The JC Show: क्या इस बार पटना में लहराएगा भगवा ? | Bihar Election 2025 | PM Modi | CM Nitish

    बिहार की राजनीति में हर बार कुछ  अलग होता है. कभी गठबंधन बनते हैं तो कभी समीकरण बदलते हैं. इस बार तमाम सियासी  पार्टी अपने नारों के साथ चुनावी मैदान में उतरी हैं. कोई विकास की बात करके सत्ता को दोहराना चाहता है तो कोई बिहार  फर्स्ट और कास्ट बैलेंस के जरिए अपनी राजनीति को मजबूत करना चाहता है.

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    बिहार की राजनीति में हर बार कुछ  अलग होता है. कभी गठबंधन बनते हैं तो कभी समीकरण बदलते हैं. इस बार तमाम सियासी  पार्टी अपने नारों के साथ चुनावी मैदान में उतरी हैं. कोई विकास की बात करके सत्ता को दोहराना चाहता है तो कोई बिहार  फर्स्ट और कास्ट बैलेंस के जरिए अपनी राजनीति को मजबूत करना चाहता है. सवाल यह है कि क्या इस बार मोदी नीतीश जोड़ी करेगी कमाल? या फिर दो लड़कों की जोड़ी तेवर दिखाते हुए बदलेगी सत्ता के समीकरण. यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन उससे पहले बिहार की सियासत में छाए मुद्दे राजनीति को किस दिशा में लेकर जा रहे हैं? आज इसी को समझने की कोशिश करते हैं. 

    सवाल: क्या इस  बार पटना में फहराएगा भगवा?
     
    जवाबः इसका दो टूक मैसेज यह है कि बिहार नरेंद्र मोदी और अमित शाह की गोद में है. राहुल गांधी, तेजस्वी, पीके सब फालतू की बात है. थोड़ी बहुत दिलचस्पी पीके को लेकर के थी कि नरेंद्र मोदी अमित शाह की कार्यशैली को समझते हैं. गहराइयों से उनकी स्ट्रेटजी को जानते हैं तो शायद कुछ नया करेंगे, कुछ बड़ा करेंगे. लेकिन नरेंद्र मोदी के सामने वह भी फेल. इन लोगों को अंदाजा भी नहीं था कि नरेंद्र मोदी अमित शाह सारे मतदाताओं को जनता को टुकड़ों में बांटकर उनके अलग-अलग समूह बनाकर उनके ग्रुप लीडर बनाकर एरियाज बनाकर चुनाव से पहले इतना नगद पैसा ट्रांसफर कर देंगे सरकारी योजनाओं का कि यह कहीं भी उसके सामने स्टैंड नहीं करेंगे. 

    आप सोचिए कि छठ से पहले ₹10,000 एक महिला के खाते में आना उसके लिए निश्चित तौर पर एक अमृत काल था उस वक्त का और सब परिवार वाले इस ₹10,000 को देखकर सब कुछ भूल गए थे. नरेंद्र मोदी पहली बार इस मिथ को तोड़ देंगे कि नीतीश कुमार के बिना पटना में कोई सरकार नहीं बन सकती. मार्क माय वर्ड्स. 14 तारीख को आप देखेंगे भाजपा विल एम एस द सिंगल लार्जेस्ट पार्टी विद जेडीयू इट विल फॉर्म द गवर्नमेंट इट विल हैव इट्स ओन चीफ मिनिस्टर और 17 18 तारीख को आप देखेंगे पटना में भगवा लहराता हुआ आपको दिखाई देगा. 

    सवाल: क्या वाकई में भारतीय जनता पार्टी या एनडीए नीतीश कुमार के चेहरे पर लड़ रही है चुनाव नीतीश कुमार सीएम जैसा अभी आपने कहा होंगे या नहीं होंगे और दूसरा नीतीश कुमार की जो पलटूराम की एक इमेज बन गई है उसके बाद भी बीजेपी उनपे विश्वास कर रही है क्या? 

    जवाब: चेहरा तो आज भी है वह लेकिन वह एक मुखौटा हैं. चुनाव लड़ाने का असली चेहरा नरेंद्र मोदी हैं. गेम चेंजर नरेंद्र मोदी हैं. लेकिन पॉलिटिकल कंपल्शनंस के कारण आज मजबूर होकर इच्छा से अनच्छा से भाजपा ने भी एनडीए ने अपना चेहरा नीतीश कुमार को पहनाया हुआ है. और दूसरा आपका अहम सवाल यह है कि पलटूराम की इमेज के बावजूद यह सब कैसे हो रहा है? तो पॉलिटिकल कंपल्शनंस वो अच्छे से जानते हैं कि चार बार वो दल बदल कर चुके हैं. चार बार जिसे कहना चाहिए कि पॉलिटिकल बिटल ये सब हो चुका है. 2010 में कुछ था, 15 में था, फिर 17 में था, 22 में था. हर बार उन्होंने पाला बदला और पूरे देश में इमेज बन गई नीतीश कुमार की. एक जो कहते हैं सुशासन बाबू हैं उनकी इमेज एक बार यह बन गई कि पलटूराम है. इसके बावजूद यह है कि यह बिहार की राजनीति की व्यवस्थाएं हैं कि कोई एक दल वहां चुनाव नहीं लड़ सकता, नहीं जीत सकता. उसी का परिणाम यह है कि आज नीतीश कुमार सामने हैं और एनडीए का चेहरा बने हुए हैं. मुख्यमंत्री के कैंडिडेट डिक्लेअर नहीं हुए हैं. चेहरा बने हुए हैं. 

    सवाल: नीतीश चाहते हैं कि वह मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित हो. पिछले 6 महीने से एक तरह से कम्युनिकेशन ऑफ़ रिकॉर्ड चल रहा है कि घोषित किया जाए. लेकिन बीजेपी ने या एनडीए ने अभी तक उनको मुख्यमंत्री घोषित नहीं किया. उसके बावजूद भी जेडीयू और खासतौर पर नीतीश कुमार के जो करीबी कार्यकर्ता हैं वो घर-घर जाकर सभाओं में यही बात कहते हैं कि नीतीश कुमार ही चेहरा होंगे. उनको मुख्यमंत्री घोषित कर दिया है. यह कैसा कंट्राडिक्शन है? 

    जवाब: यह कंट्राडिक्शन ऐसा है जिसको कि कड़वा घूंट है राजनीति का जिसको भाजपा पी रही है. आज पटना में होर्डिंग लगे हुए हैं. 2025 से 2030 तक नीतीश कुमार का साथ नीतीश कुमार मुख्यमंत्री उन्होंने खुद ही डिक्लेअर कर दिया है कि 2025 2030 तक है नीतीश कुमार मुख्यमंत्री होंगे. मन है जिसे कहते हैं. अब मन पर किसी का कंट्रोल नहीं है और नीतीश कुमार पर वैसे बहुत लिमिटेड कंट्रोल है दिल्ली का. आज की तारीख में जो है तो इसको बर्दाश्त किया जा रहा है दैट वे लेकिन भाजपा के मन में निश्चित तौर पे रेजोल्यूशन है और इसीलिए जो है उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया जा रहा है. अमित शाह ने भी इंडिया टुडे के इंटरव्यू में कहा था कि उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा. लेकिन मुख्यमंत्री पद का फैसला हम बाद में करेंगे. 
     
    सवाल: एनडीए में जिस तरीके से टिकट वितरण हुआ है उसके बाद जेडीयू का एक तरीके से दर्जा रहा है बिग ब्रदर वाला. लेकिन अब जेडीयू और बीजेपी के बीच में 101 सीटों पर सहमति बनी है यानी दोनों बराबरी पर हैं. ऐसे में इसका मैसेज क्या जाता है? जो बिग ब्रदर वाली छवि रही है जेडीयू की, क्या वो समाप्त होता नजर आता है? 

    जवाब: बीजेपी इज़ गोइंग टू हैव इट्स ओन चीफ मिनिस्टर इन पटना ऑन 14th. नो बड़ा भाई छोटा भाई, जुड़वा भाई. और कितना खूबसूरत नाम दिया है इस इक्वेशन को उन्होंने कि फर्स्ट पैरिटी एंड फर्स्ट यूनिटी. यह भाजपा के जो मीडिया मैनेजर्स हैं, पीएमओ के मीडिया मैनेजर्स हैं, उनका कितना खूबसूरत एक नाम है. इस एक नारा उसके पीछे जो उन्होंने दिया है और बाकी यह है कि कोई बड़ा नहीं है. बराबर हैं पहली बार दोनों जो हैं और एक जो मानसिक साइकोलॉजिकल जो डोमिनेंस थी नीतीश कुमार की या जो अपर हैंड था साइकोलॉजिकल नीतीश कुमार का जिसे हम कहते हैं वो भाजपा ने एक झटके में खत्म कर दिया दोनों को बराबर रख के. तो 
    साइकोलॉजिकली आज बराबर है. यह एक झटका है नीतीश कुमार के लिए. तो वास्तविकता यही है कि अब दोनों बराबर हैं और इसका मैसेज यही है कि भाजपा अपना क्लेम स्टेक करेगी चीफ मिनिस्टर बनने के लिए. दिस इज ऑल. 

    सवाल: मैंने सुना है कि टिकट वितरण की जानकारी जब पटना में पहुंची नीतीश कुमार के पास तो उन्होंने अपनी टीम से ही नाराजगी जाहिर की और यह पूछा कि आपने इस फार्मूले को स्वीकार कैसे कर लिया? 

    जवाब: नीतीश कुमार का क्या है? लोग कहते हैं ना अचेतन अवस्था में रहते हैं. यह भी मृग मारीचिका है. एक रहस्य है. उनके आसपास के लोग कहते हैं कि उनका जो एंटीना है कभी ऑन होता है, कभी ऑफ होता है. जब टिकट वितरण की बात उन तक पहुंची तो उस दिन कहते हैं एंटीना ऑन था. वह पूरे मानसिक शक्ति और उससे था और जैसे दो लोग रोते वहां पर गए जिनके टिकट कट गए थे और दोनों दलित थे और जेडीयू के सिंग एमएलए थे और जब नीतीश कुमार को बताया कि हमारे टिकट काट करके दे दिए गए चिराग पासवान को तो कौशल किशोर और रतेश ये दो व्यक्ति थे दो व्यक्ति पहले से नाराज बैठे हुए थे सारे सिस्टम से वहां पर जो है तो वह जो दो व्यक्ति नाराज बैठे हुए थे नीतीश कुमार के पास गए लेके और अपनी बात कही और नीतीश कुमार का एंटीना बिलकुल खुला हुआ था तो नाराज हुए वहां पर और नाराजगी यहां तक पहुंची कि अगले दिन उन्होंने पांच टिकट जो थे दो नहीं पांच पांच टिकट जो थे चिराग को दिए हुए थे वो उन्होंने काट के अपने स्तर पर जो है ना उनके सिंबल जिसे कहते हैं अपने उम्मीदवार उनको घोषित कर दिया दैट वे जो है तो ये हुआ सच में ये नाराजगी थी उनकी इसमें कोई शक नहीं है बाद में हालात को सुधारा गया. 

    संजय झा ने बकायदा बयान देकर कहा कि नहीं कोई नाराजगी नहीं है जिसे है एवरीथिंग हैज़ बीन सेटल्ड एंड नीतीश कुमार विल कंटिन्यू एज अ यूनाइटेड फेस ऑफ एनडीए. मन को खुश करने वाली बात. तो इस तरह से जो है ना इशू को सॉर्ट आउट किया गया. बाय नाउ इशू सॉर्टेड आउट. लेकिन उस दिन नाराजगी काफी थी. इसमें कोई संदेह नहीं है. 

    सवाल: टिकट वितरण को लेकर अंदरखाने एक चर्चा ये चल रही है कि जो घटक दल एनडीए के हैं, उनमें नाराजगी है. आपको भी लगता है ऐसा? 

    जवाब: यह बात सही है. दुनिया में कोई किसी को पूरे तौर पर संतुष्ट कर नहीं सकता. खासकर पॉलिटिकल टिकट वेतन एक ऐसा विषय है. कोई ना कोई बात थोड़ी रहती है. अब इसमें लेकिन बाय नाउ एवरीथिंग इज़ सॉर्टेड आउट जिसे कहते हैं. दैट वे नाराजगी थी सब में. नाराजगी आप देखिए कि इवन जेडीयू के लोग खुश नहीं है. और भाजपा के लोग भी कुछ खुश नहीं होंगे अंदर से हमारा टिकट ये नहीं मिला वो नहीं मिला. नेचुरली बाकी जो तीन पार्टनर हैं कुल पांच घटक हैं. पांचों में थोड़ी बहुत नाराजगी थी. बट बाय नाउ क्योंकि अमित शाह का डंडा चलता है. तो बाय नाउ दिस आफ्टरनून अपन कह सकते हैं द एंटायर इशू सॉर्टेड आउट. 

    अब कोई नाराजगी नहीं है. नाराजगी तो मन में है. किसी की हिम्मत नहीं है एक लाइन नाराजगी की बोल दे. कल आपने देखा हो तो तीन घटक जो हैं उनमें एक-एक करके सब ने एक जैसा बयान जारी किया. ऐसा लगा कि उनका बयान जो है उन्होंने एक साथ ही बैठ के टाइप किया था जो है और सबने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आस्था व्यक्त करी. तो नरेंद्र मोदी अमित शाह क्या लॉन्ग रोप देते हैं खेलने के लिए खेलो थोड़े दिन. उसको जो है फिर देखते हैं स्थिति कंट्रोल से बाहर जा रही है. उसको वहीं स्टॉप कर देते हैं. तो इस केस में यही हुआ है. नाउ एवरीथिंग इज शॉर्टेड. कोई घटक नहीं, कोई मतभेद नहीं. 

    सवाल: चिराग के कोटे में 29 सीटें आई हैं. क्या यह सच है कि नीतीश कुमार ने इन 29 में से पांच सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और अगर ऐसा है तो इसके पीछे आप क्या रीज़न मानते हैं? 

    जवाब: उनका अपना उनका स्वाभिमान कहिए, उनका स्वाधिकार कहिए, उनको बर्दाश्त नहीं हो रहा कि उनको एक सेकंड पैडल के रूप में कैसे पेश किया जा रहा है. और यह तो हद हो गई. उनका जो पॉलिटिकल एनिमिटी है जो शत्रुता है जो नाराजगी है चिराग के साथ उसके लोगों को इनके टिकट काट के सिंग एमएलए के टिकट काट के दे दिए तो दिस वाज़ टू मच इसका जो फर्स्ट इंप्रेशन था तो टू मच था तो नाराजगी स्वाभाविक थी तो उन्होंने किया और बीजेपी में ने जो है भारी मन से और कड़वा घूंट पी के ये होने दिया दैट वे जो है तो पांच टिकट भी काटकर उन्होंने अपने खाते में ले दिए तो एक बार फिर से पटना में नीतीश कुमार जिंदाबाद हो गया लेकिन यह दौर अस्थाई है टेंपरेरी है. 

    सवाल: ये जो 29 सीटें चिराग पासवान को मिली हैं. उसके पीछे की कहानी क्या है? बीजेपी चिराग पासवान के सामने इतना ज्यादा क्यों झुक रही है? 

    जवाब: यह कहानी की बात नहीं है. एक तो क्या नरेंद्र मोदी को नब्ज़ की पकड़ है. जनता की पकड़ रहती है उनको. आपके सारे चुनावी रणनीति एक तरफ. और नरेंद्र मोदी खुद का जो ग्राउंड आकलन है. फर्स्ट आकलन जो उनका होता है वो एक तरफ होता है हमेशा. उनका पक्का यह आकलन है शुरू से ही कि चिराग इज अ कंपलसरी कंपोनेंट इन दिस गवर्नमेंट. और अगर हमें सरकार बनानी है एनडीए की और विपक्ष को निश्चित तौर पे हराना है, स्वीपिंग मेजॉरिटी लेनी है. हमें कोई उसमें से कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिए. उसमें जो चिराग पासवान है एक कंपलसरी कंपोनेंट है. एक पॉपुलर कंपोनेंट है. पिछले लोकसभा में 100% उसकी स्ट्राइकिंग रेट थी. पांच में पांच सीटें जीती. तो किसी न किसी कारण से और प्लस मेरिट है जो पॉलिटिकल उसे प्रधानमंत्री के मन में उनके प्रति एक सॉफ्ट कॉर्नर चिराग के प्रति. तो मैंने सुना कि उन्होंने कहा कि कुछ भी करो इसको 29 करो 19 करो. यह आपका काम है. लेकिन यह चिराग बाहर नहीं जाना चाहिए. पिछली बार नीतीश के बाहर चला गया था. तो नीतीश कुमार के जो है ना 30 35 सीटों का नुकसान किया उसने. खुद से 135 पे लड़ा एक भी जीता वो अलग बात है. फिर जो लोकसभा में पांच सीटें जीती वो 38 असेंबली का कॉन्स्टिट्यूएंसी को प्रभावित करती हैं. तो कम से कम इतना प्रभाव तो आज है उसका. दैट वे जो है. तो एक पॉलिटिकल विज़डम के नाते दूरदर्शता के नाते फिर शीर्ष स्तर से फैसला हुआ कि ठीक है अकोमोडेट करो. जाएगा कहां? रहेगा तो हमारे साथ ही हुआ. 

    सवाल: पटना में इस बात को लेकर के चर्चा है कि भाजपा 101 सीटों पर नहीं 142 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. क्या इसके मायने हैं? ब्रिलियंट ये बिल्कुल सही है. भाई 
    डायरेक्टली तो 101 है. 29 आप उसकी मान लीजिए. जी फिर छह मांझी की मान लीजिए. छह कुशवाहा की मान लीजिए = 142 अमित शाह का गणित मास्टरमाइंड हैं. सपोर्टेड बाय जेपी नड्डा. यह सच है कि बीजेपी बाय प्रॉक्सी खुद तो 101 और बाय प्रॉक्सी 142 पे लड़ रही है. 

    सवाल: क्या यह सच है कि इस चुनाव में ड्राइविंग सीट पर अगर कोई है तो वह बीजेपी है? 

    जवाब: पटना पिछली बार जब गया तो मैंने देखा कि नीतीश सरकार का जो पिछले 2 साल से रिमोट कंट्रोल है वो दिल्ली और पटना में जो है वो बीजेपी के पास है. जितने फैसले 2 साल में महत्वपूर्ण फैसले हुए हैं नीतीश कुमार के उनमें सब भाजपा की आपको जो है ना साफ छाप दिखाई देती है. नीतीश कुमार के जो दो मोस्ट ट्रस्टेड पर्सन हैं ललन सिंह और संजय झा वह वो अमित शाह के शरण में हैं दिल्ली में आए दिन वहीं रहते हैं. शुरू में ऐसा लगता था कि जेडीयू ड्राइविंग सीट पर है. उस समय क्या है? उस समय भी आपका जो है बीजेपी यह ड्राइविंग सीट पर थी. लेकिन लगता ऐसा था कि वह ड्राइविंग सीट पे हैं. दूसरी पार्टी जो है. अब उन्होंने उस भ्रम को उस पर्दे को हटा दिया है और ऐसा लग गया है. आप देखिए पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने राज्य सरकार की योजना का श्रीगणेश किया वहां पे. दैट वाज़ है. तो थोड़ा सलीग से हटके था. तो क्लियर मैसेज है उसका कि पटना की कमान पूरे तौर पर नीतीश कुमार सरकार की कमान दैट वे जो है और रिमोट कंट्रोल जो है वो भाजपा के पास है. दिल्ली में है, पटना में है. दोनों लेवल पे एग्जीक्यूट हो रहा है. 

    सवाल: सम्राट चौधरी और मंगल पांडे क्या वाकई चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे? 

    जवाब: मैंने सुना ऐसा अब चुनाव में जाने से हर कोई डरता है. अभी एमएलसी हैं. बिना चुनाव लड़े उप मुख्यमंत्री है. दूसरे व्यक्ति कैबिनेट मिनिस्टर हैं. तो फरमान आया दिल्ली से कि चुनाव लड़ना है. तो थोड़ी चिंता हुई तो फिर ये कहा चलो सेफ सीट ढूंढते हैं. इसकी जानकारी जब अमित शाह को लगी दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व को मिली. उनका नथिंग डूइंग. जाइए अपने इलाके के अंदर अपने इलाके से लड़िए. वहीं से चुनाव जीतिए और जीत के आना है. तो आ गए वापस दोनों डिसपॉइंटली जो है अब चुनाव लड़ रहे हैं और अकॉर्डिंग टू ऑल अवेलेबल इंडिकेशंस उनके चुनाव जीतने की पूरी संभावना है. 

    सवाल: बीजेपी ने जो अपने पास 101 सीटें रखी हैं सभी पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. बीजेपी ने क्या मैसेज देने की कोशिश की है? 

    जवाब: मैसेज क्लियर है कि वी आर डिसाइसिव. बीजेपी लेडी डिसाइसिव. इट इज़ नॉट अनडिसाइडेड लाइक कांग्रेस एंड आरजेडी. क्लियर मैसेज है इसका. तो आधा तो क्या होता है साइकोलॉजिकल लड़ाई को आप जीतते हैं. तो यह पहल करके भाजपा ने जो है अपना साइकोलॉजिकल जो डोमिनेंस है वो डेमोंस्ट्रेट किया है टिकट डिस्ट्रीब्यूशन के एरिया में. दिस इज़ ऑल. 

    सवाल: जेडीयू ने भी 101 सीटें अपने पास रखी हैं. सभी पर उम्मीदवारों का ऐलान हो गया है. जेडीयू ने क्या मैसेज देने के लिए किया है? 

    जवाब: मेरा ऐसा मानना है इसमें निश्चित तौर पर जो बीजेपी की लीडरशिप है उसका इंपैक्ट रहा होगा. नीतीश कुमार पर मोरल प्रेशर रहा होगा कि नो नथिंग डूइंग. नो डिफरेंसेस डिक्लेअर करिए हमारे साथ-साथ आप भी ताकि मैसेज आए मार्केट के अंदर वी आर वन वी आर यूनाइटेड वी आर कंटेस्टिंग इलेक्शंस विद अ सीरियस नोट एंड वी विल विन द इलेक्शंस तो डिसाइसिव नोट देने के लिए दोनों पार्टियों के जो टिकट डिस्ट्रीब्यूशन है वो हुआ है.

    सवाल: जहां कुर्सी है वहां नीतीश कुमार ऐसा कहा जाता है तो आपको लगता है अब क्योंकि ऐसी चर्चाएं हैं कि अब नीतीश कुमार की विदाई का समय आ गया है तो वाकई आ गया है या अभी भी उनकी पारी पॉलिटिकल बाकी है.

    जवाब: देखो हर नेता का हर एक मुख्यमंत्री का केंद्रीय मंत्री का खास तौर पर मुख्यमंत्री का एक विदाई का समय होता है. एक पारी के अंत होने का समय होता है. फिर चाहे ज्योति बसु हो चाहे नवीन पटनायक हो एंड सो ऑन ए लॉन्ग लिस्ट ऑफ पीपल जो है तो लगता है उनका वक्त जो है विदाई का इस समय आ गया है. अब उनकी विदाई दो तरह से हो सकती है. एक तो जनता उनको विदा करेगी. 101 में बहुत कम सीटें जीतेंगे इस बार वो मे बी 40 टाइप कुछ ऐसा हो सकता है. बड़ी बात नहीं है. दैट इज है. दूसरा यह है कि चुनाव अगर जीत भी जाते हैं तो चुनाव जीतने के बाद जो है ना भाजपा उनकी विदाई करेगी. ऐसा इंप्रेशन है. ऐसा परसेप्शन है. तो उनको तो 
    जाना है. दैट वे जो है और जाना है तो जाना तो क्या है? पार्ट ऑफ लाइफ है. उनको पूरे सम्मान और गरिमा के साथ जो है वानप्रस्थ आश्रम का जो रास्ता है वह चुनना चाहिए. लेकिन सत्ता का मोह है जो छोड़ता नहीं है. बाकी अपेरेंट इंडिकेशन तो यही है कि नीतीश कुमार ऑन ह वे आउट. बहुत गरिमा से उन्होंने 20 साल शासन किया. इसमें उन्हें गर्व होना चाहिए और उसी गर्व गरिमा के साथ जो है ना उन्हें अब नमस्ते कहने का समय आ गया है उनके द्वारा. 

    सवाल: सर मेरे विचार से नीतीश कुमार की विदाई इतनी आसान होगी नहीं. और अगर उनकी विदाई होगी भी तो उसका जो गाना है वो बहुत सोच समझ कर लिखना होगा. आपको क्या लगता है? 

    जवाब: उनकी विदाई का जो गीत है वो सोर्स में लिखना पड़ेगा. मैं आपकी इस बात को मानता हूं. देखो 100% तो कोई भी असेसमेंट करेक्ट नहीं होता. हमारा बेसिक आकलन ये है कि दे विल बी न्यू चीफ मिनिस्टर इन पटना. बीजेपी चीफ मिनिस्टर इन पटना एंड रादर न्यू चीफ मिनिस्टर अदर दैन नीतीश कुमार. यूं मानिए इसको ऑन 14th. अब विदाई की कहानी मुश्किल तो है कि अभी तक का इतिहास ये रहा है कि जब भी इनकी कुर्सी के जाने का वक्त आया तो उन्होंने पलटी खाई. कुर्सी को नहीं जाने दिया वहां से जो है तो इस बार में उनके मन में कुछ ना कुछ ऐसा चल रहा होगा कि ऐसा वक्त आएगा वो यही सिद्ध करता है कि किसी भी सूरत में कुर्सी को छोड़ने वाले नहीं है. इसलिए आपके मन में सवाल उठा है ये सारे जो इंडिकेशंस हैं विज़िबल इंडिकेशंस जिनमें वो जा रहे हैं. इसके बावजूद आपका मन ये कहता है कि उसके बैकग्राउंड को देखते हुए उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए सत्ता में बने रहने के उनका जो एफर्ट है उसको देखते हुए तो निश्चित तौर पे नहीं कहा जा सकता कि विदा होने वाले हैं. 

    सवाल: सर इसलिए मैंने सुना है कि नीतीश कैंप ने परोक्ष रूप से एनडीए को धमकी भी दे दी है कि चुनाव के दौरान में या तो आप एनडीए में चुनाव प्रत्याशी के तौर पर उनका नाम घोषित करें वरना चुनाव के बाद कहीं और रास्ता देखने के लिए भी वह स्वतंत्र होंगे. 

    जवाब: धमकी नहीं भी दी है तो धमकी दे रहे होंगे. धमकी उनके मन में होगी. जुबान पर आने वाली होगी. तो उनका ट्रैक रिकॉर्ड ऐसा रहा है. बट दिस टाइम ही इज़ मिस्टेकन. दिस टाइम देयर इज अ डिफरेंट नरेंद्र मोदी और अमित शाह. अब वह टीम वह नहीं है चार बार पहले जो समझौता किया पीछे हटे उसके सौदेबाजी के सामने झुके उसके अपॉर्चनिज्म के सामने झुके अब वो हालात नहीं है. अब वो क्या करेंगे दिल्ली वाले यह तो यह जाने लेकिन आज की तारीख में एक तो नीतीश कुमार को यह आभास नहीं है. उनका आधार खिसक चुका है. जनता में प्लस उनके जो सेनापति होते हैं आसपास के वो नतमस्तक कहीं और हो रहे हैं दो साल से. वो नीतीश कुमार के नतमस्तक नहीं हो रहे हैं. इस सत्य को वो स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं जो है इसलिए जब भी कभी शक्ति परक्षण का वक्त आया कभी ऐसा इस तरह से तो उन्हें हैरानी होगी कि उनके प्रधान सलाहकार जो हैं पटना में नहीं मिलेंगे. वो दिल्ली में खड़े मिलेंगे आपको उस दिन यहां शीर्ष नेतृत्व के आसपास मंडराते हुए दिखाई देंगे आपको तो नीतीश कुमार को एहसास हो जाएगा सामने टाइम इज अ हीलर जिसे कहते हैं. 

    सवाल: सर पिछले दो सालों में नीतीश सरकार की एक तो पुअर पुअर गवर्नेंस और साथ ही वहां पर बिगड़ती कानून व्यवस्था के कारण एनडीए के लिए नीतीश कुमार इस चुनाव में लायबिलिटी सिद्ध होंगे? 

    जवाब: थोड़ी बहुत लायबिलिटी है बाकी बहुत ज्यादा तो फर्क पड़ता नहीं क्यों चुनाव तो देखो इस समय जो चुनाव है ना वह ज्यादा भाजपा नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जा रहा है कहने की बात है कि नीतीश कुमार यह जो भी इस तरह का है जो उसकी वोट अपील है नरेंद्र मोदी कि बिहार में वह बहुत आगे निकल गई है नीतीश कुमार से जो कानून व्यवस्था की बात है तो उससे लोग कोई ज्यादा प्रभावित नहीं है. हालांकि नेशनल मीडिया में एक एक जिसे कहते हैं मोमेंटम बना था इस तरह का जो है वो बना था पिछले दिनों कि बिहार जैसे हत्याओं की राजधानी हो गया फिर से बिहार में फिर से जंगल राज हो गया है. लेकिन आप गहराई से देखें तो पिछले दिनों जो मर्डर हुए हैं वहां पे वो ऑर्गेनाइज्ड क्राइम नहीं था लालू के टाइम का जंगल राज का इंडिविजुअल इवेंट्स थे. संपत्ति का झगड़ा था. पतिपत्नी का झगड़ा था. प्रेम में प्रेमिका का झगड़ा था. 

    इस तरह के मर्डर्स थे वहां पे जो है ना उस तरह का वो हार्ड कोर क्राइम जो होता है ऑर्गेनाइज क्राइम जो है वो वहां पे नहीं था. ये देखा और फिर लोगों ने ये भी सोचा कि विकल्प क्या है हमारे सामने? अगर नीतीश कुमार का लॉ एंड अच्छा नहीं है, गवर्नेंस अच्छा नहीं है तो क्या हम लालू को वापस लाएंगे? क्या हम तेजस्वी को वापस लाएंगे? जंगल राज के जो तगमा लगा हुआ है उन पर. क्या उनको वापस लाएंगे? तो इसलिए क्या है? को लॉ एंड ऑर्डर ज्यादा खराब नहीं थोड़ा खराब हो भी जाए तो इट इज़ नॉट गोइंग टू एडवर्सली अफेक्ट नीतीश कुमार बिकॉज़ अल्टरनेटिव इज़ पुअर सामने जो अल्टरनेटिव है चॉइस है वो पुअर है वो तो दैट डजंट मैटर. 

    सवाल: सर कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि एनडीए में रहते हुए नीतीश कुमार ने किसी भी बीजेपी नेता को बिहार का बड़ा चेहरा बनने नहीं दिया. क्या आप भी इससे एग्री करते हैं? 

    जवाब: अब्सोलुटली. ये तो ऑन फेस वैल्यू पे देख रहे हैं. बिहार में कोई भी जिसे कहना चाहिए कोई बड़ा हिंदू चेहरा जो है ना सामने नहीं आया और नीतीश कुमार ने जातियों को बांटा. और हिंदू वोटों को जातियों को इतना बांट दिया आपस में कि कोई एक ग्रुप बड़ा खड़ा नहीं हो उसके हिंदू लीडर एक बड़ा सामने नहीं आ सके. पहले बांटा महादलित दलित पिछड़े अति जुड़े और इतने ज्यादा सत्ता में बांट दिया लोगों को कि एक के बजाय 20 जातियां बना दी. 20 उपजातियां बना दी वहां पे जिससे एक पॉलिटिकल पार्टी कोई बड़ा नेता वहां खड़ा नहीं हो सका. ये उनकी पॉलिसी थी. एंड ही इज़ एव्री राइट टू बी श्रुड एंड स्मार्ट व्हाइल रिटेनिंग ह पोजीशन और व्हाइल कंबैटिंग अपोजिशन. तो उन्होंने उसमें किया. लेकिन ये फैक्ट है कि उन्होंने कोई बड़ा ऐसा राष्ट्रवादी हिंदू चेहरा सामने नहीं आने दिया क्योंकि जातियों को इतना 
    ज्यादा बांट दिया उनको जो कंबाइन करना बड़ा मुश्किल काम था आज भी वही स्थिति हमारे सामने है.

    सवाल: सर बिहार की राजनीति की समझ रखने वाले जो राजनीतिक प्रेक्षक हैं उन्हें ये आशंका है कि अगर किन्ही मजबूरियों से बीजेपी ने अगर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं बनाया तो उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने के लिए एक तरफ आरजेडी और दूसरी तरफ कांग्रेस बाहर से समर्थन दे सकती है क्या? 

    जवाब: अब्सोलुटली यह पहले हुआ ही है. खाली रिपीट होगी कहानी इसके अंदर. नया कुछ नहीं है इसके अंदर. और इस बात से नरेंद्र मोदी हमेशा वाकिफ हैं. तो भी सोचते हैं. उनके मन में ध्यान है. बीजेपी के जो पॉलिसी मेकर्स हैं उनके मन में संभावना बकायदा है. और आप देखिए इसीलिए जो है कि आज अगर चॉइस दी जाए नीतीश कुमार को कि तुम्हें भाजपा का मुख्यमंत्री पसंद है या तेजस्वी तो सरप्राइजिंगली ही गो विद तेजस्वी. लोकल सेंटीमेंट भाजपा को नहीं बनने देना. दैट उनका मुख्यमंत्री नहीं बनने देना. उनका मन का जो भाव है दैट इज है वो वहां जाना चाहते हैं उसके साथ जो है और इसीलिए आप देखा होगा कि परोक्ष रूप से कांग्रेस तो नहीं कह सकता पर आरजेडी का एक सहानुभूति का भाव नीतीश के प्रति आज भी है. अपार्ट फ्रॉम कुशवाहा एंड मांझी एंड अदर्स जो है ये और अभी इसीलिए आजकल जो उनका कैंपेन है वो एंटी नीतीश नहीं है ज्यादा. वो एंटी बीजेपी की तरफ है और यह कह रहे हैं जैसे कि गुजरात के लोग चुनाव लड़ा रहे हैं यहां आके गुजरात के रणनीतिकार यहां पटना में है तो लोकल सेंटीमेंट को उभारने की कोशिश कर रहे हैं इस तरह से तो दे आर बेसिकली टारगेटिंग बीजेपी तो इस संभावना से कोई इंकार नहीं है कि ये नीतीश के मन का ख्याल है लेकिन अब हालात दूसरे हैं मेरा पक्का मानना है कि ये स्थिति आएगी और नीतीश कुमार जाने लगेंगे तो जैसे छलांग लगाएंगे ना यहां से वहां जाने के लिए तो बीच में ही रुक जाएंगे वहां तक पहुंच नहीं पाएंगे इस बार अमित शाह है. बहुत हो चुका है. एनफ इज एनफ. नथिंग मोर कैन बी टोलरेटेड. दिस डिस्प्ले ऑफ़ पॉलिटिकल डिसऑनेस्टी डेमोक्रेसी शुड नॉट बी अलाउड एंड आई थिंक विल नॉट बी अलाउड. लेट्स सी. 

    सवाल: सर नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार का भी आप इन चुनावों में कोई रोल देख रहे हैं? 

    जवाब: अच्छा है वो लड़का. गुड बॉय जो है राजनीति में इंटरेस्ट नहीं है और नीतीश कुमार के इसमें 100 में 100 नंबर हैं कि परिवारवाद को उन्होंने कभी आगे नहीं बढ़ाया. एक तो अपने इंटीग्रिटी को इंटैक्ट रखा और एक परिवारवाद को जैसे आगे नहीं बढ़ाया तो उन्होंने उसको आगे नहीं बढ़ाया. तो पापा एक कांस्टेंसी है. कास्ट चुनाव तो नीतीश लड़ते नहीं. एमएलसी में रहते हैं. लेकिन नालंदा क्षेत्र में जाते हैं. वह एक्टिव रहते हैं. वहां पे थोड़ा देखते हैं. लेकिन यह बात तय है जो मुझे लगता है अगर भाजपा की सरकार बनी और भाजपा का मुख्यमंत्री बना और नीतीश कुमार ने मेंटली रिकंसाइल किया और कोई डील हुई तो इनके बेटे को उप मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. दो या तीन उप मुख्यमंत्री बनेंगे शायद बिहार में इस बार तो उसमें हो सकता है एक उप मुख्यमंत्री बन सकता है. पर एट द मोमेंट इस चुनाव में उनका कोई एक्टिव रोल नहीं है. 

    सवाल: सर इस समय जो मौजूदा स्थिति है बिहार की उसमें जेडीयू का भविष्य क्या देखते हैं?

    जवाब: नीतीश की पार्टी का भविष्य देखो जेडीयू वैसे तो हैज़ बीन हाईजैक्ड बाय बीजेपी प्रैक्टिकली तो मैंने कहा ना नीतीश इज़ अबब्सोलुटली नॉट अवेयर कि कितना उनका आधार उनके सेनापति इधर से उधर हो गए हैं दैट वे जो है और फिर क्या है कि जिसे कहना चाहिए कि जेडीयू के विधायकों में इतना डर है ना जाने क्यों बिना कहे हुए बीजेपी की तरफ जा रहे हैं बीजेपी की तरफ मुड़ रहे हैं पटना में उनके मन में रहता है कॉल आए तो चलो वहां वहां चले जाए दैट्स पे तो भविष्य तो यह है कि इस पे डिपेंड करता है कि सरकार कैसी बनती है. जी मैं तो संभावना मानता नहीं नीतीश कुमार के बनने की अगर फिर भी भाग्य किसी ने किसी का पढ़ा नहीं है और मुख्यमंत्री भाग्य से बनता है. भाग्य से हटता है तो अब यह हो सकता है कि मुख्यमंत्री एक पल के लिए बने तो रहेगा भाग्य. बट ही विल बी रनिंग ए रिमोटली कंट्रोलोल्ड पार्टी दैट इज़ जेडीयू जैसे अभी चल रही है. दैट वे और जैसी संभावना है कि वो सत्ता में नहीं होंगे उस तरह से. तो बीजेपी और बीजेपी की परफॉर्मेंस बेटर रहेगी ऐसा लगता है. तो ग्रेजुअली करते-करते दो ढाई साल के अंदर यह मर्ज हो जाएगी पार्टी और पॉलिटिकली अमित शाह को इनको लगेगा कि मर्ज करना ठीक नहीं दूर रखो अपने साथ रखो तो दूर खड़े रहेंगे चिराग की तरह एक आवाज देंगे जिस दिन फायर की हो गई बुझाने की आवश्यकता आ जाएंगे उस दिन दैट इज है तो अभी अपेरेंटली उनके अस्तित्व को खतरा  नहीं है बट इट डिक्लाइनिंग जेडीयू है ना अब डिक्लाइनिंग है. 

    सवाल: सर 1995 के बाद से आज तक बिहार में कोई भी पॉलिटिकल पार्टी अपने बूते सरकार नहीं बना पाई है. क्या इसकी पुनरावृत्ति इस बार भी होगी? 

    जवाब: अबब्सोलुटली हो चुकी है. कोई भी दल 122 सीट लाने की स्थिति में नहीं है. आज खुद के बूते ना बीजेपी है ना जेडीयू है ना आरजेडी है. अपने बूते जो है अगेन द मल्टीपल पार्टी रूल नो सिंगल पार्टी रूल सिंगल पार्टी रूल इन बिहार एंडेड विद लालू प्रसाद इन 1995 उसके बाद रिपीट ही नहीं हुआ. ना कभी नीतीश कुमार बहुमत में आए ना कोई दूसरी पार्टी बहुमत में आए. तो इट्स अ हार्ड फैक्ट ऑफ़ बिहार पॉलिटिक्स. इट्स गोइंग टू बी रिपीटेड दिस टाइम. 

    सवाल: सर जब हिंदी बेल्ट की बात होती है तो बिहार एकमात्र ऐसा हिंदी राज्य है जहां पर बीजेपी कभी भी अपनी ताकत के बल पर सरकार नहीं बना पाई. आप इसके पीछे रीज़न क्या मानते हैं? 

    जवाब: रीज़न पहला तो वही है कि नीतीश कुमार ने सोची समझी रणनीति के तहत किसी बड़े हिंदूवादी चेहरे को जातियों को टुकड़ों में बांट के उसको आगे आने नहीं दिया. 35 वर्षों में और जो पटना का स्वरूप है वहां का जो स्वरूप है वह स्वरूप जो है वह एक तरह से जातिवादी सरकार कहिए आप या उस तरह की कास्ट ओरिएंटेड सरकार जो है उसका एक तरह से रहा. दूसरा कारण यह रहा कि बीजेपी डिडंट हैव ए लीडर वायर पुलर लाइक नीतीश कुमार. ऐसा नेता नहीं था उनके पास. और एक और बड़ी बात यह है बीजेपी हैड नो मोरल ग्स एंड कन्विक्शन एंड करज टू गो अलोन. इस साल जा सकते थे. नीतीश कुमार गिरता हुआ स्वास्थ्य है. हिम्मत नहीं जुटा पाया. रणनीतिकारों ने गुना भाग किया होगा बैठकर तो लगा होगा कि नहीं बैठेगी बात ये. तो अगेन मल्टीपल रूल जिसे कहते हैं तो सच है कि हिंदूवादी चेहरा कोई नहीं है. वहां इस सत्य को बीजेपी ने स्वीकार किया है. 

    हालांकि शीर्ष स्तर पर प्रधानमंत्री के स्तर पर, अमित शाह के स्तर पर, नड्डा के स्तर पर कई बार यह चर्चा होती है कि आखिर कब तक कब तक यह अपवाद बना रहेगा बिहार जहां बीजेपी का चीफ मिनिस्टर नहीं होगा. दैट वे तो बार-बार सोचते हैं कि ऐसा व्यक्ति ढूंढा जाए जो अगले 25 साल तक हम उसको ग्रूम करें. इस तरह से अभी से ट्रेन करें, ट्रेनिंग दें. उसके पर्सनालिटी को खड़ा करें कि आगे जाके वो हमारा चेहरा बन सके. अब इसमें नित्यानंद राय का नाम आता है कई बार. लेकिन अभी भी क्या है वो इतना कंप्लीट चेहरा नहीं है. मुख्यमंत्री बनने लायक. हालांकि अच्छे व्यक्ति हैं. करीब हैं. काम आते हैं. सीरियस हैं. मैच्योर हैं. वाराणसी के झगड़े भी सुलझाते हैं. अभी चिराग के झगड़े में भी गए थे. उसकी मां के घर सब कुछ है. यह तो भाजपा को एक चेहरे की तलाश है जिसको ग्रूम करें. अगले 25 वर्षों के लिए भाजपा इसको तैयार करें और लॉन्ग रन में खेलते अपना एक आदमी बिहार में खड़ा करें. तो लेट्स सी 

    सवाल: सर किसी भी गठबंधन में सबसे बड़ा पेंच होता है सीट शेयरिंग फार्मूले को लेकर शांत तरीके से पहुंच जाना. अब आपको लगता है कि अगर तेजस्वी और राहुल गांधी के बीच में सीट शेयरिंग फार्मूले पर वितरण फार्मूले पर कोई कंसेंसिस नहीं बना या सहमति नहीं बनी तो एक बार फिर से हरियाणा या दिल्ली जैसी पुनरावृति बिहार में भी देखने को मिलेगी. 

    जवाब: ऑफकोर्स अगर टिकट वितरण पर समझौता नहीं हुआ और ये ढीगा मस्ती चलती रही कि कल तो लास्ट डे है नॉमिनेशन का और अभी तक जो टिकट वितरण नहीं है. राहुल गांधी कहां है पता नहीं. वो इंतजार कर रहे हैं पटना में बैठकर. केसी वेणुगोपाल कुछ और कह रहे हैं. वो एक पिटते पिटते बचे कल पटना एयरपोर्ट पे कृष्ण वन के जो इंचार्ज हैं वहां के वो कुछ अलग दुनिया में हैं. तो कांग्रेस का तो है सब लोग निराश हैं. वहां जो बैठे हुए हैं अशोक गहलोत को समझ नहीं आ रहा कि कहां आ गए. जितने लोग और हैं इन चार उनको समझ नहीं आ रहा कि यहां कहां आ गए बघेल को समझ में नहीं आ रहा जो है यह तो अनिश्चित और जो यह हालात हैं जैसे वो सब हालात हैं वहां पे और ये तय है बात कि अगले 24 घंटों में अगर बस एक ही आशा की किरण है इसमें कि कांग्रेस और आरजेडी ने अभी तक कोई एक भी कैंडिडेट डिक्लेअर नहीं किया बस इतनी सी गुंजाइश है खाली इसमें पतला सा धागा जिसे कहते हैं वो गुंजाइश है वो 24 घंटे हो रहे हैं हार्डली उसमें सहमति नहीं बनी ठीक है तो दोनों दलों की राजनीतिक मृत्यु वहां वहां पे ये निश्चित है और निश्चित तौर पे देखो दिल्ली और हरियाणा तो वैसे ही रिपीट होने हैं. ये इकट्ठे हो जाएंगे तो भी रिपीट होने हैं. लेकिन एक मुहावरा अच्छा लगता है कहने में कि दिल्ली हरियाणा रिपीट होंगे. तो होंगे तो बहुत इस वजह से कहना चाहिए ना कि सांस रोक के प्रतीक्षा करनी चाहिए अगले 24 घंटों की कि क्या होता है. 

    सवाल: सर क्या तेजस्वी यादव का जो इमेज क्राइसिस है उसकी वजह से महागठबंधन में उन्हें डिक्लेयर नहीं किया जा रहा है सीएम फेस के तौर पर? सर क्या एक वजह आपको लगता है? 

    जवाब: ये मन का भाव है कांग्रेस में कुछ लोगों का. हम कांग्रेस में क्या दो तरह के लोग हैं? अजय माखन, राहुल गांधी इस तरह के खांटी जिसे कहते हैं आदर्श, नैतिक मूल्य, इंटीग्रिटी, बड़ी-बड़ी बातें ये सब हैं. दूसरे लोग हैं ग्रास रूट. अशोक गहलोत हैं जिनमें मान लीजिए आप जो है ग्रास रूट जिसे कहते हैं. तो ग्रास रूट लोग क्या है? वो बेचारे सुबह दबे रहते हैं उनके नेतृत्व के सामने कि क्या करें, क्या नहीं करें? दैट वे जो है तो दिस इज टू बी सीन कि क्या करते हैं लोग ये इसी पे है इसी पे डिपेंड है तो अब क्या है यह लास्ट मिनट टू बी सीन जैसे मैंने आपसे कहा ना टिकट वितरण होना पहले तो टिकट वितरण से पता लग जाएगा कि तेजस्वी को एज ए सीएम फेस डिक्लेअर कर रहे हैं या नहीं हम कांग्रेस लीडरशिप को ये पढ़ाया गया है या समझाया गया है कि तेजस्वी को डिक्लेअर करना इल बी अ मेजर पॉलिटिकल रिस्क एंड ए लायबिलिटी हम वो जो चार्जशीट लग गई है दिल्ली के कोर्ट के अंदर जो एक तो वो है जी दूसरा उनका अगर ऐसा करते हैं तो फाइट विल बी नीतीश वर्सेस तेजस्वी मींस एक ऑनेस्ट और एक कथित तौर पे भ्रष्ट व्यक्ति ठीक है उनके बीच में तो पार्टी को नुकसान होगा अब तो काल्पनिक बातें हैं बिहार की राजनीति में कोई फर्क नहीं पड़ता इन लोगों का चार्जशीट है कि नहीं आप पे क्या है कि नहीं उनको आदत पड़ गई है चार्जशीट देखने की 20 साल से चार्जशीट देख रहे हैं वो लालू यादव की फिर सत्ता में ले आते हैं कभी-कभी उसको देखते हैं आप 20 सालों में कहीं ना कहीं तो बिहार की जनता का खास तरह का है वहां तो अब ये इसी उलझन के अंदर हैं कि तेजस्वी को डिक्लेअर करें नहीं करें नहीं करें जो है ये और अगर नहीं करेंगे तो फिनिश कोई बात ही नहीं लड़ाई से बाहर हैं आप एक तरह से जो है दैट विल जो है और वो ऐसा मानेंगे नहीं उनको डिक्लेअर किए बिना जो है तो सीरियस मेरा मतलब है कि कांग्रेस और आरजेडी तो वैसे भी नंबर टू हैं अभी आज के कैलकुलेशन में एनडीए 160 का आंकड़ा रखा है दैट वे और इनको वही 60 65 सीटें आ रही हैं तो 60 65 और सात और मान लो दैट वे जो है ऐसे करके जो है और उनको और जेडी को जोड़ेंगे तो उनके फिर 130 के आसपास जा रही हैं सीटें. दैट विल जो है तो वैसे कंपैरिजन नहीं है. लेकिन फिर भी आदमी राजनीति में लड़ाई लड़ता है तो आशा किरण के साथ जीता है वो. तो आशा किरण यही है कांग्रेस आरजेडी की कि वो इनमें समझौता हो पहले तो और उसको घोषित मुख्यमंत्री घोषित के नाम पे इनकी सहमति बने. अब 50-50 है. देखो अगले 24 घंटे में लोग क्या करते हैं. 

    सवाल: सर बिहार चुनाव मतलब जातीय समीकरण. हम तो पहला सवाल यह है कि क्या इस बार का चुनाव भी कास्ट ओरिएंटेड होगा या जो बीजेपी कोशिश कर रही है विकास पे डेवलपमेंट पे जंगल राज पे हो जाए. दूसरी बात यह है कि जो कभी ना हारने वाले नीतीश कुमार 20 साल चीफ मिनिस्टर रहे कास्ट समीकरण की वजह से. तो वो कास्ट कार्ड क्या था उनका? 

    जवाब: देखो दो बातें हैं. बिहार की राजनीति कास्ट ओरिएंटेड है. इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए. संभव है कि इस बार थोड़ी सी कम हो. 5% कम हो. लेकिन उसका जो बेसिक मेजॉरिटी पार्ट है वो कास्ट ओरिएंटेड है. सेकंड क्वेश्चन यह है कि उसका फार्मूला क्या है नीतीश कुमार का? फार्मूला यह है जातियों को बांटो और राज करो. डिवाइड एंड रूल. अब देखिए क्या किया उन्होंने? अब उसमें उन्होंने ये पहला काम ये किया उसके अंदर जो है कि दलितों को दलित और महादलित में बांट दिया. पासवान को दलित में रखा. बाकी सब को महादलित में डाल दिया. फिर एक और लाए पिछड़े और अति पिछड़े. अति पिछड़ों में 10 जातियां वहां खड़ी कर दी जाकर के. तो कुल मिला के क्या हुआ? जाती गणना हुई तो उसी हिसाब से नीतीश कुमार ने जाती गणना करवा दी बिहार में जो है और उसने कहा 27% लोग तो आपके दलित हैं. 36% लोग आपके जो हैं वो हैं दूसरे अति पिछड़े दैट जो है तो परमानेंट सॉल्यूशन उनके पास में है. तो नीतीश कुमार का यही था सक्सेस फार्मूला जो चला और अब आगे देखो अब क्योंकि वक्त आ गया सब लोगों के जाने आने का. नीतीश कुमार का भी विदाई का वक्त है. तो मुझे ऐसा लगता है कि अगला चुनाव बिहार का लड़ा जाएगा. पोस्ट मंडल चुनाव जो होगा वह एक अलग तरह का होगा. हो सकता है तब तक कास्ट का इंपैक्ट उतना नहीं रहे. लेकिन आज का सत्य यही है. बिहार इज़ ए कास्ट ओरिएंटेड पॉलिटिक्स. 

    सवाल: सर बीच चुनाव लैंडफॉर जॉब घोटाले मामले में कोर्ट से लालू फैमिली को लगता है झटका. सवाल यह आता है कि सीबीआई चार्जशीट के आधार पर उनको प्रथम दृष्ट आरोपी माना जा रहा है. बिहार के चुनाव में इसका असर क्या होगा? 

    जवाब: देखो झटका तो है ही. बाकी मैंने कहा सर बिहार के लोग आदि हो गए हैं लालू यादव की चार्जशीट को देख के सुनकर के. दैट इज़ है. बट स्टिल झटका तो है ही. बॉर्डर पर बैठे हुए लोग तो प्रभावित होते हैं इससे. एक प्रचार होता है और कोर्ट ने कितना स्ट्रांग कमेंट किया है. उसने कहा लालू इस द फाउंटेन हेड ऑफ दिस स्कैंडल. उनके सब जानकारी में था. दैट वेज है. अक्टूबर के अंत में सुनवाई शुरू हो जाएगी. और सबसे बड़ी चिंता की बात यह है ना कि सुनवाई शुरू हुई और किसी स्टेज पर अगर अरेस्ट करना पड़ा इनको जिसमें तेजस्वी भी शामिल है उसके अंदर. आरोपी हैं उसमें जो है तो फिर 30 दिन का फार्मूला लागू हो जाएगा. जो अमित शाह ने कानून पास करवाया पिछले दिनों हिरासत में 30 दिन से ज्यादा हैं. तो वी हैव टू गेट आउट. आप छोड़िए उसको रिजाइन करिए. एक पल के लिए वह तो यह मान के चलते हैं ना कि मैं मुख्यमंत्री बन रहा हूं. जब तक व्यक्ति हारता नहीं आशा किरण होती है मन में. नथिंग रोंग इन इट. ठीक है? तो उनके मन में एक नई चिंता ये भी है कि अगर मैं जीत गया और 30 दिन में कहीं मुझे इधर दिया इधर-उधर कहीं जो है ये तो मेरा क्या होगा? तो अभी पॉइंट ऑफ कंसर्न है लेकिन आपका जो स्पेसिफिक सवाल है इस फैसले का आरजीडी की क्रेडिबिलिटी पर चुनाव के समय टाइमिंग का बात है ना टाइमिंग गलत है दैट वे जो है तो इसका निश्चित तौर पे नुकसान तो होगा कितना होगा दिस इज टू बी सीन 

    सवाल: सर इस वक्त जो लालू परिवार में लड़ाई झगड़े चल रहे हैं उनका आप चुनाव के परिणामों पर क्या इंपैक्ट देखते हैं?

    जवाब: कोई खास नहीं बिहार के लोग आदि हो गए हैं लालू परिवार के घटनाओं के बारे में झगड़ों के बारे में तूतड़ा के बारे में गाली गलौल उसके बारे में धक्कामुक्की थोड़ी बहुत उसके बारे में और बड़ा भाई कहता है तेज प्रताप जो है बड़ा भाई वो कहता है छोटे भाई को भाई राम का धर्म निभाना चाहिए राम के प्रति एक मान का समभाव होना चाहिए लक्ष्मण को अपना धर्म निभाना चाहिए सब चल रहा है लेकिन वो क्या है ना आप देखो कि अब नॉमिनेशन था कल तेजस्वी का परिवार वहीं था कहां जाओगे छोड़ के परिवार को लालू यादव थे राबड़ी देवी थी मीसा थी वहां पे एक संजय यादव एक्स्ट्रा कॉन्स्टिट्यूशन अथॉरिटी सेंटर वो भी थे वहां पे एक वो वो आचार्य विदेश में रहती जिसने किडनी दी थी लालू के लिए वो शायद नहीं थी वो भी चाहती हैं कि दो चार टिकट मेरे को दे दो लेकिन उस परिवार में जैसे कांग्रेस में राहुल गांधी का रूल है उस परिवार में तेजस्वी का डंडा चलता है उसका रूल है जो है ये तो मानी नहीं उसने किसी की तो ठीक है इट इज़ अ डिसपॉइंटंटेड लॉट ऑफ अ फैमिली बट इज़ नॉट मच गोइंग टू अफेक्ट द आउटकम ऑफ़ इलेक्शंस सर देन एडिंग टू योर आंसर तो क्या लालू और तेजस्वी के बीच आरजेडी में टिकट वितरण को लेकर के मतभेद चल रहा है. मतभेद क्या है? पिता पुत्र हैं और जब पुत्र बड़ा होता है तो आमतौर पे फादर को जो है वह ओवरूल कर देता है और फादर भी कई दफा क्या ढलती उम्र के साथ में उस ओवरलूल होने को स्वीकार कर लेता है. तो ये स्थिति लालू यादव और तेजस्वी की है. तो ऐसे दिल्ली आए हुए थे तो पीछे से चारप टिकट उन्होंने लालू यादव ने अपने विवेक से दे दिए. पुराने अपने वफादार लोगों को इनको पता लगा तो लालू के सामने उनसे सहमति लेके और वापस बुलवाया उनको घर पे टिकट वापस लिए उनके तो मतभेद इस तरह के लिए कोई मेजर मतभेद नहीं है अभी मतलब ऐसा कोई टकराव जैसी कोई बड़ी बात हो ऐसा नहीं है लालू यादव भी मेंटली सरेंडर कर चुके हैं कि ठीक है एज हैज़ कम नाउ इस लड़के को करना है जो कुछ करना है और बाय एनलार्ज उनको लगता है कि मेरे परिवार में यही एक थोड़ा ठीक-ठाक आदमी है जो मेरी लीगसी को कैरी कर सकता है तो ठीक है तो कोई खास झगड़ा नहीं है घटना हुई जरूर हुई है और टिकट वापस मंगवा ली उन्होंने. आई डोंट थिंक कि लालू इस अगेन गोइंग टू रिपीट द सेम एक्सरसाइज. 


    सवाल: सर लालू एंड फैमिली में एक नाम का जिक्र बड़ा होता है संजय यादव. क्या अभी भी तेजस्वी कैंप में उनका रुतबा है बरकरार? 

    जवाब: बिल्कुल है. एक्स्ट्रा कॉन्स्टिट्यूशनल लोग जो जीवन में एक बार प्रवेश कर जाते हैं. बहुत मुश्किल से बाहर जाते हैं. तो इज़ नॉट एन एक्सेप्शन जो है तो प्रभाव है उनका. वो परिवार वाले रोते रहते हैं दूसरे सब आसपास के लोग कि सारा इन्होंने कब्जा कर लिया है और सारा प्लान कर लिया है और वो उनको समझाते रहते हैं उनको कि ये प्रशांत किशोर से दूर रहो इससे दूर रहो उससे दूर रहो हर आदमी अपना गणित होता है ना ये तो ये फैक्ट है अब कोई तो गुण होगा उसके अंदर कि तेजस्वी यादव गले लगाए हुए हैं इतने टाइम से बहरहाल आपका सवाल सही है कि ही कंटिन्यूस टू बी अ पावर सेंटर इन तेजस्वी कैंप. सर मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर तेजस्वी यादव के सामने आप सबसे बड़ी चुनौती क्या देखते हैं? चुनौती यही है यह सिद्ध करना जनता को आई एम डिफरेंट देन माय फादर. मेरे टाइम में कोई जंग इलाज नहीं होगा. मेरे टाइम में कोई स्कैंडल्स नहीं होगा. कोई करप्शन नहीं होगा. आई विल बी फेयर एंड ऑनेस्ट चीफ मिनिस्टर एक होता है. तो चुनौती ये है जनता को कैसे भरोसा दिलाएं कि मैं लालू प्रसाद का वो बेटा नहीं हूं. उनके संस्कारों पे चलने वाला. मेरे संस्कार डिफरेंट हैं. मैं उनका पुत्र हूं पर मेरी लिगसी डिफरेंट है. मेरा जो वैल्यू सिस्टम है वो डिफरेंट है. उनको यकीन दिलाना पड़ेगा जनता को. लेकिन वही बात है बिहार में कास्ट ओरिएंटेड है इतनी मेरिट की बातें चलती नहीं है दैट वे जो है तो चुनौती तो है लेकिन जनता के दिमाग में ये कोई बहुत बहुत बड़ा कोई फैक्टर ऐसा हो कि जिन्होंने जंगल राज मान के उसको वोट नहीं देना उनको तो नहीं देना है लालू को तेजस्वी को जिन्होंने कास्ट बेसिस पे वोट डालना है वो तो डालेंगे अपना वोट जो है बट बाय एंड लार्ज जो सिचुएशन है वो यही है सर तेजस्वी यादव ने युवाओं को लुभाने के लिए हर परिवार में एक सरकारी नौकरी देने का वादा तो कर दिया लेकिन क्या इस वादे को पूरा कर पाएंगे तेजस्वी यह तो आत्मघाती रास्ता है सुसाइडल मूव जिसे कहना चाहिए लोकप्रियता की दौड़ में दौड़ते हुए चुनाव जीतने की उसमें दौड़ में दौड़ते व्यक्ति ऐसी घोषणाएं करता है इस बार थोड़ा गलती ज्यादा बड़ी हो गई है अब बिहार में मैं पढ़ रहा था 1.78 करोड़ परिवार ठीक है आज कुल 20 लाख सरकारी कर्मचारी हैं आपको सरकार बनाने पे 1.78 करोड़ परिवार हर परिवार परिवार के एक आदमी को नौकरी देनी है. ठीक है? 7 लाख करोड़ कहां से लाएंगे? हो ही नहीं सकता. 20 लाख कहां और वन पॉइंट कितने कहां? बताया मैंने आपको. इतना जो है तो इंप्रैक्टिकल है, लुभावना है. लोग फिर भी बातों में आते हैं. तो बातों में आएंगे वहां. यूथ है और कुछ है इस तरह से कि बातों में तो आएंगे वो. चुनावी नारे के नाते जो है लेकिन ये अगर एक पल के लिए मौका मिला उनको करने का तो फेटल है ये. 

    सवाल: सर इन चुनावों में एम फैक्टर यानी महिला फैक्टर को आप किस तरह से देखते हैं? आपको लगता है क्या वाकई गेम चेंजर साबित होंगे क्या? 

    जवाब: ऑफकोर्स शुरू किया था नीतीश कुमार ने 15 साल पहले उसको परिणाम दिया नरेंद्र मोदी ने. 75 लाख महिलाओं को एक साथ अपने सामने दिलवाया और ये कहा कि हम दो भाई हैं नरेंद्र और नितीश. ठीक है? और कुल 1.21 करोड़ 1 करोड़ 21 लाख महिलाओं इसकी बेनिफिशरी हैं जिनको आइडेंटिफाई किया जाए पोटेंशियल एंटरप्रेन्यर्स के रूप में कि 10,000 से 2 लाख तक की सहायता देंगे. अब ये तो मतलब उस तरह की बात है ना गेम चेंजर है. बिल्कुल इसमें कोई डाउट नहीं है. मेरा ऐसा लगता है 70 75% महिलाओं का वोट है ना एट ए वन साइडेड इसी रूलिंग फ्रंट को जाएगा. मींस बीजेपी और कहीं टू सम एक्सटेंड जेडीयू. यू मान लीजिए कि नारियों का जो महत्व है या नारियों की जो जो उसकी बेनिफिशरी है मतलब इस तरह पॉलिटिकल बेनिफिशरीज़ जो हैं वह बीजेपी भी है और टू सम एक्सटेंट नीतीश कुमार भी है. तो देखें नारियों की लोकप्रियता का जो रिटन गिफ्ट है वो इन दोनों में कैसे बढ़ता है? इट इज टू बी सीन. हम तो सर आपके जवाब आधारित क्या यह कह सकते हैं कि जो नीतीश के पास महिला वोटर्स थे वो मोदी की तरफ कंप्लीटली शिफ्ट हो चुके हैं. सर केंद्र और केंद्र की योजनाओं के पर्सेक्टिव से देखो मोदी इज़ एमर्ज एज अ नेशनल हीरो एट ऑल इंडिया लेवल फॉर वुमेन दैट वे एक राज्य की बात नहीं है ना और दूसरा आप क्या समझते हैं कि ₹1.21 करोड़ महिलाओं को जो है और बाकी दूसरा जो इतना वेतन वगैरह है क्या नीतीश कुमार कर सकते हैं स्टेट टैक्स चक्र से बिल्कुल नहीं कर सकते नरेंद्र मोदी के एक्टिव सपोर्ट के बिना एक्टिव फाइनेंसियल सपोर्ट के बिना हो ही नहीं सकता है ठीक तो नरेंद्र मोदी की गरिमा है कि उन्होंने घोषणा खुद से नहीं की नीतीश कुमार को साथ में खड़ा रखा 75 लाख महिलाओं को जो चेक दिया उस दिन जो है और ये कहा उन्होंने और वैसे ऑल इंडिया में अगर आप देखेंगे ना तो मैंने कहा ना कि नीतीश कुमार है ना आई डिक्लाइनिंग दैट वे जो है नरेंद्र मोदी स्टिल एमर्जिंग है इवन एट 75 एमर्जिंग एमर्जिंग एमर्जिंग अभी डाउनफॉल नहीं है किसी तरह का भी ना फिजिकल ना उस तरह का पॉपुलरिटी का आपका जो है तो जो महिला कार्ड का जो क्रेडिट है कंट्री में जब बात होती है अदर दैन बिहार बाहर बात करते हैं तो नितीश के बजाय ऐसा लगता है कि यह जो कार्ड है वुमेन कार्ड यह मोदी को शिफ्ट हो गया है ऐसा लगता है. 

    सवाल: सर क्या इस चुनाव में ये जो एमवाई समीकरण होता है इसका अर्थ और परिभाषा बदल चुकी है? 

    जवाब: पहले कहते थे मुस्लिम प्लस यादव एमवाई तो मुस्लिम प्लस यादव से अभी हो गया महिला प्लस नौजवान यंग यूथ हो गया इस तरह का चल गया नारा ये सही है. 

    सवाल: सर सत्ता में बीजेपी आए या फिर महागठबंधन? दोनों ही सिचुएशन की अगर हम बात करते हैं जो लोक लुभाववनी घोषणाएं हैं उन सबके बीच अगर बिहार की इकॉनमी की बात की जाए तो उसे किस स्थिति में आप देखते हैं? 

    जवाब: बिहार की इकॉनमी आंसू बहा रही है. क्या करूं? दैट इज जो है कुल बजट ही सवा लाख करोड़ का है. टोटल बजट ही ठीक है. अब 33% तो ऑलरेडी सैलरी पेंशन में जा रहा है. अब महिला स्कीम आ गई तो 33% मोर जो है वो इसमें चला जाएगा. 5000 करोड़ तो उसी में जा रहे हैं. बिजली वाले जो 124 की बात हुई है. 124 यूनिट हम फ्री देंगे. फिर 3000 फिर 9000 करोड़ उसमें जा रहे हैं. पेंशन वगैरह में जा रहे हैं. दैट विल है. तो इकॉनमी तो ऐसी है. अब आजकल इकॉनमी तो क्या करोगे? पॉलिटिकल इलेक्शंस में इलेक्शन जीतना होता है. बस एक अच्छी बात यह है किक क्योंकि उसकी गारंटी नरेंद्र मोदी के पास है और भारत सरकार मजबूत है. फाइनशियली राज्यों को सहायता कर सकती है और भाजपा सरकारें जो वादा कर रही है बिहार में जो वादा हो रहा है उसको पूरा करेंगे तो ठीक है काम चलेगा बाकी इकॉनमी इस गोइंग टू बी अ वेरी बैड शेयर ऑब्वियसली 

    सवाल: सर बीते 20 सालों में हमने ये देखा है कि चुनाव से पहले किसी भी तरीके के किए गए लोक लुभावमन वायदों या घोषणाओं का नीतीश कुमार ने हमेशा विरोध किया है. तो इस बार ऐसा क्या हो गया कि नीतीश कुमार ने यू टर्न ले लिया? 

    जवाब: देखो समय हालात सत्ता में रहने की लोकप्रियता और दिल्ली का रिमोट कंट्रोल दोनों बातें हैं ना साथ में दिल्ली वाले जानते हैं उनकी प्लानिंग बेटर है नरेंद्र मोदी अमित शाह की स्ट्रेटजी बेटर है उनका आकलन बेटर है नीतीश कुमार से उन्होंने असेस किया है कि बड़ी-बड़ी योजनाओं के अलावा चुनाव जितनातना संभव नहीं होगा और फिर एक बात और है ना कि है तो सब वेलफेयर स्कीम्स कोई गैंबल तो नहीं कर रहे हैं ना पैसा कहीं जुए में इधर-उधर नहीं डाल रहे हैं दैट है और नीतीश कुमार ये बात सही है वो मन को समझाया होगा बहुत सारे फैसले मन को समझाने से होते हैं. बहुत सारे फैसले दबाव में होते हैं. तो थोड़ा दबाव भी हुआ होगा. पहले तो कैबिनेट में यही कहा करते थे कि मैं किसी हालत में फ्री बिजली नहीं दूंगा. किसी हालत में ये फ्री सुविधा नहीं दूंगा. सब देनी पड़ी. तो इसमें क्या है? 75% तो इससे मुझे नरेंद्र मोदी अमित शाह की जो स्ट्रेटजी है उनका विज़न है वो दिखता है. 25% मन को समझा लिया नीतीश कुमार ने. तो एज ए पैकेज जो है ये सब योजनाएं लागू हो रही है. केंद्रीय विद्यालय ऑफ़ कोर्स यह भी एक मुद्दा ऐसा था. नीतीश कुमार सब खिलाफ के कुशवाहा थे राज्य मंत्री शिक्षा के यहां पे तो उन्होंने कहा था कि सेंट्रल स्कूल चाहिए मुझे यहां पे उन्होंने इंकार कर दिया नीतीश कुमार ने कहा मेरे पास जमीन नहीं है वो धरने पे बैठ गए नहीं हुआ अब चुनाव का वक्त आया तो उन्होंने वाया अमित शाह वाया प्रधानमंत्री इस काम को करवाया तो अब 19 जो है सेंट्रल स्कूल सेंशन हो गए हैं दैट वे जो है तो पार्ट ऑफ़ लाइफ है टाइम इज़ अ हीलर उनको समझाना पड़ता है नीतीश कुमार इस नो एक्सेप्शन उन्होंने देख लिया कि पहले मैं इनका विरोध करता था आज समय की आवश्यकता है वो जरूरत है हमारी तो रिक्वायरमेंट ऑफ द डीए मान के उन्होंने इसको मंजूर कर दिया. 

    सवाल: सर क्या नीतीश कुमार की लोक लुभाववन घोषणाएं उनकी सरकार के एंटीस्टब्लिशमेंट मोड को दुरुस्त कर पाई? 

    जवाब: देखो एंटीस्टब्लिशमेंट मैंने कहा ना कि बिहार में कंपैरेटिवली थोड़ा सा कम था क्योंकि वो काम करें ना अन्याय करें. नीतीश कुमार के प्रति आज भी लोगों के मन में सम्मान का भाव है, आदर का भाव है. वो मुख्यमंत्री रहे ना रहे उस आदर के भाव में कमी नहीं है. वोट चाहे उनको कम दें हो सकता है. लेकिन आदर वो वहीं का वही है. दैट वे जो है तो ज्यादा नहीं था और फिर स्वाभाविक तौर पे है. एक आदमी थोड़ा सा नाराज चल रहा है. थोड़ा सा डेफिसिट में उसको आप इतनी सारी सुविधाएं दे देंगे. इतने सारे लोक लुभावन ये फैसिलिटीज दे देंगे. तो स्वाभाविक तौर पे होता है. तो यह कहा जा सकता है कि इट हैज़ बीन अ मेजर सोर्स टू कम बैक एंटी एस्टैब्लिशमेंट फैक्टर इन बिहार. 

    सवाल: सर अगर किसी कारणवश एनडीए को बहुमत नहीं मिलता है तो क्या बिहार में भी महाराष्ट्र मॉडल रिपीट होगा? चांसेस कम है. नीतीश कुमार कांट बी शिंदे. 
    एक तो उम्र नहीं है और थोड़ा मेंटल मेकअप ऐसा है और फिर उतनी कोई जरूरत नहीं है. अजीत कुमार नहीं है वहां कोई. उसके लिए जरूरी है ना दो लोगों का होना. अजीत फैक्टर का होना और शिंद फैक्टर का होना और एक फंड बीच में होना तीसरा फैक्टर तो वैसे हालात यहां पर मतलब दैट वे नहीं है दैट इज है और आदमी क्यों सब करता है ये सब करता है सरकार बनाने के लिए वहां तो पहले ही सरकार बन रही है तो कोई संभावना नहीं है कि कोई सरकार नहीं बने और उनको कोई महाराष्ट्र मॉडल जैसा कोई कोई शिंद तैयार करना पड़े ऐसा लगता नहीं है मुझे चांसेस कम है बाकी तो पता नहीं चलता है कल को नीतीश कुमार के 50 अगर जीतते हैं मान लो 25 आदमी अलग अलग हो जाए कोई शिंद नया खड़ा हो जाए तो बात अलग है. बाकी वो उस सूरत में है जब वो आरजेडी की तरफ जा रहा हो एक आदमी 50 आदमी लेके रास्ते में मालूम पड़ा चेक पोस्ट पे स्टॉप वापस आओ 25 आदमी वापस आ जाएंगे तो एक शिंद खड़ा हो सकता है कोई रूल डाउट नहीं है उसमें लेकिन अभी अपेरेंटली ऐसा लगता नहीं है 

    सवाल: सर आखिर इस बार किन-किन मुद्दों पर बीजेपी जेडीयू आरजेडी कांग्रेस चुनाव लड़ रही है और क्या आपको इन मुद्दों में कोई एक समानता भी दिखती है समानता तो एक है कि लोक भवन है दोनों तरफ के मुद्दे बेसिकली ठीक है ना? और फेस वैल्यू पे अगर देखें एक करोड़ लोगों को रोजगार देंगे 5 साल के अंदर. फिर यह महिला फैक्टर है. फिर महिलाओं का 35% वो है आपका रिजर्वेशन है. फिर 124 यूनिट बिजली महिलाओं से रिलेटेड ज्यादा वो है आपके पास में जो है फिर पेंशन बढ़ा देंगे 400 से 1100 कर देंगे. समथिंग एज छोटे-मोटे पूरा पैकेज जैसे बना हुआ है. वो तो लेकिन एक महिला ही और ये बिजली है. यही गेम चेंजर हैं. कांग्रेस में बेसिकली कास्ट एंड रिजर्वेशन और रिजर्वेशन में भी क्या है? 50% की सीमा हम तोड़ देंगे. यह कांग्रेस का कहना है रिजर्वेशन की. तो मोटे-मोटे तौर पे इस तरह की स्थिति जी. 

    सवाल: सर लेकिन चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पटना को जो मेट्रो की सौगात दी उसको आप कैसे देखते हैं? 

    जवाब: वो बहुत अच्छा कदम है. पिछली बार मैं पटना गया तो मेट्रो का काम चल रहा था. तो मैंने भी नहीं सोचा था इतनी जल्दी आ जाएगी. तो यह तो मानना पड़ेगा इसमें कि एग्जीक्यूशन जो है ना वो नरेंद्र मोदी का गजब है और रेलवे में ऐसा आदमी लाकर बैठा दिया उन्होंने अश्वि जो खुद भी अपने आप में एग्जीक्यूशन मास्टर है जिसे कहना चाहिए क्रेडिट मिलना चाहिए रेल मंत्री को भी इसमें जो है इतना बढ़िया हो गया दिन में 202 फेरे करती है 1.5 किलोमीटर 2ाई किलोमीटर का रूट हैवहां पे दैट वे जो है जारी आरी आकर्षण केंद्र है बिहार के लोग जो गांवगांव से मोतिहगहरी से आते हैं कहीं दूर से आते हैं वो सब आके देखते हैं उसको कि मेट्रो कैसी होती है और मेट्रो सुंदर और चुनाव के समय बनाई गई तो और ज्यादा सुंदर है वंदे भारत की तरह दैट वे जो है तो एक अच्छा पॉपुलर मूव है और इससे नरेंद्र मोदी का मैसेज भी जाता है कि हम सत्ता में आएंगे तो हम विकास करेंगे हमारा विकास का एजेंडा है वहां पे जो है अच्छा अच्छा इंपैक्ट है इसका मैटर का 

    सवाल: सर कास्ट समीकरण और मुफ्त की स्कीम्स के बीच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सेकंड जनरेशन रिफॉर्म जीएसटी रिफॉर्म लागू किया है सर सर सवाल ये है कि इस जीएसटी रिफॉर्म क्योंकि घर-घर में इंपैक्ट कर रहा है तो तो क्या चुनाव में इसका इंपैक्ट दिखेगा? 

    जवाब: अब्सोलुटली 100% दिखेगा. बिहार कास्ट ओरिएंटेड है. सब कुछ है इवन देन मेरिट काउंट्स. और अगर पैकेज है मान लो चार लोगों का या महिलाओं का ही पैकेज है मान लो और मैं कहता हूं 70% महिलाएं जा रही हैं एक मोस्ट वोट देने इनको बीजेपी और इनको जो है तो आप मान लीजिए 5% इसके भी आप ऐड कर लीजिए जीएसटी के अंदर उसके अंदर 2.5 लाख करोड़ का है रिलीफ जिसे कहते हैं. और जहां 12% टैक्स था वो 5% टैक्स आ गया है. और कहां आया है? जिन चीजों पे आया है आपके घर में अगर 10 चीजें आती है तो 99% चीजों पे वो रिलीफ लागू होता है आज जो है तो हर आदमी प्रभावित हुआ चाहे ₹100 ही सही लेकिन बिहार के आदमी के लिए और कोई भी आदमी पैसा सबको अच्छा लगता है दैट जो है अब टिकट जा रहे हैं यहां से जयपुर जा रहे हैं मान लो ₹300 लगते हैं ₹200 लग रहे हैं तो अच्छा लगेगा ₹100 मुझे भी अच्छा लगेगा कि हां यार अच्छा है फील गुड फैक्टर जिसे कहते हैं अच्छा इंपैक्ट 

    सवाल: सर भारतीय जनता पार्टी के लिए तो उसका कार्यकर्ता जो जमीन पर है हर जगह वो बहुत ताकत है उनकी और 15 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार वो नारा दिया कि मेरा बूथ बहुत मजबूत करके एक नारा दिया है. मेरा बूथ सबसे मजबूत. सर इसका कितना इंपैक्ट होगा?

    जवाब: ये तो नरेंद्र मोदी में जादू है. आप देखते हैं कुछ भी बोलते हैं कुछ भी करते हैं. पॉपुलर हो जाता है. नारा बन जाता है वो जो है दैट अट्रैक्ट करते हैं. अब नमो ऐप पे कल उन्होंने जो है एक संवाद कर लिया इस तरह का डायलॉग है. और ये कहा बिल्कुल जो आप कह रही है कि मेरा बूथ सबसे उनका फोकस आजकल वही है कि बूथ को मजबूत करो. अमित शाह का फोकस भी यही था. नड्डा का फोकस भी यही था कि बूथ को मजबूत करो. यह कहा उन्होंने और फिर साथ में और भी आगे  बढ़ के उन्होंने कहा कि विदिन एनडीए जो कोऑर्डिनेशन के इश्यूज हैं बूथ लेवल पे उसको सॉर्ट आउट करो. बूथ इज अ रूट कॉज ऑफ़ सक्सेस और फेलियर. यह उनका कहना है जो है और फिर उन्होंने कहा कि एकजुट भारत एकजुट इंडिया मतलब वो तो फिर उसी का एक्सटेंशन है. फिर यह भी कहा कि दिवाली दो बार आ गई. इस बार जीएसटी की दिवाली आ गई. दूसरी दिवाली आ गई. एक उसका एक्सटेंडेड पार्ट है. लेकिन एक अच्छा अच्छा नारा था. चुनाव के समय एक एक नया नारा दिया उन्होंने. कार्यकर्ताओं प्रभावित करेगा. कार्यकर्ताओं को बूथ की ओर जाने की प्रेरणा देगा. एंड दैट इज़ सक्सेस स्टोरी. 

    सवाल: सर संयोगवश पीएम मोदी के लगातार सत्ता में रहने के इसी 7 अक्टूबर को सिल्वर जुबली मनाई गई थी. अब ऐसे में आम जनता के बीच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर एक बार फिर से जो हम कह सकते हैं कि एक इमेज बनती है कि वो एक कामयाब प्रधानमंत्री हैं. एक सशक्त प्रधानमंत्री हैं और हम देखें कि इलेक्शन भी है बिहार में तो मतदाताओं पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? 

    जवाब: ऑफकोर्स फेस वैल्यू पर आपका रुतबा बढ़ता है. आपकी क्रेडिबिलिटी बढ़ती है. आपकी ताकत बढ़ती है. अब नरेंद्र मोदी बिहार में कहीं संबोधित करने जा रहे हैं. तो आम आदमी सोचता है कि आखिर 25 साल से आदमी पावर में है. ये 12 साल से प्राइम मिनिस्टर है. वो कितने धड़ल्ले से काम कर रहा है. कितनी मजबूती से काम कर रहा है. कभी पाकिस्तान को ठोकते हैं, कभी किसी को करते हैं. कभी रिलीफ देते हैं जीएसटी में. कभी कुछ करते हैं. कभी नक्सल को ठोकते हैं वहां जाकर के. वो अमित शाह शाह अलग हीरो बनने वाले हैं. देखिए आप ये अब वास्तव में ऐसा लगने लग गया है कि 2026 में नक्सल खत्म हो जाएगा. दैट वे जो है अभी कल परसों मैंने पढ़ा कि 5 करोड़ का फिर किसी के हेड पे उसको लाए हैं जो है पकड़ के और बड़ा जबरदस्त काम हो रहा है. तो ओवरऑल क्या नरेंद्र मोदी सरकार की जो उपलब्धियां हैं ठीक है उसको प्रचारित करने का एक अवसर था कि आज हमारे शासन के 25 वर्ष हो रहे हैं. सरकार के प्रचार तंत्र में तो यही अवसर होते हैं जनता तक पहुंचने के. तो जनता तक इस पार्ट को भी पहुंचाया गया. सक्सेस स्टोरी जो नरेंद्र मोदी की है भाजपा की है जिस चुनाव लड़ रहे हैं आज जो है उसका जो एक्सटेंशन है उसके रूप में इसको बिहार में इसको पहुंचाया गया तो अच्छी बात है हर सरकार करती है 

    सवाल: सर चुनाव से ठीक पहले शेयर मार्केट में और इकोनमी में जो आज बूम देखने को मिला है तो क्या असर इसका कोई असर बिहार चुनाव पर ओवरऑल फील गुड फैक्टर ओवरऑल खुशहाली जिसे आप कहते हैं.

    जवाब: आप शेयर मार्केट देखिए कहां से कहां है इस तरह का जो है गले में पड़ रहा था किसी कंपनी का शेयर था 48% बढ़ LG का था. किसका था? एक ओपनिंग गई वहां पर जो है और प्रोजेक्ट्स की बात आप कर रहे हैं तो Google आ रहा है 15 अरब डॉलर का इन्वेस्टमेंट वह आंध्र प्रदेश में ला रहा है Google इंडिया में सबसे बड़ा डाटा सेंटर अमेरिका के बाद सबसे बड़ा डाटा सेंटर इंडिया में जो है और दूसरी Infosys जो इंडियन कंपनी है वो मैंने पढ़ा 1.2 1.2 अरब प्स की डील जो है उसने ठेका जो है उसने ब्रिटेन में लिया है और एक और वही डील हो रही थी गाड़ियों की जो हुंडी जो है 45000 करोड़ का इन्वेस्टमेंट लेके यहां पे आ रही है. तो नरेंद्र मोदी का भारत तो इसमें है कि जंपिंग है. जंपिंग पैड जिसे कहते हैं वो क्रेडिट किसको जाएगा? उन्हीं को जाएगा. तो ये तो आज मानना पड़ेगा देखो आपको ऑल सेड एंड डन. कांग्रेस वाले भी मानेंगे इस बात को कि डेवलपमेंट की और जो इकॉनमी की प्रोग्रेस की जो स्पीड है इस समय अद्भुत है. भाई यही पैरामीटर होते हैं. जीडीपी हो गया आपका शेयर मार्केट हो गया. यही सब है तो फैक्ट है यह कि इसमें इकॉनमी बूम पे है.

    सवाल: सर बिहार के इस चुनाव में आप पीके की एंट्री को कैसे देखते हैं और पीके की एंट्री से किसको सबसे ज्यादा नुकसान होगा? 

    जवाब: देखो पीके तो क्या है एक मृगमारीचिका है, गुगली है, रहस्य है. हैरानी की बात ये है कि आज बिहार के बारे में जब भी कोई बिहार के बाहर का आदमी बात करता है. पहला सवाल ये होता है पीके का क्या है वहां? मैं सुबह जा रहा था फ्लाइट में तो मुझसे किसी ने कहा कि मेरे बगल में कोई बैठा हुआ था तो उसने कहा कि साहब मैं किताब पढ़ रहा था बिहार की तो उसने कहा कि साहब बिहार में क्या होगा? मैंने कहा अभी नरेंद्र मोदी की सरकार बन रही है. उसका पहला सवाल था पीके क्या होगा? ऐसे बाजार में जब चलते हैं बात करते हैं बिहार की पीके क्या होगा? तो पीके की उत्सुकता इतनी जबरदस्त है कि उत्सुकता अगर वोट में कन्वर्ट हो जाए तो पीके अकेला चीफ मिनिस्टर बन जाए. लेकिन होता नहीं है राजनीति में ऐसा. तो पीके क्या है कि पीके खुद के बारे में उत्सुकता जागरूकता है. संगठन नहीं है उसके पास इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है उसके पास में पैसे भी लिमिटेड हैं एज़ कंपेयर टू बीजेपी एंड अदर पार्टीज दैट इज़ है और एक और उन्होंने बड़ा नेगेटिव कदम उठाया खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं आप बताइए तो उनकी पार्टी तो जीत नहीं रही जो कैंडिडेट उन्होंने खड़े किए हैं 116 डिक्लेअर कर दिए पूरे करेंगे और जो जहांजहां जो जीतेगा ना वो कैंडिडेट अपने बल पे जीतेगा बट क्रेडिट ऑफ़ कोर्स विल गो टू पीके दैट वे जो है लेकिन पीके का दूसरा यह है इसका फायदा उनको कर चुनाव नहीं लड़ने का दैट वे जो कि वो जा रहे हैं वहां पे फील्ड के अंदर जाएंगे इधर जाएंगे उधर जाएंगे दैट वे जो है तो पीके इज ए मिस्ट्री लेकिन यह तय है 31 मुसलमान खड़े कर दिए उन्होंने जो है तो यह बात बिल्कुल तय है कि पीके का नुकसान जो है वो ज्यादा आरजेडी कांग्रेस को होगा कि एक तो मुस्लिम में बेल्ट में करेंगे दूसरा क्या है कि भाजपा विरोधी जो वोट है उनको बांटेगा वो और बीजेपी के खिलाफ लड़ रहा है आप देख रहे हैं दैट वे जो है तो कुल मिला के क्या है पीके जिसे कहना चाहिए मिस्ट्री है लेकिन मुझे ऐसा लगता है कुल कुल मिला के कि ये कोई पांच सात आठ सीटें ही आ जाए तो आ जाए. इस तरह की प्रचार बहुत है चर्चा बहुत है. उसका जो है आकलन हर लोगों का अलग-अलग है. मेरा आकलन नहीं है कि पांच सात आठ पांच सात आठ ऐसा आना चाहिए. बाकी लेट अस सी बाकी ये है कि पीके इज अ सब्जेक्ट ऑफ़ क्यूरोसिटी अक्रॉस द नेशन. सर, लेकिन, एन वक्त पर प्रशांत किशोर ने चुनाव ना लड़ने का फैसला क्यों किया? उसका यह था मेन कारण एक तो कि फील्ड में जाएंगे, सब पे फोकस करेंगे अपना. और जैसे मैंने कहा कि मैं इसको उचित नहीं मानता. उनके समर्थक भी निराश हैं इस बात से कि चुनाव लड़ना चाहिए था यार. चुनाव लड़ते भी हैं, लोग भी जाते-आते हैं. चुनाव जैसे आप बाहर हटते हो तो ऐसा लगता है आधी लड़ाई तो आप हार गए. लोगों का व्यू है अपना-अपना. और दूसरे लोगों का व्यू यह है. मतलब क्या चुनाव लड़ने से ऐसा लगता है एंपावरमेंट है आपका. तो जनता में पीके जो है ना एक एंपावर्ड पी के दिखता है जनता में. वो जो दिखता है और चुनाव नहीं लड़ता तो ऐसा लगता है एडवाइजर के रोल में है और वैसे उनका खुद का परसेप्शन और खुद का कैलकुलेशन यह है कि नहीं मैं कांस्टेंसी फोकस करूंगा प्रचार पे फोकस करूंगा मुझे सत्ता में लौटने की जल्दी नहीं है और ऐसा कुछ हो गया और मैं जीत गया तो ठीक है वापस आ जाऊंगा उसमें क्या इशू है मेरे लिए जो है तो दिस इज 

    सवाल: जो बिहार के वोटर्स हैं उनमें एक आम धारणा अभी भी बनी हुई है कि पीके की पार्टी और पीके खुद वो बीजेपी की बी टीम है आपका आकलन क्या है? 

    जवाब: सुनते हैं ऐसा लेकिन लगता लगता नहीं है. जिस तरह से वो भाषण दे रहे हैं, इंटरव्यूज दे रहे हैं, अपनी बात कह रहे हैं, उनके चेहरे पे जो कन्विक्शन है, तो बी टीम नहीं है. लेकिन अगर सरकार बनाने के लिए बीजेपी को पांच आदमी की जरूरत पड़ी और पांच पीके के पास है तो पीके ना थोड़ी कहेंगे. प्रेम से भी नहीं कहेंगे और वैसे भी नहीं कहेंगे. वैसे में चांस की बात है कि पीके के कैंप में कह रहा था देखो हमारे यहां इनकम टैक्स सरकार ने भेज दिया. नोटिस आ गया हमारे यहां. हमारी वाइफ के एनजीओ पे रेड पड़ गई है. और पार्ट ऑफ़ लाइफ है. पॉलिटिक्स में होता है ना. एवरीथिंग इज़ फेयर एंड ऑल दिस. इसे क्यों इतना बुरा मान रहे हो? और खुद वो कह रहे हैं कि मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं नरेंद्र मोदी अमित शाह से तो अच्छे संबंध हैं. बढ़िया है. सात आठ सीटें जीत के आ जाओ. जरूरत तो बीजेपी कोपड़ेगी नहीं. अगर पड़ेगी और नीतीश कुमार ने कोई दाएं बाएं कुछ किया और कोई शिंदे-वंदे खड़ा हुआ. वहां कुछ ऐसा करना पड़ा और सात की वैल्यू हुई. ठीक है ना? तो पीके को बुला लेंगे. पीके नाम थोड़ी कहेगा. 

    सवाल: सर क्या आपको लगता है कि अपनी अति महत्वाकांक्षाओं के चलते पीके का अंत अंततः अरविंद केजरीवाल जैसा होगा? 

    जवाब: ये तो थोड़ा ज्यादा है नहीं हो ईश्वर करे ऐसा उनका अंत बहुत दुखद था. इन्हें अवे दुखद ही है. जेल में रहे और किया सारा उस तरह से जो है पीके का इतना हालांकि महत्वाकांक्षा है उनकी. और वो भी कांग्रेस का विकल्प बनने की सोचते हैं. बहुत सारे लोग जीवन में इसीलिए बर्बाद हुए कि किसी ऐसे व्यक्ति का विकल्प बनना चाहते थे. दैट जो है यह संभव नहीं था या भाग्य ने साथ नहीं दिया उनका यह है अदिति हंस रही इसको कोई रेफरेंस ध्यान जो है ठीक तो विकल्प की बात है तो वो भी कांग्रेस का विकल्प बनना चाहते हैं ये जो है पीके केजरीवाल विकल्प बनना चाहते थे अगर पीके अपने इंटीग्रिटी वैल्यू सिस्टम को ऐसा ही रखते हैं तो ठीक है उनके जीवन में ऐसी कोई त्रासदी नहीं होगी जेल जाना करना इस तरह की बातें नहीं होंगी दैट वे है जो कहा जाए तो और लगता नहीं है कि ऐसा है बट शुड बी की कोशिश लेकिन उनको केजरीवाल अगर अगर भाग्य में लिखा है उनका केजरीवाल बनना तो इसमें दो-ती साल लगेंगे. आज ऐसा कुछ नहीं है. इट इज़ टू अर्ली टू से कि वो केजरीवाल बनेंगे. तो बेस्ट ऑफ़ लक फॉर हिम कि वो ऐसा नहीं बने. 

    सवाल: पीके ने कहा था कि जहां पहले से आरजेडी का मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा होगा वहां पर वो अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा करेंगे. उन्होंने अपना वायदा तोड़ दिया. क्यों? और सर जो बिहार का मुस्लिम वोट है वो किधर जाएगा? 

    जवाब: दो बातें हैं. वो कहते हैं मैंने वायदा नहीं तोड़ा. मैंने तेजस्वी से कहा था कि बता देना समय से मुझे 9 तारीख से पहले कि मैं पहले कहा था कि मैं नौ को अपनी लिस्ट डिक्लेअ करूंगा. उनके यहां से कोई जवाब नहीं आया कितने मुस्लिम खड़े कर रहे हो. तो बोले मैं कब तक वेट करता तो 31 मुस्लिम उन्होंने ठोक दिए अपने इलाके में 116 में से. ठीक है ना? अभी तो और सीटें भरनी है उनको तो और भी मुस्लिम आ जाएंगे वहां पे. दैट विल जो है और जैसे मुस्लिम आएंगे आपका पहला सवाल उस समय था कि नुकसान किसको ज्यादा होगा? तो आरजेडी को होगा, कांग्रेस को होगा. तो वोट तो उन्हीं कटेंगे ना. भाजपा विरोधी वोटों को बांटना प्लस मुस्लिम वोट को डाइवर्ट करना तो उससे हो जाएगा. दैट वे जो है तो वह अपनी जगह सही है जो है और आरजेडी वालों को क्योंकि फुर्सत अभी राहुल गांधी से ही नहीं है कि सहमति नहीं बन पा रही तो इस तरफ कहां बात करेंगे अभी अभी टाइम ही नहीं है उनके पास में जो है हो गया वो तो टूट गया वादा अच्छा और 

    सवाल: सर अगर हम टिकट वितरण की बात करें तो कास्ट फैक्टर के सामने क्यों पीके को झुकना पड़ा? यह जीवन का सत्य है. ट्रेजडी है और सत्य है. दोनों बातें हैं. पीके जैसे व्यक्ति को जो आदर्शों पर चुनाव लड़ना चाहता था. जो महंगाई रोजगार मुद्दे इस तरह के जो है इन मुद्दों पे लड़ना चाहता था. डेवलपमेंट पे लड़ना चाहता था. ठीक है ना? राष्ट्रीय एकता पे लड़ना चाहता था. सांप्रदायिक सौदर पर लड़ना चाहता था. अल्टीमेटली उसको वहीं नतमस्तक होना पड़ा. कास्ट गार्ड के सामने. यह इस 21वीं सदी की सबसे बड़ी सच्चाई है जिसे कहते हैं कि पीके को स्वीकार करना पड़ा. लेकिन पीके की मजबूरी बिहार में हो सकती है ज्यादा. और राज्यों में हर जगह कास्ट कार्ड इतना पावरफुल नहीं जितना बिहार के अंदर है. लेकिन फिलहाल तो बात सच है कि कास्ट कार्ड के सामने पीके जैसा पढ़ा लिखा और मूल्यों की बात करने वाला व्यक्ति भी नतमस्तक खड़ा है. 

    सवाल: अगर ओवैसी की बात करें तो बिहार में ओवैसी तेजस्वी से छह सीटें मांग रहे हैं. आरजेडी और कांग्रेस कोई भाव उनको नहीं दे रही. तो ऐसे में सर आरजेडी और 
    कांग्रेस को मुस्लिम वोटों का नुकसान नहीं होगा क्या? 

    जवाब: नुकसान है लेकिन कुछ बातें इनविटेबल होती हैं. रोक नहीं सकते. अब कांग्रेस की दुविधा ये है कि हम ओवैसी का हाथ पकड़ते हैं साथ खड़े होते हैं तो हमारा भी प्रो मुस्लिम इमेज ऐसी बन जाएगी बीजेपी वाले खा जाएंगे. बिल्कुल ही. अब ठीक है. ओवैसी जो है अभी तो राष्ट्रवादी मोड में हैं. अभी उन्होंने पहलगांव के मुद्दे पे जो है ना पाकिस्तान की आलोचना की. विदेश गए तो भारत सरकार की लाइन को टोक किया उन्होंने. वहां भी आलोचना की पाकिस्तान के इस्लामिक देशों के सामने भी आलोचना की लेकिन आज भी जो चेहरा है ओबीसी का वो हार्डकोर मुस्लिम चेहरा है कांग्रेस उनसे अलायन नहीं कर सकती इस इसलिए कांग्रेस ने रुचि नहीं ली अब वो क्या है कि वो बदले की भावना पे उतर आए हैं वो कहते हैं कि आई विल टीच यू लेसन दैट वे जो है और वो कहते हैं बहुत महंगा पड़ेगा आपको आपने मेरे को छह सीटें नहीं दी मैं 60 सीटों पे आपका नुकसान करूंगा तो भाग्य की बात है और फिर वही बात है अल्टीमेटली वो चार छ आठ जो ही सीट जीत के लाते हैं अगर वह भी कहीं ना कहीं किसी न किसी गेट पे अमित शाह के गेट पे खड़े मिलेंगे आपको अगर जरूरत पड़ेगी तो दैट वे जो है तो फिलहाल तो ओबीसी का जो नुकसान है डायरेक्ट वो कांग्रेस और आरजेडी को है ऐसा लगता है 

    सवाल: सर सीमांचल की मुस्लिम बहुल 24 सीटों का आखिर आप क्या भविष्य देखते हैं और असदुद्दीन ओवैसी की अगर बात करें तो उनकी क्या भूमिका नजर आती है? 

    जवाब: इंपॉर्टेंट है जिसे कहना चाहिए यह अपना एक नैरेटिव अलग है 24 सीटों का जिसे कहते हैं इट विल रीशेप द पॉलिटिक्स ऑफ बिहार इन द कमिंग डेज ओबीसी को एक पास्टर लैंड होती है जो दिख गए वहां घुस गए हैं वहां पे वो तो कहते हैं बिहार में 19% मुस्लिम है मैं उनका नेता बनना चाहता हूं और वो कहते हैं मेरी जमीन है मैं यहां से मैंने अपनी राजनीति शुरू की है के साथ न्याय नहीं हुआ बड़ी-बड़ी बातें जो करते हैं पॉलिटिकली दैट वे जो है तो जा रहे हैं वो लेकिन ऐसी कोई एनडीए खराब नहीं है पिछले साल 10 सीटें आरजेडी को मिली थी नौ एनडीए को मिली नहीं थी. अब भी ऐसा है ना पोलराइजेशन अगर होता भी है ना तो हिंदूज़ आर नॉट इन लेस मेजॉरिटी एक्सेप्ट इन सर्टेन एरियाज़ तो ठीक है राजनीति उछाल खा रही है अभी जो है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि एनडीए और ये दूसरी पार्टी जो है आपकी नीतीश कुमार की ये पिट जाएंगे वहां ऐसा नहीं है. 

    सवाल: सर मैंने सुना है कि हाल ही के दौरों में एक समारोह हुआ था मुस्लिम समारोह में. नीतीश कुमार ने टोपी पहनने से इंकार कर दिया था. तो इसको आप कैसे देखते हैं? 

    जवाब: यह द कंपनी कीप आजकल भाजपा वालों की संगत में है. उनका रिमोट कंट्रोल वही है दैट वे तो मन में सोचता है ना कि नया पंगा क्यों लो क्यों नाराज करें इनको अपने अलाई हैं और उनको मालूम है कि भ इस तरह से बीजेपी वाले टोपीवपी नहीं पहनते हैं. समारोह में जाके प्रधानमंत्री भी नहीं पहनते हैं. पहले कभी था तो नहीं पहनी थी. दैट वे जो है तो ही इज़ प्लेइंग सेफ. इतना ही है इसका ज्यादा. और दूसरा उनको यह भी लगा हुआ होगा मन में कि मुस्लिम वोट्स अभी भी जो है उनका झुकाव जो है तेजस्वी की तरफ है लगा होगा ऐसा दैट और कई बार यह भी होता है तबीयत ठीक नहीं होती है आदमी के आदमी कहता है चलो जल्दी चलो यार खत्म करो फंक्शन टोपीवपी बाद में पहनेंगे ये भी होता है टाइम्स आदमी सोच के कुछ आता है फंक्शन में मैं ये भाषण दूंगा ये करूंगा फिर लेट हो जाता है फिर आयोजक कहते हैं साहब ये तीन चीजें बाकी रह गई हैं जो है वो कहता है अभी तो मैं जा रहा हूं यार अगली बार देखेंगे तो कुछ भी हो सकता है ऐसा कोई खास बात नहीं है. 

    सवाल: सर आपको लगता है कि इस बार के बिहार चुनाव में चिराग पास पासवान एक दलित वर्ग के हीरो की तरह उभरे हैं. 

    जवाब: सही है. हीरो थे वो. उनका हीरो का जो इमेज है जो नैरेटिव है वो स्ट्रांग हुआ है. वो जिसे कहना चाहिए मजबूत हुआ है. दैट वे जो है और आप देखिए 5.5% वोट तो है उनके पास और अब जिस तरह से उनका मान मुनवल क्या होता है? इस तरह से हुआ है. उनका मनोहार और यह सब हुआ है चुनाव में. चाहे वो चाहे वह स्टेज मैनेज्ड ही था यह दिखाना कि हम मना रहे हैं उसको वो मान नहीं रहा है वह एक पल के लिए मान भी लेते हैं तो उससे उसका ग्राफ उसका शेयर जो है ना बढ़ा है मार्केट में दैट वे जो है और ये जो चुनाव खत्म होगा और इसमेंकि आई होप दिस चिराग विल परफॉर्म बेटर हिज पार्टी विल परफॉर्म बेटर तो उसका जो जो बेस है एज अ दलित लीडर जो है ना वो और स्ट्रांग हो सकता है तो यू कैन से ही कंटिन्यूस टू बी हीरो ऑफ़ दलित इन बिहार 

    सवाल: सर चिराग पासवान को 29 सीटें दिए जाने आने से जो सहयोगी दल थे उनमें विरोध असंतोष नजर आया. अंततः क्या लगता है एक बार फिर से जो सभी सहयोगी दल हैं एक मत हो जाएंगे. 

    जवाब: निश्चित हो जाएंगे एक मत. हो ही गए ना. कल आपने देखा सबके क्या बयान आए? एक जैसे बयान जो है ऐसा लगा मैंने कहा था ना एक व्यक्ति टाइप कर रहा है बैठ के उसको. एक ही व्यक्ति कह रहा है बोलो इसको. राष्ट्र हित में बोलो इसको जो है और बोला सबने कि हमारी आस्था है और हम एनडीए के साथ खड़े हैं. देश के विकास में खड़े हैं. हम जो है तो सब ठीक है. मैंने कहा ना लॉन्ग रोप देती है पार्टी दिल्ली वाले खुद भी कि चलो थोड़े दिन कर लो फिर बाद में आना वही है लौट के जो है सो नथिंग टू वरी. 

    सवाल: सर पिछली बार नीतीश कुमार को रोकने में असफल रहने के बाद क्या इस बार चिराग पासवान नीतीश कुमार को रोक पाएंगे? 

    जवाब: ना इस बार कहानी डिफरेंट है. बिल्कुल कहानी चिराग पासवान के हाथ से निकल गई है. जो है कहानी अमित शाह के हाथ है. कहानी नरेंद्र मोदी के हाथ है. चिराग पासवान का रोल बस अपनी जो सीटें जितनी जीतेंगे वो जो मैक्सिमम सीटें 38 की बात पिछली बार आई थी उसके प्रपोशनेट देखें तो. लेकिन कभी-कभी प्रपोनेशनेट चीजें लागू नहीं होती है लोकसभा और विधानसभा की. लेकिन जो भी जीतते  हैं वो 10 जीतते हैं, 15 जीते हैं, 20 जीतते हैं जो भी हैं तो बीजेपी के डिस्पोजल पे है. दैट वे जो है तो नुकसान  करने नहीं करने का कोई कोई खास मुद्दा नहीं. उनके हाथ में कुछ ज्यादा नहीं है. उनके कमांड अमित शाह के हाथ है. दैट वे जो है वो जितनी सीटें जीतेंगे तो उन्हीं के उस पे चरणों में रखेंगे. दैट वे उनको जरूरत होगी तो लेंगे नहीं तो ठीक है. अपने केंद्र में मंत्री रहो. अपने चलो आराम से. बी ए गुड एंड डिसिप्लिंड अल. इसमें क्या दिक्कत है? वी आर यंग मैन. लॉट ऑफ़ फ्यूचर इज देयर फॉर यू. अब इससे ज्यादा उत्साह मुख्यमंत्री बनने की कहां लालसा है अभी जो है अभी दूसरे काम करो दैट सो दिस इज आल्सो कोई नुकसान कि वो नीतीश को नहीं रोक पाएंगे नीतीश जितना है उतना ही रहेगा वो तो वो तो अपने बूते आएगा और ये अपेरेंट दिख ही रहा है ना कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बन रहा है अपेरेंटली ऐसा लग रहा है और अगर बन भी रहे होंगे और उसका मजबूरी ऐसी हो भी जाएगी  कोई मान लो आपातकाल में ठीक है ना उसका फैसला मोदी शाह करेंगे चिराग पासवान नहीं करेंगे तो उनका लिमिटेड सा रोल है. 

    सवाल: सर अगर 9 अक्टूबर की बात करें तो पिछले 9 अक्टूबर को लखनऊ में मायावती की कमबैक रैली में लाखों लोगों की भीड़ उमड़ी. क्या उससे उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती का पुनर्जन्म आप इसे देखते हैं? और सर इसी से जुड़ा मेरा एक और सवाल है वो यह कि क्या इसका असर क्या इसका प्रभाव बिहार चुनाव पर भी नजर आएगा? 

    जवाब: बिहार पे ज्यादा नहीं होगा. दिस इज़ टू लेट फॉर मायावती टेंट इनू दफ्रे जिसे कहते हैं. और आपने कहा मायावती का पुनर्जन्म हुआ तो वो भी मैंने मुझे उस दिन तो यही लगा था जब रैली हुई इट वाज़ अ सरप्राइज मूव. एक डेढ़ लाख लोग दो लाख लोग उस दिन आए वहां पे. बाद में मालूम पड़ा थोड़ा सा क्या है कि थोड़ा स्टेट स्पों्सर्ड रैली भी थी गवर्नमेंट का थोड़ा हिस्सा था. मोरल सपोर्ट था रूलिंग पार्टी का दैट वे वहां पे जैसे 1 डेढ़ लाख लोग आए वहां पे. तो उस दिन जो उत्साह था मन में लोगों के मायावती कैंप के अंदर कि मायावती इस बैक कम बैक रैली. तो आज 15 10 दिन हो गए हैं तो ऐसा कुछ लगा नहीं उसके बाद में उसके आसपास को वर्कर्स का उत्साह आया हो या उनके मन में कोई उछाल आया हो ऐसा या भाग के निकली हो कि चलो तलवार लेके बिहार चलते हैं या और करते हैं ऐसा कुछ कुछ लगा नहीं मुझे तो कभी-कभी ऐसा होता है ना कोई घटनाएं बस ऐ हो जाती हैं जो है तो मायावती की जो रैली थी ना वो उस तरह का लॉन्ग लास्टिंग इंपैक्ट अभी छोड़ नहीं पाई लेकिन घटना बड़ी थी पहली बार थी और उसने सरप्राइजिंगली जो है योगी के लिए अच्छा बोला कांग्रेस पे अटैक किया अखिलेश पे अटैक किया दैट विल जो है और वो धारणा तो है ही कि जब बहन जी की अगर सीटों की जरूरत पड़ गई कभी तो बहन जी अमित शाह को ना थोड़ी कहेंगी खत्म 

    सवाल: सर इसी बीच अमित शाह ने कहा कि बिहार में चार बार दीपावली मनेगी इसका मतलब क्या है?

    जवाब: हां उत्साह में कहा उन्होंने जैसे प्रधानमंत्री ने कहा कि दो बार दीपावली है ठीक उन्होंने कहा एक तो जीएसटी की दीपावली थी नवरात्रा के पहले दिन और एक यह दीपावली हम 160 सीट से जीते करेंगे दिवाली मनाएंगे इसको 160 का पीएम ने नहीं कहा लेकिन जीतेगी सरकार एनडीए जीतेगा और वहां पे अमित शाह ने कहा था कि पहली तो राम मंदिर की दीपावली अयोध्या की थी जेनुइनली पूरे देश ने मनाई उसको दूसरा 75 लाख महिलाओं को जो पैसा ट्रांसफर किया नरेंद्र मोदी ने बिहार में वो थी तीसरा फिर उन्होंने कहा कि ये जीएसटी था खुशी थी और चौथा बोले 160 सीट हम जीत के आएंगे तो दिवाली मनाएंगे तो लेट्स होप एंड वी ऑल गुड लक एंड एंड गुड विशेस टू दिस थॉट. सर, राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह की तरफ से 243 सीटों में से 160 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा गया है. तो आपका आकलन इसको लेकर क्या कहता है? संभावना कितनी है इसकी? आकलन क्या है कि कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने के लिए और टारगेट को एक फोकस करने के लिए आदमी ऐसा नंबर देता है जिसको आदर्श नंबर होता है. आइडियल नंबर होता है. तो ये सोच के अमित शाह ने 160 का आंकड़ा रखा है. उनके सामने जो है और 142 पे तो वैसे लड़ ही रहे हैं वो जो है. अब एग्जैक्टली 160 आते हैं कि 140 आते हैं नहीं कहा जा सकता. लेकिन मन का भाव यही होता है सीनियर लीडरशिप का कि आंकड़ा ऐसा दो कार्यकर्ता दौड़े उसको लक्ष्य है. एक लक्ष्य होना चाहिए सामने. 160 का लक्ष्य है. 

    सवाल: सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा गृह मंत्री अमित शाह और इसी के साथ-साथ जेपी नड्डा भी बिहार चुनाव में काफी एक्टिव नजर आ रहे हैं. इसके बारे में आप क्या कहेंगे? 

    जवाब: बिल्कुल ठीक कह रही हैं आप. बिल्कुल एक्टिव नजर आ रहे हैं. प्राइम मिनिस्टर तो कह रहे हैं फेस ऑफ़ द कैंपेन दैट वे जो है आठ बार तब तक जा चुके हैं. अमित शाह भी आठ बार जा चुके हैं. जेपी नड्डा छह बार जा चुके हैं और यह क्रम जारी रहेगा. एक्चुअली क्या है ना ये एक तरह से चुनाव की दृष्टि से एक बड़ी वीआईपी त्रिमूर्ति है. ये प्रधानमंत्री हैं. नरेंद्र मोदी हैं, अमित शाह हैं, जेपी नड्डा हैं. अपने-अपने रिक्वायरमेंट के हिसाब से सभी यहां जाते हैं. लेकिन इस समय जो लीडरशिप है बीजेपी की जो शीर्ष लीडरशिप है जो इन तीनों से जानी जाती है. वो बहुत ही एक अच्छा कोऑर्डिनेशन है. अच्छा जिसे कहना चाहिए तालमेल है, सामंजस्य है. और तीनों की विचारधारा और तीनों का जो वेवलेंथ है, थिंकिंग है जो कहना चाहिए, वह सारा का सारा बिल्कुल जिसे कहना चाहिए एक जैसा है, पॉजिटिव है. और सबसे बड़ी बात है कि जो परसेप्शन है मार्केट में वह बहुत अच्छा है इस अलायंस के बारे में, तीनों के वर्किंग के बारे में जो है. तो इनका रोल है. लेकिन बेसिकली जो सबसे लीड रोल है वो प्राइम मिनिस्टर रहेंगे. क्योंकि चेहरा उनका जो बिकता है बाजार में. 

    सवाल: सर आखिर बिहार विधानसभा चुनाव जीतना प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के लिए कितना जरूरी है? 

    जवाब: ऑफकोर्स देखो चुनाव हर चुनाव युद्ध की तरह होता है और हमेशा हमेशा कहते हैं कि हर युद्ध को जीतना है. ऑफ कोर्स नरेंद्र मोदी भी यही कहते हैं हर युद्ध को जितनातना है. पर आजाद उनको स्वीकार नहीं है. और नरेंद्र मोदी की किताब में असंभव नहीं है. कई दफा तो कहते हैं ना कि चुनौती को चुनौती देना मेरा काम है. दैट वे जो है और आगे फिर सारा सर्वाइवल है. आपका पॉलिटिकल सर्वाइवल है. आगे चुनाव है. देखिए बंगाल में चुनाव है. फिर केरल में चुनाव है. तमिलनाडु में चुनाव है. पोंडीचेरी में चुनाव है. दैट है तो मनोबल तो बनता है ना खुद का कार्यकर्ताओं का भी और वैसे भी क्या है नरेंद्र मोदी अमित शाह के लिए तो हर चुनाव को जितना जरूरी है और उनके लिए जो 5 साल का समय होता है चुनाव जीतने के बाद वो भी हर दिन चुनाव की तैयारी जैसा होता है तो इसलिए इनके लिए या कहिए कि इनका पैशन है हर चुनाव जितना तो उसी पैशन को आगे बढ़ाने के लिए इनका ये है कि इस चुनाव को भी जीतना है. 

    सवाल: सर हरियाणा और दिल्ली के बाद अब बिहार विधानसभा के चुनाव में आरएसएस का रोल क्या होगा? 

    जवाब: आरएसएस का रोल मेजर रोल है. जैसे ग्राउंड लेवल पर होता है, ग्रास रूट लेवल पर होता है. जिस तरह से जो है ऑपरेशन त्रिशूल का नाम दिया उन्होंने. त्रिशूल के नाम से आरएसएस काम कर रहा है. हजारों कार्यकर्ता फील्ड में काम कर रहे हैं. सैकड़ों ट्रोलियां काम कर रही हैं. वहां पे जो है आरएसएस पूरी तरह से एक्टिव है. और एक्चुअली क्या है कि लोकसभा चुनाव के इसमें थोड़ा संशय हुआ था. 240 की बात आई थी. उसके बाद से तो हर राज्य में जो चुनाव हो रहे हैं आरएसएस पूरा एक्टिव है. बीजेपी के साथ कंधे से कंधा मिला के खड़ा है और इसीलिए विक्ट्री आ रही है सब. तो बिहार की जीत जो होगी उसमें भी नरेंद्र मोदी अमित शाह के साथ-साथ आरएसएस का भी एक रोल होगा. इस तरह से जो पैरेंट इंस्टीट्यूशन है. आरएसएस प्योरली एक्टिव है. इस तरह से कंप्लीटली एक्टिव है इस चुनाव के अंदर. 

    सवाल: मैंने सुना है कि आरएसएस ने बिहार और बंगाल दोनों राज्यों के लिए अलग-अलग रणनीति बनाई है. इसको लेकर आपका आक्रोश. 

    जवाब: हां, यू आर राइट. उनका जो नॉर्थ है मतलब बिहार है. इनका तो बेसिक पर्पस यह है कि कास्ट जो है ना वह हम कास्ट को कंसोलिडेशन करें. हम विद रिव्यू टू रिलीजियस मोबिलाइजेशन जो हमारा कास्ट का जो कंसोलिडेशन होगा उसका रिलीजियस बेनिफिट मिलना चाहिए. यही कई उनका बिहार के अंदर है थोड़ा सा डिफरेंट है. बिहार में क्या है कि हम धार्मिक इवेंट्स करेंगे कास्ट के बजाय जो है और धार्मिक इवेंट्स से करके हम वोट्स को पोलराइज करने की कोशिश करेंगे. मतदाता आकर्षित करने की कोशिश करेंगे. तो बेसिक डिफरेंस इन दो राज्यों के बीच में उनके चुनाव प्रचार की जो स्टाइल है या जो मॉडस ऑफ़ एनडी है उसका यह अंतर है. 

    सवाल: अब तक के ओपिनियन पोल्स क्या संकेत दे रहे हैं सर बिहार चुनाव में? वो तो क्लियर स्वीपिंग मेजॉरिटी बता रहे हैं एनडीए की. 

    जवाब: अभी एक सर्वे हुआ था तो उन्होंने कहा 49% वोट तो एनडीए को मिल रहे हैं और 36% गठबंधन को मिल रहे हैं. इन टर्म्स ऑफ सीट जो है बीजेपी बता रहे हैं 
    कि भाई 75 80 सीट बीजेपी को आ रही है. दूसरे ने कहा कि 80-85 सीट आ रही हैं. दैट वेज है और इनकी 60 65 आ रही है जेडीयू की और आरजेडी की 60 65 सीट बता रहे हैं. 810 सीट कांग्रेस की बता रहे हैं. तो मोटे तौर पे क्या है कि स्वीपिंग विक्ट्री हो एनडीए की. ऐसे संकेत मिल रहे हैं सर्वे से. 

    सवाल: आखिर ऐन वक्त पर भोजपुरी के सुपरस्टार पवन सिंह ने बीजेपी क्यों ज्वाइन कर ली? 

    जवाब: कर ली रिक्वायरमेंट थी और हमेशा ने ज्वाइन करवाई इसलिए करवाई कि वो लड़ रहे थे उपेंद्र कशवा और ये आपस में पिछले चुनाव में उनके सामने खड़े हो गए थे कुशवाहा के सामने. कुशवाहा हार गया था. तो राजपूत वर्सेस कुशवाहा वोट्स का एक कंफ्रेशन बना था और बिहार का चुनाव सिर पे था. तो कहा ठीक है आ जाओ मेरी गाड़ी में बैठ जाओ. आठों सब साथ-साथ चलो दोनों मिलके जो है तो आ गए उनके राज्यसभा की सीट अपनी जगह है और यह इनका काम अपनी जगह बीजेपी में ज्वाइन कर लिया इन्होंने आकर के तो देयर इज़ अ कंप्लीट पीस बिटवीन द टू कैंप्स ये पर्पस था इसका सर कई राज्यों में बीजेपी ने फिल्म स्टार लोक गायकों को टिकट दिया था अब बिहार में युवा गायिका है मैथिली ठाकुर उनको टिकट दिया है तो इसका कितना फायदा मिलेगा बिहार चुनाव में फायदा यह है कि आइडेंटिटी पॉलिटिक्स करती है बीजेपी और ये मोहलाल बूस्टत होता है वुमन एंपावरमेंट का मैसेज भी जाता है और ये स्टार्स वगैरह गायक पॉपुलर तो होते हैं पब्लिक में और एक यंग फेस है और उसने बयान भी अच्छे दिए हैं. उसने कहा है कि मैं तो बदलाव करने आई हूं. बदलाव चाहती हूं और मैं गांव जाके काम की ओर लौटना चाहती हूं. तो ये नरेंद्र मोदी का एक्सपेरिमेंट है. बिल्कुल एक यंग अनजान व्यक्ति को साफ-सुथरे आदमी को टिकट देना राजनीति में एक शुद्धिकरण का एक चैप्टर ऑन करना या ये 
    कहना कि भाजपा हार्ड कोर पॉलिटिक्स से हटके कास्ट क्रीड इस सब से हटके जो है ना मेरिट के आधार पे टिकट देते हैं जो है. तो टिकट दिया उन्होंने. इसका अच्छा मैसेज यंग जनरेशन बिहार की जो है खास करके वुमेन जो है उसमें इसका अच्छा मैसेज है. 

    सवाल: चुनाव से ठीक पहले महिला कार्ड की तरह बीजेपी ने खेला 62000 करोड़ का यूथ कार्ड. क्या यह सचमुच कारगर साबित होगा चुनाव में? 

    जवाब: ऑफकोर्स आप देखिए अब जो उसमें 62000 करोड़ का जो बजट है तो 60000 करोड़ से तो क्या 100 आईआईटीस बनेंगे. चार यूनिवर्सिटीज बनेंगी और उसमें आप देखिए कि 5 लाख युवक ऐसे हैं जिनको 2 साल तक ₹1 एक000 मिलेगा. तो यूथ मोबिलाइजेशन है, फाइनेंशियल मोबिलाइजेशन ऑफ़ यूथ ये इसका टारगेट है. चुनाव के समय हुआ है ये. तो निश्चित तौर पे एक माहौल बनता है. जो पहले मैंने इसका नारा बदल गया यहां पे और महिला प्लस यूथ हो गया है. उसको देखते उसकी पृष्ठभूमि में 62000 करोड़ का जो पैकेज दिया प्राइम मिनिस्टर ने इट्स अ वेलकम पैकेज. 

    सवाल: इसी प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के लिए भी 35,000 करोड़ का विशेष पैकेज जारी किया. तो उस चुनाव में उसका असर दिखेगा? 

    जवाब: बिलकुल दिखेगा. देखिए महिला है, किसान है जो कहा ना बीजेपी जो तीन मुद्दों पे चुनाव लड़ रही है कि मोदी मंदिर और महिला दैट जो है तो कृषि भी एक उसका पार्ट है कंपलसरी कंपोनेंट है इलेक्शन की स्ट्रेटजी का जो है तो किसान के प्रति 35000 करोड़ का पैकेज निश्चित तौर पे इसकी सराहना है एग्रीकल्चर वर्ग में जो है और हो क्या रहा है दो बड़ी स्कीम्स उन्होंने अनाउंस करी है इसके लिए जो है और 100 ऐसे डिस्ट्रिक्ट छांटे हैं जिनकी जो परफॉर्मेंस है वो कंपेरेटिवली पुअर है एग्रीकल्चर डिस्ट्रिक्ट जो है उनको मजबूत करेंगे और किसान को जो है ना उत्तम तकनीक के जो है ना ये यंत्र और टेक्नोलॉजी जो है यह प्रोवाइड करेंगे और एक तरह से देखा जाए तो अपग्रेडेशन ऑफ एग्रीकल्चर फैसिलिटीज जो है कंट्री में उनका है एक अच्छा प्रयास है और बिहार के किसानों में भी इसका अच्छा मैसेज गया है. 

    सवाल: वहीं कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देना उनके नाम पर यूनिवर्सिटी खोल देने जैसा फैसला आप कैसे देखते हैं? 

    जवाब: ठीक है. लोकल प्रतिभाओं का सम्मान है और ये तो चुनाव से काफी पहले ही हो गया था. वे जो है और बिल्कुल मेरिट पे फैसला हुआ है. कर ठाकुर का एक नाम है बिहार में सोशल आंदोलन के जो सूत्रधार थे और बड़े सम्मान और आदर्श की निगाहों से उसमें उनको देखा जाता है. ऐसे में उनको सार्वजनिक सम्मान देना एक अच्छा प्रयास है कि ग्रास रूट पे जो टैलेंट है जो समाज के लिए काम करता है. सोसाइटी के लिए काम करता है उसको प्रमोट करना चाहिए. तो प्रधानमंत्री ने उसी दिशा में यह कदम उठाया और इसकी सराहना हुई बिहार में. सर विपक्षी दलों ने एसआईआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बाहर एक लंबी लड़ाई लड़ी है. आखिर दोनों पक्षों के लिए नतीजा क्या निकला और क्या यह मुद्दा अब सेटल होने के बाद भी विपक्ष इसका विरोध आगे भी जारी रखेगा? जैसे कहना लर्निंग इज अ लाइफ. लाइफ इज अ लर्निंग. आप यू कहिए. तो चुनाव आयोग ने भी कुछ बात सीखी इससे. सबसे बड़ी बात सीखी कि टाइम प्रॉपर देना चाहिए. टाइम बहुत कम था इस बार. दूसरा जो है ना इसको टेक्निकली और आईटी के हिसाब से और साउंड करना चाहिए प्रोसेस को. 

    डिजिटल प्रोसेस इट शुड बी मोर एंड मोर ट्रांसपेरेंट. वैसे उसने चुनाव आयोग ने इस लड़ाई को बहुत अच्छे से लड़ा जो है मेरिट पे लड़ा और सारे देश ने देखा. इसको सुप्रीम कोर्ट ने देखा. दैट वे जो है और अब रही बात कि आगे क्या जारी रहेगा कि नहीं? तो विपक्ष को तो एक अच्छा मुद्दा मिल गया है. विपक्ष में भी इसके दो टुकड़े हैं. राहुल गांधी एंड अदर्स. अदर्स में इतना उत्साह नहीं है इसके लिए. जैसे तेजस्वी वगैरह हैं. इनका इतना उत्साह नहीं है. राहुल गांधी समझते हैं कि इमोशनल मुद्दा है और एक तरह से सब विपक्षी दलों को जोड़े रखने की एक तरह से गोंद का काम करेगा. यह मुद्दा जो है अब आगे केरल में चुनाव है तो वो इसका विरोध करेंगे. चेन्नई में है चुनाव वो इसका विरोध करेंगे. तो इस नाते क्या विपक्षी एकता कहीं ना कहीं खड़ी दिखाई देती है किसी न किसी मुद्दे पे. दिस इज़ ऑल. बाकी कोई ये कैंपेन पिकअप करे इसका ऐसा नहीं लगता. सर अब बिहार में तो हो गया. क्या अब आगे चुनाव आयोग बंगाल में भी एसआईआर के एक्सरसाइज को लागू करेगा? ऑफ कोर्स 2 नवंबर से प्रोसेस चालू हो रहा है वहां पे. अब इससे क्या कंफ्रेशन बढ़ेगा थोड़ा वहां? पर व्हाट टू डू? देयर इज़ नो अदर अल्टरनेटिव. सुप्रीम कोर्ट डिसाइड कर चुका है. मोर और लेस डिसाइड कर चुका है. थोड़ा बहुत है वो डिसाइड हो जाएगा. और अभी तक का इंडिकेशन ये क्लियर है कि जो सारा प्रोसेस था वो लेस्टमेट था. कहीं इसमें कोई मेजर इरेगुलेटरी नहीं थी. तो बंगाल में भी होगा ये. लॉ ऑफ़ द लैंड विल टेक इट्स कोर्स बाय इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया. इसमें कोई संदेह नहीं है. 

    सवाल: बिहार में जिस तरीके से कांग्रेस और आरजेडी के सभा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के मातोश्री को दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से गाली दी गई. क्या इसका असर इसका नुकसान विपक्षी पार्टी को होगा?

    जवाब: निश्चित तौर पे होगा बिहार की महिलाओं में हर्ट सेंटीमेंट है इसका कि यार ये क्या तरीका है होता है ना जैसे एक तरह से अब कांग्रेस ने बहुत सफाई दी लेकिन सफाई चली नहीं क्योंकि जिस मंच से गाली दी गई चाहे उसमें राहुल गांधी मंच पे नहीं थे जो है लेकिन मंच वही था आरजेडी का था कांग्रेस का मंच था तो आप उससे नहीं कर सकते फिर माफी नहीं मांगी बड़प्पन इसमें था कि आप माफी मांग लीजिए बजाय माफी मांगने के तर्क वितर्क हुआ इस मुद्दे पे तो एट द एंड ऑफ़ द डे विपक्ष इज अ लूजर ऑन दिस पॉइंट और एक बैठा-बठा मुद्दा उन्होंने अननेसेसरी बीजेपी के हाथ में दिया जो है और बिहार की महिलाओं में इस मुद्दे का प्रभाव है. यह आपकोआने वाले चुनाव में दिखाई देगा. आने वाले चुनाव में तो 10,000 का प्लस जो वुमेन वेलफेयर है वही काफी है. लेकिन इसका भी प्रभाव है. इससे एक क्या है कि प्रधानमंत्री अब जो भाषण देने जाएंगे या जो रूलिंग पार्टी है प्राइम मिनिस्टर हैं उनके प्रति क्या है ना एक सहानुभूति और सद्भाव का भाव पैदा होता है महिलाओं के मन 
    में. और वृक्ष के प्रति क्या है ना एक थोड़ा सा घृणा कहो या थोड़ा सा एक गिरावट का भाव पैदा होता है. दैट वे. लेकिन आपका सवाल अपनी जगह है कि ये जो मांकी गाली देने वाला अनफॉर्चूनेट इंसिडेंट हुआ इससे पॉलिटिकली विपक्ष को नुकसान है. एंड दे हैव कमिटेड एन एरर ऑफ़ जजमेंट. ऐसा मुझे लगता है. 

    सवाल: पिछले दिनों सीजीआई पर एक वकील के द्वारा जूता फेंकने की शर्मनाक घटना सामने आई थी. इसे आप कैसे देखते हैं? 

    जवाब: दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसा नहीं होना चाहिए. खुद प्राइम मिनिस्टर ने आगे बढ़ के कहा. उन्होंने पहल की. उन्होंने फोन लगाया उनको अपना कंसर्न शो किया. बकायदा बयान जारी किया कि ये घटना निंदनीय है और समाज में इन घटनाओं के लिए ऐसा कोई स्थान नहीं है. दैट वे जो है लेकिन इसका दूसरा पार्ट बहुत ट्रैजिक है. आप देखिए देश में कानून की क्या स्थिति है. अब हर बड़ा आदमी कोर्ट में जाने से कतराता है. तो सीजीआई ने भी एफआईआर दर्ज नहीं की उसके खिलाफ में और वो कोर्ट फिर निकल गया वो व्यक्ति. वहां से जो है और उसके बाद उसे इंटरव्यू दिए बकायदा और बयान दिए और कहा फिर मुझे मौका मिला. ईश्वर ने कहा तो मैं दोबारा ऐसा करूंगा. मैं सनातन का अपमान सहन नहीं कर सकता. तो क्या है कि भले ही सीजीआई ने एफआईआर नहीं दी हो कुछ नहीं की हो लेकिन देश के एक पढ़े लिखे वर्ग में ना इसका एक गलत मैसेज गया है उस व्यक्ति के प्रति या ऐसी फर्सेस के प्रति अनफॉर्चूनेट है जैसा प्राइम मिनिस्टर ने कहा उन्होंने ठीक कहा है. ऐसा नहीं होना चाहिए. लेकिन कभी-कभी क्या होता है ना सभी संस्थाओं पे सभी विंग्स पे किसी एक केंद्रीय सत्ता का नियंत्रण नहीं रहता. कुछ लोग क्या फ्री फॉर ऑल होते हैं. वो चाहे जो लिखते हैं सोशल मीडिया पे चाहे जो करते हैं उनकी जिम्मेदारी नहीं ली जा सकती है. बट एट द एंड ऑफ द डे यह है कि यह घटना गलत है. ऐसी घटनाओं को रोकना चाहिए और भले उन्होंने एफआईआर दी या नहीं दी है. ऐसे प्रयास होने चाहिए कि ऐसे व्यक्ति को किसी न किसी तरह से उसका दंड मिलना चाहिए. 

    सवाल: राहुल गांधी ने बिहार में वोटर अधिकार यात्रा निकाली थी. कितनी सफल नजर आ रही है आपको? 

    जवाब: देखो यात्रा हर यात्रा अपने आप में ही सफल होती है. खाली डिग्री का फर्क होता है कि 10% सक्सेस है कि 100% सक्सेस है. यात्रा का मतलब होता है धरती पे चलते उस अंतिम कार्यकर्ता तक पहुंचना. जनता तक पहुंचना और इसकी तारीफ होती है. आदमी सुख दर्द सुनता है उनके दूर कर पाता है नहीं कर पाता. पर ये तो विपक्ष में है ना. इनसे अपेक्षा भी नहीं है कि कुछ दुख दुख दर्द ये दूर करेंगे. तो उस टू दैट एक्सटेंट है ना यात्रा सफल थी कि पहुंचे लोगों तक और एक तरह से इनकी जो भारत जोड़ो यात्रा थी उसी का एक्सटेंशन था. लेकिन इस यात्रा से अगर आप समझे कि कोई वोट बढ़ गए हो या नए वोटर्स जुड़ गए हो ऐसा नहीं है. खाली पार्टी का जो एक ब्रांडिंग है या मोराल बूस्टर है लोकल वर्कर्स का उसके लिए यात्रा ठीक थी. बाकी इस यात्रा का इन टर्म्स ऑफ़ बिहार के पॉलिटिकल अपन उसमें देखें कि कोई डिसाइसिव कोई उसका कंट्रीब्यूशन आने वाला है. तो ऐसा नहीं है. 

    सवाल: बिहार में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने जनता के वोट पाने के लिए अलग-अलग यात्राएं निकाली. तो क्या यह गठबंधन टूटने की शुरुआत है या कांग्रेस इससे आगे का कुछ सोच रही है? 

    जवाब: ना मैंने कहा ना कांग्रेस डिसऑर्गनाइज तो है ही राहुल गांधी इस सोलो पर्सन ठीक है ना संगठन में सब साथ चले टीम के रूप में चले ऐसा हो नहीं पाता है कभी 
    विदेश चले जाते हैं कभी किसी और कारण से है कभी दक्षिण अमेरिका चले गए 15 दिन के लिए दैट वे जो है तो आप देखते हैं तो यात्राओं में भी ऐसा मतभेद था फिर यात्रा उन्होंने रद्द कर दी और यात्रा रद्द करने के कारण यह था कि तेजस्वी के मन में था कि मुझे डिक्लेअ क्यों नहीं कर रहे हो सीएम कैंडिडेट करना चाहिए आपको जो है तो ऑल ऑल इज नॉट वेल स्टिल बिटवीन द टू पार्टीज और ये जो अलग यात्रा निकली उसी का एक प्रतीक है. 

    सवाल: सवाल एक ये है कि सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी की वोट चोरी की जो आरोप लगे थे उसको लेकर एक याचिका लगाई गई थी कि इसकी जांच कराई जाए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसको खारिज कर दिया. इस घटना को आप कैसे देखते हैं? 

    जवाब: ठीक है. सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट है. उन्होंने कहा कि एसआईटी बनाने की कोई जरूरत नहीं है इसके लिए. आपका आरोप यह है कि इरेगुलिटीज हुई है और मैनपुलेशंस हुए हैं. ठीक है ना? वोटर लिस्ट के अंदर जो है तो आप इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया का कोर्स है आपके पास में कोर्स अवेलेबल है वहां जाइए दैट इज़ तो रूटीन जजमेंट है नथिंग मस्ट टू बी रीडेड उन्होंने कहा कि जो फर्स्ट स्टेप है वो इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया है अप्रोच करने का आप वहां जाइए दिस इज़ ऑल 

    सवाल: नरेंद्र मोदी अमित शाह की कार्यशैली के सामने विपक्ष को एक बहुत स्ट्रांग नैरेटिव या एक मुद्दत चाहिए राहुल गांधी ने कोशिश की कि वोट चोरी एक मुद्दा बने वो गए भी यात्रा भी निकाली लेकिन जैसे-जैसे वो बीच में गायब हुए मोमेंटम नीचे आया. अब आपको लगता है यह मुद्दा पिट गया कांग्रेस का एसआईआर का? 

    जवाब: पिट इसलिए गया ना कि दे वर नॉट सीरियस टू ब्रिंग द इशू टू अ लॉजिकल कंक्लूजन. आप देखिए इलेक्शन कमीशन ने कहा था कि फर्स्ट फेस के बारे में अगर किसी को आपत्ति है यू शुड फाइल अपील बाय 10थ. तो 10 अक्टूबर तक कोई अपील फाइल नहीं हुई. नॉट इवन अ सिंगल अपील वाज़ फाइल्ड. जो है इसका मतलब है कि आप सीरियस नहीं हैं. राहुल गांधी विदेश में थे. पीछे कोई ध्वनी धोरी ज्यादा रहता नहीं. ऐसे मामलों में कोई फैसला करने वाला या कोई सोचे और टेलीफोन से बात करने की सुविधा मेरे ख्याल से उतनी अवेलेबल नहीं है लोगों को कि राहुल गांधी से टेलीफोन से बात करके उसमें उनसे मैंडेट लेंगे साहब 10 तारीख आ गई 8 तारीख हो गई क्या करना है क्या नहीं करना है तो 10 तारीख आई और निकल गई और मैसेज बड़ा गलत गया कंट्री के अंदर कि कांग्रेस जिसने मुद्दा उठाया इतना इट्स नॉट सीरियस एट ऑल ऑन दैट इशू 

    सवाल: एक लंबे अरसे के बाद पटना में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हुई इसके क्या मायने साथ-साथ अशोक गहलोत एक सीनियर ऑब्जर्वर के तौर पर उनके परफॉर्मेंस को आप कैसे देखते हैं? 

    जवाब: अच्छा प्रयास था मोराल बूस्टर फॉर द लोकल पीपल और उनप थोड़ा दबाव बनाना तेजस्वी वगैरह पे एक होता है ना कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता इकट्ठे हो रहे हैं वहां आकर के तो मोराल बूस्टर होता है और थोड़ा दबाव भी बनता है टिकट वितरण में और दूसरी बातों में उस ढंग से जो है लेकिन मीटिंग में कोई खास बात ऐसी हुई नहीं है. बस ये बात जरूरी है कि कांग्रेस की सारी लीडरशिप थी वहां पे. तो एक मैसेज अच्छा जाता है फील्ड में कि कांग्रेस के सीनियर लीडर्स जो है यहां पे आए हुए हैं. दैट वे जो है और रही बात अशोक गहलोत की सीनियर ऑब्जर्वर हैं. वो अकेले क्या कर सकते हैं? तो आप देखिए ना मतलब कि कोई कोई दिशा नहीं कोई बात नहीं है कोई और इतना लेट उनको अपॉइंट किया गया उसमें जो है कम से कम 2 महीने पहले अपॉइंट करते तीन महीने पहले अपॉइंट करते तो ही सच अ सीनियर लीडर वो कोई स्ट्रेटजी बनाते बैठ के सोचते उसके बारे में टूर करते वहां पे अब ठीक है पार्टी का मैंडेट है तो गए वहां पे सीडब्ल्यूसी में बैठे वहां पे अपनी बात भी कही बट दैट वाज़ टू लेट टू यूटिलाइज़ द सर्विसेस ऑफ़ ए सीनियर पर्सन लाइक अशोक गहलोत सर बिहार में कांग्रेस की राजनीति में प्रियंका गांधी के रोल को आप कैसे देखते हैं? कोई खास नहीं है. अभी 24 सितंबर को थी सीडब्ल्यूसी वहां पे गई थी उसमें तो दो दिन बाद फिर वो वहां चली गई वहां पे मोदी जी में मीटिंग थी 26 तारीख को अच्छी मीटिंग थी. वेल अटेंडेड मीटिंग थी. सब कुछ था. उसके बाद से फिर कोई दिशा नहीं है. कोई बात नहीं है. तो प्रियंका गांधी का रोल तो भी देखो राहुल गांधी के साथ-साथ डिसाइड होना थोड़ा सा. वैसे अघोषित तौर पे कहा जा रहा है कि वो कांग्रेस की कैंपेन की इंचार्ज रहेंगी. ऐसा कहा जा रहा है. दैट इज है. लेकिन वहां भी लगता है मुझे कम्युनिकेशन गैप है. जब तक डे टू डे कम्युनिकेशन दोनों के बीच में नहीं होगा भाई बहन के बीच में फिर क्या स्ट्रेटजी आगे कैसे चलना है तो मुश्किल है तो नथिंग मच इज बीइंग सीन इन हर रोल इन बिहार 

    सवाल: सर क्या सच है बिहार में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपने आप को मजबूत करने के लिए जो कांग्रेस के लीडर्स हैं नेता हैं वो अपने बेटे और बेटियों को टिकट दिलाना चाहते हैं? 

    जवाब: आम तौर पे होता है. यह हर पार्टी में नीति होती है. कांग्रेस में ज्यादा है. भाजपा में तो नरेंद्र मोदी का डंडा है. अमित शाह का डंडा है. लोग डरते हैं. ऐसी बातें नहीं करते हैं. उनको पता चलेगी नहीं. इस तरह से जो है और कांग्रेस में तो इस तरह का नहीं है. मतलब कड़ा अनुशासन नहीं है. तो लोग कोशिश करते हैं. तो वहां मैंने सुना है कि अखिलेश प्रसाद सिंह, मीरा कुमार, शकील अहमद, मदन मोहन झा, अवधदेश सिंह इन लोगों ने अपने-अपने बेटे बेटियों को लाने की आगे कोशिश की. लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है क्योंकि राहुल गांधी ने अजय माखन को अपॉइंट किया कि आप देखिए जरा तो अजय माखन ये कर रहे हैं कि हर सीट पे दो आदमियों का पैनल आए कम से कम देन वी विल टेक ए कॉल तो प्रयास कर रहे हैं लेकिन कोई ज्यादा सफलता मिले ऐसा मुझे दिखाई नहीं देता 

    सवाल: आपने सर मीरा कुमार का जिक्र किया बड़ा दलित चेहरा थी उनकी पूरी फैमिली पिताजी तो क्या इस बार भी कांग्रेस ने ये तय किया कि वो एक बार फिर दलित पॉलिटिक्स की तरफ इस बिहार चुनाव में आगे बढ़ेंगे? 

    जवाब: बिलकुल. देखिए बिहार का सक्सेस ही वह हो गया ना गैर यादव पिछड़ा वर्ग दिखता है सबको. दलित महादलित और उसके बाद में आपका पिछड़ा अति पिछड़ा वर्ग जो है तो दलित पॉलिटिक्स है. तो कांग्रेस क्या है कि कांग्रेस कांट गो आउट ऑफ इट. वहां का जो मैंडेट है जो रूल ऑफ़ द डे है वो दलित पॉलिटिक्स है. वो कास्ट पॉलिटिक्स है. ओबीसी पॉलिटिक्स है वहां की. तो कांग्रेस कांट इग्नोर इट. तो कांग्रेस आल्सो हैज़ टू फॉल इन लाइन. 

    सवाल: बिहार विधानसभा चुनाव है और इसी में से खबर निकल कर सामने आ रही है कि राहुल गांधी और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बीच में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. दूरियां बढ़ रही हैं. 

    जवाब: मैंने भी सुना है और वैसे स्वाभाविक भी होगा जो स्टाइल ऑफ फंक्शनिंग है तो उसको देख के फिर ये सब बातें तो सामने आती है ना. दैट वे जो है अब क्या है कि मैंने सुना कि एक बार हेमंत ने उनसे कहा कि जितना आप सोचते थे हमने आपके लिए उससे ज्यादा किया है. ठीक आप हमारे लिए क्या कर रहे हैं? तो राहुल गांधी ने कहा होगा स्वाभाविक तौर पे क्या करना है? तो उन्होंने कहा कि आप एक नेशनल आदर्श आदिवासी पार्टी जो है हमारी वो बनवाएं. उसमें योगदान करिए क्योंकि आसपास के जितने राज्य हैं छत्तीसगढ़ है और दूसरी स्टेट्स हैं वहां. तो इन सब पश्चिम बंगाल है और स्टेट्स में आदिवासी लोग बहुत हैं तो हम एक आदमी पार्टी के साथ बनना चाहते हैं. आप नेशनल पे इसका प्रयास करिए. तो राहुल गांधी कितना कर सकते थे इसमें आप जानते हैं तो बात आगे नहीं बढ़ी. फिर ये मुद्दा आया बिहार के चुनाव का जो है तो उन्होंने कहा चलो आप कुछ टिकटें हमें दिलवा दीजिए. तो राहुल गांधी ने बात की तेजस्वी से तो उन्होंने मना कर दिया साफ जो है और राहुलगांधी क्या करें? तो उनको कहना पड़ा भाई सॉरी दैट इज तो दी टू इंसिडेंट जो है इससे अब क्या है कि रिलेशनशिप वैसी थिकनेस नहीं है तो गुस्से में आकर उन्होंने कदम उठाया हेमंत सेन ने उन्होंने कहा ठीक है कांग्रेस के जितने मंत्री हैं मेरी सरकार में और जो फैसला करेंगे तो दे आर नॉट द फाइनल अथॉरिटी ऑन फाइल ये फाइल मेरे पास आएगी अप्रूवल के लिए हालांकि अनडेमोक्रेटिक है अनयुअल है फेडरल उसके अंदर लेकिन चीफ मिनिस्टर है तो अभी इसे लगता है संबंधों में और कट तो आएगी आने वाले दिनों में ऐसा लगता है मुझे. 

    सवाल: सर इस बार जब बिहार में चुनाव प्रभारी नियुक्त किए गए चाहे भाजपा द्वारा चाहे कांग्रेस द्वारा आपको क्या बेसिक डिफरेंस उनकी कार्यशैली में या सिमिलरिटी नजर आती है सर सिमिलरिटी देखिए सभी पिछड़े वर्ग के हैं दलित वर्ग के हैं कांग्रेस के भी और इनके वर्ग ओबीसीज और इस तरह से हैं और शैली में 
    तो बहुत फर्क है 

    जवाब: देखिए कि भाजपा में सबसे पहले आप देखिए धर्मेंद्र प्रधान को खाटी वर्कर हैं नेता हैं सब हैं कितना अनुभव है उनको पहले झारखंड के इंचार्ज रह चुके हैं और अब यहां की जिम्मेदारी है पार्टी अध्यक्ष बनने तक की बात चलती और क्या है कि ग्रास रूट पे उनका संपर्क है सब नेताओं से और कितने राज्यों के प्रभारी रह चुके हैं वह तो सीरियस हैं प्लस ऊपर से मॉनिटरिंग है अमित शाह का दिल्ली से जो है आप देख रहे हैं विनोद तावड़े हैं ऊपर कोई सीनियर आदमी हैं सीआर पाटिल को लगा रखा है आप अपने साथ यूपी के डिप्टी सीए हैं केशव प्रसाद मौर्या जो हैं उनको आपने लगा रखा तो दे सीरियस पार्टी सीरियस कांग्रेस में आपने अशोक गहलोत को लगाया ठीक है बघेल को लगाया एक कृष्णा के हैं वहां के इंचार्ज उनको वहां से लगाया एक पश्चिम बंगाल में अधीर रंजन है उनको लगाया लेकिन सीरियसनेस नहीं है कांग्रेस में डायरेक्शन नहीं है ना किससे बात करो अशोक गहलोत किससे बात करें वो लोग किससे बात करेंगे क्लेरिटी नहीं है अभी तक एक भी मीटिंग ऐसी नहीं हुई मेरे ख्याल से स्ट्रेटजी बनी हो कि बिहार में हमें क्या करना है आपका क्या रोल है ऑब्जर्वर का क्या रोल है प्रभारियों का क्या रोल है तो बेसिकली क्या है बीजेपी इज़ वेरी सीरियस अंडर द चार्ज ऑफ नरेंद्र मोदी एंड अमित शाह कांग्रेस इज जस्ट कैजुअल एंड द बेसिक रीज़न इज़ एक्सेस टू राहुल गांधी इज वेरी रेस्ट्रिक्टेड 

    सवाल: सर माना जा रहा है कि बदलते परिवेश में बीजेपी की राजनीति भी अब शिफ्ट हो रही है. 

    जवाब: ओबीसी की तरफ बीजेपी की राजनीति शिफ्ट होती दिखाई दे रही. ओबीसी लीडर्स जो हैं बीजेपी के उनको ज्यादा जिम्मेदारी बीजेपी दे रही है. बिल्कुल ठीक कह रहे हैं आप. नरेंद्र मोदी अमित शाह में खास बात क्या समय के साथ अपने आप को बदलते हैं. दे चेंज देर फिलोसफी दे चेंज देर वर्किंग दे चेंज दे डिसीजन मेकिंग प्रोसेस अकॉर्डिंग टू द रिक्वायरमेंट ऑफ द टाइम रिक्वायरमेंट ऑफ द ग्राउंड जो है तो सही है. अब उन्होंने कहा ओबीसी का कार्ड है ओबीसी करेंगे. तो आप ओबीसी के अंदर देखिए कहां से कहां देखिए गुजरात में भी चेंज हुआ वहां का चीफ जो है स्टेट का तो ओबीसी लगाया वहां पे. फिर झारखंड में ऐसी बात चल रही थी. और अगर आप बिहार की बात करते हैं तो पूरा का पूरा ही जो है ओबीसी है. विनोद तावड़े ओबीसी धन प्रधान ओबीसी एक सीआर पाटिल को छोड़ दीजिए नीचे मौर्या जो है फिर ओबीसी दैट वे जयसवाल जो हैं पार्टी अध्यक्ष बिहार में भाजपा के वो वो ओबीसी और सम्राट चौधरी तो सारे ओबीसी हैं. तो फैक्ट है कि बीजेपी ने समय के रिक्वायरमेंटके हिसाब से अपने आप को दलित और यह जो है ओबीसी इसके पॉलिटिक्स पर अपने को फोकस कर लिया एंड दे वांट टू प्रमोट ऑल दी कम्युनिटीज़ और उनकी जो स्ट्रेटजी है उनकी जो पॉलिसी है इट इज़ यील्डिंग बिग रिजल्ट्स हाई रिजल्ट्स तो कर रहे हैं इसको नथिंग सक्सीड सक्सेस तो चलेगा. 

    सवाल: आखिर पप्पू यादव और कन्हैया कुमार कांग्रेस से नाराज क्यों है? 

    जवाब: वो भी द सेम थिंग कोई धनी धोरी नहीं होता देखने वाला करने वाला. कोई कोई कोऑर्डिनेट करने वाला नहीं होता सामने कोई जिम्मेदारी किसी को दी नहीं होती. अब दोनों इंपॉर्टेंट लोग हैं. तो वहां पे हुई थी पटना में कहीं बिहार में जो है एक जन आक्रोश रैली हुई थी. जी तो सारे गाड़ी घोड़े इन लोगों ने जुटाए. सारे झंडे पोस्टर ये सब लोगों ने किया. वहां पे जो है तो दोनों जब चढ़ने लगे मंच पे तो मंच पे इनके बैठने की जगह ही नहीं थी उस रैली में. जी जो मंच बना था राहुल गांधी थे जिस पे और तेजस्वी थे उस पे जो है तो जगह नहीं थी अब क्या होता है भीड़ में जब मंच पे जगह नहीं होती आप उतरते हैं बहुत धक्के पड़ते हैं मैंने तो देखा कई द रैलियों में इनके भी धक्के पड़े तो गिर गए आते समय जो है तो मन में बड़ा भाव खराब आया कि यार हमारा क्या मान सम्मान है बताओ यहां पे जो है और फिर उनको ऐसा लगा कि जो लोकल लीडरशिप है वहां की वो हमारे खिलाफ हैं क्योंकि एक तो है पप्पू यादव साथ हैं इसके खाली इसके नहीं है जो है तो पप्पू यादव तो हैं प्रियंका के करीब और कन्हैया कुमार जो हैं यह हैं उसके राहुल गांधी के करीब तो लोकल टसल चलती है वहां पे कि यह हाईकमान के लोग हैं. ऐसी जेलसी दैट विज है तो क्या पब्लिकली दे वर दे वर हिमुलेटेड एंड दे वर साइडलाइट जो है ये और किसी ने फिर उनसे माफिया भी नहीं मांगी उनको कंट्रोल नहीं किया ठीक से तो दे आर अपसेट कि वो जाए कहां वो बैठे हुए हैं दोनों सोच रहे हैं बिहार में क्या काम करेंगे ऐसे माहौल में लेट अस सी 

    सवाल: सर आखिर ऐन वक्त पर अखिलेश यादव पीछे क्यों हटे बिहार में उम्मीदवार उतारने से? 

    जवाब: वो समझदार आदमी हैं. उनको मालूम है सीटों का झगड़ा जब आरजेडी और कांग्रेस में ही नहीं बट रहा. हम बीच में कहां जाएंगे? दैट इज है. और रिक्वायरमेंट आएगी चुनाव में चुनाव में आएंगे. रैली में प्रचार करेंगे आ कर के. दैट इज़ है. उन्होंने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे. सबसे बड़ी बात ये है दैट वे. उनका फोकस यूपी में है. अदरवाइज भी. तो होता है दूसरे में जबरदस्ती टांग अड़ाने से कोई मतलब नहीं है. बिहार में जो है. तो उन्होंने कोई अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किए. बस मोरली एंड इन प्रिंसिपल ही इज विद तेजस्वी. 

    सवाल: सर बांका से जेडीयू के बागी सांसद हैं गिरधारी यादव. पार्टी के प्रति अनुशासन हीनता के कई बार उन पर आरोप भी लगे और कई बार ऐसी तस्वीरें भी निकल कर सामने आई. लेकिन उसके बावजूद भी नीतीश कुमार की तरफ से उनके प्रति कोई कारवाई नहीं की गई. ऐसा क्यों सर? 

    जवाब: वह ऐसा इसलिए होता है ना कि पॉलिटिकल कंपल्शनंस समय की बात और कभी-कभी ऐसा होता है कि 10 लोग अनुशासन हिंता कर रहे हैं और किस-किस को पकड़े किसका क्या-क्या करें इनकी थोड़ी ज्यादा थी. एक तो एमपी हैं चार बार के एमपी हैं और एसआईआर जो हुआ था बिहार में उसका विरोध कर रहे हैं. कह रहे हैं चुनाव आयोग ठीक से काम नहीं कर रहा. उन्होंने जल्दबाजी में काम किया है. आधार कार्ड को मानना चाहिए था इनको. क्यों नहीं माना गया? तो स्पीकिंग इन डिफरेंट लैंग्वेज तो पार्टी का मन था कि निकालो कारण बताओ नोटिस दिया जवाब भी आ गया फिर किसी ने समझाया होगा नीतीश कुमार को दिल्ली वालों ने कहा होगा अभी एक नया फ्रंट मत खोलो चुनाव का टाइम है अभी वैसे भी 240 पे चल रहे हैं एक आदमी क्यों इधर-उधर और सपोर्ट के हिसाब से दाएं बाएं करो तो एक लीनियंट व्यू लिया गया चुनाव को देखते हुए एंड दैट्स ऑल ही सर्वाइव्ड 

    सवाल: क्या बिहार के चुनाव में राजनीति में हिंदुत्व फैक्टर भी है अयोध्या में राम मंदिर की तर्ज पर बिहार में बनता हुआ सीतामढ़ी मंदिर क्या हिंदू वोटर्स को आकर्षित कर पाएगा? 

    जवाब: मैं यह तो नहीं कहूंगा कि हिंदुत्व फैक्टर नहीं है और सर्टेनली लेस देन अदर स्टेट्स और मंदिर अपनी जगह सही है. बहुत समय से मन में था लोगों के कि एक मंदिर वहां बनना चाहिए. अयोध्या की तर्ज पे मंदिर बना. अमित शाह खुद गए. पूजा विधान से उन्होंने उसकी भूमि पूजन वहां पे जो है उन्होंने उसको किया. 152 फीट का है. शायद ऊंचा मंदिर जो है केवल 10 फीट का फर्क है. 10 या 5 फीट का एक फर्क है. अयोध्या मंदिर और उसकी ऊंचाई के अंदर 900 करोड़ का बजट है.  लेकिन गवर्नमेंट बना रही है पब्लिक इंटरेस्ट है. मंदिर को जो है और ऐसा माना जाना चाहिए कि मंदिर बनता है तो लोगों में आस्था जागृत होती है. वहां पे अमित शाह खुद गए थे. हो सकता है जब उसका इनगरल कोई ऐसी सिचुएशन आए तो प्रधानमंत्री खुद भी जाएं वहां पे दैट वे. तो ठीक है एक फोकस बनता है हिंदू सेंटीमेंट का रिलीजियस सेंटीमेंट का तो फायदा यह है चुनाव में उसके आसपास की कॉन्स्टिट्यूएंसी में उसका लाभ मिलेगा बीजेपी को.

    सवाल: सर अब मंदिर की बात निकली है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आंध्र प्रदेश के श्री शैलम मंदिर की तस्वीरें उनकी तरफ से जारी की गई हैं तो इन तस्वीरों पर आप क्या कहना चाहेंगे? 

    जवाब: यहां पे ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ ये दोनों एक ही जगह पे इस मंदिर की अद्भुत विशेषता है ये और आप देखिए तस्वीर देखिए 
    अब ये तो नरेंद्र मोदी तो ऐसा नहीं इज़ अ बोर्न एडमिनिस्ट्रेटर ही इज़ अ बोर्न सन्यासी ही इज़ अ बोर्न साधु आल्सो आल्सो ही इज़ अ बोर्न पुजारी आल्सो आप देखिए उनको ऐसा लगता है कि अद्भुत है मतलब पुजारी देख के हैरान आप देखिए किस ढंग से वो पूजा कर रहे हैं आंखें बंद करके बैठ के दोनों हाथ जोड़ के जो है और कैसे वो स्वीकार कर रहे हैं आशीर्वाद जो है और फिर देखिए ये पीली  शाल और ये सब पहन के कैसे एक एकाग्रचित हो के वो पूजा कर रहे हैं अद्भुत मैंने कई और मंदिरों में उनको पूजा करते हुए ऐसे चित्र  देखे हैं उनके इस तरह के तो गॉड गिफ्ट है जितने प्रधानमंत्री दिखते हैं उतने वो सन्यासी पुजारी आध्यात्मवा आदी भी दिखते हैं ये तो आज की तीसरी बड़े आकर्षक हैं. एंड दिस इज ऑल गॉड गिफ्ट. 

    सवाल: सर हिंदुत्व की बात हो रही तो बिहार विधानसभा चुनाव में कुछ लोग हिंदू राष्ट्र यात्रा निकालने की सोच रहे हैं, कोशिश कर रहे हैं. अगर यह यात्रा निकलती है इसका क्या असर होगा और क्या दलों को इससे फायदा होगा? देखो ऐसा है इसमें कि हिंदू का एक सेंटीमेंट तो चल ही गया सनातन का. आजकल छोटे-छोटे कस्बों में ऐसे साधु सन्यासी जिन्हें कोई जानता नहीं था. मठ में रहते थे अपने. वो भाषण देने जाते हैं. 2000 पुरुष महिलाएं उनको सुनने आते हैं. उनका तो पुनर्जन्म हो गया इस सनातन के प्रचार में. दैट इज अभी वहां पटना में सम्मेलन हुआ था. बड़ा सनातन महा सम्मेलन जो है और उसमें बड़े-बड़े लोग गए थे. आप देखिए उसमें जो है धीरेंद्र शास्त्री गए. श्री रामभद्राचार्य गए उस महाकुंभ में. तो वो  लोग सोच रहे हैं कि ऐसी यात्रा भी निकाली जाए चुनाव के दौरान. एक माहौल बनता है हिंदू सेंटीमेंट को आपको आगे करने का उसको  प्रमोट करने का जो है तो दिस इज़ ऑल तो एक नया चुनाव प्रचार का एक नया तरीका हो गया आजकल सनातन धर्म की कोई यात्रा निकालो किसी बड़े पुजारी सन्यासी को बुला के उसका भाषण करवाओ किसी मठाधीश का मठ के स्वामी का बुला के उसका भाषण करवाओ वहां पे जो है तो ये नई टेक्निक है चुनाव प्रचार की और लोगों को सनातन से जोड़ने की स्वागत है 

    सवाल: क्या यह सच है कि इस बार भाजपा के कई सांसद और जेडीयू के कई बड़े ऐसे नेता हैं जो चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं. ऐसा है तो क्यों? 

    जवाब: ऑफ कोर्स चुनाव से हर कोई डरता है. अब अच्छे भले एमपी बैठे हुए हैं बनके. अब किसी ने कहा होगा एमएलए उतारते हैं वहां अच्छे खांटी कैंडिडेट लाते हैं, जिताने वाले कैंडिडेट लाते हैं. तो मुझे ऐसा लगता है कि नित्यानंद राय से कहा होगा, गिरराज सिंह से कहा होगा, राजीव प्रताप रूडी से कहा गया होगा. ऐसी चर्चा है ये. तो सब ने कहा होगा भाई क्षमा हमें यहीं काम कर रहे हैं. ठीक से बैठे हुए हैं. यहीं रहने दो. कहां चुनाव में उतरेंगे, जीतेंगे, हारेंगे. पता नहीं क्या होता है. ये चर्चा  ऐसी और फिर मन हो गया अमित शाह का अग्नी चुनाव लड़ना है और प्रधानमंत्री जी ने ओके कर दिया ठीक है तो फिर लड़ना पड़ेगा लेकिन अभी तो क्योंकि टिकटें डिक्लेअर हो गई है सारी आप देखिए सारी की सारी एक से एक उनका किसी का नाम नहीं है तो इट्स अ हिस्ट्री नाउ ओनली इट इज़ ए ओल्ड स्टोरी क्लोज्ड दे 
    आर लकी 

    सवाल: जो बिहार चुनाव में बिहार से सटी हुई जो उत्तर प्रदेश वाली सीटें हैं आपको लगता है वो यूपी फैक्टर वहां नजर आएगा आपको आता है. 

    जवाब: बिल्कुल आता है आप देखिए देखिए 19 सीटें हैं शायद ऐसी जो है वहां की संस्कृति भाषा सब ये मिलते जुलते हैं तो इनमें होता है प्रचार प्रसार दैट वे जो है 
    पिछली बार भी था ये सीटों का था तो उसमें 10 सीटें तो आरजेडी ले गया था और नौ सीटें एनडीए को मिली थी कंपटीशन वहां भी रहता है लेकिन एक असर होता है तो ये भी एक फैक्टर है कि जो सीटें यूपी की सीटें हैं जो बिहार से जुड़ी हुई हैं या इसको रिवर्स करके बिहार की सीटें यूपी से जुड़ी हुई हैं यूं कहिए इसको जो है तो उनमें ये इसका इंपैक्ट होता है लोकल लीडर्स जाते प्रचार करते हैं वहां पे जो है तो आप देखिए इस बार किस-किस पार्टी का बहुमत है लेकिन कोई बहुत बड़ा गेम नहीं है. 19 है वो 10 9 थे इस बार क्या है 8 9 हो जाएंगे 10 9 हो जाएंगे समथिंग लाइक दिस ऐसा हो जाएगा 

    सवाल: एक योगी फैक्टर है आज ही उन्होंने सहरसा और दानापुर में जो दौरा किया है यात्रा की है चुनाव की तो उसका रिस्पांस आप कैसा देखते हैं 

    जवाब: योगी का रिस्पांस तो अद्भुत रहता है हमेशा पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी मानता है कि योगी इज़ ए क्राउड पुलर ये लीडरशिप मानती है दिल्ली में भी इस बात को जो है और वो भी क्या है उनको जो दायित्व सौंपा जाता है उसको अच्छे से करते हैं और यूपी में मैंने सुना है शासन की पहली बार यह सभाएं हुई हैं. इस तरह से जो है तो इन चॉइस में भी जाएंगे औरों में भी जाएंगे. तो योगी क्या है कि सक्सेस रेट बहुत ज्यादा है उसकी. ऑलमोस्ट 80 90% रहती है. कुछ इस तरह से जो है तो योगी का अराइवल जो है एक यह बीजेपी के लिए एक अच्छी खबर है. एक वन मोर कंट्रीब्यूशन वन मोर जिसे कंट्रीब्यूटिव फैक्टर योगी जो है और ऐसी आशा की जानी 
    चाहिए कि पार्टी योगी को और उतारेगी मैदान में आगे और नहीं करते-करते उनकी एक दर्जन सभाएं तो कर ही देंगे योगी की है. लेकिन बहरहाल आज उनका ओपनिंग रिस्पांस था योगी का दो सभाओं में वो काफी अच्छा था. 

    सवाल: लल्लन सिंह केंद्रीय मंत्री हैं. जेडीयू से सांसद हैं और बिहार विधानसभा का चुनाव भी है. ऐसे में उनकी भूमिका कितनी बड़ी नजर आती है आपको इस चुनाव में भी और जेडीयू में भी 

    जवाब: उनका जो पर्सनालिटी है इन द सेंस कि डबल एंपावरमेंट है उनकी पर्सनालिटी का दैट वे जो है एक तरफ नीतीश कुमार के खास हैं. ठीक 
    है? केंद्रीय मंत्री हैं, केंद्रीय मंत्रिमंडल में हैं. आप यह देखिए और दूसरी तरफ क्या? अमित शाह के खास हैं, प्रधानमंत्री के खास हैं. यह नीतीश कुमार और दिल्ली के बीच में पुल का काम करते हैं. पावरफुल हैं. बहरहाल अभी नीतीश कुमार का को भाजन का शिकार हो गए थे तीन दिन पहले. जब उन्होंने कहा कि तुम लोगों ने मेरे से बिना पूछे क्यों ओके किया यह 39 सीटें चिराग पासवान को मुझसे पूछा नहीं. अब वो क्या बताएं? क्या पूछना है? मोटे तौर पे सहमति हो गई है. और वो भी जानते हैं कि नीतीश कुमार का कितना सही है दिल्ली में इस काम में. ठीक है ना? और सच्चाई तो यह है कि आज नीतीश कुमार अगर सुरक्षित हैं पटना में तो उसमें संजय झा और इनका रोल है. पॉलिटिकली कोई मुख्यमंत्री कितना सुरक्षित है एक विषय है ना तो उसमें इनका रोल है कि नीतीश कुमार पटना में चैन की नींद सोते हैं. सरकार से पैसे का सवाल है, पॉलिटिकल सेफ्टी का सवाल है, और इश्यूज का सवाल है, एजेंसीज का सवाल है. तो उनको जिसे क्या कहना चाहिए? फ्री हैंड है. 

    एक तरह से मतलब सुरक्षा कवच है. तो यह उनके दो सेनापति दिल्ली में उनका सुरक्षा कवच का प्रबंध करते हैं. तो उसमें एक ललन सिंह भी हैं. दैट विज है और पॉजिटिव लोग हैं, अच्छे लोग हैं और पॉपुलर लोग हैं और ग्राउंड की रियलिटी को समझते हैं, जानते हैं और नीतीश कुमार के खेमे में भी एक आशा की किरण है कि कभी नीतीश कुमार उनका वो ऑन ऑफ जो कहते हैं उनके लोग ऑन ऑफ हो जाता है, कभी ऑफ हो जाए और कुछ और कोई गलत कदम उठा लें तो उसमें उनको रोकने के लिएउनके लक्ष्मण रेखा में उनको बांधने के लिए इन दोनों की भूमिका है. तो ललन सिंह इज़ अ पॉजिटिव फैक्टर. सर रोल और भूमिका की ही बात हो रही है तो बिहार के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी और पशुपति पारस के रोल को उनकी भूमिका को आप कैसे देखते हैं? पशुपति पारस तो एक बस ऐसी एक अच्छी बात कहने वाले हैं कि भ मेरा भतीजा लड़ रहा है और वो राजा बने, यह बने मेरी शुभकामनाएं. ठीक है. एक खुश है. ठीक है. राजी और उपेंद्र कुशवाहा स्मार्ट आदमी हैं. आप देखिए जो है सो उनका अच्छा है. सब कुछ जो है आए थे मिले और अपना काम भी उनके हो गए सारे. वहां भी उनकी अच्छी पहचान है. सुलझे हुए आदमी हैं. दैट वे जो है और दिल्ली के भी करीब हैं और नीतीश के भी करीब हैं. दैट वे तो ही इज़ अ सक्सेसफुल पॉलिटिशियन. और मुकेश सहनी 

    बिहार के चुनाव में ये कहा जाता है कि जाती है जो कभी जाती नहीं है. इस बार एसआईआर का मुद्दा जमीन पर उतारने की कोशिश की गई. वोट चोरी का नैरेटिव बनाने की कोशिश की गई. नतीजों के दिन यह पता चलेगा कि यह नैरेटिव कितना जमीन पर उतरा है. साथ ही यह भी पता चलेगा कि वहां की जनता क्या विकास की डोर को पकड़ कर आने वाले समय में आगे बढ़ना चाहती है. पूरे बिहार चुनाव को लेकर एनडीए का जो विक्ट्री प्लान है उसको लेकर और महागठबंधन की पॉलिटिक्स है उसको लेकर जो आपका कंप्लीट एनालिसिस आज के जेसी शो में रहा उसके लिए सर आपका बहुत-बहुत शुक्रिया. नतीजों के दिन अब देखिए बिहार की जनता के मन में काबा भगवा फहराई या खेल पलटी और साथ ही यह भी पता चलेगा कि बिहार की राजनीति में क्या नितीश नाम केवलम है या फिर एक और नाम के साथ बिहार नई दिशा में बढ़ता हुआ नजर आएगा. बहुत-बहुत शुक्रिया आप सभी का आज द जेसी शो का हिस्सा बनने के लिए.