नई दिल्लीः जब देश की आंखों में नींद थी, तब सरहद पर भारतीय सेना की आंखों में सिर्फ़ बदले की लपटें थीं. 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 बेगुनाहों की जान लेने वाले साजिशकर्ताओं को जवाब देने के लिए भारतीय सेना ने बुधवार देर रात ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया — एक ऐसा नाम, जो उन महिलाओं को समर्पित है जिनका सुहाग आतंकवाद ने छीन लिया.
इस जवाबी हमले में भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के भीतर मौजूद 9 आतंकी ठिकानों को एक के बाद एक ध्वस्त कर दिया. ख़ुफिया जानकारी के आधार पर चलाए गए इस सैन्य अभियान में अब तक 100 से ज़्यादा आतंकियों के मारे जाने की खबर है. जानकार इसे न सिर्फ़ बालाकोट एयरस्ट्राइक, बल्कि 1971 की जंग के बाद का सबसे गहरा और निर्णायक सैन्य प्रतिघात मान रहे हैं.
क्या बनाता है ऑपरेशन सिंदूर को अनूठा?
जहां 2016 की उरी सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक सीमित क्षेत्रों में केंद्रित थीं, वहीं ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने एक साथ नौ ठिकानों पर हमला कर भारत की रणनीतिक पहुंच और सैन्य ताकत का स्पष्ट संदेश दिया है. इस बार भारत ने सिर्फ़ PoK ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान के ‘मूलभूत भूभाग’ तक मिसाइलें पहुंचाई हैं — जो अब तक एक ‘रेड ज़ोन’ माना जाता था.
CNN रिपोर्ट
CNN की रिपोर्ट के अनुसार, यह पहली बार है जब भारत की मिसाइलें पाकिस्तान के उस क्षेत्र तक पहुंची हैं, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्विवाद रूप से पाकिस्तान का हिस्सा माना जाता है. भारत ने न केवल PoK बल्कि पहली बार पाकिस्तान के मुख्य प्रांत पंजाब में भी सटीक हमले किए, वह भी बिना किसी जमीनी घुसपैठ के.
क्यों हो रही है 1971 से तुलना?
1971 की युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के पश्चिमी मोर्चे पर गहरी घुसपैठ की थी, विशेष रूप से सिंध, पंजाब और राजस्थान सेक्टरों में. सिंध में भारतीय बलों ने लगभग 40-50 किलोमीटर भीतर जाकर खोकरापार जैसे कस्बों पर कब्जा किया, जबकि पंजाब में लाहौर और सियालकोट के नजदीकी इलाकों में सफलता पाई गई. हालांकि, उस समय की कार्रवाई का मकसद रणनीतिक बढ़त और भूभाग पर नियंत्रण था. इसके विपरीत, ऑपरेशन सिंदूर एक सीमित और सटीक जवाबी हमला है, जिसका उद्देश्य आतंक के ठिकानों का सफाया करना था, न कि जमीन पर कब्जा जमाना.
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