उत्तराखंड में एक बार फिर से प्राकृतिक आपदाओं के संकेत सामने आ रहे हैं. वैज्ञानिकों की एक नई रिपोर्ट ने राज्य के गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में खिसकते पहाड़ों और बढ़ते भूस्खलन के खतरे का गंभीर आकलन किया है. यह अध्ययन, जो विशेष रूप से मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) क्षेत्र पर आधारित है, ये चेतावनी देता है कि पहाड़ियों के खिसकने से भविष्य में बड़ी आपदाएं आ सकती हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार, ये खिसकन एक धीमे, लेकिन खतरनाक साइलेंट डिजास्टर का रूप ले सकता है, जो अगर समय रहते नहीं रोका गया, तो भूस्खलन और अन्य आपदाओं को जन्म दे सकता है.
गढ़वाल हिमालय में खतरे की घंटी
गढ़वाल हिमालय में मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) के पास की पहाड़ियां लगातार खिसक रही हैं. यह चिंता का विषय है, क्योंकि यह क्षेत्र पहले से ही भूस्खलन के लिए संवेदनशील माना जाता है. हाल ही में किए गए स्पेस-बेस्ड एसएआर (सिंथेटिक अपर्चर रडार) इमेजेस के विश्लेषण से यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि पहाड़ों का खिसकना न केवल भूस्खलन की संभावना को बढ़ा रहा है, बल्कि यह साइलेंट डिजास्टर का रूप भी ले सकता है, यानी यह खिसकना धीरे-धीरे हो रहा है, लेकिन इसके परिणाम भविष्य में गंभीर हो सकते हैं.
वैज्ञानिक अध्ययन: क्या कहती हैं ताजा रिपोर्ट्स?
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, सिक्किम विश्वविद्यालय और एकेडमी ऑफ साइंटिफिक एंड इनोवेटिव रिसर्च (गाजियाबाद) के वैज्ञानिकों ने मिलकर सेंटिनल-1 उपग्रह के 129 डेटा सीन (जनवरी 2021 से मार्च 2025) का विश्लेषण किया. इस विश्लेषण में पाया गया कि भागीरथी घाटी के कई गांव, जैसे भटवाड़ी, नतिन, रैथल, और बार्सू, की ज़मीन लगातार नीचे की तरफ खिसक रही है. यह क्षेत्र गढ़वाल हिमालय में स्थित है, जो किसी भी भूकंप या भारी बारिश के दौरान भूस्खलन के खतरे को और बढ़ा सकता है.
खिसकने की दर: प्रत्येक गांव में क्या हो रहा है?
अध्ययन के दौरान, वैज्ञानिकों ने पहाड़ियों की गति को मापने की कोशिश की. रैथल (ऊंचाई 2150 मीटर) में यह पाया गया कि पहाड़ी 03 मिमी नीचे की ओर धंस रही है, जबकि 05 मिमी पूर्व की दिशा में खिसक रही है. भटवाड़ी (ऊंचाई 1650 मीटर) में यह 04 मिमी पूर्व की ओर खिसक रहा है, जबकि 02 मिमी ऊपर की दिशा में बढ़ रहा है. इसी तरह, बार्सू (ऊंचाई 2262 मीटर) में हालात और भी गंभीर पाए गए, जहां यह क्षेत्र 06 मिमी पूर्व की दिशा में खिसक रहा है और 03 मिमी नीचे की ओर धंस रहा है.
साइलेंट डिजास्टर: एक धीमा, लेकिन खतरनाक खतरा
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह धीमी गति से होने वाला खिसकना एक साइलेंट डिजास्टर है, जो भले ही नजर नहीं आता, लेकिन धीरे-धीरे जमीन की मजबूती को कमजोर कर रहा है. पहाड़ों में दरारें बढ़ने से भविष्य में बड़े भूस्खलन और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ सकता है. इन बदलावों के परिणामस्वरूप घरों की नींव कमजोर हो सकती है, और रास्ते टूट सकते हैं. इसलिए इसे एक गहरी चिंता के रूप में लिया जा रहा है, क्योंकि यह किसी भी समय भूकंप या भारी बारिश के दौरान स्थिति को और गंभीर बना सकता है.
भूकंप और बरसात: क्या होगा अगला खतरा?
अध्ययन में यह भी आशंका व्यक्त की गई है कि यदि भूकंप आता है या भारी बारिश होती है, तो भागीरथी नदी का रास्ता अवरुद्ध हो सकता है. इसके साथ ही, पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन के कारण क्षेत्रीय परिवहन और लोगों की जिंदगी पर भी बड़ा असर पड़ सकता है. भागीरथी घाटी, जिसे भारत सरकार ने 2012 में इको-सेंसिटिव जोन घोषित किया था, अब भी अत्यधिक संवेदनशील है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि इन खिसकती पहाड़ियों की दिशा में कोई और बदलाव हुआ तो स्थिति बहुत ही गंभीर हो सकती है.
भविष्य की योजना: समय रहते कार्रवाई जरूरी
इस संकट को समय रहते पहचानने और इससे निपटने के लिए, सेटेलाइट आधारित डेटा को भूविज्ञान, वर्षा, नदी कटाव, और भूकंप के खतरे से जोड़कर विस्तृत आकलन किया जाना चाहिए. इससे समय रहते खतरों का आकलन किया जा सकेगा और उचित योजनाएं बनाकर भविष्य में होने वाली बड़ी आपदाओं से बचा जा सकेगा. वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय क्षेत्र हर साल 40 मिमी उत्तर-पूर्व की दिशा में खिसकता है, जो इस क्षेत्र में संभावित खतरों को और बढ़ाता है.
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