जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए बर्बर आतंकी हमले ने एक बार फिर पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं. जांच एजेंसियों के अनुसार, हमले का तरीका और निशाने चुने जाने का पैटर्न इस ओर इशारा कर रहा है कि इसमें पाकिस्तानी सेना की सबसे खतरनाक मानी जाने वाली यूनिट — स्पेशल सर्विस ग्रुप (SSG) का हाथ हो सकता है.
यह वही SSG है, जिस पर पहले भी निर्दोषों को बेरहमी से मारने, दुश्मनों के सिर काटने और यहां तक कि जिंदा जलाने तक के गंभीर आरोप लग चुके हैं. लेकिन, यह भी एक हकीकत है कि SSG हमेशा अपने मिशन में कामयाब नहीं रही. 1965 के भारत-पाक युद्ध में, इसी कमांडो यूनिट को भारत ने करारा जवाब दिया था — इतना कि सैकड़ों SSG जवान कश्मीर की धरती पर मारे गए.
SSG की शुरुआत और पहला ऑपरेशन
SSG की पहली युद्धकालीन तैनाती 1960 में हुई थी, जब अफगानिस्तान सीमा पर झरझरा इलाके में इसे भेजा गया. इस ऑपरेशन में मेजर मिर्ज़ा असलम बेग के नेतृत्व में SSG की एक टुकड़ी ने अफगान सीमा पार की और वहां के एक नवाब को हटाकर कानून-व्यवस्था संभाली. यह सफलता SSG को आत्मविश्वास दे गई और फिर भारत के खिलाफ रणनीतियाँ बननी शुरू हो गईं.
ऑपरेशन जिब्राल्टर: पाकिस्तान की सबसे बड़ी भूल
1965 में पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ एक गुप्त अभियान शुरू किया — ऑपरेशन जिब्राल्टर. मकसद था कश्मीर में आम नागरिकों के बीच SSG कमांडो को घुला-मिलाकर जनविद्रोह खड़ा करना. पाकिस्तान को उम्मीद थी कि इससे भारत को कश्मीर से हटने पर मजबूर किया जा सकेगा. लेकिन, भारतीय सुरक्षा बलों की सतर्कता और स्थानीय लोगों के समर्थन ने पाकिस्तान की इस योजना को ध्वस्त कर दिया. योजना उल्टी पड़ी और जनविद्रोह की जगह SSG कमांडो खुद विद्रोह के शिकार हो गए.
एयरड्रॉप फेलियर: जब SSG का 'सीक्रेट मिशन' बना मौत का जाल
7 सितंबर 1965 की रात, पाकिस्तान ने एक और दुस्साहसिक योजना को अंजाम देने की कोशिश की — SSG कमांडो को भारतीय एयरबेस पर उतारकर हमला करने की साजिश. करीब 180 SSG कमांडो C-130 हरक्यूलिस विमान में सवार होकर पठानकोट, आदमपुर और हलवारा में एयरड्रॉप के लिए रवाना हुए. लेकिन, भाग्य ने साथ नहीं दिया. तेज़ हवाओं और कठिन इलाके की वजह से कमांडो टीमें बिखर गईं और भारतीय सीमा में घुसते ही उनका मिशन असफल हो गया.
परिणाम भयावह था —
हलवारा में लैंड हुए दो कमांडो — जिनमें एक मेजर हसनैन था — एक जीप का अपहरण कर किसी तरह पाकिस्तान लौटने में सफल रहे.
अब फिर वही चेहरा?
आज, जब पहलगाम हमले में उसी SSG की संलिप्तता की बात उठ रही है, तो इतिहास एक बार फिर खुद को दोहराता नजर आता है. यह वही यूनिट है जो अपने अतीत में जघन्य अत्याचारों के लिए कुख्यात रही है, लेकिन भारतीय सेना के सामने बार-बार विफल भी हुई है.
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