इस्लामाबाद: पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय कर्जदाताओं के दरवाज़े पर उसे ले आई है. ताजा जानकारी के मुताबिक, पाकिस्तान सरकार 4.9 बिलियन डॉलर (लगभग ₹41,000 करोड़) का अतिरिक्त कर्ज लेने की योजना बना रही है. यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब इसी महीने IMF (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने पाकिस्तान को 1.4 बिलियन डॉलर का लोन मंजूर किया है.
नई उधारी का मकसद है विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करना और वित्तीय जरूरतों को पूरा करना. लेकिन इस कदम से सवाल उठने लगे हैं कि क्या पाकिस्तान सिर्फ कर्ज पर जिंदा रहना चाहता है या सुधारों की कोई ठोस योजना भी है?
कहां से आएगा पैसा?
सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान जिन संस्थाओं से कर्ज ले रहा है, उनमें शामिल हैं:
इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान सरकार शॉर्ट टर्म लोन ($2.64 बिलियन) 7-8% की उच्च ब्याज दर पर लेने की तैयारी कर रही है. साथ ही $2.27 बिलियन का लॉन्ग टर्म लोन भी प्लान में शामिल है.
विकास दर लक्ष्य से पीछे
वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए पाकिस्तान ने 3.6% की ग्रोथ का लक्ष्य रखा था, लेकिन यह घटकर सिर्फ 2.68% पर अटक गया. अर्थव्यवस्था में कोई ठोस सुधार नज़र नहीं आ रहा है और निवेशकों का भरोसा लगातार गिर रहा है.
लोन से सैन्य खर्च बढ़ाने की योजना?
पाकिस्तान की सेना के खर्चों को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है. IMF के हालिया बेलआउट प्रोग्राम की समीक्षा में यह बात सामने आई कि पाकिस्तान सरकार रक्षा बजट को और 18% तक बढ़ाना चाहती है, जबकि पहले ही यह बजट 2.414 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपये तक पहुंच गया है.
IMF का मानना है कि बढ़ा हुआ रक्षा बजट लोन के सदुपयोग पर सवाल खड़े करता है. खासकर जब यह पैसा आर्थिक सुधार के लिए दिया जा रहा है, न कि सैन्य विस्तार के लिए.
भारत की कड़ी प्रतिक्रिया
IMF की समीक्षा मीटिंग के दौरान भारत ने पाकिस्तान को दी जा रही फंडिंग पर आपत्ति जताई और लोन रिव्यू की प्रक्रिया में भाग नहीं लिया. भारत का तर्क था कि पाकिस्तान इन फंड्स का इस्तेमाल सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देने में करता है, जो वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए खतरा है.
भारत ने कहा, "इस तरह की फंडिंग आतंकवाद को बढ़ावा देती है और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की साख पर भी सवाल खड़ा करती है."
भारत ने IMF और अन्य डोनर्स से आग्रह किया कि वे फंड्स के दुरुपयोग पर सख्त निगरानी रखें.
IMF की भूमिका और भारत की भागीदारी
IMF का एग्जीक्यूटिव बोर्ड इस संस्था का नीति निर्धारण करने वाला मुख्य अंग होता है, जिसमें भारत का स्वतंत्र प्रतिनिधि भी शामिल होता है. यही प्रतिनिधि यह सुनिश्चित करता है कि IMF की नीतियां भारत के हितों के खिलाफ न हों और कोई फंडिंग आतंकवादी गतिविधियों को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन न दे.
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