Balochistan: पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में एक बार फिर मोबाइल डेटा सेवाएं बंद कर दी गई हैं. सरकार ने यह कदम "राष्ट्रीय सुरक्षा" का हवाला देते हुए उठाया है, लेकिन इसके पीछे कई परतें हैं, जिनमें एक ओर अलगाववादी आंदोलन की चुनौती है, तो दूसरी ओर चीनी निवेश वाली बेल्ट एंड रोड परियोजनाओं की सुरक्षा भी एक अहम कारण बनती दिख रही है.
सरकारी आदेश के मुताबिक, यह डिजिटल पाबंदी अगस्त के अंत तक जारी रहेगी. प्रांतीय प्रवक्ता शाहिद रिंद ने स्पष्ट किया कि यह फैसला इसलिए लिया गया है ताकि आतंकवादी संगठन मोबाइल नेटवर्क का इस्तेमाल कर अपने मंसूबों को अंजाम न दे सकें.
एक बार फिर अशांति के घेरे में
अफगानिस्तान और ईरान से सटे इस संवेदनशील प्रांत में हाल के दिनों में पाकिस्तानी सेना पर हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं. इसके जवाब में सेना ने खुफिया जानकारी के आधार पर सघन अभियान शुरू किए हैं. इससे पहले भी जुलाई महीने में सरकार ने ईरान जाने वाली सड़क यात्रा पर रोक लगाई थी. इस तरह की कार्रवाई सरकार की उस व्यापक रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है, जिसका मकसद इलाके में अस्थिरता को नियंत्रित करना है.
बलूचिस्तान, जो खनिज संसाधनों से समृद्ध है, लंबे समय से अलगाववादी आंदोलनों का केंद्र बना हुआ है. स्थानीय संगठन अक्सर इस बात पर नाराज़गी जताते रहे हैं कि केंद्र सरकार इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तो करती है, लेकिन इसके बदले में स्थानीय लोगों को उनका हक़ नहीं मिलता.
डिजिटल ब्लैकआउट का असर
करीब 85 लाख मोबाइल यूज़र्स पर सीधा असर डालने वाला यह फैसला आम नागरिकों के लिए भी मुश्किलें पैदा कर रहा है. बलूचिस्तान, जो क्षेत्रफल के हिसाब से पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, वहां की जनसंख्या लगभग 1.5 करोड़ है, जो पूरे देश की 24 करोड़ की जनसंख्या का एक छोटा हिस्सा है, लेकिन रणनीतिक रूप से यह क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है.
मोबाइल नेटवर्क बंद होने से न सिर्फ व्यक्तिगत जीवन प्रभावित होता है, बल्कि कारोबार, शिक्षा और चिकित्सा जैसी सेवाएं भी ठप हो जाती हैं. कई सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार संगठन इस कदम को अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला मान रहे हैं.
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