पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए नरसंहार के बाद भारत के तीखे तेवरों ने पाकिस्तान को हिला कर रख दिया है. सबसे बड़ा झटका उसे भारत द्वारा सिंधु जल संधि पर रोक लगाने के फैसले से लगा है. इस फैसले ने पाकिस्तान के अस्तित्व पर संकट की तलवार लटका दी है. पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसते पाकिस्तान को अब अपने भविष्य की बर्बादी साफ नजर आ रही है. साथ ही, भारतीय सेना के संभावित जवाबी हमले का डर उसकी नींदें उड़ा रहा है. इसी घबराहट में पाकिस्तान अब वैश्विक मंचों पर सहायता की भीख मांग रहा है.
असली मकसद कुछ और
शनिवार देर रात, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ईरान के राष्ट्रपति डॉ. मसूद पेजेश्कियान को फोन किया. आधिकारिक तौर पर तो यह बातचीत ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह पर हुए भीषण विस्फोट पर संवेदना जताने के लिए थी, जिसमें 15 लोगों की मौत और 750 से अधिक घायल हुए, लेकिन पर्दे के पीछे असली मकसद कुछ और था — भारत के बढ़ते दबाव से बचने की रणनीति पर चर्चा.
शहबाज शरीफ ने एक्स पर बयान जारी कर कहा, "मैंने आज शाम ईरान के राष्ट्रपति डॉ. मसूद पेजेश्कियान से बात कर बंदर अब्बास विस्फोट पर गहरी संवेदना व्यक्त की. घायलों के जल्द स्वस्थ होने की कामना की." लेकिन इसके बाद असली एजेंडा सामने आ गया. शहबाज ने बताया, "हमने क्षेत्रीय हालात पर भी विचार-विमर्श किया. पाकिस्तान ने शांति की अपनी इच्छा दोहराई और आतंकवाद के सभी रूपों की निंदा की."
कश्मीर का राग अलापने का मौका नहीं छोड़ा
पाकिस्तान की हड़बड़ी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब ईरान खुद एक बड़े हादसे से जूझ रहा है, तब भी शहबाज ने भारत के खिलाफ माहौल बनाने और कश्मीर का राग अलापने का मौका नहीं छोड़ा. इतना ही नहीं, सिंधु जल समझौते के मुद्दे पर भी पाकिस्तान ने अपनी 'पानी की लाचारी' का दुखड़ा रोया. शरीफ ने आरोप लगाया कि भारत पानी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है, जिसे पाकिस्तान किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगा.
शरीफ का यह रवैया पाकिस्तान की दोहरी नीति को उजागर करता है. एक ओर वह दुनिया के सामने शांति का ढोंग रचता है, दूसरी ओर पहलगाम जैसे बर्बर हमले पर न तो कोई सख्त निंदा करता है, न ही आतंकी संगठनों के खिलाफ कोई गंभीर कार्रवाई करता है. 26 मासूम जिंदगियों के खत्म होने के बाद भी पाकिस्तान का रवैया वही घिसा-पिटा — आतंकवाद को संरक्षण और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह करने की कोशिश.
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