निर्देशक/लेखक: आदित्य धर
कलाकार: रणवीर सिंह, संजय दत्त, अक्षय खन्ना, आर. माधवन, अर्जुन रामपाल, सारा अर्जुन, राकेश बेदी
अवधि: 196 मिनट
रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐ (4/5)
Dhurandhar Movie Review: कुछ फ़िल्में केवल मनोरंजन करती हैं, और कुछ फ़िल्में आपको अपने भीतर खींचकर पूरी तरह अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं—‘धुरंधर’ दूसरी श्रेणी की उन विरले फ़िल्मों में आती है. आदित्य धर एक ऐसा विश्व रचते हैं जो यथार्थ की पूरी ताक़त से आपको झकझोरता है, भावनाओं के भँवर में फेंकता है और शुरू से अंत तक आपको सांस लेने की फुर्सत तक नहीं देता. जो फ़िल्म एक हाई-स्टेक्स जासूसी थ्रिलर बनने निकली थी, वह अंत तक देशभक्ति, तात्कालिकता और सिनेमाई तीव्रता का ऐसा मेल बन जाती है कि दर्शक स्तब्ध रह जाएँ.
कहानी की जड़ें भारत के दर्दनाक ऐतिहासिक अध्यायों में धंसी हैं—IC-814 हाईजैक से लेकर 2001 संसद हमले तक. इन घटनाओं को सनसनी बनाने की जगह धर इन्हें भावनात्मक आधार बनाकर एक तनावपूर्ण, चरित्र-प्रधान कथा गढ़ते हैं. आईबी चीफ़ अजय सान्याल के रूप में आर. माधवन अपनी हर एंट्री पर सटीकता, संयम और अथॉरिटी की मिसाल पेश करते हैं. उनका हर संवाद धारदार और भारी पड़ता है.
फ़िल्म का सबसे दमदार निर्णय—असली आर्काइव फुटेज का इस्तेमाल. आतंकी हमलों के वास्तविक वीडियो और ऑडियो इंटरसेप्ट, जिनमें मुंबई हमलों की डरावनी रिकॉर्डिंग भी शामिल है, सीधे दिल पर चोट करते हैं. तथ्य और कथा का यह संगम दर्शकों में स्वाभाविक देशभक्ति जगाता है—बिना ज़रा भी अतिशयोक्ति के. अतीत की असली आवाज़ें सुनना उस भावनात्मक चोट को और गहरा कर देता है जिसे कोई भी रीक्रिएटेड सीन छू भी नहीं सकता.
और फिर आते हैं रणवीर सिंह ‘हमज़ा’ के रूप में—एक विस्फोटक, अनियंत्रित, घायल और फिर भी चुंबकीय व्यक्तित्व. टूटा-हारा बहिष्कृत से एक पैनी बुद्धि वाले ऑपरेटिव तक उनका सफ़र अविश्वसनीय विस्तार और तीव्रता के साथ दिखाया गया है. रणवीर का यह किरदार खामोशी, ग़ुस्सा, नर्मी और उग्रता की अनोखी आँधी है—उनके करियर की सबसे शक्तिशाली परफॉर्मेंस में से एक.
अक्षय खन्ना का रहमान डकैत—धीमी आवाज़ में बोलने वाला बौद्धिक ख़तरा—पूरी फ़िल्म में रोंगटे खड़े करने वाला प्रभाव छोड़ता है. संजय दत्त एसपी असलम ‘जिन्न’ के रूप में ताक़त की गर्जना हैं, जबकि अर्जुन रामपाल का मेजर इक़बाल बर्फ जैसी ठंडक और ख़तरनाक संयम का प्रतीक है. सारा अर्जुन की मौजूदगी कहानी को भावनात्मक संतुलन देती है.
196 मिनट की लंबी अवधि के बावजूद फ़िल्म एक क्षण भी नहीं थकाती. धर की पेसिंग पर पकड़ प्रशंसनीय है—हर सीन उद्देश्यपूर्ण, हर मोड़ प्रभावशाली. बैकग्राउंड स्कोर धड़कनें तेज़ कर देता है और फ़िल्म की गति को कभी गिरने नहीं देता. साउंडट्रैक भी साल के बेहतरीन एल्बमों में गिना जा सकता है—भावनाओं से लेकर एक्शन तक हर दृश्य को और ऊँचा उठाता है.
हिंसा मौजूद है, पर केवल वहीं जहाँ ज़रूरी है—न कि चौंकाने भर के लिए. असली तनाव निष्ठाओं में बदलाव, अंदरूनी संघर्ष, और मानसिक युद्ध से पैदा होता है.
इंटरवल एक ज़ोरदार धमाके की तरह आता है और दूसरा हिस्सा धोखे, साज़िशों और हमज़ा की अंडरवर्ल्ड में ऊँची उड़ान से भरा हुआ तेज़ रफ़्तार सफर बन जाता है—जो सीधे Part 2 (ईद 2026) की ओर ले जाता है.
B62 स्टूडियोज़ और जियो स्टूडियोज़ के सहयोग से निर्माताओं ज्योति देशपांडे, लोकेश धर और आदित्य धर ने जो कैनवास रचा है, वह विशाल भी है और असलियत से भरा भी.
उनकी प्रतिबद्धता साबित करती है कि भारतीय मुख्यधारा की सिनेमा अंतरराष्ट्रीय स्तर से टक्कर लेते हुए भी अपनी सांस्कृतिक आत्मा नहीं खोती.
अंत में—‘धुरंधर’ कारीगरी, यक़ीन और कहानी कहने की शक्ति का विजयघोष है. एक ऐसी फ़िल्म जो भावनात्मक गहराई को विशाल पैमाने से जोड़ती है और क्रेडिट्स खत्म होने के बाद भी दिमाग में गूंजती रहती है. आदित्य धर अपने सर्वोत्तम रूप में दिखाई देते हैं और रणवीर सिंह एक आग उगलती, अविस्मरणीय परफॉर्मेंस के साथ फ़िल्म को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाते हैं. आखिरी फ्रेम जब Part 2 की झलक दिखाता है, तो एक बात साफ़ हो जाती है — असली जंग अभी शुरू हुई है.
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