खालिस्तानियों को बढ़ावा देना पड़ेगा भारी, क्या पाकिस्तान की तरह आतंकवाद में चला जाएगा कनाडा?

    ओटावा से उठती आहट अब सिर्फ भारत ही नहीं, खुद कनाडा के लिए भी खतरे की घंटी बनती जा रही है. खालिस्तानी तत्वों को मिली छूट और सरकार की निष्क्रियता ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कनाडा की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया है.

    Promoting Khalistanis will cost Canada heavily
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ Social Media

    ओटावा से उठती आहट अब सिर्फ भारत ही नहीं, खुद कनाडा के लिए भी खतरे की घंटी बनती जा रही है. खालिस्तानी तत्वों को मिली छूट और सरकार की निष्क्रियता ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कनाडा की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया है. अब विशेषज्ञ खुलकर कह रहे हैं कि अगर कनाडा ने समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए, तो वह भी पाकिस्तान की तरह आतंकवाद का गढ़ बन सकता है.

    कनाडा की गलियों से उठती खालिस्तान की आवाज़ अब सिर्फ नारे नहीं, एक खतरनाक रणनीति बन चुकी है. जहां भारत की संप्रभुता को ललकारा जा रहा है, वहीं कनाडा की धरती से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के खिलाफ जहर उगला जा रहा है.

    खालिस्तानी उपस्थिति के स्पष्ट प्रमाण

    कनाडा में खालिस्तानी गतिविधियों की मौजूदगी अब कोई छुपी बात नहीं रही. 'खालसा वॉक्स' द्वारा जारी एक रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि, "वीडियो फुटेज, मीडिया रिपोर्ट्स और स्थानीय चश्मदीदों के बयान इस बात को साबित करने के लिए काफी हैं कि कनाडा में खालिस्तानी उग्रवादियों का एक संगठित और सक्रिय नेटवर्क मौजूद है."

    इसके बावजूद, वर्षों से कनाडा सरकार की निष्क्रियता और आँख मूंद लेने की नीति सवालों के घेरे में है. खासकर पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर यह आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने भारत-विरोधी गतिविधियों पर कभी खुलकर न तो निंदा की और न ही कोई ठोस कार्रवाई की.

    अब जब कनाडा को नया नेतृत्व मिलने की उम्मीद है, तो निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या संभावित प्रधानमंत्री मार्क कार्नी इस नीति में बदलाव लाएंगे या वही ढुलमुल रवैया जारी रहेगा.

    भारत विरोध से बढ़ रही है आतंकी ताकत

    खालिस्तानी समर्थकों के संगठन, विशेष रूप से सिख फॉर जस्टिस (SFJ) जैसे समूह, सिर्फ भारत के खिलाफ नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ भी खुलकर खड़े हो रहे हैं. ये संगठन भारत के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य राजनेताओं के खिलाफ खुलेआम अपशब्द और धमकियां देते हैं.

    बावजूद इसके, कनाडा सरकार की तरफ से कोई कड़ा जवाब या प्रतिबंध आज तक सामने नहीं आया. यह रवैया एक संकेत देता है कि इन कट्टरपंथी समूहों को कहीं न कहीं राज्य संरक्षण मिल रहा है, जिससे वे बेखौफ होकर अपने अभियान को अंजाम दे रहे हैं.

    कनाडा की सरकारी रिपोर्ट ने खोली पोल

    एक ताज़ा रिपोर्ट, जो कनाडा के वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार की गई है, ने खुद इस बात को स्वीकार किया है कि:

    • खालिस्तानी आतंकवादी संगठन कनाडा की धरती से ही अपना नेटवर्क चला रहे हैं.
    • उन्हें वित्तीय सहायता मिल रही है और
    • वे कई अवैध तरीकों से पैसा इकट्ठा कर रहे हैं.

    यह रिपोर्ट सिर्फ एक औपचारिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह कनाडा के लिए एक चेतावनी है कि देश अब आतंकवाद के वित्तपोषण का केंद्र बनता जा रहा है.

    पैसा कहां से आ रहा और कौन कर रहा है फंड?

    रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि खालिस्तानी नेटवर्क किस तरह अलग-अलग रास्तों से फंड जुटा रहे हैं:

    • गैर-लाभकारी संगठनों (NGOs) के माध्यम से दान राशि का दुरुपयोग.
    • सिख प्रवासियों से मिले चंदे को हिंसक गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करना.
    • क्राउडफंडिंग और क्रिप्टोकरेंसी जैसे आधुनिक फाइनेंस टूल्स का इस्तेमाल.
    • मादक पदार्थों की तस्करी, वाहनों की चोरी और चैरिटी घोटालों से पैसा इकट्ठा करना.

    यह सब न केवल भारत के लिए चिंता की बात है, बल्कि कनाडा की खुद की सुरक्षा व्यवस्था के लिए भी सीधा खतरा है.

    क्या कनाडा पाकिस्तान की राह पर है?

    यह सवाल अब सिर्फ कयास नहीं रह गया है. विशेषज्ञों का साफ मानना है कि जिस तरह पाकिस्तान ने अतीत में आतंकवादी संगठनों को रणनीतिक "संपत्ति" मानकर पाल-पोस कर रखा, उसी तरह कनाडा भी इन्हीं खतरनाक तत्वों को अनदेखा कर रहा है, जो भविष्य में उसके लिए खुद एक भस्मासुर साबित हो सकते हैं.

    पाकिस्तान को यह नीति कितनी महंगी पड़ी है, ये पूरी दुनिया जानती है. वहाँ तालिबान और अन्य आतंकवादी गुटों ने आज खुद पाकिस्तान की ही सरकार और सेना को निशाना बनाना शुरू कर दिया है.

    यदि कनाडा भी इसी रास्ते पर चलता रहा, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि वहां भी हालात बेकाबू हो सकते हैं.

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