नई दिल्ली: एक ऐसा मामला जिसने पूरे न्याय तंत्र और पुलिस जांच प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में मंजीत केरकेट्टा नामक व्यक्ति को बरी किया, जो 2018 से जेल में बंद था. उस पर एक महिला की हत्या का आरोप था—जो अब ज़िंदा पाई गई है.
इस मामले में हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की जांच को कठघरे में खड़ा करते हुए इसे “अंतरात्मा को झकझोर देने वाला” करार दिया है.
क्या है पूरा मामला?
2018 में एक महिला का क्षत-विक्षत शव मिला. पुलिस ने शव की पहचान सोनी उर्फ छोटी के रूप में की और मंजीत को गिरफ्तार कर लिया, क्योंकि वो उसे आखिरी बार सोनी के साथ देखा गया था.
मंजीत ने बार-बार कहा कि वो बेगुनाह है, लेकिन किसी ठोस सबूत के अभाव में भी उसे जेल में डाला गया और बीते छह साल से वह सलाखों के पीछे था.
अब, पुलिस की लापरवाही सामने आई है — सोनी ज़िंदा है. वहीं, जिस महिला की लाश मिली थी, उसकी असल पहचान अब तक सामने नहीं आई है.
कोर्ट की टिप्पणी – यह केस झकझोर देने वाला
न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया ने सुनवाई के दौरान कहा: "यह केवल पुलिस जांच की विफलता नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम की चेतना को झकझोर देने वाला मामला है. सात साल पहले एक महिला को बर्बरता से मारा गया, उसके शरीर के टुकड़े किए गए, और आज तक उसका नाम तक नहीं पता."
कोर्ट ने यह भी कहा कि:
पांच FIR, लेकिन कोई स्पष्टता नहीं
पुलिस ने इस केस में 5 शिकायतें दर्ज कीं, लेकिन किसी में भी न तो मृतका की पुष्टि हो सकी, और न ही मंजीत के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत मिला.
कोर्ट ने दिया तुरंत रिहा करने का आदेश
दूसरे पक्ष ने मंजीत की जमानत का विरोध किया. लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि: “किसी व्यक्ति को केवल इस आधार पर जेल में नहीं रखा जा सकता कि हत्या हुई तो है, लेकिन मरने वाली कौन है, ये नहीं पता.”
इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया कि मंजीत को तुरंत रिहा किया जाए.
क्या कहता है यह मामला व्यवस्था के बारे में?
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