नई दिल्ली: पाकिस्तान सुपर लीग (PSL) 2025 अपने निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है, लेकिन तकनीकी अव्यवस्थाओं ने टूर्नामेंट की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. DRS (डिसीजन रिव्यू सिस्टम) जैसी अहम तकनीक के अभाव में फाइनल समेत कई अहम मैच खेले जा रहे हैं, जिससे खेल की निष्पक्षता पर बहस छिड़ गई है.
भारतीय टेक्नीशियन न लौटने से बड़ा झटका
PSL में DRS तकनीक की जिम्मेदारी संभाल रही टीम इस बार पाकिस्तान नहीं लौट पाई है. जानकारी के अनुसार, यह तकनीकी टीम मुख्य रूप से भारतीय पेशेवरों से मिलकर बनी है. भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव के चलते यह टीम PSL के रिस्टार्ट के बाद पाकिस्तान नहीं आ सकी.
पांच मैच DRS के बिना, अब सिर्फ दो बचे
लीग के दोबारा शुरू होने के बाद अब तक कुल पांच मैच खेले जा चुके हैं, जिनमें DRS का इस्तेमाल नहीं हो पाया. इसके बावजूद PCB (पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड) की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. क्वालिफायर मुकाबला आज यानी 23 मई को और फाइनल 25 मई को लाहौर में खेला जाना है.
2017 से PSL में DRS की शुरुआत
PSL में DRS का इस्तेमाल साल 2017 में शुरू हुआ था, जिससे अंपायरिंग में सुधार और विवादों में कमी देखी गई थी. लेकिन मौजूदा हालात ने इस तकनीक पर निर्भरता को लेकर नई चर्चा छेड़ दी है.
PCB की UAE योजना भी फेल
पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने तनाव के मद्देनज़र शेष मुकाबले संयुक्त अरब अमीरात में कराने की योजना बनाई थी. 8 मई को इसका ऐलान भी किया गया, लेकिन अमीरात क्रिकेट बोर्ड ने सुरक्षा कारणों से PSL मैचों की मेज़बानी से इनकार कर दिया. इससे मजबूरन बोर्ड को लीग को स्थगित करना पड़ा और बाद में पाकिस्तान में ही दोबारा शुरू करना पड़ा.
हमले के बाद फिर से तय हुआ शेड्यूल
7 मई को भारत के कथित ड्रोन हमले में रावलपिंडी स्टेडियम को भारी नुकसान पहुंचा, जिसके बाद शेष मैचों का नया कार्यक्रम बनाया गया. यह घटनाक्रम PSL के संचालन पर बड़ा सवालिया निशान बन गया.
क्वेटा ग्लैडिएटर्स पहले ही फाइनल में अपनी जगह बना चुकी है. आज होने वाले दूसरे क्वालिफायर में लाहौर कलंदर्स और इस्लामाबाद यूनाइटेड के बीच भिड़ंत होगी, जिससे दूसरा फाइनलिस्ट तय होगा. लेकिन इतने अहम मुकाबलों में DRS की गैरहाज़िरी चिंता का विषय बनी हुई है.
क्या है DRS और क्यों है यह ज़रूरी?
DRS यानी डिसीजन रिव्यू सिस्टम एक तकनीकी प्रणाली है जो अंपायर के फैसले को चुनौती देने पर इस्तेमाल की जाती है. इसमें हॉकआई, बॉल ट्रैकर, हॉट स्पॉट और पिच मैपिंग जैसी तकनीकों से फैसलों की समीक्षा की जाती है. यह सिस्टम खिलाड़ियों और टीमों को निष्पक्ष न्याय दिलाने में अहम भूमिका निभाता है.
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