंप ही हमारा प्रधानमंत्री राष्ट्रपति हो जो हमारे फैसले ले रहा हो. तो पोजीशन कुछ ऐसी अमेरिकन राष्ट्रपति की है जिसके कारण से सब ये हो रहा है. तो वो वो मतलब शुरू से ही जो है ना संस्थाओं के खिलाफ है वो. वो सारी संस्थाओं को तहस-नहस अपने हिसाब से करना चाहता है. वो चाहता है हर समय हर जगह हर पोस्ट में मेरा कार्यकर्ता बैठ जाए जो मेरा था पॉलिटिकल वर्कर था. इस तरह से कोई डेमोक्रेसी नहीं है, कोई वैल्यू नहीं, कोई मेरिट नहीं, कोई कुछ नहीं है. पिक एंड चूज़ स्ट्रेट अवे. वह किसी को भी हटाके निर्वाचित व्यक्ति को उसको एक प्राइवेट व्यक्ति से जर्नलिस्टिक एंड से रिप्लेस कर सकता है. तो ये जो आपने कहा सवाल है ये उसी का एक्सटेंशन है.
वी हैव टू बियर इट. टिल हिज़ अमेरिकन प्रेसिडेंट. द एंटायर वर्ल्ड हैज़ टू बियर हिम. सर डोनल्ड ट्रंप ने अपनी कंट्रोवर्शियल फ्रेंड एंड्र्यूस को भारत में एंबेसडर नियुक्त किया है. इसे कैसे देखते हैं आप? दोस्ती है. वही बात है. और उसने कोई आईएफएस तो वहां का किया नहीं होगा. हम कोई डिप्लोमेसी की ट्रेनिंग होगी नहीं. डिप्लोमेसी का एक्सपीरियंस होगा नहीं. उसका एक्सपीरियंस क्या है कि उनका ट्रस्टेड अलाई यह दोस्त है. तो उन्होंने कहा एटलीस्ट आई हैव पर्सन टू हुमूम आई कैन ट्रस्ट. और ये कहा कि एटलीस्ट अ पर्सन हु कैन डायरेक्टली फोन मी अप एंड गिव मी द फीडबैक फ्रॉम इंडिया एंड साउथ एशियन कंट्रीज. एक तरह से जो है. उसकी सबसे बड़ी विशेषता क्या है कि ट्रंप की पार्टी के लिए उन्होंने काम किया है. चुनाव में कैंपेन में उनके साथ रहे हैं.
उनकी जो बेस्ट सेलर बुक्स थी वो पब्लिश करते थे, छापते थे एक तरह से. तो इसको उन्होंने यहां पे लगा दिया है. अब उनके ट्रंप के पुराने दोस्त हैं जो मस्क हैं वो कहते थे सांप है ये. और तो ऐसे है ना आपसी लड़ाई है. लेकिन इससे पता लगता है वो वाली बात है कि ट्रंप कानून कायदे से हटकर के अपनी इच्छा से फैसले करते हैं और ये भारत में भारत जैसी इंपॉर्टेंट जगह उस व्यक्ति को लगाना जो है जिसका कोई इस तरह का डिप्लोमेटिक बैकग्राउंड या एक्सपीरियंस नहीं है. हिज डिसिशन यू हैव नो चॉइस. यू हैव टू डील विद हिम.
सवालः सर कुछ ट्रंप के समर्थक ऐसा भी मानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप भी एक राजनैतिक विचारधारा है. आप इससे कितना एग्री करते हैं?
जवाबः देखो विचारधारा इसलिए मानते हैं कि उनका एक जिसे कहना चाहिए ना एक एक यूनिफाइड एक एक ग्रुप है जैसे नरेंद्र मोदी के यहां 20 करोड़ लोग ऐसे हैं मोदी भक्त कहते हैं वहां पे 1 करोड़ लोग ऐसे हैं जो ट्रंप भक्त कहते हैं तो ट्रंप के लिए जीते हैं मरते हैं करते हैं तो कहते हैं कि ट्रंप एक विचारधारा है उसके पीठ जो दूसरे लोग हैं वो कहते हैं ट्रंप एक पागलपन है विचारधारा नहीं है क्योंकि वो बुली करते हैं डिक्टोरियल तरीके से काम करते हैं बिना मेरिट के फैसले करते हैं जो संस्थाएं हैं इंस्टीटशंस हैं उनको बर्बाद करते हैं उनको हटाते हैं वहां अपने पार्टी के वर्कर्स को वहां वहां पे बैठाते हैं. चाहे उसके लिए क्वालीफाई करें या नहीं करें. तो उनका कहना ये है कि ट्रंप जो है ना राठौड़ी में शासन करते हैं.
एक तरह से वनवे ट्रैफिक पे चलते हैं. तो दोनों विचारधाराएं हैं. उनके समर्थक वो कहते हैं ट्रंप एक विचारधारा है. राष्ट्र हित को प्राथमिकता देते हैं. इसलिए ट्रंप एक विचारधारा है. और दूसरे लोग कहते हैं राष्ट्रित की बात बन में है. वो थोड़ा सा इम्बैलेंस्ड है और जो फैसले लेते हैं वो लोकतांत्रिक परंपराओं से लोकतांत्रिक मूल्यों से मेल नहीं खाते हैं. तो इन दोनों में बड़ा विरोधाभास है. अच्छा
सवालः सर इस सारे तनावपूर्ण माहौल के बीच में क्या अभी भी कोई संभावना है कि भारत और अमेरिका के बीच में वार्ता शुरू हो जाएगी? यस एवरीथिंग इज ऑलमोस्ट बैक ऑन ट्रैक. पीयूष गोयल ने कल बयान दिया है कि पांच चरण हो चुके हैं.
जवाबः नवंबर तक अच्छी खबर आ जाएगी और अमेरिका के लोग तो कह ही रहे हैं दो महान राष्ट्र कैसे दूर हो सकते हैं. दो महान राष्ट्र फिर पास आने वाले हैं. तो लगता है कि अब ये काम जल्द होगा. ऐसी संभावना है. एंड बाय द टाइम ट्रंप आल्सो मस्ट हैव रियलाइज ह मिस्टेक कि मैंने गलती की है. जितना जल्दी सुधारो उतना अच्छा है. तो आई एम होपफुल बाय नवंबर और इवन बिफोर नवंबर जो है क्योंकि ट्रंप के माइंड में भी पॉलिटिकल इमरजेंसी है थोड़ा सा. भारत को जल्दी से जल्दी उसको ठीक करना है. नरेंद्र मोदी के मूड को ठीक करना है. तो आई एम श्योर कि नवंबर से पहले या नवंबर तक ये डील हो जाएगी.
सवालः सर अब भारत क्या रूस से तेल खरीदना बंद कर देगा?
जवाबः नॉट एट ऑल. उन्होंने प्रलोभन दिया है अमेरिकन दूतावास के एक प्रवक्ता ने कि अगर आज भी भारत रशिया से तेल खरीदना बंद कर दें तो हम वापस ले लेंगे. 25% एक्स्ट्रा जो लगाया है. बट जैसे इंडिया का तो ये ना मफुट विषय है. नरेंद्र मोदी झुकते नहीं है. किस तरह से कोई इशू नहीं है. ना तो डेरी प्रोडक्ट्स आएंगे ना एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स यहां अलऊ होंगे और ना तेल खरीदना बंद होगा. और फिर स्पष्ट किया प्रधानमंत्री ने कि मार्केट फर्सेस डिसाइड करती हैं. जहां सस्ता है वहां पे लेंगे. फिर राष्ट्रित सर्वोपरि है.
उसको देख के काम करेंगे. और पिछले 39 मंथ्स से मैंने पढ़ा सुबह कि 12.6 बिलियन डॉलर का फायदा हुआ है चीपर ऑयल लेने से रशिया से. दैट वे जो है तो हम ट्रंप के उसकी परवाह नहीं करेंगे. ट्रंप कहते रहेंगे कि यह फायदा उठाते हैं, यह करते हैं. लेकिन भारत अपना काम करेगा. भारत मार्केट फर्सेस से गवर्न होगा. एंड आई डोंट सी एनी चांसेस कि भारत रू से तेल लेना बंद करे.
सवालः सर डोनल्ड ट्रंप की जो वीजा पॉलिसी है या फिर इमीग्रेशन डिपोटेशन प्लान है उससे संसार में कई सारे लोग दुखी हैं. क्या इससे जुड़ी कोई राहत भरी खबर उनके लिए आई?
जवाबः रिलीफ एंड ट्रंप दे आर अब्सोलुटली कॉन्टरी. कोई चांस नहीं है. उल्टा बुरे दिन आने वाले हैं. खराब दिन आने वाले हैं. वीजा खासकर इंडियंस के आप ये मानिए. सबसे पहला फैसला वो कर रहे हैं. 23 साल बाद कानून बदल दिया उन्होंने. जी कि भारतीय छात्र जाते हैं पढ़ने के लिए.
पहले उन्हें 14 वर्ष के लिए वीजा मिलता था. अब केवल चार वर्ष के लिए वीजा मिलेगा उनको. आप देखिए. दूसरा वहां की जो गवर्नमेंट है जो वीजा है उसका रिव्यु करने जा रही है. उसका टारगेट कौन है? इंडियन स्किल्ड प्रोफेशनल पीपल. और जो मिडिल क्लास लोग वहां काम कर रहे हैं. स्किल्ड जिसे टैलेंटेड कहते हैं उनको निकालने पे आमदा है वो. तीसरा कहते हैं वीजा की इंक्वायरी कर रहा हूं मैं वहां पे. इंक्वायरी हो रही है.
5 करोड़ वीजाज की इंक्वायरी हो रही है. इमेजिन जो है 500 उसमें इंडिया के लोग हैं. कहीं ना कहीं उलझेंगे. कहीं-कहीं फसेंगे तो कौन जाएगा अमेरिका में नौकरी जिसे कहते हैं 14 लाख लोगों को निकाल चुके हैं वीजा के आधार पे पिछले दो चार छ महीने के अंदर जो है ये तो अमेरिका के द्वार एक तरह से बंद हैं. लोग निराश हैं. नौजवान पीढ़ी निराश हैं. अमेरिका जो एक सपना था जहां पढ़ने के लिए लोग जाते थे वो ऑलमोस्ट जो है ना डिमोलिश हो चुका है.
और आगे राहत का चांस है ना अभी तो दिखाई नहीं देता. बाकी जब ट्रेड वार्ता रीइनिशिएट हो जाए, चालू हो जाए, सामान नॉर्मल हो जाए और फिर नरेंद्र मोदी को चमत्कार कर दें तो बात अलग है. एट द मोमेंट तो वीजा पॉलिसी में वहां पे इमीग्रेशन में कोई रिलीफ मिले किसी को इसके आसार नहीं है.
सवालः सर इन सबके बीच अमेरिका में जो चीनी स्टूडेंट पढ़ रहे हैं उस मामले में भी ट्रंप ने यू टर्न लिया. सबको हैरान कर दिया. क्या रणनीति है इसके पीछे?
जवाबः ट्रंप की एक ही रणनीति है. टेरिफ की धमकी दो. झुकाओ अपना टेरिफ लागू करवाओ और जबरदस्ती वहां से इन्वेस्टमेंट भी कंट्री में लगाओ. किसी से 1000 मिलियन डॉलर का, किसी से 10,000 मिलियन डॉलर का ऐसे करके इन्वेस्टमेंट करो. चाइना का उन्होंने ये खेल किया. चाइना से उन्होंने कहा कि मैं 5 लाख चाइनीस स्टूडेंट को वीजा दे सकता हूं यहां पे. अभी अभी 2.77 लाख जो है वीजाज़ चाइनीज़ स्टूडेंट के वहां पे हैं.
लेकिन क्या है कि आप जो क्रिटिकल मिनरल्स पे बैन नहीं लगाओगे मेरे ऊपर. और अगर लगाओगे तो मैं 200% आप पर लगा दूंगा टेरिफ जो है तो कोई सेंस नहीं है वहां पे जो है तो पहले जो वादा किया था कि मैं 5 लाख लोगों को वीजा दूंगा उसको कंडीशनल बना दिया उन्होंने यू टर्न ले लिया उसके ऊपर जो है तो न तो हालात सुधरेंगे न चाइना झुकेगा उनके पास में अब ये डिपेंड करता है चाइना अमेरिका रिलेशन कभी ठीक हो जाए तब बात होता है एट द मोमेंट तो वी कैन से कि यूएसए हैज़ टेकन यू टर्न ऑन चाइनीस स्टूडेंट्स इन अमेरिका
सवालः सर तो क्या यह सच है कि ट्रंप ने अपने पारिवारिक क्रिप्टो व्यापार के लिए भारत से नाता तोड़ा.
जवाबः यह भी सुना है मैंने. पहले नोबेल पुरस्कार की बात आई थी. अब यह बात आई है. क्रिप्टो व्यापार उनकी वीकनेस है. पाकिस्तान से समझौते हुए हैं. उनकी लड़की पिछले दिनों पढ़ा था अखबार में गई थी. तो ये सुना है कि भारत में भी कुछ इस तरह करना चाहते हैं. अब यहां ऐसा नहीं है. तो एक ये कारण भी है कि जो पारिवारिक कारण क्या है कि पाकिस्तान में उस काम को बढ़ाना है.
पाकिस्तान मींस एंटी इंडिया जो है तो रूल्ड आउट नहीं है संभावना कि ये भी एक कारण रहा हो भारत के साथ उनका झगड़ा करने का या टेररिफ लगाने का एक कारण रहा हो. कोई बड़ी बात नहीं है.
सवालः सर ट्रंप के ट्रेड एडवाइजर हैं नवारो पीटर नवारो. कई सारी टिप्पणियां उनकी आती हैं. लेकिन एक टिप्पणी है कि यूक्रेन वॉर कमपीट्स मोदीस वॉर. कैसे देखते हैं सर आप इसे?
जवाबः वन मोर डिसपॉइंटमेंट लेकिन उनके हिसाब से थोड़ा सा लॉजिक उसको मानते हैं. लेकिन डिसपॉइंटिंग या फ्रस्ट्रेशन है जो है उनका कहना यह है कि भ आप सस्ता तेल लेते हो रशिया से. रिफाइन करके उसको मार्केट में बेच देते हो. प्रॉफिट कमा लेते हो जो है और रशिया को जो है पैसे मिल जाते हैं. उसका तेल बिक जाता है और रशिया जो है उस पैसे को एंटी यूक्रेन वॉर जो है उसमें लगा देता है. तो यूक्रेन वॉर कभी खत्म ही नहीं होगा.
रशिया यूक्रेन को पीटता रहेगा. अमेरिका विल ऑलवेज फेल टू कंपेल रशिया फॉर ए सीज फायर क्योंकि उसको पैसे आ रहे हैं. उसको हथियार मिल रहे हैं वाया इंडिया इन अ वे जो है ये. यह उनकी सोच है. उनका कहना है. कोई मतलब नहीं इस बार 10 बार वो दोहरा चुके हैं. तो ठीक है. इट जस्ट वन मोर डिसपॉइंटमेंट, वन मोर फ्रस्ट्रेशन ऑफ ट्रंप एड्स जिसे कहना चाहिए. इसमें कोई कोई तुक नहीं इस बात के अंदर जो है.
सवालः सर ट्रंप ने जिस निर्दयता से टेरिफ को हथियार बनाया. अब उसके दूरगामी परिणाम क्या देख रहे हैं आप?
जवाबः दुर्गा परिणाम तो आप देख ही रहे हैं अल्टीमेट परिणाम तो फिर यही होता है कि व्यक्ति घर चला जाता है. राजनीति में तो यही होता है. जब आप ऐसे फैसले लेते हैं कि दुनिया आपके खिलाफ हो जाए.
आपके लोग आपके वोटर आपके खिलाफ हो जाए. सारा राष्ट्र बकरप्सी के मोड़ पे आ जाए. सारे राष्ट्र की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाए. लोग सड़कों पर प्रदर्शन करने लग जाए. आंदोलन करने लग जाए जिसे कहते हैं और आप खुद झुझुला उठो और आपको समझ नहीं आए कि मैं क्या करूं क्या नहीं करूं होता है कई ऐसे संसार के जो डिक्टेटर्स हुए हैं बट ट्रंप कैश टर्न इंटू अ वेरी स्ट्रांग डेमोक्रेटिक डिक्टेटर ये कहना वो लोग कहते हैं उनके पार्टी के लोगों ने आरोप लगाया हम नहीं कह रहे हैं इसको जो है तो उनको समझ में नहीं आ रहा है कि क्या होगा तो इसके दूरगा परिणाम थे कि नंबर वन अमेरिका की खुद की अर्थव्यवस्था डीस्टेबलाइज़ हो जाएगी.
नंबर टू जो एलआई हैं उनकी जो यूरोपियन कंट्रीज हैं उनकी हो जाएगी और जो राइवल्स हैं मान लो रशिया अमेरिका ये भी डिस्टेबलाइज हो जाएंगे तो पूरा संसार एक डिस्टेबलाइज मार्केट बन जाएगा और मंदी गाने के प्रबल आसार हो जाएंगे ये अंत है अमेरिका के लोग तो पढ़े लिखे लोग हैं ना सड़क पे आने में देर नहीं लगाते आ जाएंगे सड़क पे छोड़ देंगे ट्रंप फिर एक दिन यही होगा आई सी एन अनसेरेमोनियल डिपार्चर ऑफ़ ट्रंप अब वो कब होगा पता नहीं कह नहीं सकते हो सकता है कुछ सेंस प्रवेल्स वापस वो एक सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति की तरह काम करने लग जाए इन ए वे. अभी उनका वर्किंग जो है वह सामान्य व्यक्ति की तरह नहीं है. एबनॉर्मल है वो. जिस दिन सामान्य हो जाएंगे आशा की किरण आ जाएगी सारे संसार में. सो लेट्स सी वो दिन कब आता है.
सवालः सर आपको लगता है कि भारत अमेरिका पर काउंटर टैरिफ लगा सकता है?
जवाबः कोई चांस नहीं. नरेंद्र मोदी ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे कि आग में घी का काम होता है या जो या कोई टेंपरामेंटल काम नरेंद्र मोदी नहीं करते. बहुत सोच समझ के कहा उनको मालूम है कि वापस आएंगे लौट के अभी फिलहाल उन्होंने केवल 100 $ है शायद उस जो डार्क पोस्ट है उसको बैन किया है बाकी बड़े पैमाने पे कोई और अब तो बात बन रही है सरकार की अब तो गाड़ी रिवर्स होने लग गई है वापस जो है मुझे लगता है नवंबर से पहले पहले समझौता हो जाएगा ये और ये हट जाएंगे ये अब अब उसमें फिर ये देखने की बात है कि उसके बाद नरेंद्र मोदी के रिश्ते ट्रंप के रिश्ते क्या वापस उस मोड़ पे खड़े होते हैं कि नहीं जहां पहले थे वो दिस इज़ टू बी सीन
सवालः आखिर कारण क्या है कि ट्रंप टेरिफ को लेकर बाकी जो और राष्ट्र है भारत के अलावा वह भी अब अमेरिका के खिलाफ खड़े होने लगे हैं.
जवाबः ऑफ कोर्स इट्स अ बिगिनिंग ऑफ अ रिवोल्ट इन अ वे जो मैंने आपसे कहा कि व्यक्ति फिर अल्टीमेटली घर चला जाता है. अब आप देखिए ना चाइना है खिलाफ रशिया है. ब्राजील है, इंडिया है. ठीक? जापान भी है. जापान को बहुत कंपेल किया उन्होंने चावल के मामले में. गन पॉइंट पे करवाया उससे. ठीक? साउथ कोरिया है, ऑस्ट्रेलिया भी है शायद. तो यह कतार बढ़ती चली जाएगी. जैसे अब क्या नरेंद्र मोदी ने बगावत का झंडा उठाया इस बार वो झुके नहीं उनके सामने. उन्होंने कहा नो आई विल नॉट कंप्रोमाइज वि द नेशनल इंटरेस्ट.
मैं झुकूंगा नहीं इस तरह से. उन्होंने कहा था ना दिक्कतें चाहे कितनी भी आएगी. ठीक है ना? लेकिन क्या है? हम झुकेंगे नहीं और अपने किसानों के हितों की हमेशा रक्षा करेंगे. अपने आप को और शक्तिशाली बनाएंगे. अपने आप को और पावरफुल बनाएंगे. तो ये नरेंद्र मोदी का भाव है. यह एक्सपैंड करेगा वर्ल्ड के अंदर. और यह भाव जितने देशों में पहुंचे उतने देश ट्रंप के खिलाफ खड़े होंगे मुकाबला करेंगे उसका जाकर के जो है तो हो सकता है यह लाइन और लंबी होती चली जाए आने वाले दिनों में
सवालः सर भारत चीन और भारत और रूस ये जो न्यूली डेवलप्ड अलायंस कह लें इसे चीन के साथ खासतौर पे ये जो नया गठबंधन बना है इसे आप भारत के ग्लोबल साउथ मिशन पे कैसे उस एजेंडे पे कैसे देखते हैं दूसरा आप ब्रिक्स के लिहाज से कैसे देखते हैं और तीसरा क्वाड के लिहाज से और साथ में सर क्वाड की जो भारत में बैठक होने वाली है उसमें आपको लगता है ट्रंप आएंगे?
जवाबः देखिए जो जहां तक इन तीनों को डील करने का सवाल है इंडिया का तो मैंने आपसे कहा नरेंद्र मोदी एक बहुत सक्सेसफुल फॉरेन मिनिस्टर भी हैं उसके साथ-साथ और अभी तक उन्होंने शो किया पिछले 12 साल के अंदर. तो वी विल स्मार्टली हैंडल ऑल द थ्री इंस्टीटशंस. कंट्राडिक्शन जहां-जहां होगा उसको भी हैंडल करेंगे.
और बाय एलार्ज एक आध जगह है. ज्यादा कंट्राडिक्शन नहीं है. लेकिन एक बात तय है उसके अंदर. जापान हो ये हो दूसरे देश हों. वो सबका एक बात तो बिल्कुल तय है अगेंस्ट चाइना जो है उसके अंदर ये तय है कि फ्री मूवमेंट होना चाहिए जिसे आप कहते हैं इंडोपेसिफिक में जो है ना फ्री मूवमेंट होना चाहिए और किसी की मोनोपोली नहीं होनी चाहिए इसमें सब राष्ट्र एक है ब्रिक्स सी बात है तो अमेरिका के खिलाफ एक हैं कि डॉलर का प्रभुत्व खत्म होना चाहिए हम अपनी करेंसी लाएंगे तो अब इसमें क्या है बेसिकली आप ये देखेंगे कि जो पॉलिसी है नरेंद्र मोदी की जिसे कहना चाहिए तो क्या है ये सारे को एक्जिस्टेंस में चलते हैं एक तरफ तो क्या है कि इंडिया एंड चाइना को एक्जिस्ट एट द सेम टाइम इंडियन अमेरिका आल्सो को एकिस्ट स्मार्टली जो है तो ही विल हैंडल इट वो आपने कहा कि वो आएंगे क्या अमेरिकी राष्ट्रपति जो है ठीक है मुझे संभावना दिखाई नहीं देती है एक तो होता है ना कि भ मन करे आपका ये डिपेंड करता है कब है ये सम्मेलन अगर ये सम्मेलन डील से पहले होता है ठीक है तो शायद वो नहीं आएंगे इंडियन पीपल इंडियन पब्लिक इज नॉट रिसेप्टिव टू ट्रंप एट ऑल एट द मोमेंट ठीक है उन्होंने जो किया है भारत के साथ भारत के लोगों के साथ नरेंद्र मोदी के साथ जो लेकिन अगर वो डील रेस्टोर होने के बाद आते हैं तो हो सकता है थैंक्यू मोड के अंदर आ या एक वैसे प्रेस्टिस मोड में भी आ सकते हैं.
थोड़ा सा ठीक है वापस मिल के आते हैं भारत से जाके आते हैं क्योंकि भारत जितना बड़ा मार्केट तो कोई है नहीं ना और भारत में जो रिसेप्शन होता है उनका लाखों लोग आते हैं सारे जीवन में ट्रंप का ऐसा रिसेप्शन नहीं हुआ है दैट वे तो ये डिपेंड करेगा डील से पहले है ये आपका स्क्वाड या डील के बाद है दिस इज़ टू बी सीन दिसंबर में है तो मेरे हिसाब से आ भी सकते हैं लेकिन बहरहाल संभावना नहीं है तो इस साल जापान भी नहीं जाएंगे और शायद ऑस्ट्रेलिया का कुछ सब बना था उनका वहां भी शायद नहीं जाएंगे इंडिया के साथ-साथ जो है फाइन एंड डॉक्टर एस जय शंकर एब्सेंस इन चाइना ये एक अब थोड़ा सा लोगों ने नोटिस किया इसको इस बार जो है कि इस विदेश यात्रा में जो विदेश मंत्री प्रधानमंत्री के साथ नहीं थे. हालांकि उनके विश्वस्त हैं वो इससे पहले चाइना गए, अमेरिका गए, सिंगापुर गए, फ्रांस गए सब जगह जाते हैं. एंड ही डिड ह एक्ट वेरी वेल.
लेकिन अब हो सकता है इस बार यहां कुछ हो और कुछ लोगों का यह भी कहना है कि शायद अमेरिका के प्रति उनका झुकाव कहीं इस तरह का रहा होगा. ऐसा कुछ लोग कहते हैं इन ए वे जो है ये. बाकी लगता नहीं है नरेंद्र मोदी के रहते तो कोई भी मंत्री इस तरह का व्यवहार जो है वो अपने हिसाब से नहीं कर सकता. लेकिन कुल मिला के कहा जा सकता है कि इस यात्रा में जयशंकर की जो गैर मौजूदगी या उनका नहीं जाना है. कुछ लोगों ने कुछ लोगों का अखरा कुछ लोगों ने उसका नोटिस लिया. लेकिन कुल मिला के इसको अगर हम सम अप करें बात को तो यह कह सकते हैं कि यह सच है कि इस विदेश यात्रा में जयशंकर प्रधानमंत्री के साथ नहीं गए तो लोगों को थोड़ा सा अजीब सा लगा. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उनके कोई रिलेशनशिप में या उनके जॉब चार्ट में या उसमें कोई कहीं कोई परिवर्तन या कोई बात या भरोसे में कोई परिवर्तन है. ही इज़ एन आउटस्टैंडिंग मिनिस्टर इन द मिनिस्ट्री.
एक चांस की बात है, सहयोग की बात है कि वहां नहीं गए. जैसे कुछ लोगों को यह कहने का मौका मिला कि भाई इस बार विदेश मंत्री वहां पे क्यों नहीं गए? हालांकि इससे पहले वह अमेरिका, चाइना, रशिया, सिंगापुर फ्रीक्वेंटली जा चुके हैं और प्रधानमंत्री के दूत के रूप में और जिसे कह विदेश मंत्री के रूप में अपने काम को बहुत अच्छे से अंजाम दे चुके हैं. दिस इज ऑल.
सवालः सर प्रधानमंत्री की जापान यात्रा भी बहुत महत्वपूर्ण रही. इस दौरान क्या बड़े-बड़े समझौते हुए?
जवाबः जापान के अंदर देखिए जो सबसे इंपॉर्टेंट बात है समझौते तो आठ हुए. एमओयू 100 से ज्यादा हुए लेकिन मोस्ट सिग्निफिकेंट अनाउंसमेंट है कि अगले 10 वर्ष में 10 ट्रिलियन डॉलर का प्राइवेट इन्वेस्टमेंट जापान इंडिया में करेगा. जो सबसे इंपॉर्टेंट है. दूसरा है कि 10 वर्ष का एक विज़न डॉक्यूमेंट तैयार हुआ है. जिसमें जितने एरियाज हैं इकॉनमी के जिसमें आपके क्रिटिकल मिनरल्स हैं, टेक्नोलॉजी है, इनोवेशन है, क्लीन एनर्जी है, हाई स्पीड रेलवे है, एवरीथिंग उन सारे क्षेत्रों में ओवरऑल डेवलपमेंट के लिए दोनों राष्ट्र मिलके काम करेंगे.
तीसरा है कि दो बुलेट ट्रेन जो है गिफ्ट होंगी. यह जो और जो हाई स्पीड प्रोजेक्ट चल रहा है मुंबई और अहमदाबाद के बीच में उसमें तेजी लाएंगे इन अ वे जो है और 5 लाख भारतीयों को जो है ना वहां पे रोजगार मिलेगा जापान की फैक्ट्रियों में जापान के उद्योग धंधों में है. तो मोटे-मोटे सारे इस तरह से हुए हैं. बाकी बेसिक जो जो भाव है इसका वो ये है कि बहुत ही स्ट्रांग कनेक्ट है जापान और इंडिया के बीच में और जैपनीज लोग भी जब यहां आते हैं तो कहते हैं इज़ अ सेकंड होम फॉर अस.
दैट सेकंड होमफो जैपनीज जो है और जो लीडरशिप है इस समय जो है बिटवीन प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया एंड प्राइम मिनिस्टर ऑफ़ जापान दैट इज अब्सोलुटली परफेक्ट. तो सबसे बड़ी इसमें खुशी की बात यही है कि बाकी देशों में तो बातें होती हैं. जापान में क्या है? जापान एंड इंडिया दे जॉइनली एक्ट दे डिलीवर दे ब्रिंग द रिजल्ट्स. तो जो समझौते हुए हैं वो सब धरातल पे आएंगे और उन पे काम होगा अगले 10 वर्षों में.
सवालः सर एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम में जब प्रधानमंत्री मोदी जापान जाते हैं तो वहां पर राज्यों के राज्यपालों को संबोधित करते हैं. इस संवाद में क्या कुछ कहा गया पीएम की तरफ से?
जवाबः देखिए यह आकर्षण है नरेंद्र मोदी का कि जहां जाते हैं हर तरह के हर वर्ग के लोगों से मिलना चाहते हैं. प्रधानमंत्री ने सोचा चलो आए तुम्हारे राज्यपाल से मिल लेते हैं. इनके एक्सपीरियंस इनसे शेयर करते हैं. क्योंकि जापान का रिश्ता गुजरात के साथ बहुत पुराना है. जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे तो जापान से कितनी बार वो गए आए. चाइना तो 2018 में गए थे. सात साल बाद वहां पे गए थे. चाइना में जो है तो भारत उस समय जो गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो बहुत से उद्योगपतियों को बाय नेम जानते हैं नरेंद्र मोदी जो आके वहां इन्वेस्ट करते थे यहां से वहां जाते थे यहां के लोग वहां जाते थे दैट विल जय तो गवर्नर्स का हुआ तो उन्होंने अपने अनुभव शेयर किए डेवलपमेंट के और उनको सहयोग का आश्वासन दिया कि ये विचारधारा हमारी है और आपकी विचारधारा है तो बेसिक आईडिया था कि लेट्स ग्रो टुगेदर जिसे हम अपना अनुभव आपसे शेयर करते हैं. आप शेयर करें उस तरह से जाए. राज्यपाल का एक्टिव रोल गवर्नेंस में नहीं होता.
वहां भी ऐसा नहीं होगा. लेकिन एक बेसिक आईडिया यह था नरेंद्र मोदी का कि इट विल फदर स्ट्रेंथन द स्ट्रेटजिक रिलेशनशिप बिटवीन द टू कंट्रीज कि मैं गवर्नर से भी बात कर रहा हूं. उनसे भी मिले हैं. हम अपनी बात हम उनको भी कह रहे हैं दैट वे. तो एक अच्छा मूव था. इसके लिए वहां के प्रधानमंत्री बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने अपॉर्चुनिटी क्रिएट की इस तरह की.
सवालः सर आपको क्या लगता है कि पीएम मोदी की इस जापान यात्रा के बाद अप्रत्यक्ष रूप से जापान पीएम मोदी के साथ है और ट्रंप के खिलाफ खड़ा हो गया?
जवाबः देखिए जापान इज अ नेचुरल अलय टू इंडिया. जापान इज अ नेचुरल अपोजिशन टू अमेरिका. ठीक? अब क्योंकि नरेंद्र मोदी के साथ रिश्ते बहुत गहरे हैं तो हम ये कह सकते हैं कि जापान भारत के और ज्यादा निकट आ गया है और कंपैरेटिवली अमेरिका से थोड़ा सा और ज्यादा दूर हो गया है. इसका पता इस बात से लगता है कि एक जापानीज प्रतिनिधि मंडल अमेरिका जाने वाला था बिजनेस टॉक्स के लिए. उसने यात्रा कैंसिल कर दी.
हम पर 50% चेक लगाने के बाद और उससे कहा जा रहा है कि 550 अरब डॉलर का नुकसान जो है अमेरिका को उस यात्रा से हुआ है. किसी एक घटना से ऐसा संकेत मिलता है. यह हो सकता है कोइंसिडेंस भी हो सकता है. यह घटना जो है लेकिन मोटे तौर पे ऐसा लगता है कि अब जापान भी नैतिक रूप से क्योंकि भारत के साथ खड़ा है और जापान के व्यवसायिक रिश्ते भारत के साथ ज्यादा मजबूत है एज़ कंपेयर टू अमेरिका तो इनडायरेक्टली आप कह सकते हैं कि अगर भारत अमेरिका के खिलाफ है तो उसका एक्सटेंशन जो है ना जापान भी फिर टू दैट एक्सटेंट अमेरिका के पक्ष में नहीं है. इसको हम यूं कह सकते हैं.
सवालः सर भारत और जापान दो देशों के बीच बढ़ते हुए कारोबार के अभी तक के हाईलाइट्स क्या है?
जवाबः मेन हाईलाइट्स तो यह है कि लगभग 41 बिलियन डॉलर का इन्वेस्टमेंट जो है अब तक हो चुका है और अगले 10 वर्ष में मैंने आपसे कहा कि 10 ट्रिलियन का इन्वेस्टमेंट और आने वाला है तो रिश्ते बहुत अच्छे हैं इनके ट्रेड बैलेंस जो है इसका वो भारत के पक्ष में है तो रिश्ते बहुत अच्छे हैं और अगले 10 वर्ष रिश्ते और मजबूत होंगे.
सवालः सर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने 50% टेरिफ लगा दिया है. अब इसका शेयर मार्केट पर क्या असर दिख रहा है?
जवाबः शुरुआती दौर में तो धड़ाम से गिरा था शेयर मार्केट जिसे हम कह सकते हैं लेकिन अब संभल गया धीरे-धीरे जो है और मुझे आश्चर्य है कि शेयर मार्केट इंडिया का इतना मजबूत हो चुका है जिसे कहना चाहिए 14 करोड़ लोग तो डीमेट अकाउंट पे हैं यहां पे जो है तो पहले 81 82000 था जो आपका इंडेक्स है आज मैंने पूछा किसी ने कहा कि 80000 से थोड़ा ऊपर है आसपास है तो ज्यादा असर नहीं हुआ तो जो उम्मीद थी ना एकदम से गिर जाएगा इंडिया का मार्केट वो नहीं गिरा इंडिया में ये एक हैरानी की बात है लेकिन सुखद बात है अच्छी बात है कि मार्केट पे उसका असर नहीं है ट्रंप के लिए निराशा है और हमारे लिए उत्साह का विषय है.
सवालः सर चीन और जापान जब प्रधानमंत्री मोदी गए तो भारतीय समुदाय के लोग जो वहां पर मौजूद थे उन्होंने उनका भव्य स्वागत किया. अद्भुत तरीके से स्वागत किया. इसे कैसे देखते हैं आप?
जवाबः बहुत अच्छा. आप देखिए विजुअल्स के अंदर जापान के महिलाएं राजस्थानी स्त्रियों का परिधान पहन के जो है ना गीत गा रही है पधारो सा करके जो है ये और इसके बाद मैंने सुना कि वहां पे जो भजन वगैरह गाए गए. वहां पे सारा जो है ऐसा माहौल लगा जैसे भारत का है.
जापानी स्त्रियों ने ड्रेस पहन के सारी राजस्थान की जो है पधारो मारे देश और पधारो महाराष्ट्र शाखा जो है एक अच्छा लगा लोगों को वहां पे जो है तो गुड गुड टू सी ऑल दिस सीन और भारत के लोग किस तरह से खुश होते हैं. खुश तो होते हैं. मैंने कहा ना संसार का हर भारतीय नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए बेताब है. इस इंतजार में रहता है कि मोदी जी हमारे यहां कब आएंगे. सो दिस इज़ वन मोर सच एग्जांपल. आप देख लें इसे.
सवालः सर पीएम मोदी की जापान यात्रा और एसइओ समिट में जो वो शामिल हुए उनको जो विदेशी मीडिया से जो कवरेज मिला उसको लेकर आप क्या कहेंगे?
जवाबः कवरेज बहुत शानदार था. इसमें चाहे कोई बड़ा अखबार हो, बड़ी न्यूज़ एजेंसी हो, वाशिंगटन पोस्ट हो, न्यूयॉर्क टाइम्स हो, सीएनएन हो सब में नरेंद्र मोदी प्रमुखता से छाए रहे. इसका एक कारण था कि तीनों बड़े राष्ट्र थे. एक नया ग्लोबल शिफ्ट हो रहा था. इसके साथ-साथ सब ने एक स्वर में एक बात की नरेंद्र मोदी की तारीफ की कि झुके नहीं ट्रंप का जो गेम प्लान है कि धमकाना टेरिफ के फिर झुकाना और फिर मनमर्जी से साइन करवाना और इन्वेस्टमेंट साइन करवाना वो नरेंद्र मोदी के साथ नहीं हुआ. तो कुल मिला के जितना कवरेज था वो प्रो नरेंद्र मोदी था जिसे कहना चाहिए और नरेंद्र मोदी सम सॉर्ट ऑफ ए मर्जिंग हीरो इन द फॉरेन मीडिया. दिस इज़ ऑल.
सवालः सर अमेरिका को लोकतांत्रिक देश कहा जाता है. लेकिन एक खबर आई है कि ट्रंप भी दो चैनल्स ऐसे हैं नेशनल चैनल्स एनबीसी एबीसी उनको बार करने वाले हैं. उनको रद्द करने वाले हैं उनका लाइसेंस. आपको क्यों लगता है ट्रंप ऐसा कर रहे हैं?
जवाबः क्यों कर रहे हैं? मैंने भी सुना है कि ट्रंप उन दोनों चैनल्स के लाइसेंस को बैन करने जा रहे हैं. उसका सिंपल कारण है कि ट्रंप का जो मोनोपोलिक जो एटीट्यूड है और ट्रंप का जो काम करने का तरीका है या जो एोगेंस है या जो वन वे ट्रैफिक का तरीका है वो उसी का एक उदाहरण है. इरेटिक डिसीजन लेते हैं वो. उनका कहना ये है कि दोनों जो चैनल वर्स्ट है ये और ये मेरे खिलाफ 97% नेगेटिव कवरेज करते हैं. ये यहां की डेमोक्रेसी के लिए थ्रेट है.
इसलिए इनका लाइसेंस कैंसिल किया जाना जरूरी है. तो लड़ाई है वहां की चलती रहेगी. इस तरह से जो है बाकी अनफॉर्चूनेट है अमेरिका ऐसे डेमोक्रेटिक कंट्री में सब नहीं होना चाहिए लेकिन हो रहा है तो दे विल फेस.
सवालः सर चीन में जो एसइओ समिट का आयोजन हुआ तो प्रधानमंत्री मोदी के ड्रेसिंग सेंस उनके लुक्स उनके स्टाइल ये सब कुछ भी बड़ी चर्चा में बने हुए नजर आए आप क्या सोचते हैं
जवाबः ऑफ कोर्स नरेंद्र मोदी का ड्रेस सेंस और स्टाइल चर्चा का विषय रहा ट्रेडिशनल कुर्ता पजामा और नेहरू जैकेट इसके साथ उनका लुक था जो वह बड़ा सिंपल जिसे कहना चाहिए सुपर क्लासी और पावरफुल दिखाई दिया. उनका अंदाज कुछ ऐसा था कि उनके व्यक्तित्व से जिसे कहना चाहिए एक शक्तिशाली प्रशासक होता है. एक शक्तिशाली शासक होता है जैसे उसका रूप देखने को मिलता था वहां पे और ऐसा लगता था कि अंतरराष्ट्रीय रंगमंच पे भारत का प्रतिनिधित्व कितने प्रभावी ढंग से हो रहा है.
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर नरेंद्र मोदी के इस पहनावे से यह मैसेज क्लियर गया कि एक राष्ट्र के किसी बड़े नेता का व्यक्तित्व या उसका प्रभाव या आभा मंडल जो है केवल उसके भाषण से या उसके विचारों से नहीं होता बल्कि उसकी प्रेजेंस उसके ड्रेस सेंस से भी होता है और इस दृष्टि से अब यह कहा जा रहा है कि जो अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि मंडल हैं जिन्हें भारत के प्रतिनिधि जाते हैं युवा लोग जाते हैं उनको इस लुक को देखना चाहिए क्योंकि यह लुक केवल एक फैशन नहीं यह लोग आपकी मेजोरिटी है, परिपक्वता और एक जो पॉजिटिव मोमेंटम है उसको दर्शाता है. इसीलिए क्योंकि उनका यह लुक दूसरे जो राष्ट्रपति प्रधानमंत्री थे उनके ट्रेडिशनल लुक से थोड़ा डिफरेंट था. फॉर्मल लुक से डिफरेंट था. इसलिए चर्चा का विषय रहा और सब लोगों को अच्छा लगा.
सवालः सर इंडिया टुडे का अभी हाल ही में राजनीतिक सर्वेक्षण हुआ है. उसमें भी 11 साल के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे लोकप्रिय नेता सबसे ज्यादा अप्रूवल रेटिंग आई है. कैसे देखते हैं सर आप इस सर्वे को?
जवाबः अब्सोलुटली फाइन दिस सर्वे मैचेस विद द सेंटीमेंट ऑफ द कंट्री. आप देखिए उन्होंने 300 24 सीटें एनडीए को दी हैं. 208 अपोजिशन को दी हैं. तो क्लियर मेजॉरिटी है एनडीए की. आज की तारीख में अगर आज चुनाव हो तो मैं सीटों से ज़्यादा उसकी बात कर रहा हूं कि आप यह देखिए कि नरेंद्र मोदी की पॉपुलरिटी का ग्राफ आज भी इंटैक्ट है. जहां था वहीं का वहीं है. सारे संकटों के बावजूद देश के मतदाताओं का रुझान उनका भरोसा उनका समर्थन नरेंद्र मोदी के साथ बना हुआ है.
अभी लेटेस्ट आप देखिए अहमदाबाद का ये दृश्य देखिए आप स्क्रीन के ऊपर जो है नारे जयकारे और ठोस संकल्प वो अहमदाबाद गए थे वहां. क्या अद्भुत रोड शो था. क्या जनता का रिस्पांस था? क्या लोग टूट के पढ़ रहे थे? सेल्फी ले रहे हैं, फोटो खींच रहे हैं. जी. तो उनका जो करिश्मा है वो आज भी इंटैक्ट है. इसीलिए कहा जाता है कि भाजपा में नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है. और अभी मैंने कहीं पढ़ा कि इकोनमी टाइम्स के कॉन्क्लेव में गए थे तो कहा गया वहां पे कि हम उन लोगों में नहीं है. किसी ने कहा कि हम उन लोगों में नहीं है जो नदी के किनारे बैठ के जो है ना कंकर फेंकते हैं और तमाशा देखते हैं. हम उन लोगों में जो नदियों की धारा बदल देते हैं.
इस तरह का एटीट्यूड जो है उनके आसपास है. दैट जो है इस तरह का उत्साह है. तो ऑल सैड एंड डन स्टिल भाजपा में नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है. देश के सामने आज मुझे लगता है नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है. यह तो कार्यकाल चल ही रहा है. अगले कार्यकाल को कोई चुनौती हो ऐसे लक्षण फिलहाल ऐसे कोई दिखाई जिसे कहना चाहिए वो नहीं रहे हैं. और उसी सर्वेक्षण में यह कहा गया है कि भाजपा में नरेंद्र मोदी के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में विरासत के रूप में जो व्यक्ति है वह है अमित शाह. दूसरे नंबर पर वहां जो है और अमित शाह के लिए यह बात तय है कि गृह मंत्री के रूप में उन्होंने अद्भुत काम किया है. गृह मंत्री के रूप में सबसे लंबा कार्यकाल किया है और यह एक सहयोग की बात है कि वह गृह मंत्री हैं.
नरेंद्र मोदी ने उन्हें काम सौंपा है. 370 राम मंदिर व बिल इन सबको कराने के प्रोजेक्ट में नरेंद्र मोदी के मैंडेट को लागू करवाने का काम उन्हें सौंपा है. वरना उनकी खुद की इच्छा तो संगठन में रहने की है हमेशा से. अभी कभी-कभी उन्हें लगता है कि भाई मुझे छोड़ के गृह मंत्री का काम और दक्षिण में चले जाना चाहिए. क्योंकि भाजपा का स्वर्णिम काल वही होगा जब केरल और तमिलनाडु में भाजपा की सरकार बनेगी. उनका मन तो ऐसे हिलने लेता है. लेकिन नरेंद्र मोदी है ना छोड़ नहीं सकते. उनका भी गृह मंत्री के रूप में विकल्प नहीं है. आप देखते हैं उनका भी यह मन में होता है कि जो काम उनको दिया जाए फिर वो ठान लेते हैं कि मुझे तो काम करना है. करके दिखाना है मुझे कोई भी काम हो चाहे व बिल पास करने काम हो 370 हो एक्स व जेड जितने काम हो पॉलिटिकल नॉन पॉलिटिकल गवर्नेंस के वो सारे काम वो करते हैं इसलिए जो इंडिया टुडे का सर्वे आया है नरेंद्र मोदी के बाद वो बात तो अभी दिखाई नहीं देता है 10 साल ठीक है ना पार्टी में कोई एक अगर एकेडमिक रूप से देखा जाए नंबर टू कौन है आज पार्टी के अंदर तो वो पार्टी में वो दूसरा व्यक्ति अमित शाह है अभी प्रधानमंत्री ने उनको बधाई दी पिछले दिनों जब लंबा कार्यकाल पूरा हुआ तो प्रधानमंत्री ने जाने किस मूड में एक बात कही कि अभी तो शुरुआत है तत्व से आदित्य हैरान है. मुझसे पूछती इससे क्या मतलब है?
मैंने कहा अब इसको देखो डिकोड करना पड़ेगा इसको कि क्या और जिम्मेदारी उनके मन में उनके प्रति है या क्या लंबा उनका जीवन कैसा देखना चाहते हैं वो एक तरह से जो है क्यों कह रहे हैं अभी तो इसकी शुरुआत है कुल मिला के एक लीडर के रूप में और उनके एक प्रधान सेनापति के रूप में या ट्रबल शूटर के रूप में अमित शाह की भूमिका अद्भुत है और प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की यह जो जोड़ी कहना चाहिए इन्हें वे हालांकि वह तो हमेशा हनुमान की मुद्रा में रहते लेकिन जब हम बात करते हैं एक तरह से तो नरेंद्र मोदी के सुपरविजन में अमित शाह का रोल देश में जो है वो इनडिस्पेंसिबल है. चाहे वो सरकार में रहे चाहे पार्टी में रहे लेकिन मन हिलोरे लेता है आजकल उनका कि मैं वहां जाऊं सारे काम छोड़ के संगठन में और केरल और वहां पे भगवा फहराऊं. लेट्स सी.
सवालः सर 15 अगस्त को लाल किले के प्राची से जब प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण दिया तो उन्होंने विकसित भारत की एक नई तस्वीर को पेश किया. उसे कैसे देखते हैं आप?
जवाबः वो तो गजब था जिसे कहना चाहिए सेलिब्रेटिंग फ्रीडम विद रिफॉर्म्स. उसका अखबारों की हेडलाइन पढ़ी मैंने अगले दिन सेलिब्रेटिंग फ्रीडम विद रिफॉर्म्स. एक तरह से और उन्होंने कहा कि देखिए कितना सुंदर दृश्य है. अभी वो सलामी का दृश्य दिखा रहे थे विजुअल जो है ये. तो लोगों ने कहा कि भाई उन्होंने लाल किले को परिवर्तित कर दिया. एक लॉन्चिंग पैड के रूप में नए भारत कैसे हो? 2047 का भारत कैसा हो? इसके लॉन्चिंग पैड के रूप में उन्होंने परिवर्तित कर दिया. और एक अखबार ने लिखा कि ही लेड आउट सिक्स प्रोजेक्ट्स जो है सिक्स पैराटर्स जिनसे कि भारत जो है भारत एक विकसित भारत के रूप में कैसे परिवर्तित हो एक प्रगतिशील राष्ट्र जो है एक विकसित एक डेवलपिंग देश जो है डेवलप्ड राष्ट्र के रूप में कैसे परिवर्तित हो उसकी क्या रचना हो 2047 के लिए उसको सारा एक जो खाका था रोड मैप था उन्होंने लाल किले से दिखाया सबसे लंबा भाषण उनका सहयोग से वहां पे था 15 अगस्त से एक्चुअल में उन्होंने जो नया भारत है उनके विज़न का उसकी रूपरेखा उन्होंने रखी. सिक्स बेसिक जो पैराटर्स थे वो उन्होंने बताए वहां पे और नए उत्साह और उमंग के साथ राष्ट्र का आह्वान किया कि हमें इस विकासशील राष्ट्र को अब 2047 से पहले विकसित राष्ट्र के रूप में कन्वर्ट करना है.
सवालः सर एक आखिरी सवाल भारत और कनाडा के बीच में जो असहज संबंध रहे पिछले कुछ दिनों में उस बीच में दोनों ही देशों ने दिल्ली और ओटावा में अपने-अपने अ राजदूतों की राजनायकों की नियुक्ति कर दी है. तो इस डेवलपमेंट को आप कैसे देखते हैं?
जवाबः एक अच्छा डेवलपमेंट है, पॉजिटिव डेवलपमेंट है दोनों राष्ट्रों के बीच, दोनों देशों की जनता के बीच क्यों भारत कनाडा के पुराने संबंध है, व्यवसायिक संबंध हैं, राजनीतिक संबंध हैं और सांस्कृतिक संबंध है, ऐतिहासिक संबंध हैं. पिछले दिनों जो वहां के प्रधानमंत्री थे, उनके रुख और व्यवहार के कारण संबंधों में कड़ता आई थी. अब नरेंद्र मोदी ने इसको रेस्टोर कर लिया है और यहां से राजदूत जो थे एक सीनियर ऑफिसर हैं उनको राजदूत लगा दिया है. वह पहले स्पेन में थे. मिस्टर पटनायक जो है वो वहां काम संभाल लेंगे और दोनों राष्ट्रों के बीच जो कार्यशैली है जो वर्किंग रिलेशनशिप है अच्छी हो जाएगी. लेकिन भारत ने स्पष्ट किया है विल कंटिन्यू टू पर्स एजेंडा टू कनाडा गवर्नमेंट टू टेक इफेक्टिव एक्शन अगेंस्ट द खाली एलिमेंट्स इन कनाडा हु आर वर्किंग अगेंस्ट द इंटरेस्ट ऑफ गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ये सब वहां पे रहेगा और सब कुछ ठीक रहा तो नरेंद्र मोदी कनाडा के साथ जो ट्रेड टॉक्स हैं उसको फिर से रिस्टार्ट कर सकते हैं. इट्स अ गुड बिगिनिंग और ऐसी आशा की जानी चाहिए कि दोनों देशों के जो संबंध पहले जैसे मधुर और यूज़फुल संबंध थे यूटिलिटी वाले संबंध थे वो फिर से रेस्टोर हो जाए.
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