रूस और यूक्रेन के बीच लंबे समय से जारी युद्ध अब उस मोड़ पर पहुंच चुका है जहां कूटनीतिक वार्ताएं भी सशंकित लगने लगी हैं. हाल ही में अमेरिका के अलास्का में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच अहम बैठक हुई, जिसमें युद्ध को विराम देने की कोशिशों के तहत पुतिन ने तीन अहम शर्तें रखीं. इनमें सबसे विवादास्पद बात है – यूक्रेन के 20% हिस्से पर रूस का स्थायी दावा. लेकिन केवल यही नहीं, पुतिन की इन शर्तों के पीछे एक व्यापक भू-राजनीतिक योजना की झलक भी दिख रही है.
नाटो से दूरी: यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया जाएगा और नाटो का विस्तार पूर्व की ओर नहीं होगा. डोनबास पर अधिकार: यूक्रेन पूर्वी क्षेत्र डोनबास पर अपना दावा छोड़े और उसे रूस का भाग स्वीकार करे. रूसी भाषियों के अधिकार: यूक्रेन में रूसी भाषा बोलने वाले लोगों को सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकार सुनिश्चित किए जाएं. इन तीनों मांगों को समझना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि ये केवल एक युद्ध विराम का प्रस्ताव नहीं, बल्कि रूस की उस नीति का हिस्सा हैं जिसे अब 'रूसी मुनरो डॉक्ट्रिन' कहा जा रहा है एक नीति जिसके ज़रिए पुतिन सिर्फ यूक्रेन नहीं, बल्कि पूर्व सोवियत संघ के अन्य हिस्सों पर भी रणनीतिक पकड़ बनाना चाहते हैं.
क्या है 'रूसी मुनरो डॉक्ट्रिन'?
यह विचार अमेरिकी 'मुनरो डॉक्ट्रिन' से प्रेरित माना जाता है, जहां अमेरिका ने अपने प्रभाव क्षेत्र में बाहरी हस्तक्षेप को खारिज किया था. उसी तर्ज़ पर, पुतिन यह कह रहे हैं कि जहां भी रूसी भाषा बोलने वाले लोग हैं, रूस को उनके "संरक्षक" की भूमिका निभाने का अधिकार है. 2014 में क्रीमिया पर कब्जे से लेकर 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण तक, पुतिन ने इसी तर्क का इस्तेमाल किया कि पूर्वी यूक्रेन में रूसी भाषी लोगों के साथ भेदभाव हो रहा है. अब यही आधार वह कानूनी रूप से अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थापित करना चाहते हैं.
खतरे की जद में कौन-कौन से देश?
यदि इस नीति को स्वीकार्यता मिलती है, तो इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. लातविया और एस्तोनिया: जहां रूसी भाषी समुदाय 25% से अधिक है. कज़ाखस्तान: उत्तरी क्षेत्र में बड़ी संख्या में रूसी भाषी आबादी है. मोल्दोवा, बेलारूस, और किर्गिजस्तान: जहां रूसी भाषा आम है और रूस का सांस्कृतिक प्रभाव आज भी गहरा है. इन देशों की चिंताएं अब और बढ़ गई हैं क्योंकि पुतिन जिस तर्क के साथ यूक्रेन में दाखिल हुए, वह अब एक नीतिगत मॉडल के रूप में सामने आ रहा है.
यूक्रेन में रूसी भाषा को लेकर विवाद क्या था?
यूक्रेन में 2019 में एक कानून लाया गया था, जिसके तहत सरकारी संस्थानों में यूक्रेनी भाषा को अनिवार्य बना दिया गया. इससे पहले, 2018 में ल्वीव क्षेत्र में रूसी सांस्कृतिक उत्पादों पर सार्वजनिक प्रतिबंध भी लगाया गया था. रूस ने इन नीतियों को रूसी भाषी नागरिकों के "दमन" के रूप में प्रचारित किया और यही उसकी सैन्य कार्रवाई का मुख्य आधार बना.
बेलारूस के लिए क्या संकेत हैं?
बेलारूस में 70-80% आबादी रूसी बोलती है. वहां पहले से रूस की राजनीतिक और सैन्य मौजूदगी दिखती रही है. अगर पुतिन की 'मुनरो डॉक्ट्रिन' को एक नीति के रूप में स्वीकार किया गया, तो बेलारूस या बाल्टिक देशों में किसी भी भीतरी असंतोष को रूस अपनी सैन्य कार्रवाई के लिए इस्तेमाल कर सकता है.
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