होली का त्योहार देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन कई राज्यों में इसे मनाने की अलग-अलग परंपराएं हैं. कुछ जगहों पर रंगों और फूलों से होली खेली जाती है, वहीं राजस्थान के उदयपुर जिले के एक गांव में लोग बारूद से होली मनाते हैं. यह अनोखी परंपरा 400 साल से भी अधिक पुरानी है.
उदयपुर के मेनार गांव में बारूद से खेली जाती है होली
उदयपुर से 45 किलोमीटर दूर स्थित मेनार गांव में "जमराबीज पर जबरी गैर" के नाम से होली का त्योहार मनाया जाता है. धुलंडी के अगले दिन इस गांव में रंगों से नहीं, बल्कि बारूद और तोपों से होली खेली जाती है. इस दौरान तलवारों और बंदूकों की आवाज से ऐसा माहौल बन जाता है, जैसे युद्ध हो रहा हो. इस वर्ष भी यह त्योहार 15 मार्च को बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा. इस दिन, 5 महलों से ओंकारेश्वर चौक पर मेवाड़ी पोशाक में सजधज कर योद्धा हवाई फायर और तोपों से गोला दागते हैं. मध्य रात्रि को तलवारों की जबरी गैर भी खेली जाती है.
मेनारिया ब्राह्मणों की होली राजस्थान के उदयपुर के मेनार क्षेत्र में 400 साल से ये परम्परागत होली होती है..!
— ALka Pandey (@Arya909050) March 13, 2025
इसी दिन यहां के ब्राह्मणों..ने मुगलों के अंदर इतना बारूद भरा था कि पीढ़ियों तक उन्होंने यहां मुड़ कर नहीं देखा..!! pic.twitter.com/QWcZ4uh9Gx
इतिहास: मेनारिया ब्राह्मणों ने मुगलों को हराया
इतिहासकारों के अनुसार, मेवाड़ में मुगलों के अत्याचार से सभी लोग परेशान थे, और तभी महाराणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ हल्दीघाटी का युद्ध शुरू किया. मेनार में भी मुगलों की टुकड़ी तैनात थी, जिनकी हरकतों से लोग भयभीत थे. लेकिन मेनारिया ब्राह्मणों ने एक योजना बनाई और मुगलों को गैर कार्यक्रम में आमंत्रित किया. उस समय ढोल की थाप पर गैर शुरू हुई, और यह जोश इतना बढ़ा कि यह गैर युद्ध का रूप ले लिया. मेनारिया ब्राह्मणों ने मुगलों को युद्ध में हराया और उन्हें यहां से खदेड़ दिया. इस विजय की खुशी में पिछले 400 वर्षों से जमराबीज त्योहार मनाया जाता है.
विदेशों से भी आते हैं लोग जमराबीज मनाने
मेनार के लोग जो विदेशों में रहते हैं, वे भी इस त्योहार में शामिल होने के लिए गांव आते हैं. इसके अलावा, दूसरे राज्यों में व्यापार करने वाले और काम करने वाले लोग भी होली के समय गांव लौटते हैं, ताकि इस ऐतिहासिक त्योहार का हिस्सा बन सकें.
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बंदूक और तोप की गूंज
जमराबीज पर मेनार गांव में घरों में पड़ी बंदूकों और तलवारों की साफ-सफाई शुरू हो जाती है. इस दिन पूरी रात मस्ती और उमंग का आनंद लिया जाता है. मेनार में टोपीदार बंदूकों और तोपों की गूंज सुनाई देती है. गांव में हर उम्र के लोग पारंपरिक वेशभूषा में सजधज कर शाम से ही गांव के चौक में इकट्ठा होने लगते हैं. जैसे-जैसे अंधेरा बढ़ता है, उत्साह भी बढ़ता जाता है और यह दृश्य अद्भुत होता है.