पाकिस्तान में अहमदी मुस्लिमों की मस्जिद पर कट्टरपंथियों की क्रूरता, सैकड़ों लोगों ने एक को पीट-पीटकर मार दिया

    पाकिस्तान के कराची शहर में शुक्रवार दोपहर एक और बर्बर अध्याय जुड़ गया — जब एक अहमदी मुस्लिम को महज़ उसके धार्मिक पहचान की वजह से पीट-पीटकर मार डाला गया.

    Pakistan mosque of Ahmadi Muslims 1 dead
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    पाकिस्तान के कराची शहर में शुक्रवार दोपहर एक और बर्बर अध्याय जुड़ गया — जब एक अहमदी मुस्लिम को महज़ उसके धार्मिक पहचान की वजह से पीट-पीटकर मार डाला गया. घटना कराची के व्यस्त सदर इलाके की है, जहां तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) से जुड़े सैकड़ों कट्टरपंथियों ने एक अहमदी मस्जिद को निशाना बनाया और वहां मौजूद लोगों पर हमला बोल दिया.

    46 वर्षीय लायक चीमा, जो अहमदी समुदाय से ताल्लुक रखते थे, इस हिंसा का शिकार बने. चश्मदीदों और समुदाय के प्रवक्ता आमिर महमूद के मुताबिक, लायक मस्जिद से महज़ 100 मीटर की दूरी पर थे, जब TLP के लोगों ने उन्हें पहचानकर घेर लिया और मारना शुरू कर दिया. पुलिस उन्हें अस्पताल ले गई, लेकिन उनकी जान नहीं बच सकी.

    पाकिस्तान में अहमदी समुदाय के खिलाफ नफरत का इतिहास

    कराची पुलिस ने CCTV फुटेज खंगालने और मामले की जांच की बात कही है, मगर सवाल वही पुराना है — क्या जांच और बयानबाजी से ज़मीनी हकीकत बदलेगी?

    पाकिस्तान में अहमदी समुदाय के खिलाफ नफरत का इतिहास लंबा और डरावना रहा है. 1974 में पाकिस्तान की संसद ने उन्हें "गैर-मुस्लिम" करार दिया था, जिसके बाद से उनके लिए मस्जिद में नमाज़ पढ़ना, खुद को मुसलमान कहना, या इस्लामिक प्रतीकों का उपयोग करना तक अपराध बन गया है. ऐसे में हिंसा, सामाजिक बहिष्कार और कानूनी उत्पीड़न उनके रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं.

    TLP जैसे संगठनों को अक्सर सरकार की नर्मी या मौन समर्थन भी मिलता रहा है. और यही वजह है कि आज भीड़ का एक समूह खुलेआम शहर के बीचोबीच हत्या कर देता है, और कानून व्यवस्था बस बयान देकर शांत हो जाती है.

    अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमले बढ़े

    पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (HRCP) पहले ही चेतावनी दे चुका है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमले बढ़ रहे हैं — घर जलाए जा रहे हैं, पूजा स्थल तोड़े जा रहे हैं, और अब जान तक ली जा रही है. यह घटना पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता की सच्चाई को नंगा करती है. यह दिखाती है कि वहां एक वर्ग को संविधान से बाहर कर देना, उसे असुरक्षित बना देना और फिर भीड़ के हवाले छोड़ देना एक सामाजिक "नॉर्म" बन चुका है.

    अब सवाल यह नहीं है कि आरोपी कौन थे या क्या सजा मिलेगी. असली सवाल यह है: क्या पाकिस्तान एक धार्मिक लोकतंत्र कहलाने का नैतिक अधिकार रखता है, जब वह अपने ही नागरिकों की धार्मिक पहचान को उनके खिलाफ हथियार बना देता है?

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