मास्को: वर्ष 2025 की पहली छमाही रूस की अर्थव्यवस्था और ऊर्जा उद्योग के लिए एक कठिन दौर साबित हुआ है. दुनिया के सबसे बड़े ऊर्जा निर्यातक देशों में से एक रूस को इस दौरान कई मोर्चों पर झटका लगा अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरे तेल के दाम, पश्चिमी देशों के कठोर आर्थिक प्रतिबंध और अपनी ही मुद्रा रूबल की तेज़ी ने मिलकर देश की प्रमुख तेल कंपनियों के मुनाफे को गहरे संकट में डाल दिया है.
रूस की सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी Rosneft PJSC ने 2025 की पहली छमाही में महज 245 अरब रूबल (लगभग 3 अरब डॉलर) का शुद्ध लाभ कमाया, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 68 प्रतिशत कम है. यह आंकड़ा दर्शाता है कि कंपनी को वैश्विक और घरेलू दोनों ही आर्थिक दबावों का भारी नुकसान उठाना पड़ा है.
द इकोनॉमिक्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह गिरावट सिर्फ Rosneft तक सीमित नहीं रही. रूस की अन्य प्रमुख तेल कंपनियां जैसे Lukoil, Gazprom Neft, और Tatneft भी मुनाफे में बड़ी गिरावट दर्ज कर चुकी हैं. Lukoil और Gazprom Neft का शुद्ध लाभ 50% से अधिक गिरा है, जबकि Tatneft को लगभग 62% का घाटा हुआ है.
कम तेल दाम और वैश्विक ओवरसप्लाई ने बढ़ाई परेशानी
Rosneft के CEO इगोर सेचिन ने बयान में कहा कि वैश्विक बाजार में तेल की कीमतों में गिरावट की मुख्य वजह ओवरसप्लाई यानी ज़रूरत से ज़्यादा उत्पादन है. इस साल की शुरुआत से ही OPEC देशों ने अपने उत्पादन स्तरों को बढ़ा दिया था, जबकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंका के कारण मांग अपेक्षा से कमजोर बनी रही.
रूस के प्रमुख निर्यातक कच्चे तेल ब्रांड Urals की औसत कीमत इस दौरान 58 डॉलर प्रति बैरल रही, जो पिछले साल की तुलना में करीब 13% कम है. वैश्विक कीमतों में आई यह गिरावट कंपनियों की आमदनी पर सीधा असर डाल रही है.
रूबल की मजबूती बनी नुकसान की वजह
एक और बड़ा आर्थिक झटका रूस की अपनी मुद्रा रूबल की मजबूती के रूप में सामने आया. वर्ष 2025 की पहली छमाही में रूबल ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले करीब 23% की बढ़त दर्ज की. जून के अंत तक डॉलर की कीमत 79.65 रूबल तक आ चुकी थी, जो निर्यातकों के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ.
जब रूबल मजबूत होता है, तो तेल कंपनियों को अपनी विदेशी आय को स्थानीय मुद्रा में बदलते समय कम रूबल मिलते हैं. इससे उनके राजस्व और लाभ पर दबाव बढ़ता है. इसके अलावा, रूस के केंद्रीय बैंक द्वारा अपनाई गई उच्च ब्याज दर नीति ने कंपनियों के लिए कर्ज लेना महंगा कर दिया है, जिससे निवेश पर भी असर पड़ा है.
पश्चिमी प्रतिबंधों का गहरा प्रभाव
रूस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से झेलना पड़ रहा है. इन प्रतिबंधों के चलते रूसी तेल को वैश्विक बाजार में डिस्काउंट यानी रियायती दरों पर बेचना पड़ रहा है. इसका मतलब है कि रूस को हर बैरल तेल के लिए अन्य देशों की तुलना में कम कीमत पर समझौता करना पड़ रहा है.
इगोर सेचिन ने बताया कि प्रतिबंधों की वजह से रूसी तेल पर दी जाने वाली छूट लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे मुनाफा घट रहा है. उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि जून और जुलाई में 300 बेसिस प्वाइंट की ब्याज दर में कटौती अब तक पर्याप्त नहीं रही है. यदि मौद्रिक नीति में ढील नहीं दी गई, तो निवेश पर नकारात्मक असर पड़ सकता है और कंपनियों की वित्तीय स्थिति और बिगड़ सकती है.
भूराजनीतिक तनाव और वैश्विक असंतुलन की दोहरी मार
रूस की तेल कंपनियों को वैश्विक बाज़ार में केवल कच्चे तेल की कीमतों की गिरावट का ही सामना नहीं करना पड़ रहा है, बल्कि यूक्रेन युद्ध, पश्चिमी प्रतिबंध, और अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक दबावों की वजह से उनके सामने अतिरिक्त बाधाएं खड़ी हो गई हैं.
वहीं, अन्य अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनियां भी तेल कीमतों की गिरावट से जूझ रही हैं, लेकिन उनके पास तकनीकी, भौगोलिक और पूंजीगत विविधता के ज़रिए घाटे को सीमित करने के विकल्प हैं. इसके उलट, रूस की कंपनियों के लिए वैकल्पिक बाज़ारों तक पहुंच बनाना और पूंजी जुटाना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है.
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