PM Narendra Modi Maldives Visit: जब अंतरराष्ट्रीय कूटनीति मौन होती है, तब यात्राएं बोलती हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा इसी मौन कूटनीति की सबसे सटीक अभिव्यक्ति है. आज, प्रधानमंत्री मोदी मालदीव और ब्रिटेन की एक महत्त्वपूर्ण विदेश यात्रा के लिए रवाना हो रहे हैं. लेकिन इन दोनों पड़ावों में से दक्षिण एशिया की समुद्री सीमा पर स्थित मालदीव का दौरा, केवल एक औपचारिक यात्रा नहीं, बल्कि एक रणनीतिक पुनःस्थापना का संकेत है, जिसे विश्लेषक ‘मिशन मालदीव’ कह रहे हैं.
इस दौरे की खास बात यह है कि पीएम मोदी राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के कार्यकाल में मालदीव की राजकीय यात्रा पर आने वाले पहले विदेशी नेता बनेंगे. इतना ही नहीं, वह मालदीव के 60वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे, यह निमंत्रण ही भारत के लिए एक कूटनीतिक सफलता का प्रतीक बन चुका है.
कभी ‘इंडिया आउट’ था नारा, आज ‘इंडिया इन’ है भरोसा
साल 2023-24 में जब राष्ट्रपति मुइज्जू सत्ता में आए थे, तब उनके ‘India Out’ अभियान ने भारत-मालदीव संबंधों में तनाव पैदा कर दिया था. कई विश्लेषकों ने इसे भारत के लिए एक कूटनीतिक झटका बताया था. लेकिन भारत ने जवाब शोर से नहीं, सॉफ्ट डिप्लोमेसी, आर्थिक समर्थन, और संवाद की निरंतरता से दिया. मोदी सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि दक्षिण एशिया में रणनीति का मतलब सिर्फ सैन्य उपस्थिति नहीं, आर्थिक भागीदारी, स्थानीय विकास, और आपसी सम्मान है.
भारत ने कैसे बदला समीकरण?
भारत की रणनीति चार स्तंभों पर खड़ी रही:
आर्थिक सहायता- 2024 में भारत ने मालदीव को $400 मिलियन डॉलर की सहायता और 3,000 करोड़ की करेंसी स्वैप सुविधा दी.
सुरक्षा सहयोग- भारतीय नौसेना द्वारा उपकरण, प्रशिक्षण और हवाई निगरानी सेवाएं बरकरार रखी गईं.
विकास भागीदारी- 2025 में भारत ने फेरी सेवा को MVR 100 मिलियन के सहयोग से विस्तार दिया.
राजनीतिक संवाद- दोनों देशों के बीच High-Level Core Group की बैठकें जनवरी और मई 2025 में आयोजित हुईं.
भारत-मालदीव संबंध
अक्टूबर 2024 में राष्ट्रपति मुइज्जू की भारत यात्रा के दौरान, दोनों देशों के बीच Comprehensive Economic and Maritime Security Partnership की नींव रखी गई. 2025 में 13 नए समझौतों (MoU) पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें फेरी सेवाओं, समुद्री निगरानी, और सांस्कृतिक साझेदारी शामिल हैं. द्विपक्षीय व्यापार $548 मिलियन डॉलर के पार पहुंच चुका है, जो आर्थिक स्थायित्व की पुष्टि करता है.
तीसरी यात्रा, लेकिन बदलता भू-राजनीतिक सन्दर्भ
यह प्रधानमंत्री मोदी की मालदीव की तीसरी यात्रा है, पहली बार 2018 में (राष्ट्रपति सोलिह के शपथ ग्रहण), फिर 2019 में द्विपक्षीय वार्ता और अब 2025 में राष्ट्रपति मुइज्जू के आमंत्रण पर. यह यात्रा सिर्फ कूटनीतिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया में भारत की निर्णायक उपस्थिति का एक सशक्त प्रतीक है.
यह यात्रा क्यों है विशेष रूप से अहम?
भारत ने दिखाया कि भरोसे और निरंतर संवाद से ‘India Out’ को भी ‘India In’ में बदला जा सकता है. राष्ट्रपति मुइज्जू द्वारा पीएम मोदी को सार्वजनिक रूप से आमंत्रित करना दर्शाता है कि चीन की जगह भारत को प्राथमिकता दी जा रही है. यह दौरा इस बात का संकेत है कि भारत अभी भी इस क्षेत्र की रणनीतिक धुरी बना हुआ है और उसके पास स्थिरता और समर्थन देने की वास्तविक शक्ति है.
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