भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक पैसेंजर व्हीकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना के दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं. केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री एच.डी. कुमारस्वामी के अनुसार, इस स्कीम के प्रति मर्सिडीज बेंज, स्कोडा-फॉक्सवैगन, हुंडई और किआ जैसी कई वैश्विक ऑटो कंपनियों ने रुचि दिखाई है. सरकार और इन कंपनियों के बीच हुई बातचीत में भारत को भविष्य के इलेक्ट्रिक व्हीकल हब के रूप में विकसित करने पर जोर दिया गया है.
क्या है यह स्कीम और कैसे मिलेगा फायदा?
सरकार की ओर से इस योजना को 15 मार्च 2024 को अधिसूचित किया गया था, लेकिन विस्तृत दिशा-निर्देश अब जून 2025 में जारी किए गए हैं. स्कीम के अंतर्गत, पात्र ग्लोबल मैन्युफैक्चरर्स को निम्नलिखित विशेष छूटें मिलेंगी. कंपनियां 35,000 अमेरिकी डॉलर से अधिक CIF मूल्य वाली ई-4W CBU (पूरी तरह बनी यूनिट) को 15% रियायती कस्टम ड्यूटी पर भारत में आयात कर सकेंगी. यह छूट 5 वर्षों तक मान्य होगी, बशर्ते कंपनी भारत में उत्पादन की प्रतिबद्धता दे.
कब और कैसे करें आवेदन?
अधिकारियों के मुताबिक, स्कीम के तहत आवेदन प्रक्रिया एक से दो हफ्ते में शुरू होने की संभावना है. कंपनियों को न्यूनतम ₹4,150 करोड़ का निवेश करना होगा. आवेदन जमा करने की समयसीमा 120 दिन होगी, जिसे जरूरत पड़ने पर बढ़ाया भी जा सकता है. भारी उद्योग मंत्रालय को 15 मार्च 2026 तक आवेदन लेने का अधिकार रहेगा.
टेस्ला की क्या है स्थिति?
जहां एक ओर कई वैश्विक कंपनियां भारत में उत्पादन की दिशा में आगे बढ़ रही हैं, वहीं अमेरिकी इलेक्ट्रिक कार निर्माता टेस्ला की प्राथमिकता अलग है. एच.डी. कुमारस्वामी ने बताया कि टेस्ला फिलहाल भारत में मैन्युफैक्चरिंग में रुचि नहीं रखती, लेकिन वह देश में अपने शोरूम खोलना चाहती है. इस मुद्दे पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि अगर टेस्ला भारत में प्लांट लगाकर शुल्क से बचती है, तो यह अमेरिका के लिए “अनुचित” होगा.
भारत को मिल सकता है ईवी हब बनने का अवसर
यह स्कीम भारत को वैश्विक इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग का नया केंद्र बनाने की दिशा में अहम कदम मानी जा रही है. सरकार का उद्देश्य केवल आयात की अनुमति देना नहीं है, बल्कि स्थानीय उत्पादन, तकनीकी हस्तांतरण और रोजगार सृजन को भी बढ़ावा देना है.
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