OIC की इस्तांबुल बैठक: बयानबाजी के आगे नहीं बढ़ा मुस्लिम देशों का रुख, अमेरिका पर नरमी को लेकर उठे सवाल

    तुर्की के ऐतिहासिक शहर इस्तांबुल में हाल ही में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के विदेश मंत्रियों की परिषद (CFM) की महत्वपूर्ण बैठक आयोजित हुई.

    OIC Istanbul meeting Muslim countries stance America
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    तुर्की के ऐतिहासिक शहर इस्तांबुल में हाल ही में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के विदेश मंत्रियों की परिषद (CFM) की महत्वपूर्ण बैठक आयोजित हुई. इस बैठक के समापन पर जो घोषणापत्र (Istanbul Declaration) जारी किया गया, उसमें गाजा युद्ध, ईरान पर इज़रायली हमलों और पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव पर चर्चा की गई. हालांकि, इस सम्मेलन से मुस्लिम जगत को जो कड़े रुख की उम्मीद थी, वह काफी हद तक नदारद रहा—खासतौर पर अमेरिका के संदर्भ में.

    भारत के खिलाफ तीखा रुख, अमेरिका पर मौन

    जहां OIC ने पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाते हुए भारत के सिंधु जल समझौते पर रुख की आलोचना की, वहीं अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर किए गए हमलों को लेकर संगठन की प्रतिक्रिया बेहद हल्की रही. OIC ने इसे केवल "खतरनाक वृद्धि" बताया और "चिंता" प्रकट करने तक ही सीमित रहा.

    डॉन की तीखी टिप्पणी: बयानबाज़ी से आगे क्यों नहीं बढ़ता OIC?

    पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन ने अपने संपादकीय में सवाल उठाया है कि मुस्लिम दुनिया के 57 देशों का यह संगठन आखिर अमेरिका के खिलाफ खुलकर बोलने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाता. डॉन का कहना है कि दशकों से OIC केवल कड़े बयानों और घोषणाओं के लिए ही जाना जाता है, लेकिन इनका जमीनी असर लगभग शून्य रहता है.

    ईरान पर हालिया हमलों के संदर्भ में भी यही देखने को मिला. OIC ने जहां इज़रायल की नीतियों की आलोचना की, वहीं अमेरिका के हमलों पर कोई ठोस रुख नहीं अपनाया. यह विरोधाभास स्पष्ट करता है कि कई OIC सदस्य देश अमेरिका और पश्चिमी देशों पर अपनी आर्थिक और राजनीतिक निर्भरता के चलते खुलकर विरोध करने से कतराते हैं.

    'उम्माह' की एकता पर सवाल

    डॉन ने यह भी लिखा कि जब OIC 'उम्माह' यानी मुस्लिम एकता की बात करता है, तो उसे गाजा में हो रहे नरसंहार या ईरान पर किए गए सैन्य हमलों जैसे मुद्दों पर ठोस और एकजुट प्रतिक्रिया देनी चाहिए. लेकिन अलग-अलग भूराजनीतिक हितों और विदेश नीति एजेंडों के कारण यह संगठन एकमत नहीं हो पाता.

    “ईरान को आज निशाना बनाया गया, इससे पहले अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, लीबिया और यमन को निशाना बनाया गया था. आने वाले समय में शायद कोई और मुस्लिम देश निशाने पर हो. यदि अमेरिका और इज़रायल को इसी तरह खुली छूट मिलती रही, तो कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा,” डॉन ने अपने लेख में चेताया.

    क्या कर सकता है OIC?

    OIC यदि वाकई मुस्लिम दुनिया की आवाज़ बनना चाहता है, तो उसे सिर्फ निंदा और चिंता जताने से आगे बढ़कर ठोस क़दम उठाने होंगे. इसमें:

    फिलिस्तीन के समर्थन में वैश्विक मंचों पर सशक्त पहल

    • मुस्लिम विरोधी नीति अपनाने वाले देशों के साथ आर्थिक बहिष्कार
    • राजनयिक संबंधों में कटौती
    • मुस्लिम देशों के भीतर विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ ठोस नीतिगत विरोध

    शामिल हो सकते हैं.

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