RIC Front: गलवान घाटी में हिंसक टकराव के बाद से भारत-चीन संबंधों में आई खटास ने दोनों देशों को भले ही अलग-अलग रास्तों पर डाल दिया था, लेकिन अब इन संबंधों में धीमी लेकिन स्पष्ट नरमी देखी जा रही है. इसका संकेत हाल ही में तब मिला जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन सम्मेलन में हिस्सा लिया और इसके इतर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से एक सीक्रेट मीटिंग भी की. यह मीटिंग जितनी प्रतीकात्मक है, उतनी ही राजनयिक तौर पर गंभीर भी.
RIC फ्रंट की बहाली: मजबूरी में मेल की कोशिश?
चीन इस वक्त दबाव में है. अमेरिका के साथ चल रहे टैरिफ वॉर ने चीन की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाला है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से झुलसा हुआ चीन अब भारत और रूस के साथ मिलकर एक नया त्रिपक्षीय गठजोड़ (RIC – Russia, India, China) खड़ा करना चाहता है, जिसका उद्देश्य सिर्फ व्यापारिक सहयोग नहीं, बल्कि अमेरिकी दबदबे के खिलाफ रणनीतिक संतुलन बनाना है.
चीनी विदेश मंत्रालय की अपील: ‘हम संवाद को तैयार’
चीनी विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत, रूस और चीन के त्रिपक्षीय सहयोग से न केवल तीनों देशों को लाभ होगा, बल्कि यह पूरे क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है. चीन ने यह भी संकेत दिया कि वह इस त्रिपक्षीय वार्ता को फिर से जीवित करने के लिए भारत और रूस के साथ लगातार डायलॉग बनाए रखना चाहता है.
रूस ने रखी थी नींव, अब चीन पीछे-पीछे
इस प्रस्ताव की शुरुआत वास्तव में रूस ने की थी, जिसे पश्चिमी देशों से मिल रहे अलगाव के बीच भारत जैसा स्थायी मित्र चाहिए. रूस को भारत जैसे बड़े बाजार की ज़रूरत है, खासकर तेल और रक्षा उपकरणों की बिक्री के लिए. वहीं चीन, अमेरिका से बढ़ते तनाव और व्यापार में गिरावट के चलते भारत से संबंध सुधारना चाहता है. यह स्थिति अब आर्थिक विवशताओं से निकली कूटनीति का रूप ले चुकी है. भारत का संतुलित रुख: सहयोग, लेकिन शर्तों के साथ भारत ने इसपर कूटनीतिक संतुलन बनाए रखा है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने RIC को लेकर कहा कि यह एक ऐसा मंच है, जहाँ तीनों देश वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर सामंजस्य बैठा सकते हैं. साथ ही भारत ने यह स्पष्ट किया कि कोई भी अगली बैठक आपसी सहमति और स्थिति की समीक्षा के बाद ही होगी.
क्या यह नई शुरुआत है या रणनीतिक चतुराई?
भारत-चीन संबंधों में यह बदलाव स्थायी बदलाव की शुरुआत है या सिर्फ कूटनीतिक दिखावा, यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी. लेकिन यह स्पष्ट है कि वैश्विक राजनीति में बदलते समीकरणों ने सभी देशों को नई रणनीतियों और नज़दीकियों की ओर धकेल दिया है.चीन की ओर से भारत को मनाने की कोशिश और RIC जैसे त्रिपक्षीय मंचों को फिर से जीवित करने की पहल इस बात का संकेत है कि भारत अब केवल एक साझेदार नहीं, बल्कि एक निर्णायक शक्ति बनकर उभरा है.
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