इजरायल और ईरान के बीच जारी युद्ध को पांच दिन बीत चुके हैं, लेकिन संघर्ष की आंच थमने का नाम नहीं ले रही. इजरायल ने अब तक ईरान पर जबरदस्त मिसाइल हमले किए हैं और खबरें आ रही हैं कि ईरान का एयरोस्टॉक भी लगभग खत्म होने की कगार पर है. बावजूद इसके, इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जिस फोर्दो न्यूक्लियर फैसिलिटी को तबाह करने की कसम खा चुके हैं, वो अब भी सुरक्षित खड़ा है.
असल में नेतन्याहू की ये "बेबसी" सिर्फ एक हथियार से दूर हो सकती है—अमेरिकी बंकर बस्टर बम GBU-57 से. लेकिन दिक्कत ये है कि न इजरायल के पास ये बम है और न ही ऐसा विमान, जो इसे उठाकर दुश्मन के गढ़ तक ले जाए.
क्या है ईरान का ‘फोर्दो किला’?
ईरान के फोर्दो न्यूक्लियर फैसिलिटी को एक मजबूत भूमिगत सैन्य किले की तरह बनाया गया है. यह इतना गहरा और सुरक्षात्मक है कि आम बम या मिसाइलें यहां तक पहुंच ही नहीं सकतीं. यह स्थान अब इजरायल के निशाने पर है, लेकिन यहां हमला करना सिर्फ ताकत नहीं, तकनीकी साधनों की भी मांग करता है.
क्यों जरूरी है GBU-57 बम?
इजरायल के पास आधुनिक F-35 फाइटर जेट्स हैं, लेकिन ये विमान अमेरिका के जिस सबसे खतरनाक बंकर बस्टर बम — GBU-57 Massive Ordnance Penetrator (MOP) — को ले जाने में अक्षम हैं, वही इस मिशन के लिए जरूरी है. ये बम खासतौर पर ऐसे ही दुर्गम और पाताल जैसे ठिकानों को नेस्तनाबूद करने के लिए बनाया गया है.
GBU-57 की खासियतें:
पेनेट्रेशन क्षमता:
इस बम की ताकत इतनी ज्यादा है कि यह ज़मीन के अंदर बने किसी भी रणनीतिक ठिकाने को चुटकियों में तबाह कर सकता है. लेकिन इसे चलाने के लिए भी एक खास तरह के विमान की जरूरत है.
क्यों जरूरी है B-2 स्पिरिट बॉम्बर?
B-2 Spirit अमेरिका का स्टील्थ बॉम्बर है और दुनिया का इकलौता ऐसा विमान है जो GBU-57 जैसे भारी और विशाल बम को ले जा सकता है. इसकी मारक क्षमता इसे अन्य किसी भी लड़ाकू विमान से अलग बनाती है.
B-2 Spirit की क्षमताएं:
F-35 जैसे एडवांस लड़ाकू विमान की शस्त्र ढोने की क्षमता लगभग 8,000 किलोग्राम है, जबकि राफेल भी 9,500 किलोग्राम तक ही हथियार ले जा सकता है. ऐसे में B-2 Spirit दुश्मन के अति-सुरक्षित बंकरों को भी नष्ट करने की पूरी काबिलियत रखता है.
ट्रंप के बिना मुमकिन नहीं ये मिशन?
अब बात आती है अमेरिका की. इजरायल के पास न B-2 बॉम्बर है और न GBU-57 बम. ऐसे में अगर इजरायल को ईरान के फोर्दो किले को गिराना है, तो उसे अमेरिका की मदद चाहिए—और वो भी राष्ट्रपति स्तर की. मौजूदा अमेरिकी सरकार इस सहयोग को देने में हिचक सकती है, लेकिन अगर डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में होते या उनकी सीधी सहमति होती, तो शायद इजरायल अब तक इस किले पर कहर बरपा चुका होता.
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