नई दिल्लीः 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया. इस हमले में टूरिस्टों को धर्म पूछकर निशाना बनाया गया—जिसने एक बार फिर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की क्रूर सच्चाई दुनिया के सामने उजागर की. जवाब में भारत ने "ऑपरेशन सिंदूर" के तहत आतंकियों के अड्डों पर कड़ा प्रहार किया और पाकिस्तान को उसकी हरकतों का करारा जवाब दिया.
अब, इस ऑपरेशन के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिस्सा लेने जा रहे हैं. 15 से 17 जून के बीच कनाडा में आयोजित होने वाले G7 शिखर सम्मेलन में उनकी उपस्थिति कई मायनों में अहम मानी जा रही है.
G7 समिट: तीन अहम मुद्दों पर भारत का स्पष्ट रुख
पीएम मोदी की कनाडा यात्रा को केवल कूटनीतिक यात्रा मानना गलती होगी. यह दौरा तीन स्तरों पर भारत के लिए रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है:
आतंकवाद पर वैश्विक एकजुटता की अपील
सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी इस मंच से पाकिस्तान के आतंकवादी नेटवर्क पर सीधा हमला बोल सकते हैं. वह दुनिया को बता सकते हैं कि कैसे पहलगाम में टूरिस्टों पर हमला सीधे पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंक का परिणाम था. यह भारत की आतंकवाद के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूती से प्रस्तुत करने का मौका भी होगा.
अमेरिका को भी मिलेगा कूटनीतिक संदेश
पीएम मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा किए गए "सीजफायर में मध्यस्थता" के दावे का भी खंडन कर सकते हैं. भारत साफ कर सकता है कि पाकिस्तान की तरफ से ही संघर्षविराम की अपील की गई थी और इसमें किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं थी. यह भारत की नीति को दोहराएगा कि देश अपने द्विपक्षीय मामलों में बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करता.
खालिस्तान पर होगा स्पष्ट और सख्त रुख
कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों की बढ़ती गतिविधियों पर भी भारत गंभीर है. इस बार प्रधानमंत्री मोदी कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्को कार्नी से मुलाकात में इस मुद्दे को ज़रूर उठाएंगे. भारत का रुख स्पष्ट है—आतंकवाद या अलगाववाद को किसी भी रूप में समर्थन नहीं मिलेगा. इस दौरे का एक उद्देश्य दोनों देशों के तनावपूर्ण संबंधों में सुधार की कोशिश भी होगा, जो पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में खालिस्तानी मुद्दे को लेकर बिगड़ गए थे.
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