नई दिल्ली: रूस के भारत में राजदूत डेनिस अलीपोव ने कहा है कि रूस, भारत के लिए कच्चे तेल की आपूर्ति में एक भरोसेमंद और दीर्घकालिक साझेदार साबित हुआ है. उन्होंने बताया कि रूस भारत को न केवल प्रतिस्पर्धी कीमतों पर, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाला कच्चा तेल भी उपलब्ध करा रहा है. अलीपोव ने स्पष्ट किया कि पश्चिमी देशों के एकतरफा प्रतिबंधों के बावजूद, दोनों देश अपने आर्थिक और ऊर्जा संबंधों को और मजबूत बनाने की दिशा में लगातार आगे बढ़ रहे हैं.
भारत को रूस से बढ़ी तेल आपूर्ति
रूस अब भारत का प्रमुख कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है. ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, भारत के कुल तेल आयात का एक-तिहाई से अधिक हिस्सा रूस से आता है. यह स्थिति फरवरी 2022 में यूक्रेन संघर्ष शुरू होने के बाद उत्पन्न वैश्विक तेल संकट के बावजूद बनी हुई है.
राजदूत अलीपोव ने कहा, "रूस और भारत के बीच ऊर्जा सहयोग केवल व्यापार नहीं, बल्कि रणनीतिक भरोसे का प्रतीक है. रूस भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद कर रहा है और भविष्य में भी यह साझेदारी और गहरी होगी."
उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देश आपसी लेन-देन को डॉलर पर निर्भर किए बिना वैकल्पिक मुद्राओं में करने पर ज़ोर दे रहे हैं.
अमेरिका के प्रतिबंध और ट्रंप की नाराज़गी
यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में दावा किया कि भारत रूस से तेल आयात घटा रहा है. अमेरिकी प्रशासन ने रूस की बड़ी ऊर्जा कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगाए हैं, यह कहते हुए कि ये कंपनियां रूस की सैन्य गतिविधियों को वित्तपोषित कर रही हैं.
हालांकि, भारत ने पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का समर्थन नहीं किया है और हमेशा यह रुख अपनाया है कि ऊर्जा सुरक्षा उसके राष्ट्रीय हितों का हिस्सा है. भारत का तर्क है कि वह अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए किसी एक स्रोत पर निर्भर नहीं रह सकता और उसे विविध आपूर्तिकर्ताओं से तेल लेना ही व्यावहारिक नीति है.
भारत-रूस आर्थिक साझेदारी: नए रास्तों की खोज
राजदूत अलीपोव ने बताया कि दोनों देश व्यापार को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए वैकल्पिक भुगतान प्रणालियों पर काम कर रहे हैं. भारत और रूस अब अपने आपसी व्यापार का लगभग 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा स्थानीय मुद्राओं- रुपये और रूबल में कर रहे हैं.
इसके अलावा, दोनों देश नए ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक मार्गों के विकास पर काम कर रहे हैं, ताकि यूरोप या पश्चिमी देशों के नियंत्रित मार्गों पर निर्भरता कम की जा सके. इसके तहत इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) और चाबहार बंदरगाह जैसी परियोजनाएं विशेष महत्व रखती हैं.
अलीपोव ने कहा, "हम ऐसे वैकल्पिक तंत्र विकसित कर रहे हैं जिससे हमारे व्यापारिक संबंध किसी तीसरे पक्ष के दबाव से प्रभावित न हों. हमारा लक्ष्य है कि भारत और रूस के बीच सहयोग स्वतंत्र, स्थिर और दीर्घकालिक हो."
रक्षा क्षेत्र में गहराता सहयोग
ऊर्जा के अलावा, रक्षा सहयोग भारत-रूस संबंधों की रीढ़ माना जाता है. रूस दशकों से भारत का प्रमुख रक्षा साझेदार रहा है, चाहे बात लड़ाकू विमानों, पनडुब्बियों या मिसाइल तकनीक की हो.
रूसी राजदूत ने बताया कि वर्तमान में दोनों देशों के बीच कई नई रक्षा परियोजनाओं पर बातचीत चल रही है, जिनमें शामिल हैं:
अलीपोव ने यह भी कहा कि रूस अपने युद्धक्षेत्र के अनुभवों और रक्षा तकनीकों को भारत के साथ साझा करने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने इसे “दोनों देशों के बीच विश्वास और सामरिक साझेदारी का वास्तविक प्रतीक” बताया.
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