दक्षिणी काकेशस क्षेत्र एक बार फिर बड़े सामरिक बदलाव की ओर बढ़ रहा है. इस बार वजह है अज़रबैजान और पाकिस्तान के बीच हुआ एक अहम रक्षा सौदा, जिसके तहत अज़रबैजान अब 40 आधुनिक JF-17 थंडर लड़ाकू विमान हासिल करने जा रहा है. यह कदम न केवल सैन्य समीकरणों को फिर से लिखने वाला है, बल्कि भारत के सहयोगी आर्मेनिया के लिए चिंता का सबब भी बन गया है.
पाकिस्तान से आया 'थंडर'
अज़रबैजान ने पाकिस्तान के साथ 4.6 अरब डॉलर का अब तक का सबसे बड़ा रक्षा समझौता किया है. इस डील में 40 JF-17 थंडर लड़ाकू विमान शामिल हैं, जिन्हें पाकिस्तान ने चीन के साथ मिलकर विकसित किया है. पहले 16 विमानों का ऑर्डर दिया गया था, जिसे अब बढ़ाकर 40 कर दिया गया है. इनमें से पहला विमान 25 सितंबर, 2024 को अज़रबैजान को मिल चुका है.
JF-17 का लेटेस्ट वर्जन ‘ब्लॉक III’ है, जो AESA रडार, आधुनिक एवियोनिक्स और एडवांस हथियारों से लैस है—ये सभी क्षमताएं इसे 4.5 पीढ़ी का शक्तिशाली लड़ाकू विमान बनाती हैं.
आर्मेनिया की बढ़ती चिंता
अज़रबैजान की यह सैन्य प्रगति सीधे तौर पर उसके पड़ोसी और पुराने दुश्मन आर्मेनिया को अस्थिर कर सकती है. आर्मेनिया की वायुसेना के पास पहले से ही सीमित संसाधन हैं और 2019 में रूस से मंगवाए गए चार Su-30SM विमान युद्ध के समय निष्क्रिय रहे. 2020 के नागोर्नो-कराबाख युद्ध के दौरान, अज़रबैजान ने इज़रायली और तुर्की ड्रोन की मदद से आर्मेनियाई ठिकानों को तबाह कर दिया था. अब, जब अज़रबैजान के पास JF-17 जैसे फाइटर जेट्स होंगे, तो शक्ति असंतुलन और भी अधिक गहरा हो सकता है.
2025 की शांति वार्ता से पहले दबाव की रणनीति?
विशेषज्ञों का मानना है कि अज़रबैजान की यह खरीदारी 2025 में संभावित शांति समझौते से पहले एक कूटनीतिक दबाव बनाने की रणनीति हो सकती है. हालिया सैन्य गतिविधियों से लगता है कि अज़रबैजान अब भी आर्मेनिया पर दबाव बनाना चाहता है, ताकि वह विवादास्पद संवैधानिक संशोधन स्वीकार करे.
भारत और फ्रांस की ओर आर्मेनिया का झुकाव
एक समय था जब आर्मेनिया का 94% हथियार रूस से आता था, लेकिन 2020 की हार के बाद येरेवन ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है. अब वह फ्रांस और भारत जैसे वैकल्पिक सहयोगियों की ओर रुख कर रहा है. फ्रांस ने हाल ही में आर्मेनिया को सीज़र हॉवित्ज़र सिस्टम की आपूर्ति की, जिसे अज़रबैजान और रूस—दोनों ने आलोचना की.
क्या भारत बनेगा नया रक्षा साझेदार?
राफेल जैसे महंगे विकल्पों की तुलना में, भारत से Su-30MKI खरीदना आर्मेनिया के लिए कहीं ज्यादा व्यावहारिक हो सकता है. भारत पहले से ही इस लड़ाकू विमान का निर्माण कर रहा है और भविष्य में निर्यात भी कर सकता है. साथ ही, भारत आर्मेनिया को उसके पुराने रूसी Su-30SM फाइटर जेट्स को अपग्रेड करने में भी मदद कर सकता है.
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