'हम हैं मिलिटेंट, हमें चाहिए जिहाद...' बांग्लादेश की मस्जिद में ISIS के झंडे लहराते हुए लगे नारे

    बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हाल ही में सामने आई कुछ घटनाओं ने देश की आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता को लेकर गंभीर चिंताएं खड़ी कर दी हैं.

    Slogans raised while waving ISIS flags in Bangladesh mosque
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    ढाका: बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हाल ही में सामने आई कुछ घटनाओं ने देश की आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता को लेकर गंभीर चिंताएं खड़ी कर दी हैं. राष्ट्रीय मस्जिद बैतुल मुकर्रम के बाहर शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद हुए प्रदर्शनों में कुछ कट्टरपंथी संगठनों की खुली मौजूदगी देखी गई, जिससे यह संकेत मिल रहा है कि लंबे समय से दबे कट्टरपंथी विचार फिर से सर उठा रहे हैं.

    क्या देखा गया?

    नमाज के बाद मस्जिद के बाहर जुटी भीड़ में "जिहाद चाहिए, जिहाद से जीना है", "नारा-ए-तकबीर, अल्लाहु अकबर", "कौन हैं हम? मिलिटेंट, मिलिटेंट", और "इस्लामी बांग्लादेश में काफिरों के लिए कोई जगह नहीं" जैसे नारे लगाए. कुछ लोगों ने अपने हाथों में बैनर और पोस्टर थाम रखे थे जिन पर कट्टरपंथी संदेश लिखे थे. ऐसा दावा किया गया है कि इनमें हिज्ब उत-तहरीर, अंसार अल-इस्लाम, जमात-ए-इस्लामी और अन्य प्रतिबंधित संगठनों के समर्थक शामिल थे.

    संगठन प्रतिबंधित, लेकिन सड़कों पर सक्रिय

    बांग्लादेश में ये संगठन कानूनी रूप से प्रतिबंधित हैं, क्योंकि अतीत में इनका नाम आतंकी गतिविधियों और बम धमाकों से जुड़ा रहा है. लेकिन अब ये फिर से सार्वजनिक रूप से दिखाई देने लगे हैं—पोस्टर, नारे और रैलियों के माध्यम से.

    सत्ता परिवर्तन के बाद बड़ी रिहाइयां

    5 अगस्त को देश में सत्ता परिवर्तन के बाद, कई कट्टरपंथी विचारधारा से जुड़े कैदियों को जमानत पर रिहा किया गया है. जेल विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, 300 से अधिक ऐसे आरोपी अब जेल से बाहर हैं, जिन पर कभी आतंक से जुड़ी धाराएं लगी थीं.

    विशेष रूप से जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) से जुड़े 148 आरोपी पिछले 11 महीनों में रिहा हो चुके हैं. इनमें से कई के तार हिज्ब उत-तहरीर, अंसारुल्लाह बांग्ला टीम और हमजा ब्रिगेड जैसे संगठनों से जुड़े रहे हैं.

    प्रमुख कट्टरपंथियों की भी रिहाई

    खबर है कि अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के कथित प्रमुख मुफ्ती जसीमुद्दीन रहमानी को भी जमानत मिल चुकी है. उन्हें हाल ही में सुरक्षा घेरे के साथ सार्वजनिक रूप से देखा गया, जहां वे इस्लामी नारे लगाते नज़र आए.

    राजनीतिक माहौल में बदलाव?

    इसी बीच जमात-ए-इस्लामी ने भी राजधानी में एक बड़ी रैली का आयोजन किया, जिसमें बड़ी संख्या में कार्यकर्ता शामिल हुए. रैली में भाग लेने आए कुछ लोग पारंपरिक पोशाक में थे, तो कुछ की टी-शर्ट पर लिखा था – “पहला वोट लुटेरों के खिलाफ” और “वोट दो तराजू को”.

    राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन घटनाओं से साफ है कि धार्मिक कट्टरता को एक बार फिर सार्वजनिक मंच मिल रहा है और ये बदलाव सत्ता परिवर्तन के तुरंत बाद और भी स्पष्ट हो गए हैं.

    ये भी पढ़ें- बित्रा द्वीप पर कब्जा क्यों करना चाहती है भारत सरकार? चीन, तुर्की, मालदीव को घेरने की हो रही तैयारी!