बच्चों को अंधेरी गलियों में धकेल रहा सोशल मीडिया का एडिक्शन, सेहत पर पड़ता है बुरा असर, जानें इसके नुकसान

    आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया बच्चों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है. फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट जैसे प्लेटफॉर्म पर बच्चे अपने दोस्तों से जुड़ते हैं, नए-नए कंटेंट देखते हैं और खुद को व्यक्त करते हैं. लेकिन क्या हम जानते हैं कि इस ‘डिजिटल दुनिया’ के पर्दे के पीछे बच्चों की मानसिक और शारीरिक सेहत पर कितना गंभीर प्रभाव पड़ सकता है?

    Social Media s Negative Effects on Children Health
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    आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया बच्चों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है. फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट जैसे प्लेटफॉर्म पर बच्चे अपने दोस्तों से जुड़ते हैं, नए-नए कंटेंट देखते हैं और खुद को व्यक्त करते हैं. लेकिन क्या हम जानते हैं कि इस ‘डिजिटल दुनिया’ के पर्दे के पीछे बच्चों की मानसिक और शारीरिक सेहत पर कितना गंभीर प्रभाव पड़ सकता है? हाल के अध्ययनों ने साफ किया है कि कम उम्र के बच्चे जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं, उनमें कई तरह की नकारात्मक आदतें और समस्याएं पनप सकती हैं. आइए समझते हैं सोशल मीडिया का बच्चों पर क्या असर पड़ता है और माता-पिता को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.

    बच्चों में बढ़ता सोशल मीडिया का क्रेज़

    नेशनल सर्वे के मुताबिक, 11 से 15 साल की लगभग 33% लड़कियां खुद को सोशल मीडिया की लत में फंसी हुई महसूस करती हैं. इसके साथ ही आधे से अधिक टीनएजर्स का कहना है कि सोशल मीडिया छोड़ना उनके लिए मुश्किल होगा. बच्चों के लिए सोशल मीडिया एक ऐसा मंच बन गया है जहाँ वे अपनी पहचान बनाना चाहते हैं, लेकिन यह उन्हें कई बार मानसिक दबाव में भी डाल देता है.

    बॉडी इमेज और आत्मसम्मान पर बुरा असर

    सोशल मीडिया पर अक्सर परफेक्ट बॉडी और परफेक्ट लाइफ की झलक दिखायी जाती है, जो बच्चों के लिए चिंता का कारण बनती है. 13 से 17 साल के लगभग 46% टीनएजर्स ने माना है कि सोशल मीडिया ने उनकी बॉडी इमेज को लेकर नेगेटिव फीलिंग्स दी हैं. बच्चों में ईटिंग डिसऑर्डर, आत्मसम्मान की कमी जैसी समस्याएं बढ़ने लगी हैं. विशेषज्ञ डॉ. विजय राठौर बताते हैं कि सोशल मीडिया पर दिखाया गया ‘परफेक्ट लुक’ अक्सर असली नहीं होता, फिर भी बच्चे इसे अपनी तुलना करते हैं और खुद को कमतर समझने लगते हैं.

    साइबरबुलिंग: एक छुपा हुआ खतरा

    सोशल मीडिया पर सबसे खतरनाक समस्या है साइबरबुलिंग. यह एक ऐसी मानसिक हिंसा है जिसमें बच्चे या टीनएजर्स को ऑनलाइन धमकाया, अपमानित या शर्मिंदा किया जाता है. 64% टीनएजर्स का कहना है कि वे कभी-कभी या अक्सर नफरत भरे कंटेंट का सामना करते हैं. डॉ. राठौर के अनुसार, साइबरबुलिंग से बचना मुश्किल होता है क्योंकि यह 24 घंटे ऑनलाइन मौजूद रहती है, जिससे बच्चों का मनोबल गिरता है और वे डिप्रेशन में जा सकते हैं.

    ऑनलाइन खतरे: प्रेडेटर्स और गलत जानकारी

    सोशल मीडिया पर बच्चों के लिए एक बड़ा खतरा ऑनलाइन प्रेडेटर्स का भी है, जो बच्चों को निशाना बनाकर उनका शोषण करते हैं. कुछ लोग बच्चों से पैसे वसूलने, सेक्सुअल अब्यूज करने या गैरकानूनी ड्रग्स बेचने की कोशिश करते हैं. बच्चों के लिए यह समझना मुश्किल होता है कि कौनसी बातें ऑनलाइन शेयर करनी चाहिए और कौनसी नहीं. इसलिए पेरेंट्स के लिए यह बेहद जरूरी है कि वे बच्चों से सोशल मीडिया के संभावित खतरों पर खुलकर बातचीत करें.

    खतरनाक वायरल ट्रेंड्स

    सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले कुछ ट्रेंड्स खतरनाक साबित हो सकते हैं. ऐसे ट्रेंड्स को ट्राई करने से बच्चे कभी-कभी खुद को शारीरिक नुकसान में डाल देते हैं, जो अस्पताल में भर्ती होने या पुलिस के हत्थे चढ़ने तक का कारण बन सकता है. बच्चों की सोच पूरी तरह से परिपक्व नहीं होती कि वे इन ट्रेंड्स के नतीजों को समझ सकें. इसलिए पेरेंट्स को बच्चों को इन खतरों के बारे में जागरूक करना चाहिए.

    बच्चे के व्यवहार में बदलाव के संकेत

    सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल से बच्चों के व्यवहार में कई बदलाव देखे जा सकते हैं. जैसे- चिड़चिड़ापन, चिंता (एंग्जाइटी), डिप्रेशन, नींद की कमी, आत्मसम्मान की गिरावट, ध्यान केंद्रित करने में समस्या आदि. जब पेरेंट्स बच्चों से सोशल मीडिया छोड़ने या होमवर्क करने को कहते हैं, तो बच्चों में गुस्सा और नाराज़गी बढ़ सकती है. यह सब संकेत हैं कि सोशल मीडिया के कारण बच्चे मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित हो रहे हैं.

    रोकथाम के लिए जरूरी कदम

    डॉ. विजय राठौर के मुताबिक, अगर बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर नियंत्रण नहीं रखा गया, तो आने वाले समय में इन समस्याओं का दायरा और बढ़ सकता है. इसलिए माता-पिता के लिए यह जरूरी है कि वे अपने बच्चों के स्मार्टफोन और इंटरनेट डिवाइसेज के इस्तेमाल को सीमित करें. छोटे बच्चों को फोन पकड़ाने की आदत से बचाएं और स्कूल जाने वाले बच्चों को फोन तभी दें जब बिल्कुल जरूरी हो.

    पेरेंट्स के लिए सलाह: सक्रिय निगरानी और संवाद

    माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों के डिजिटल कंटेंट पर निगरानी रखें और समय-समय पर उनसे सोशल मीडिया पर क्या हो रहा है, किस तरह की चीजें देख रहे हैं, इस पर बात करें. बच्चों के साथ खुला संवाद बनाएं ताकि वे अपने अनुभव साझा कर सकें. इससे बच्चे सोशल मीडिया के संभावित खतरों को समझ पाएंगे और जरूरत पड़ने पर मदद भी मांग सकेंगे.

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