पाकिस्तान की रणनीति उल्टी पड़ गई. पहलगाम आतंकी हमले को लेकर दुनियाभर की सहानुभूति बटोरने की उसकी कोशिशें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में नाकाम रहीं. इस्लामाबाद ने पूरे जोर-शोर से यूएनएससी का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन वहां उसकी ‘फर्जी’ दलीलों को कोई तवज्जो नहीं मिली. उल्टा, सदस्य देशों ने पाकिस्तान से तीखे और असहज सवाल पूछ लिए, जिससे उसकी बोलती बंद हो गई.
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर यूएनएससी में एक क्लोज्ड डोर मीटिंग आयोजित की गई थी, जो पाकिस्तान के आग्रह पर बुलाई गई थी. लेकिन, उम्मीद के उलट, इस बैठक ने पाकिस्तान के दावों की हवा निकाल दी. सूत्रों के मुताबिक, बैठक के दौरान परिषद के कई सदस्यों ने आतंकियों द्वारा धर्म के आधार पर पर्यटकों को निशाना बनाने की रिपोर्ट्स पर चिंता जताई और पाकिस्तान से सीधा सवाल पूछा गया—क्या इस हमले में लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठन की भूमिका हो सकती है?
जवाबदेही की उठी मांग, मिसाइल परीक्षणों पर भी चिंता
बैठक में आतंकवाद की कड़ी निंदा की गई और यह स्पष्ट किया गया कि दोषियों को जवाबदेह ठहराना जरूरी है. कुछ सदस्य देशों ने पाकिस्तान की तरफ से लगातार हो रहे मिसाइल परीक्षणों और भड़काऊ परमाणु बयानबाज़ी को लेकर भी चिंता जताई. इन गतिविधियों को दक्षिण एशिया में तनाव बढ़ाने वाला बताया गया.
पाकिस्तान की एक और चाल नाकाम
पाकिस्तान की रणनीति थी कि वह इस मामले को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उछाले और भारत के खिलाफ माहौल बनाए, लेकिन यूएनएससी के सदस्य देशों ने उसे दो टूक सलाह दी कि भारत के साथ अपने मुद्दे द्विपक्षीय बातचीत के ज़रिए हल करे. न तो कोई बयान पाकिस्तान के पक्ष में जारी हुआ और न ही भारत के खिलाफ कोई टिप्पणी सामने आई.
दरअसल, पाकिस्तान को उम्मीद थी कि बंद कमरे की इस बैठक के बाद दुनिया उसकी बात मानेगी, लेकिन भारत की सटीक कूटनीति और तथ्यों के दम पर इस्लामाबाद की हर चाल धरी की धरी रह गई. नतीजतन, एक बार फिर वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी.
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