Premanand Maharaj: एक ओर जहाँ दुनिया में धर्म के नाम पर दीवारें खड़ी की जा रही हैं, वहीं मध्य प्रदेश की एक बेटी ने इंसानियत की ऐसी मिसाल पेश की है जो दिल को छू जाती है. यह कहानी है नरसिंहपुर जिले की मेहनाज खान की, एक ऐसी बेटी, जिसने धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर मानवता को चुना.
जब मेहनाज को सोशल मीडिया के ज़रिए यह पता चला कि संत प्रेमानंद महाराज गंभीर किडनी की बीमारी से जूझ रहे हैं और उन्हें जीवन के लिए किडनी की जरूरत है, तो उन्होंने बिना एक पल गंवाए अपने आप को आगे बढ़ाया. मेहनाज ने तय किया कि वो अपनी एक किडनी दान करेंगी, किसी और के लिए नहीं, बल्कि उस संत के लिए जो समाज को दिशा दिखा रहे हैं.
"इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है"
मेहनाज कहती हैं, "संत प्रेमानंद सिर्फ एक धर्म के नहीं, बल्कि पूरे समाज के मार्गदर्शक हैं. उनकी सेवा करना मेरे लिए गर्व की बात है." यह कहते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने इस निर्णय की शुरुआत एक दुआ से की. शुक्रवार की नमाज़ के बाद उन्होंने संत के लिए लंबी उम्र और अच्छी सेहत की दुआ माँगी. उनकी नजर में मजहब की असली तालीम यही है, दूसरों के लिए दुआ करना, उनकी मदद करना.
सामाजिक सौहार्द की अनोखी मिसाल
जब समाज में अक्सर धर्म के नाम पर टकराव देखने को मिलता है, ऐसे वक्त में मेहनाज का यह कदम उम्मीद की एक रोशनी की तरह है. उन्होंने दिखा दिया कि दिलों को जोड़ने वाला धर्म ही सच्चा है. यह पहल सिर्फ एक व्यक्ति की मदद नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक संदेश है, कि हम सभी पहले इंसान हैं, उसके बाद कुछ और.
एकता और करुणा का प्रतीक
मेहनाज खान का यह कदम भारत की उस आत्मा को दर्शाता है जो विविधता में एकता की बात करती है. जब एक मुस्लिम बेटी एक हिंदू संत के लिए अपनी किडनी देने को तैयार हो जाती है, तो यह बताने की ज़रूरत नहीं रहती कि भारत की असली पहचान क्या है. यह सिर्फ एक मेडिकल निर्णय नहीं, यह एक भावनात्मक और आध्यात्मिक संकल्प है—जो बताता है कि मजहब इंसान को बांटता नहीं, बल्कि इंसानियत उसे जोड़ती है.
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