15 साल की उम्र में बना माओवादी, संगठन का था मिलिट्री ब्रेन... आखिर कैसे इतना खतरनाक नक्सली बना हिडमा?

    Madvi Hidma Encounter: छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए ‘हिडमा’ सिर्फ एक नाम नहीं था, वह एक डर की परछाई था, जिसने बस्तर के जंगलों को खून और हिंसा से कई वर्षों तक दहला रखा. लेकिन आखिरकार सुरक्षा बलों की लंबे समय से चल रही खोज उस घने जंगल में पूरी हुई, जहाँ आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा मिलती है. 

    Maoist age of 15 military brain of the organization Hidma become such a dangerous Naxalite
    Image Source: Social Media

    Madvi Hidma Encounter: छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए ‘हिडमा’ सिर्फ एक नाम नहीं था, वह एक डर की परछाई था, जिसने बस्तर के जंगलों को खून और हिंसा से कई वर्षों तक दहला रखा. लेकिन आखिरकार सुरक्षा बलों की लंबे समय से चल रही खोज उस घने जंगल में पूरी हुई, जहाँ आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा मिलती है. 

    इसी इलाके में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में शीर्ष नक्सली कमांडर मादवी हिडमा और उसकी पत्नी को ढेर कर दिया गया. यह वही हिडमा था, जिसकी योजना पर दंतेवाड़ा, झीरम घाटी और सुकमा जैसे जघन्य हमले अंजाम दिए गए, जिनकी पीड़ा आज भी लोगों की यादों में ताज़ा है.

    नक्सल आंदोलन का सबसे खतरनाक हथियार

    1981 में सुकमा जिले के पुवर्ती गांव में जन्मा हिडमा बेहद कम उम्र में माओवादी विचारधारा की ओर झुक गया. सिर्फ 15 साल की उम्र में उसने पीपुल्स वॉर ग्रुप जॉइन किया और यहीं से उसकी कहानी शुरू हुई, एक साधारण आदिवासी युवक से लेकर नक्सली संगठन के सबसे खतरनाक कमांडर तक का सफर.

    1996 में वह पामेड़ रेंज कमिटी में सक्रिय था. शुरुआती वर्षों में DAKMS में काम करते हुए उसने स्थानीय स्तर से संगठन की संरचना को समझा. रमन्ना और देवजी जैसे बड़े माओवादी नेताओं ने उसे प्रशिक्षित किया और धीरे-धीरे वह गुरिल्ला युद्धकला का माहिर बन गया. 2000 के बाद उसे DKSZC में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ मिलीं और कुछ ही समय में वह DKSZC का सचिव बन गया, यह नक्सली संगठन का बेहद प्रभावशाली ओहदा है.

    26 बड़े नक्सली हमलों का मास्टरमाइंड

    पिछले दो दशकों में भारत के जिन नक्सली हमलों ने देश को झकझोर दिया, उनमें से लगभग सभी के पीछे एक ही दिमाग था, हिडमा. उसका नेटवर्क, रणनीति और जंगलों की समझ इतनी गहरी थी कि सुरक्षा एजेंसियाँ भी उसके नाम से सतर्क हो जाती थीं. उसके सिर पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था.

    2010- दंतेवाड़ा हमला: 76 जवान शहीद

    6 अप्रैल 2010 का दिन भारतीय सुरक्षा इतिहास का सबसे काला दिन था. ताड़मेटला इलाके में हिडमा की रणनीति के अनुसार 1000 से ज्यादा नक्सलियों ने CRPF की टुकड़ी पर हमला किया. 76 जवान शहीद हुए.

    2013- झीरम घाटी नरसंहार: कांग्रेस नेताओं सहित 27 की हत्या

    दरभा घाटी में काफिले पर हमला नक्सली हिंसा की सबसे दर्दनाक घटनाओं में गिना जाता है. इसका पूरा संचालन हिडमा ने किया था.

    2017- सुकमा हमला: 25 जवान शहीद

    कोंटा में सड़क निर्माण की सुरक्षा कर रही टीम पर घात लगाकर हमला, इस पूरी योजना का आर्किटेक्ट फिर हिडमा ही था.

    2021- सुकमा- बीजापुर मुठभेड़: 22 जवान शहीद

    इस हमले में हिडमा की भूमिका एक बार फिर सामने आई, और सुरक्षा बलों को भारी क्षति पहुँची.

    उसकी चाल पकड़ना कठिन क्यों था?

    हिडमा को नक्सल संगठन का ‘मिलिट्री ब्रेन’ कहा जाता था. वह दक्षिण और पश्चिम बस्तर के घने जंगलों, बेज्जी, बुरकापाल, एल्मागुंडा, तोंडामरका में सबसे सक्रिय था. उसकी मूवमेंट इतनी तेज़ और गुप्त होती थी कि सुरक्षा एजेंसियों के लिए उसके करीब पहुंचना लगभग असंभव माना जाता था. 

    उसके पास प्रशिक्षित बॉडीगार्ड्स की एक मजबूत टीम रहती थी. वह हर कुछ दिनों में ठिकाना बदल देता था. जंगल के छोटे, अनजाने रास्तों का उपयोग करके घेराबंदी से बच निकलता था. उसके दस्तों में 300-400 तक लड़ाके शामिल होते थे.

    शीर्ष नक्सली बैठकों में सक्रिय भूमिका

    2014 में ऑरछा में हुई DKSZC और SMC की बैठक में हिडमा मौजूद था. 2019 में भी वह केंद्रीय कमेटी और PB की महत्वपूर्ण बैठकों में हिस्सा लेता दिखा. यानी वह नक्सली संगठन के ऑपरेशनल और पॉलिटिकल, दोनों मोर्चों पर बराबर प्रभाव रखता था.

    अंत में, सुरक्षा बलों की सबसे बड़ी जीत

    वर्षों से चल रही तलाश और लगातार चल रहे संयुक्त अभियानों का नतीजा आखिरकार आंध्र प्रदेश-छत्तीसगढ़ की सीमा के घने जंगलों में मिला. मुठभेड़ में हिडमा और उसकी पत्नी मारे गए और इस ऐतिहासिक सफलता ने वह अध्याय समाप्त कर दिया जिसके कारण छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में दशकों तक खून बहा.

    यह भी पढ़ें- मारुति सुजुकी ने SUV ग्रैंड विटारा के हज़ारों मॉडल को मंगाया वापस, जानें कंपनी ने क्यों लिया ये फैसला