जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए वीभत्स आतंकी हमले के बाद जब भारत ने निर्णायक और सख्त रुख अपनाया, तो पाकिस्तान की रणनीति अचानक बदल गई. जहां उसके मंत्री और राजनयिक परमाणु हमले की गीदड़ भभकियों में जुटे थे, वहीं अब खुद प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ "शांति" की दुहाई देने लगे हैं. पहलगाम हमले में मारे गए 26 हिंदू नागरिकों की नृशंस हत्या के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई मोर्चों पर कार्रवाई तेज कर दी है. इस दबाव के बीच शरीफ का बदला हुआ बयान न सिर्फ पाकिस्तान की घबराहट को उजागर करता है, बल्कि यह भी साफ करता है कि भारत के जवाबी तेवर ने उसे झकझोर कर रख दिया है.
"युद्ध नहीं, आर्थिक सुधार चाहिए" - शरीफ की नई चाल
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में तुर्की के राजदूत डॉ. इरफान नेजिरोग्लू के साथ मुलाकात में कहा कि "पाकिस्तान अपने पड़ोसियों के साथ शांति और सुरक्षा चाहता है." उन्होंने जोर देकर कहा कि युद्ध से न सिर्फ पाकिस्तान का विकास रुक जाएगा, बल्कि देश को भारी आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ेगा. शरीफ ने यह भी दावा किया कि उनकी सरकार आतंकवाद के खिलाफ है और भारत को पहलगाम हमले की निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय जांच का प्रस्ताव दे चुकी है.
भारत की सैन्य और कूटनीतिक सख्ती से सहमा पाकिस्तान
भारत ने न केवल सिंधु जल संधि तोड़ दी है, बल्कि पाकिस्तान पर कई आर्थिक और कूटनीतिक प्रतिबंध भी लगा दिए हैं. साथ ही भारतीय सेना को सीमाओं पर खुली छूट दी गई है. इन कदमों ने पाकिस्तान के भीतर खलबली मचा दी है. यहां तक कि कुछ पाकिस्तानी मंत्री खुले मंचों पर यह तक कह चुके हैं कि "भारत 24 से 35 घंटे में हमला कर सकता है." वहीं रूस में पाकिस्तान के राजदूत ने तो परमाणु हमले की धमकी तक दे डाली थी. लेकिन अब प्रधानमंत्री शरीफ का स्वर बदलना यह दिखाता है कि पाकिस्तान अंदर से बुरी तरह घबराया हुआ है.
"आतंकवाद से बड़ा नुकसान झेल चुका पाकिस्तान" – शरीफ की सफाई
शरीफ ने दावा किया कि पाकिस्तान ने आतंकवाद से लड़ते हुए 90 हजार से ज्यादा नागरिकों को खोया है और 152 अरब डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान उठाया है. ऐसे में वह किसी भी तरह के संघर्ष से दूर रहना चाहता है. उनका कहना है कि मौजूदा समय में पाकिस्तान की प्राथमिकता आर्थिक स्थिरता और विकास है, न कि युद्ध.
क्या यह शांति की पहल है या दबाव में उठाया गया कदम?
शहबाज शरीफ की यह 'शांति की पेशकश' ऐसे समय पर सामने आई है जब पाकिस्तान की साख अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार गिरती जा रही है. भारत की कार्रवाई और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच पाकिस्तान का रुख बदलना एक रणनीतिक मजबूरी लगता है, न कि आत्मचिंतन.
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