फ्रांस में क्यों धधक रही हिंसा की आग? Block एव्रीथिंग आंदोलन की क्या है वजह; जानें

    नेपाल में जब हालात बेकाबू हुए और सेना ने मोर्चा संभाल लिया, तब दुनिया की निगाहें वहीं थीं. लेकिन अब फ्रांस—जिसे स्थिर लोकतंत्र और मज़बूत प्रशासनिक ढांचे के लिए जाना जाता है भी विरोध की आग में झुलस रहा है. जगह-जगह प्रदर्शन, गिरफ्तारियां और आम जनजीवन अस्त-व्यस्त है.

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    France Protest: नेपाल में जब हालात बेकाबू हुए और सेना ने मोर्चा संभाल लिया, तब दुनिया की निगाहें वहीं थीं. लेकिन अब फ्रांस—जिसे स्थिर लोकतंत्र और मज़बूत प्रशासनिक ढांचे के लिए जाना जाता है भी विरोध की आग में झुलस रहा है. जगह-जगह प्रदर्शन, गिरफ्तारियां और आम जनजीवन अस्त-व्यस्त है.

    नेपाल में जहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया की खामियों ने अराजकता को जन्म दिया, वहीं फ्रांस में जनता की नाराजगी सरकार की नीतियों के प्रति है. देश की राजधानी पेरिस से लेकर छोटे कस्बों तक, 'ब्लॉक एवरीथिंग' आंदोलन अपने चरम पर है. स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, अस्पताल—हर तरफ कामकाज ठप पड़ा है. सरकार ने सुरक्षा के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया है. प्रधानमंत्री की जगह रक्षा मंत्री ने स्थिति को संभाला है. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह व्यवस्था उस गुस्से के सैलाब को रोक पाएगी जो अब सड़कों पर उतर चुका है?

    नेपाल और फ्रांस: अलग देश, समान गुस्सा?

    नेपाल और फ्रांस की सामाजिक और राजनीतिक ज़मीन अलग है, लेकिन जनता के आक्रोश का तरीका चौंकाने वाला रूप से मिलता-जुलता है. नेपाल में यह गुस्सा राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और लोकतांत्रिक व्यवस्था की विफलताओं का नतीजा रहा. फ्रांस में मामला थोड़ा अलग है—यहां संविधानिक रूप से व्यवस्था मज़बूत है, लेकिन जनता को लगता है कि सरकार उनकी मूलभूत जरूरतें पूरी नहीं कर पा रही.

    आखिर क्यों भड़की फ्रांस की जनता?

    1. पेंशन में बदलाव: सरकार ने रिटायरमेंट की उम्र 62 से बढ़ाकर 64 कर दी है. श्रमिक वर्ग इसे अपने साथ धोखा मानता है.

    2. युवाओं की नाराजगी: शिक्षा महंगी होती जा रही है, नौकरियों के मौके कम हो रहे हैं और पुलिस पर जातीय भेदभाव के आरोप हैं. ऐसे में युवा वर्ग बुरी तरह नाराज़ है.

    3. नेताओं पर अविश्वास: लोगों का मानना है कि राष्ट्रपति मैक्रों सिर्फ कॉर्पोरेट और अमीरों के हित में फैसले करते हैं. गांव, कस्बे और कामकाजी वर्ग खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं.

    4. महंगाई और जीवन-स्तर: खासतौर पर छोटे शहरों में जीवन यापन खर्च इतना बढ़ गया है कि लोग अपने ही देश में उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. यही वजह थी कि पहले येलो वेस्ट आंदोलन हुआ और अब यह नया विरोध उभर रहा है.

    5. सामाजिक असंतुलन: फ्रांस का समाज खुद को समानता और स्वतंत्रता का पैरोकार मानता है, लेकिन प्रवासी और अल्पसंख्यक वर्ग के साथ होता भेदभाव एक बड़ा मुद्दा बन गया है.

    कैसा है फ्रांस का शासनतंत्र?

    फ्रांस में अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली है, जहां राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों के पास अलग-अलग, लेकिन अहम ज़िम्मेदारियाँ होती हैं. राष्ट्रपति रक्षा, विदेश नीति और संकट में फैसले लेने की शक्ति रखता है. प्रधानमंत्री नीतियों के अमल और संसद से तालमेल की जिम्मेदारी संभालते हैं.

    संसद की रचना:

    फ्रांस की संसद भी दो सदनों वाली है. नेशनल असेंबली (Assemblée Nationale) – जिसके सदस्य जनता द्वारा सीधे चुने जाते हैं. सीनेट (Sénat) – जो अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है. यहां असेंबली को अधिक शक्तिशाली माना जाता है क्योंकि यह सरकार को गिरा सकती है.

    राजनीतिक ध्रुवीकरण और भविष्य का परिदृश्य

    राष्ट्रपति मैक्रों की छवि उदार सुधारवादी नेता की है, लेकिन आज उनकी आलोचना एक 'कॉर्पोरेट फ्रेंडली' नेता के रूप में हो रही है. वाम और दक्षिणपंथी ताकतें मजबूत हो रही हैं, और 2027 के चुनाव में मरीन ले पेन जैसे चरम दक्षिणपंथी चेहरों के उभरने की पूरी संभावना है. वर्तमान संकट अगर ऐसे ही गहराता रहा, तो न सिर्फ फ्रांस, बल्कि पूरा यूरोप इसकी चपेट में आ सकता है. यूरोपीय यूनियन की स्थिरता भी खतरे में पड़ सकती है, और भारत जैसे देशों के साथ फ्रांस के व्यापारिक संबंधों पर भी असर पड़ सकता है.

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