मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के वन मंत्री के. पोनमुडी के विवादास्पद बयान पर कड़ी नाराज़गी जताते हुए राज्य पुलिस से पूछा है कि अब तक उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है. कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर मंत्री के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई तो पुलिस को अवमानना का सामना करना पड़ सकता है. इस मामले की अगली सुनवाई 23 अप्रैल को तय की गई है.
'ऐसा नहीं लगता कि पोनमुडी की जुबान फिसली थी'
दरअसल, यह टिप्पणी उस समय चर्चा में आई जब एक वायरल वीडियो में पोनमुडी को महिलाओं और धार्मिक प्रतीकों (शैव-वैष्णव परंपराओं) को लेकर अशोभनीय टिप्पणी करते हुए सुना गया. हाईकोर्ट इस दौरान पोनमुडी की आय से अधिक संपत्ति के मामले में बरी किए जाने के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रहा था. उसी दौरान न्यायमूर्ति एन. वेंकटेश ने मामले का संज्ञान लेते हुए राज्य के महाधिवक्ता पीएस रमन को तलब किया और मंत्री के बयान पर अपनी नाराजगी जताई.
जस्टिस वेंकटेश ने टिप्पणी की कि वीडियो को देखने से ऐसा नहीं लगता कि पोनमुडी की जुबान फिसली थी. उन्होंने यह बयान पूरी जागरूकता और होश में दिया. साथ ही अदालत ने साफ कर दिया कि माफीनामे से ऐसी टिप्पणी के असर को हल्का नहीं किया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट की ओर से हेट स्पीच को लेकर पूर्व में दिए गए निर्देशों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि संविधान के तहत नागरिकों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए. कोर्ट ने तमिलनाडु पुलिस प्रमुख से रिपोर्ट तलब की है कि अब तक इस मामले में क्या कदम उठाए गए हैं.
क्या कहा था पोनमुडी ने?
विवादित वीडियो में के. पोनमुडी एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान एक आपत्तिजनक किस्सा सुनाते नजर आते हैं. उन्होंने कथित तौर पर एक सेक्स वर्कर और ग्राहक के बीच बातचीत को मजाक के तौर पर पेश किया, जिसमें धार्मिक प्रतीकों के आधार पर अशोभनीय इशारे किए गए. इस बयान को महिलाओं और धार्मिक भावनाओं के लिए अपमानजनक माना गया.
माफीनामा आया, लेकिन विवाद नहीं थमा
12 अप्रैल को बयान के खिलाफ देशभर में बढ़ते विरोध के बाद पोनमुडी ने सार्वजनिक माफीनामा जारी किया, जिसमें उन्होंने अपने शब्दों के लिए खेद जताया. उन्होंने कहा कि उनके भाषण से अगर किसी की भावनाएं आहत हुई हैं तो वे दिल से माफी मांगते हैं.
गौरतलब है कि इससे पहले के. पोनमुडी को आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में दोषी पाए जाने के बाद मंत्री पद से हटाया गया था. सुप्रीम कोर्ट द्वारा सजा पर रोक लगाए जाने के बाद उन्हें फिर से तमिलनाडु सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था.
मद्रास हाईकोर्ट का यह सख्त रुख न केवल अभिव्यक्ति की सीमाओं की ओर इशारा करता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि सार्वजनिक पदों पर बैठे व्यक्तियों की जवाबदेही को लेकर अदालतें किसी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं करेंगी.
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