रुद्रप्रयाग: 2013 में केदारनाथ में आई भीषण प्राकृतिक आपदा को आज एक दशक से भी ज़्यादा वक्त बीत चुका है, लेकिन उस भयावह त्रासदी की यादें अब भी ताज़ा हैं. हजारों लोग तब लापता हो गए थे, जिनमें से कई के बारे में आज तक कोई जानकारी नहीं मिल सकी है. अब एक बार फिर उन लापता लोगों के कंकालों की खोज का काम शुरू किया जा सकता है.
यह कदम उत्तराखंड हाईकोर्ट में दाखिल की गई एक याचिका के बाद उठाया जा रहा है. याचिका में अपील की गई थी कि सरकार उन लोगों के अवशेषों की खोज करे जो इस आपदा में लापता हो गए और जिनकी अब तक कोई पहचान नहीं हो सकी. याचिका में विशेष आग्रह किया गया था कि यदि अवशेष मिलते हैं तो उनका सम्मानजनक अंतिम संस्कार किया जाए.
अभी भी लापता हैं 3075 लोग
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2013 की आपदा में कुल 3075 लोग आज भी लापता हैं. राज्य सरकार की ओर से अब तक चार बार सर्च टीमें भेजी जा चुकी हैं, लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है.
2020 में जब एक खोजी अभियान चलाया गया था, तब चट्टी और गोमुखी क्षेत्र से कुल 703 नरकंकाल बरामद हुए थे. इससे पहले 2014 में 21 और 2016 में 9 कंकाल खोजे गए थे. हालाँकि, नवंबर 2024 में जब 10 टीमें अलग-अलग पैदल मार्गों पर भेजी गईं, तो कोई नई सफलता हाथ नहीं लगी.
डीएनए परीक्षण से पहचान की कोशिश
अब तक बरामद किए गए कंकालों की पहचान के लिए डीएनए सैंपल लिए गए और करीब 6000 लोगों से भी डीएनए नमूने इकट्ठा किए गए. इसके बावजूद, इन सैकड़ों अवशेषों में से 702 की पहचान आज तक नहीं हो सकी है. पुलिस के पास इन सभी के डीएनए रिकॉर्ड हैं, लेकिन जब इनकी तुलना किए गए सैंपलों से की गई, तो कोई मेल नहीं मिला.
इसका मतलब ये हुआ कि या तो मृतकों के परिजनों ने डीएनए सैंपल नहीं दिए, या फिर कुछ मृतक ऐसे हैं जिनके परिवार के सदस्य जीवित ही नहीं बचे. इससे यह त्रासदी और भी मार्मिक हो जाती है, क्योंकि ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि किसी के बेटे, बेटी, माता-पिता या भाई-बहन थे, जो हमेशा के लिए गुम हो गए.
एक और सर्च अभियान की तैयारी
उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने जानकारी दी है कि सरकार इस साल एक बार फिर खोजी टीम भेजने की तैयारी कर रही है. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट को जल्द ही हाईकोर्ट में प्रस्तुत किया जाएगा, और उसी के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी.
हाईकोर्ट ने 2016 और 2019 में स्पष्ट निर्देश दिए थे कि लापता लोगों के अवशेष खोजे जाएं और उनका अंतिम संस्कार किया जाए. इस निर्देश के बाद राज्य सरकार की ओर से पैदल मार्गों पर खोजबीन के कई प्रयास किए गए, लेकिन क्षेत्र की दुर्गमता और समय बीतने के कारण यह कार्य अत्यंत चुनौतीपूर्ण बन गया है.
भावनात्मक बोझ और अधूरी कहानियाँ
इस त्रासदी के बाद उत्तराखंड और देशभर में हजारों परिवार ऐसे हैं जो आज भी किसी चमत्कार की उम्मीद में अपने प्रियजनों के लौटने की राह देख रहे हैं. कुछ परिवारों ने अंतिम संस्कार भी नहीं किया क्योंकि उन्हें अब भी यह भरोसा है कि शायद उनका कोई अपना कभी लौट आएगा.
हर बरस जब मानसून आता है और जब केदारनाथ यात्रा शुरू होती है, तब उन परिवारों का दर्द फिर ताज़ा हो जाता है जिनका कोई सदस्य उस दिन मंदिर तक पहुंच नहीं पाया था.
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