हरियाणा की अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत देते हुए इस संवेदनशील मामले की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय एसआईटी (विशेष जांच दल) गठित करने का आदेश दिया है. खास बात यह है कि इस एसआईटी में एक महिला अधिकारी भी शामिल होंगी और इसकी निगरानी सुप्रीम कोर्ट खुद करेगा.
जांच के लिए SIT गठित, सुप्रीम कोर्ट ने रखी कड़ी शर्तें
सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा के डीजीपी को आदेश दिया है कि जांच के लिए जल्द से जल्द टीम गठित की जाए, जिसका नेतृत्व आईजी रैंक के अधिकारी को सौंपा जाएगा. कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि जब तक जांच पूरी नहीं होती, तब तक प्रोफेसर महमूदाबाद ऑपरेशन सिंदूर या पहलगाम हमले से संबंधित कोई सोशल मीडिया पोस्ट या सार्वजनिक बयान नहीं देंगे. अगर वे ऐसा करते हैं, तो उनकी अंतरिम जमानत स्वतः समाप्त हो जाएगी.
कोर्ट की सख्त टिप्पणी: "सस्ती लोकप्रियता के लिए कुछ भी न कहें जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने प्रोफेसर को फटकार लगाते हुए कहा कि, आप एक शिक्षित व्यक्ति हैं. समाज में आपकी भूमिका विचारशील और तटस्थ बने रहने की होनी चाहिए, न कि भावनाएं भड़काने की. कोर्ट ने प्रोफेसर की उस टिप्पणी को गैर-जिम्मेदाराना बताया, जिसमें उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर पर प्रेस ब्रीफिंग कर रही कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर कहा था कि यह सिर्फ "दिखावा और ढोंग" है. इस बयान से सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया हुई और विवाद बढ़ा.
गिरफ्तारी पर राजनीतिक बयानबाज़ी भी तेज़
इस मामले में प्रोफेसर की गिरफ्तारी के बाद राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मच गई. कांग्रेस ने गिरफ्तारी की आलोचना करते हुए इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया. वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख महमूद मदनी ने भी सवाल उठाते हुए कहा, "जब मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह ने इसी मुद्दे पर बयान दिया, तो कोई कार्रवाई नहीं हुई, लेकिन प्रोफेसर को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया. यह दोहरा मापदंड क्यों?"
यह भी पढ़ें: सिम दी, फिर सिरसा जाने को कहा.. नूंह का तारीफ कैसे बना पाकिस्तानी जासूस, कैमरे पर कबूल किया चौंकाने वाला सच