गलती पाकिस्तान की फायदा भारत का, शिमला डील को लेकर कह डाली ये बात; अब Pok पर भी बन सकती बात!

    भारत-पाकिस्तान के बीच 1972 में हुए शिमला समझौते को लेकर पाकिस्तान ने अब आधिकारिक रूप से अपनी स्थिति बदल ली है. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक पाकिस्तानी न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में दावा किया कि यह समझौता अब “Dead Document” बन चुका है और भारत-पाकिस्तान के बीच की स्थिति अब पहले जैसी हो गई है.

    Shimla Agreement Deal Khawaja Asif remarks dead document
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    भारत-पाकिस्तान के बीच 1972 में हुए शिमला समझौते को लेकर पाकिस्तान ने अब आधिकारिक रूप से अपनी स्थिति बदल ली है. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक पाकिस्तानी न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में दावा किया कि यह समझौता अब “Dead Document” बन चुका है और भारत-पाकिस्तान के बीच की स्थिति अब पहले जैसी हो गई है. उन्होंने कहा कि अब दोनों देशों के बीच Line of Control (LoC) को सीजफायर लाइन की तरह माना जाना चाहिए.

    क्या है शिमला समझौते को 'डेड डॉक्यूमेंट' कहने का मतलब?

    पाक रक्षा मंत्री का यह बयान ऐसे समय आया है जब हाल ही में भारत द्वारा पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर की गई जवाबी कार्रवाई और चार दिनों तक चले सीमावर्ती संघर्ष ने दोनों देशों के बीच तनाव को फिर से बढ़ा दिया है. ख्वाजा आसिफ के मुताबिक, अब पाकिस्तान भारत से जुड़े मुद्दों को द्विपक्षीय नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने का रास्ता अपनाएगा, जो कि शिमला समझौते की भावना के बिल्कुल विपरीत है.

    भारत के लिए क्यों खुल सकता है बड़ा मौका?

    शिमला समझौते के अंत की घोषणा का सबसे बड़ा प्रभाव पाकिस्तान पर ही पड़ सकता है, खासकर कश्मीर के चुंब सेक्टर को लेकर. यह क्षेत्र 1949 के सीजफायर एग्रीमेंट के तहत भारत का हिस्सा था, लेकिन पाकिस्तान ने 1965 में इस पर कब्जा कर लिया था. 1971 की लड़ाई में भारत ने इसे फिर से हासिल कर लिया, लेकिन 1972 के शिमला समझौते के तहत यह पाकिस्तान को सौंप दिया गया, और तब से यह पाकिस्तान के नियंत्रण में है. अब, जब पाकिस्तान ने स्वयं इस समझौते को ख़त्म मान लिया है, तो भारत के पास इसे फिर से अपने नियंत्रण में लेने का वैधानिक और सामरिक आधार तैयार हो गया है.

    चुंब सेक्टर: सुरक्षा और रणनीति के लिहाज़ से अहम

    चुंब सेक्टर जम्मू-कश्मीर के लिए बेहद रणनीतिक महत्व रखता है. पाकिस्तान ने इस क्षेत्र का नाम बदलकर इफ्तिखाराबाद कर दिया है. 1971 के युद्ध के बाद, यहां रहने वाले भारतीय नागरिकों ने पलायन कर भारत में शरण ली थी. इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति भारत के लिए रक्षा दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जम्मू क्षेत्र से सटी हुई संवेदनशील सीमा पर स्थित है.

    भारत के हिस्से आए थे कई अहम क्षेत्र

    1972 के शिमला समझौते में भारत को भी चोरबाट घाटी और लेह-लद्दाख क्षेत्र में 4 गांवों का नियंत्रण मिला था. ये सभी इलाके अब केंद्रीय शासित प्रदेश लद्दाख का हिस्सा हैं.

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