जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर पाकिस्तान के चेहरे से नकाब हटा दिया है. 26 निर्दोष लोगों की जान लेने वाले इस कायराना हमले के पीछे किसका हाथ है, ये अब किसी से छुपा नहीं है. दुनिया के ज़्यादातर देश जहां पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल नहीं उठा रहे, वहीं भारत ने पूरी स्पष्टता से इसका जवाब देने की ठान ली है.
भारत ने साफ कर दिया है कि इस हमले के दोषियों और उनके संरक्षकों को सज़ा जरूर मिलेगी — और इसमें कोई देर नहीं होगी. रूस और जापान जैसे देशों ने भारत के इस रुख का खुला समर्थन किया है. लेकिन, अमेरिका की प्रतिक्रिया एक बार फिर 'संयम बरतने' जैसी पुराने ढांचे वाली भाषा में सिमट गई है.
बोल्टन बोले- “भारत को आत्मरक्षा का पूरा अधिकार”
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने भारत के पक्ष में खुलकर आवाज़ उठाई है. एनडीटीवी को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने साफ कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक बहुत संयम दिखाया है. भारत को अपने लोगों की रक्षा के लिए सटीक और वैध कार्रवाई का पूरा अधिकार है.”
बोल्टन के मुताबिक, अगर भारत पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर सटीक जवाबी हमला करता है, तो यह न केवल उसका अधिकार है, बल्कि इससे यह भी साफ होगा कि भारत कोई ‘युद्ध विस्तार’ नहीं चाहता, बल्कि न्याय चाहता है.
UN और UNSC की भूमिका पर सवाल
पाकिस्तान की शिकायत पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की आपात बैठक बुलाई गई. लेकिन, इसमें भी भारत की चिंता को उतनी प्राथमिकता नहीं मिली जितनी एक आतंक-पीड़ित लोकतंत्र को मिलनी चाहिए. UN महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने वही पुराना रटा-रटाया बयान जारी किया— “दोनों पक्ष संयम बरतें.”
यहां सवाल ये है कि संयम की नसीहत सिर्फ भारत को क्यों दी जा रही है? क्या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह कहने की हिम्मत किसी ने दिखाई कि आतंकियों को पनाह पाकिस्तान देता है, और उसकी जिम्मेदारी भी उसी की बनती है?
चीन-पाक गठजोड़ और संयुक्त राष्ट्र की गिरती साख
UN जैसी संस्था की साख पहले ही चीन के दबदबे और कोविड-19 जैसी वैश्विक त्रासदी को संभालने में विफलता के कारण गिर चुकी है. अब एक बार फिर चीन की पैरवी पर पाकिस्तान जैसे आतंकी-समर्थक देश की बात पर संयुक्त राष्ट्र बैठक बुलाना, उसकी निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करता है.
सटीक हमला हो तो 'डिप्लोमैटिक बैलेंस' भी बन सकता है
बोल्टन का तर्क है कि अगर भारत का जवाब सीमित और केंद्रित हो, यानी सिर्फ हमले में शामिल आतंकी गुट को निशाना बनाया जाए, तो इससे भारत को न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलेगा, बल्कि पाकिस्तान को भी पीछे हटने का रास्ता मिल सकता है. इससे बातचीत की गुंजाइश भी बनी रह सकती है.
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि भारत को पहले पाकिस्तान से आतंक पर रोक लगाने की मांग करनी चाहिए और साथ ही चीन से भी दबाव डालने को कहना चाहिए. जब सभी राजनीतिक उपाय फेल हो जाएं, तभी सैन्य विकल्प को अपनाना अधिक नैतिक और व्यावहारिक माना जाएगा.
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