इस्लामाबाद: पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था एक बार फिर चर्चा में है. हाल ही में पाकिस्तान के वित्त मंत्री मोहम्मद औरंगजेब ने इकोनॉमिक सर्वे 2024-25 पेश किया, जिसमें बताया गया कि देश का कुल कर्ज अब 76,000 अरब पाकिस्तानी रुपए तक पहुंच चुका है. सवाल उठता है - क्या पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था सच में सुधार की ओर है या यह सिर्फ आंकड़ों का खेल है?
कितना कर्ज, कहां से आया?
पाकिस्तान पर मौजूदा समय में:
क्या वाकई अर्थव्यवस्था संभल रही है?
वित्त मंत्री का कहना है कि पिछले दो सालों में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार देखने को मिला है.
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सुधार टिकाऊ है?
विदेशी मुद्रा भंडार में सुधार, कर्ज बरकरार
हालांकि, पाकिस्तान को अगले 4 साल में करीब 100 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है. 2025 के जुलाई तक ही उसे 30.35 अरब डॉलर लौटाने होंगे.
यानि, विदेशी मुद्रा बढ़ने के बावजूद, कर्ज चुकाने का बोझ अभी भी पाकिस्तान की क्षमता से कहीं ज्यादा है.
IMF और दूसरे कर्जदाता कितनी बार बचा चुके
पाकिस्तान अब तक IMF से 25 बार बेलआउट पैकेज ले चुका है.
इसके अलावा सऊदी अरब, UAE, और पेरिस क्लब से भी कर्ज ले चुका है.
मई 2024 में IMF ने पाकिस्तान की कर्ज चुकाने की क्षमता पर सवाल उठाए थे. IMF ने साफ कहा कि पाकिस्तान का वित्तीय भविष्य अब उसकी आर्थिक नीतियों और समय पर मिलने वाले विदेशी कर्ज पर निर्भर करेगा.
क्या पाकिस्तान में गरीबी कम हो रही है?
पाकिस्तान सरकार भले ही आर्थिक रिकवरी की बात कर रही हो, लेकिन जमीनी सच्चाई काफी अलग है.
भारत ने करीब 27 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है, जो पाकिस्तान की कुल आबादी से भी ज्यादा है.
क्या यह वाकई आर्थिक सुधार है?
पाकिस्तान सरकार भले ही अर्थव्यवस्था में "मजबूती" की बात कर रही हो, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि सुधार से ज्यादा यह कर्ज पर चल रही अर्थव्यवस्था है.
भारी विदेशी कर्ज, लगातार IMF से बेलआउट, बढ़ती गरीबी और महंगाई - ये संकेत दे रहे हैं कि पाकिस्तान को सिर्फ छोटे सुधार नहीं, बल्कि आर्थिक व्यवस्था में बुनियादी बदलाव करने की जरूरत है.
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