नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल में हुए क्रूर आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. इस हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की जान गई—एक त्रासदी जिसने न केवल जनता को आक्रोशित किया, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति को एक निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा किया है. भारत सरकार, सेना और कूटनीतिक तंत्र अब एक बहु-आयामी प्रतिक्रिया की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं.
हमले की पृष्ठभूमि और प्रारंभिक आरोप
हमले के 12 दिन बाद, भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इसे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) से जोड़ा है, जो लश्कर-ए-तैयबा से संबद्ध माना जाता है. इलेक्ट्रॉनिक इंटरसेप्ट्स में आतंकियों की गतिविधियों के तार पाकिस्तान के भीतर दो ठिकानों से जुड़े पाए गए हैं.
एक और अहम मोड़ तब आया जब पाकिस्तान के पूर्व सैन्य अधिकारी आदिल राजा ने इस हमले के पीछे पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की भूमिका का दावा किया—हालांकि पाकिस्तान सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग की है.
सैन्य से पहले कूटनीति और अर्थव्यवस्था
भारत ने इस बार तत्काल सैन्य प्रतिशोध के बजाय व्यापक कूटनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान को घेरने की रणनीति अपनाई है. सरकार ने निम्नलिखित अहम निर्णय लिए:
इन कदमों से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और वैश्विक छवि पर तत्काल प्रभाव पड़ा है.
सेना की तैयारी और रणनीतिक संकेत
हालांकि भारत ने अब तक किसी प्रत्यक्ष सैन्य कार्रवाई की घोषणा नहीं की है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य हलचल और अभ्यास तेज़ कर दिए गए हैं. भारतीय सेना ने हाल ही में कई हाई-इंटेंसिटी वार गेम्स और सीमावर्ती ड्रिल्स की हैं. साथ ही, रूस से खरीदे गए S-400 और Igla-S मिसाइल सिस्टम की तैनाती भी तेज़ कर दी गई है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना को 'पूर्ण स्वतंत्रता' दे दी है, जिससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि यदि आवश्यक हुआ, तो सैन्य विकल्प भी खुला रखा गया है.
पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कवायद
भारत ने वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान की आतंकवाद-समर्थक छवि को उजागर करने के प्रयास तेज़ कर दिए हैं:
पाकिस्तान की आंतरिक चुनौतियां
पाकिस्तान इस समय केवल बाहरी दबाव नहीं बल्कि भीतरी अस्थिरता से भी जूझ रहा है. बलूचिस्तान और सिंध में अलगाववादी आंदोलनों ने फिर सिर उठाया है. बलूच नेताओं द्वारा भारत के प्रति सहानुभूति जताना इस बात का संकेत है कि पाकिस्तान के भीतर आंतरिक एकता दरक रही है.
पाक-अधिकृत कश्मीर (PoK) में भी असंतोष उभर रहा है. वहां के कथित प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए बयान ने न केवल पाकिस्तान की कट्टरपंथी सोच उजागर की है, बल्कि क्षेत्रीय तनाव को भी बढ़ाया है.
भारत की अगली चाल क्या होगी?
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत इस बार “प्रतिक्रिया से पहले तैयारी” की नीति पर चल रहा है. सैन्य कार्रवाई संभव है—पर तभी जब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पर्याप्त समर्थन और स्पष्ट साक्ष्य तैयार हों. भारत शायद एक “स्ट्रैटेजिक टाइमिंग” का इंतजार कर रहा है, जब कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य तीनों स्तरों पर अधिकतम असर डाला जा सके.
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