कोलकाता: पश्चिम बंगाल के हावड़ा में मानव तस्करी और पोर्नोग्राफी रैकेट का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने पूरे शहर को हिला कर रख दिया है. पुलिस ने इस केस में मुख्य आरोपी आर्यन खान को पांच दिन की तलाशी अभियान के बाद दक्षिण कोलकाता के गोल्फ ग्रीन इलाके से गिरफ्तार कर लिया है. इस गिरोह की मास्टरमाइंड मानी जा रही आर्यन की मां श्वेता खान फिलहाल फरार है.
नौकरी का लालच, फिर महीनों की कैद
इस केस का खुलासा तब हुआ जब उत्तर 24 परगना के पानीहाटी इलाके की 22 वर्षीय एक युवती किसी तरह आरोपियों के चंगुल से भागने में सफल रही. युवती ने पुलिस को बताया कि आर्यन और उसकी मां ने उसे एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में नौकरी का झांसा दिया था. युवती के अनुसार, हावड़ा के डोमजूर इलाके के एक फ्लैट में उसे जबरन छह महीने तक बंधक बनाकर रखा गया. जब उसने पोर्न फिल्म बनाने और बार डांसर बनने से इनकार किया, तो उसके साथ बर्बरता से मारपीट की गई.
फर्जी कंपनी की आड़ में आपराधिक नेटवर्क
पुलिस जांच में पता चला कि जिस इवेंट कंपनी में नौकरी का वादा किया गया था, वह दरअसल इस अवैध रैकेट को छुपाने का एक साधन थी. पीड़िता को न केवल मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया, बल्कि उसे जबरन इस गंदे धंधे में धकेलने की कोशिश भी की गई.
फिलहाल पीड़िता कोलकाता के सरकारी सागर दत्ता अस्पताल के क्रिटिकल केयर यूनिट में भर्ती है, जहां उसकी हालत गंभीर बनी हुई है. उसके सिर, हाथ-पैर और शरीर के अन्य हिस्सों में गंभीर चोटें पाई गई हैं.
पुलिस कार्रवाई और महिला आयोग की सख्ती
हावड़ा के पुलिस आयुक्त प्रवीण त्रिपाठी ने बताया कि इस रैकेट में शामिल अन्य लोगों की तलाश जारी है. आर्यन के एक सहयोगी को भी गिरफ्तार किया गया है. पुलिस ने बताया कि आरोपी से पूछताछ के आधार पर जल्द ही पूरे रैकेट का नेटवर्क सामने लाया जाएगा.
इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी स्वत: संज्ञान लिया है. आयोग ने पश्चिम बंगाल पुलिस के डीजीपी से 48 घंटे के भीतर विस्तृत रिपोर्ट तलब की है. पीड़िता की मां ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्र लिखकर तत्काल न्याय और कड़ी कार्रवाई की मांग की है.
सरकारी वकील तारागति घटक ने जानकारी दी कि आर्यन को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, जहां कोर्ट ने 9 दिन की पुलिस हिरासत मंजूर की है. इस बीच आरोपी की मां श्वेता की तलाश भी तेज कर दी गई है.
सामाजिक चिंता और जरूरी सवाल
यह मामला सिर्फ एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि एक बड़े सामाजिक संकट की ओर इशारा करता है. बेरोजगारी, फर्जी कंपनियों के जाल और मानव तस्करी के बढ़ते खतरे ने समाज के कमजोर वर्गों को निशाना बनाया है.
सवाल यह है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या मौजूदा निगरानी तंत्र पर्याप्त है? क्या पीड़ितों को समय पर सुरक्षा और न्याय मिल पा रहा है? यह मामला निश्चित ही कानून व्यवस्था और सामाजिक जागरूकता के लिए एक चेतावनी है.
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