‘स्वार्थ के लिए एक से अधिक शादी कर रहे मुस्लिम’, कुरान में क्यों दी गई बहु विवाह की इजाजत? इलाहाबाद HC ने बताया

    मुस्लिम पर्सनल लॉ और बहुविवाह की वैधानिकता को लेकर एक अहम टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दी है, जो ना केवल सामाजिक विमर्श को छूती है, बल्कि इस्लामिक प्रथाओं के आधुनिक संदर्भ में उपयोग और दुरुपयोग पर भी सवाल खड़े करती है.

    Muslims marrying for selfish reasons Quran Allahabad HC
    इलाहाबाद HC | Photo: ANI

    मुस्लिम पर्सनल लॉ और बहुविवाह की वैधानिकता को लेकर एक अहम टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दी है, जो ना केवल सामाजिक विमर्श को छूती है, बल्कि इस्लामिक प्रथाओं के आधुनिक संदर्भ में उपयोग और दुरुपयोग पर भी सवाल खड़े करती है. यह टिप्पणी उस वक्त सामने आई जब फुरकान नाम के एक मुस्लिम युवक ने अपनी दूसरी शादी को लेकर दर्ज एफआईआर के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी.

    ये है पूरा मामला

    मामला तब शुरू हुआ जब फुरकान की दूसरी पत्नी ने शिकायत दर्ज कराई कि उसने अपनी पहली शादी की जानकारी छिपाकर निकाह किया और इस दौरान रेप भी किया. फुरकान की तरफ से दलील दी गई कि इस्लाम में चार विवाह की अनुमति है, ऐसे में रेप का आरोप टिकता नहीं, लेकिन इस तर्क पर प्रतिक्रिया देते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कुरान में बहुविवाह की अनुमति बेशक दी गई है, लेकिन वह बिना शर्त नहीं है. यह केवल विशेष परिस्थितियों में और जिम्मेदारी के साथ किया जा सकता है.

    कुरान में क्यों दी गई बहु विवाह की इजाजत?

    जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा कि इतिहास में एक ऐसा दौर आया था जब युद्ध और आपसी संघर्षों के कारण समाज में बड़ी संख्या में महिलाएं विधवा और बच्चे अनाथ हो गए थे. उस कठिन समय में कुरान ने इन महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा व पुनर्वास के उद्देश्य से बहुविवाह की सशर्त अनुमति दी थी. लेकिन, आज इस प्रथा का कई पुरुष अपने निजी स्वार्थ और यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए दुरुपयोग कर रहे हैं, जो कुरान की मूल भावना के खिलाफ है.

    कोर्ट ने आगे कहा कि यदि कोई व्यक्ति पहली शादी मुस्लिम कानून के अनुसार करता है तो उसकी दूसरी, तीसरी या चौथी शादी वैध मानी जा सकती है. लेकिन, यदि कोई पहली शादी विशेष विवाह अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम, पारसी या ईसाई विवाह कानूनों के तहत करता है और फिर धर्म परिवर्तन कर इस्लाम अपनाकर दूसरी शादी करता है, तो यह शादी अमान्य होगी और ऐसे व्यक्ति पर भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत मुकदमा चल सकता है.

    कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण केसों का हवाला दिया

    इस संदर्भ में कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण केसों का हवाला दिया. बॉम्बे हाईकोर्ट के 2022 के फैसले में कहा गया था कि एक मुस्लिम पुरुष अधिकतम चार विवाह कर सकता है, इसलिए यदि वह दूसरी शादी करता है तो वह अमान्य नहीं मानी जाएगी. वहीं गुजरात हाईकोर्ट के 2015 के एक फैसले में यह स्पष्ट किया गया था कि यदि बहुविवाह का उद्देश्य केवल स्वार्थ या यौन इच्छा है, तो कुरान ऐसी अनुमति नहीं देता और यह मौलवियों की जिम्मेदारी है कि वे इसका दुरुपयोग न होने दें. इस पूरे मामले की अगली सुनवाई 26 मई से शुरू होने वाले सप्ताह में होनी है. कोर्ट ने तब तक के लिए फुरकान के खिलाफ किसी भी कठोर कार्रवाई पर रोक लगा दी है.

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