बुरी फंसी शेख हसीना! भारत और बांग्लादेश में शुरू हुआ मुकदमा; जानें क्या है मामला

    बांग्लादेश की राजनीतिक हलचलें लगातार चर्चा में बनी हुई हैं, और इस बार पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ ढाका की एक अदालत में मुकदमा शुरू हो गया है. हालांकि शेख हसीना इस वक्त भारत में हैं, लेकिन वहां की न्याय व्यवस्था को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं.

    Sheikh hasina court rejects senior lawyer petition  Represent Sheikh Hasina
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    बांग्लादेश की राजनीतिक हलचलें लगातार चर्चा में बनी हुई हैं, और इस बार पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ ढाका की एक अदालत में मुकदमा शुरू हो गया है. हालांकि शेख हसीना इस वक्त भारत में हैं, लेकिन वहां की न्याय व्यवस्था को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं. खासकर इस बात को लेकर कि क्या उन्हें उचित और निष्पक्ष न्याय मिल पाएगा या नहीं. अदालत ने उनकी ओर से दलील पेश करने के लिए एक वरिष्ठ वकील को नामित करने की अनुमति नहीं दी, जिससे विवाद और बढ़ गया है.

    शेख हसीना की ओर से सीनियर एडवोकेट जीआई खान पन्ना ने बचाव करने की इच्छा जताई थी, लेकिन अदालत ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया. अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के तीन सदस्यीय पैनल के चेयरमैन एम गोलाम मोर्तुजा मोजुमदर ने स्पष्ट किया कि सरकार ने पहले ही शेख हसीना के लिए एक वकील नियुक्त किया है और अब इसमें कोई बदलाव संभव नहीं. उन्होंने कहा कि यह न्यायाधिकरण का अधिकार है कि वह किसे बचाव पक्ष का प्रतिनिधि बनाए.

    सीनियर एडवोकेट की याचिका खारिज, बचाव पक्ष के लिए कम अनुभवी वकील नियुक्त

    शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल के खिलाफ गैर-मौजूदगी में मुकदमा चल रहा है. अदालत ने दोनों के लिए कम परिचित और कम अनुभवी वकील अमीर हुसैन को नियुक्त किया है. वहीं, तीसरे आरोपी और पूर्व पुलिस प्रमुख चौधरी अब्दुल्ला अल-ममुन ने सह-अभियुक्तों के खिलाफ गवाही देना शुरू कर दिया है.

    वकील जीआई खान पन्ना की चिंता और विरोध

    जीआई खान पन्ना, जो बांग्लादेश बार काउंसिल की कानूनी सहायता समिति के अध्यक्ष भी हैं, लंबे समय से पूर्व आवामी लीग सरकार की आलोचना करते आए हैं. वे 1971 के बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम की गहरी समझ रखते हैं और खुले तौर पर इस मामले में शेख हसीना का बचाव करने को तैयार थे. लेकिन अदालत ने उन्हें अनुमति नहीं दी, जिससे न्याय प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठे हैं. पन्ना ने यह भी आरोप लगाया है कि वर्तमान सरकार 1971 की स्वतंत्रता के विरोधी तत्वों को संरक्षण दे रही है और इस वजह से न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो रही है.

    विदेशी पत्रकार की भी चिंता, न्याय व्यवस्था पर उठे सवाल

    ब्रिटिश पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता डेविड बर्गमैन ने अदालत की कार्यवाही पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि दोनों आरोपियों के लिए एक ही वकील नियुक्त करना उचित नहीं क्योंकि उनके मामले अलग-अलग हैं. इससे उचित और प्रभावी बचाव संभव नहीं हो पाता. उन्होंने यह भी बताया कि बचाव पक्ष को मुकदमे की तैयारी के लिए बेहद कम समय दिया गया है. अमीर हुसैन को अभियोजन पक्ष के सबूत 25 जून को मिले, जबकि मुकदमा कुछ ही सप्ताह बाद शुरू हो गया. बर्गमैन ने कहा, “बिना उचित समय और क्लाइंट से संपर्क के वकील उचित बचाव कैसे कर सकते हैं, यह समझना मुश्किल है.”

    शेख हसीना पर मानवता के खिलाफ गंभीर अपराध करने का आरोप 

    इस मुकदमे में शेख हसीना पर मानवता के खिलाफ गंभीर अपराध करने का आरोप है. कहा जा रहा है कि जुलाई 2024 में छात्रों के विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्होंने हिंसक कार्रवाई के आदेश दिए थे, जिसमें करीब 1,400 लोग मारे गए. इसके बाद अगस्त 2024 में शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और तब से वह भारत में हैं. न्यायालय ने उन्हें बचाव के लिए एक कम अनुभवी वकील नियुक्त किया है, जो विपक्ष और मानवाधिकार संगठनों के बीच चिंता का विषय बना हुआ है. वे न्याय प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर सवाल उठा रहे हैं कि क्या शेख हसीना को न्याय दिलाने में सचमुच पूरी आज़ादी और अवसर मिल पाएगा.

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