अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद भारत और अफगानिस्तान के रिश्तों पर विराम सा लग गया था. अगस्त 2021 में तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जे के बाद भारत ने एहतियातन अपना दूतावास बंद कर दिया और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संवाद लगभग ठप पड़ गया. पाकिस्तान ने इस मौके को अपनी जीत के तौर पर पेश किया और दावा किया कि भारत का अफगानिस्तान में वर्षों का निवेश अब व्यर्थ हो गया, लेकिन वक्त के साथ समीकरण बदले और अब तस्वीर कुछ और ही बयां कर रही है.
भारत-तालिबान पहली बार आमने-सामने
15 मई को भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के बीच एक अहम टेलीफोनिक बातचीत हुई. यह तालिबान के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के बीच हुई पहली औपचारिक बातचीत थी. इस संवाद को अफगानिस्तान के साथ भारत के रिश्तों को दोबारा मजबूत करने की दिशा में एक निर्णायक शुरुआत माना जा रहा है.
इस कॉल के दौरान मुत्ताकी ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले की निंदा की, जिसे भारत ने एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा. जयशंकर ने भी अफगानिस्तान के लोगों के साथ भारत की ऐतिहासिक मित्रता की बात दोहराई और विकास एवं सहयोग के नए अवसरों की तलाश की इच्छा जताई.
भारत की ओर से नरम डिप्लोमैसी
भारत भले ही तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता नहीं देता हो, लेकिन वह काबुल में जून 2022 से एक तकनीकी मिशन चला रहा है. साथ ही भारत ने मानवीय आधार पर सहायता भी जारी रखी है – चाहे वो अनाज हो, दवाइयां हों या शिक्षा से जुड़ी मदद. हाल ही में भारत ने अटारी-वाघा बॉर्डर से अफगानिस्तान के 160 ट्रकों को देश में प्रवेश की अनुमति दी, जिनमें सूखे मेवे और अन्य व्यापारिक वस्तुएं थीं.
तालिबान सरकार भारत में बढ़ा रही अपनी मौजूदगी
तालिबान की ओर से भी रिश्तों को सामान्य करने की दिलचस्पी दिखाई गई है. तालिबान प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने एक इंटरव्यू में कहा कि अफगानिस्तान भारत के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को फिर से मजबूत करना चाहता है और विदेशी निवेश को आमंत्रित करने का इच्छुक है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत जल्द ही तालिबान द्वारा नियुक्त कुछ राजनयिकों को आधिकारिक रूप से दिल्ली में कार्यभार संभालने की अनुमति दे सकता है. हालांकि, कई तालिबान-समर्थित राजनयिक पहले से ही नई दिल्ली और मुंबई में अफगान दूतावास व वाणिज्य दूतावास में कार्यरत हैं.
पाकिस्तान की ‘जीत’ कैसे बनी चिंता का सबब
जिस तालिबान की सत्ता को पाकिस्तान ने अपनी रणनीतिक जीत बताया था, वही अब उसके लिए कूटनीतिक सिरदर्द बनता जा रहा है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच अब संबंध बेहद तनावपूर्ण हो गए हैं. सीमा विवाद, आतंकी गतिविधियां और कूटनीतिक असहमति ने दोनों के रिश्तों को तल्ख बना दिया है.
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