कानपुर का हाथीपुर गांव आज शोक में डूबा है. गांव की गलियों में सन्नाटा पसरा है, लेकिन दिलों में एक ज्वाला सुलग रही है. आतंकवाद के खिलाफ गुस्से और दुख की. जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में जान गंवाने वाले शुभम द्विवेदी का गुरुवार को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा. शुभम के घर जैसे ही उनका पार्थिव शरीर पहुंचा, गांव की फिज़ा चीखों और विलाप में तब्दील हो गई. हर कोई यही कह रहा था – "शुभम ऐसा नहीं जाना चाहिए था."
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दी श्रद्धांजलि
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद शुभम के परिजनों से मिलने उनके घर पहुंचे. उन्होंने शोक-संतप्त परिवार से घटना की पूरी जानकारी ली और भरोसा दिलाया – “इस बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगे. सरकार बदला लेगी.” उन्होंने शुभम के पिता के कंधे पर हाथ रखा और पत्नी ऐशान्या से बात कर उन्हें ढांढस बंधाया. मुख्यमंत्री के जाते वक्त वहां मौजूद हर आंख नम थी, और ज़ुबां पर एक ही बात – “अब बहुत हो गया.”
"हम हिंदू हैं..." और चली गोली
शुभम की पत्नी ऐशान्या की आंखों से वह खौफनाक मंजर अभी तक उतरा नहीं है. शादी को अभी 70 दिन ही हुए थे. कश्मीर की वादियों में सुकून की तलाश में निकले थे, लेकिन मिली वहशीपन की गोलियां. "हम एक स्टाल पर मैगी खा रहे थे," ऐशान्या ने बताया. “मैं आगे थी, शुभम पीछे. कुछ लोग आए, धर्म पूछने लगे – हिंदू या मुसलमान? मैंने हँसते हुए कहा – हम हिंदू हैं... और उन्होंने बिना कुछ कहे शुभम को गोली मार दी.” उनकी आंखों में अब सिर्फ एक ही तस्वीर है – शुभम का खून में लथपथ चेहरा.
आक्रोश की आग – "पाकिस्तान मुर्दाबाद"
गांव में हर तरफ आक्रोश है. पाकिस्तान विरोधी नारे लगातार गूंज रहे हैं. शुभम के अंतिम दर्शन के लिए जुटे हजारों ग्रामीणों की एक ही मांग है – “सरकार सख्त जवाब दे.” लोगों का कहना है कि यह महज़ एक हत्या नहीं, बल्कि पूरे देश पर हमला है और इसका जवाब उतना ही कठोर होना चाहिए.
अंतिम विदाई गंगा किनारे
सीमेंट कारोबारी शुभम द्विवेदी 17 अप्रैल को अपने 11 परिजनों के साथ कश्मीर घूमने गए थे. लौटना था 23 अप्रैल को, लेकिन उससे एक दिन पहले ही 22 तारीख को आतंकियों की गोलियों ने उनकी यात्रा को हमेशा के लिए रोक दिया. उनका शव बुधवार रात लखनऊ एयरपोर्ट लाया गया, जहाँ से ग्रीन कॉरिडोर बनाकर उसे उनके गांव हाथीपुर पहुंचाया गया. अब गंगा किनारे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.
अंत नहीं, शुरुआत है ये
शुभम द्विवेदी अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी शहादत एक सन्नाटा नहीं, एक आवाज़ बन चुकी है – आतंक के खिलाफ, और देश की सुरक्षा के लिए. यह एक परिवार की त्रासदी नहीं, पूरे राष्ट्र का जख्म है. अब देखना है कि सरकार इस जख्म का इलाज कैसे करती है – लफ्ज़ों से या लहू से.
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